आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक पूर्वतैयारी : भाग – ३

आपातकाल से पार होने के लिए साधना सिखानेवाली सनातन संस्था !

आपातकाल में अखिल मानवजाति की प्राणरक्षा हेतु आवश्यक तैयारी
करने के विषय में मार्गदर्शन करनेवाले  एकमात्र परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी !

बाढ, भूकंप, तृतीय विश्‍वयुद्ध, कोरोना महामारी समान संकट आदि आपातकाल का सामना करने के लिए आवश्यक तैयारी के विषय में इस लेखमाला के पहले लेख में चूल्हा, गोबर-गैस आदि के विषय में जानकारी देखी । दूसरे लेख में सब्जियां, फल आदि की खेती करने की जानकारी ली । अब इस लेख में टिकाऊ पदार्थों का विवेचन किया है । आपातकाल में नित्य की भांति अल्पाहार अथवा भोजन बनाना संभव न होने के कारण हमें भुखमरी का सामना न करना पडे, इसके लिए घर में पहले ही आगे दिए टिकाऊ पदार्थ बनाकर रखें, वे काम आएंगे ।

भाग २ पढने के लिए देखें : ‘आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु पूर्वतैयारी भाग – २’

३. आपातकाल की दृष्टि से शारीरिक स्तर पर आवश्यक विविध तैयारी !

३ अ ५. विविध टिकाऊ खाद्यपदार्थ खरीदकर रखना अथवा घर में बनाकर रखना

आपातकाल में ऐसी स्थिति निर्माण हो सकती है कि भोजन के लिए ईंधन का अभाव हो, घर में सभी लोग रोगी हों, अचानक अन्य स्थान पर रहना पडे, बाजार में साग-सब्जियां न मिले इत्यादि । ऐसे समय पर सदैव की भांति अल्पाहार और भोजन नहीं बना सकेंगे । इस स्थिति के लिए विविध टिकाऊ खाद्यपदार्थों का संग्रह करना उपयुक्त होगा ।

अ. आगे दिए गए पदार्थों में से कुछ पदार्थ (उदा. खाकरे, अचार, पेय) बाजार से खरीदकर रख सकते हैं । घर में अभी से ऐसे पदार्थ बनाने की आदत डालें; क्योंकि आगे आपातकाल जैसे-जैसे तीव्र होता जाएगा, वैसे-वैसे ये पदार्थ बाजार में उपलब्ध होना भी कठिन होगा ।

आ. आगे दिए गए विविध पदार्थ उदाहरणस्वरूप हैं । इसके साथ ही उनका यहां उल्लेख करते समय अधिकतर महाराष्ट्र की दृष्टि से विचार किया गया है । पाठक अपने-अपने राज्य अथवा देश के अनुसार टिकाऊ पदार्थ खरीद कर रख सकते हैं अथवा घर में बना सकते हैं ।

इ. हमने टिकाऊ पदार्थ बनाने की विधि विस्तार में नहीं दी हैं । अनेक लोगों को ये विधियां पता भी होंगी । परंतु आपातकाल का विचार कर अनेक स्थानों पर टिकाऊ पदार्थ अधिक समय तक खानेयोग्य कैसे रहें, इस संदर्भ में उपयुक्त सूचना दी है ।

पाठक को यदि टिकाऊ पदार्थ बनाने की जानकारी न हो, तो वे अपने संबंधियों से समझें, उसके लिए पाकशास्त्र की पुस्तक पढें अथवा ‘यू ट्यूब’ पर दी इन पदार्थों की विधि देखें ।

ई. ग्रंथ में जहां संभव है वहां खाद्यपदार्थ टिकने की कालावधि भी दी है । यह कालावधि विशिष्ट प्रदेश की जलवायु, पदार्थ बनाते समय रखी गई सावधानियां इत्यादि घटकों पर भी निर्भर है ।

३ अ ५ अ. चावल और रागी का आटा, दूध का पाउडर इत्यादि पदार्थ
३ अ ५ अ १. चावल और रागी का आटा
रागी का आटा

‘इनमें से रागी का आटा अधिक पौष्टिक है ।

चावल ३-४ घंटे पानी में भिगोकर, उसे चलनी में रख दें । जिससे सब पानी निकल जाए । फिर लगभग १ घंटे में चावल से पानी निकलने के उपरांत और उसका गीलापन कम होने पर थोडे-थोडे चावल मध्यम आंच पर भूनें । एक बार में थोडे से ही चावल लेने पर वह खील समान फूल जाते हैं । अंत में चावल का आटा बनाकर सूखी बरनी में भरकर रखें । यह आटा लगभग ३ माह टिकता है । फिर उसे दूध, दही, छाछ अथवा दाल में डालकर खा सकते हैं । इस आटे को दूध मिलाते समय उसमें स्वाद के लिए शक्कर अथवा गुड डाल सकते हैं ।

चावल का आटा बनाने की पद्धति समान ही रागी का भी आटा बनाकर रख सकते हैं । यह आटा लगभग ३ माह टिकता है ।

३ अ ५ अ २. सत्तू
सत्तू

गेहूं को धोकर, उसे चलनी में रखकर पानी निकल जाने दें । फिर १ घंटे में गेहूं में से पानी निकल जाने पर, उसकी नमी दूर होने पर उसे मध्यम आंच पर भूनें । उसमें दालिया (छिले हुए चने) और जीरा भूनकर डालें । सर्व एकत्र कर उसका आटा बनाएं । यह आटा हवाबंद डिब्बे अथवा सूखी बरनी में भरकर रखें । इस आटे में पानी अथवा दूध डालकर स्वाद के अनुसार शक्कर अथवा गुड डालकर खा सकते हैं । यह आटा लगभग ६ माह टिकता है ।

प्रांत के अनुसार सत्तू बनाने की भिन्न पद्धतियां हैं । कुछ स्थानों पर गेहूं के स्थान पर जौ का उपयोग करते हैं, तो कुछ स्थानों पर केवल साबूत चने भूनकर उसका सत्तू बनाते हैं । ५ से ७ अनाजों को एकत्र कर ऊपर दिए अनुसार भूनकर उसका आटा बना सकते हैं ।

– श्रीमती क्षमा राणे, सनातन आशम, रामनाथी, गोवा. (फरवरी २०२०)
३ अ ५ अ ३. गेहूं अथवा रागी का ‘सत’
रागी का ‘सत’

गेहूं अथवा रागी का चीक निकालकर उसे अच्छी प्रकार सुखाने पर उसका पाउडर तैयार होता है, उसे ‘सत’ कहते हैं । यह पाउडर पौष्टिक होता है और दूध अथवा पानी में पकाकर उसमें चीनी अथवा गुड डालकर खा सकते हैं । यह पाउडर ३ माह टिकता है ।

– श्रीमती अर्पिता देशपांडे, सनातन आश्रम, मीरज. (फरवरी २०१९)
३ अ ५ अ ४. यंत्र द्वारा प्रक्रिया किए हुए पौष्टिक पदार्थ

दूध का पाउडर, छोटे बच्चों के लिए विविध पोषक घटक युक्त पाउडर, उदा. लैक्टोजेन (Lactogen), सेरेलैक (Cerelac). सेरेलैक पूरक आहार के रूप में रोगी अथवा वयस्क लोग भी खा सकते हैं ।

३ अ ५ आ. धूप में करारी सुखाई रोटियां, गुड की रोटियां इत्यादि पदार्थ
३ अ ५ आ १. ज्वार और बाजरे की रोटियां
ज्वार की रोटियां

‘ये रोटियां बनाने के पूर्व उस आटे में स्वाद के लिए नमक, मिर्च और हींग डाल सकते हैं ।

अ. ज्वार के आटे की एकदम पतली रोटियों को धूप में करारी सुखा लें । ये रोटियां लगभग १ माह टिकती हैं ।

आ. बाजरे के आटे की एकदम पतली रोटियां बनाकर उन्हें कडी धूप में सुखाएं । ये रोटियां ज्वार की रोटियों की तुलना में स्वादिष्ट होती हैं और लगभग २ माह टिकती हैं ।

धूप में करारी सुखाई हुई रोटियों को भली-भांति बंद डिब्बे में भरकर रखें । इन रोटियों के टुकडे कर उनपर उष्ण (गरम) दाल अथवा तरकारी डालकर खा सकते हैं ।

३ अ ५ आ २. गुड की रोटियां
गुड की रोटियां

गुड की रोटियां अच्छे से सेंकें । रोटी सिंक जाने पर उसे पूरी ठंडी होने दें । रोटियां जब गरम हों, तब एक पर एक न रखें । उन्हें ठंडी होने पर हवाबंद डिब्बे में भरकर रखें । ऐसी रोटियां लगभग १ माह अथवा उससे भी अधिक टिकती हैं ।

३ अ ५ आ ३. खाकरे
खाकरे

मेथी, जीरा, मसाला (उदा. चाट मसाला, गरम मसाला) आदि स्वादों में खाकरे बना सकते हैं । इसके लिए गेहूं के आटे में हमें जिस स्वाद के खाकरे बनाने हैं, वह पदार्थ डालकर कडा आटा गूंथें । उसकी अत्यंत पतली रोटी बेलें । उसे तवे पर सेंकते समय स्वच्छ कपडे से पूरी रोटी को दबाकर मंद आंच पर सेंकें । उसे कहीं से भी फूलने न दें । फिर रोटी को पूर्णत: ठंडा होने दें । खाकरे ठंडे होने पर हवा बंद डिब्बे में भरकर रखें । ये लगभग ३ माह टिकते हैं ।

३ अ ५ इ. गेहूं के आटे के और अन्य अनाज के आटे के लड्डू
गेहूं के आटे के लड्डू

पिसी शक्कर अथवा गुड मिलाकर बनाए आटे के लड्डू १-२ माह टिकते हैं । रागी के आटे, चने के आटे (बेसन), मूंग के आटे इत्यादि के लड्डू भी १-२ माह टिकते हैं ।

३ अ ५ ई. आम की रोटी और पके कटहल की रोटी
कटहल की रोटी

इसे कडी धूप में सुखाएं । आम की रोटी पर आवश्यक उतना गरम पानी डालकर गलाने पर उसे आमरस समान सादी रोटी में लगाकर भी खा सकते हैं ।

आम की रोटी और कटहल की रोटी लगभग १ वर्ष टिकती है ।

– (पू.) वैद्य विनय भावे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (जनवरी २०२०)
३ अ ५ उ. आम का रस
आम का रस

१. आम के रस में समान मात्रा में शक्कर मिलाकर उस मिश्रण को पूर्ण सूखने तक धूप में रखें । ऐसे सुखाए रस को प्रशीतक (फ्रिज में) रखने पर वह लगभग डेढ-दो वर्ष टिकता है और प्रशीतक के बाहर रखने पर लगभग १ वर्ष टिकता है ।

२. आम के रस में समान मात्रा मेेंं शक्कर मिलाकर उस मिश्रण को गैस पर अथवा चूल्हे पर रखकर उबालेंं । यह उबला हुआ रस प्रशीतक में रखने पर लगभग १ वर्ष टिकता है । (प्रशीतक में न रखने पर उसे फफूंद लग सकती है ।)

३ अ ५ ऊ. आम का मुरब्बा, कच्चे आम का छुंदा इत्यादि पदार्थ

ये शक्कर अथवा गुड की चाशनी के पदार्थ हैं । ये पदार्थ टिकने के लिए गुड अथवा शक्कर की कडी चाशनी बनाएं । इससे चाशनी में पानी का थोडा-सा भी अंश नहीं रहता और बनाया हुआ पदार्थ अधिक टिकता है । कडी चाशनी बनाने से पदार्थ में ‘प्रिजरवेटिव’ (पदार्थ खराब न हों; इसलिए प्रयुक्त रासायनिक पदार्थ) नहीं डालना पडता है ।

३ अ ५ ऊ १.  आम का मुरब्बा
आम का मुरब्बा

यह कच्चे अथवा पके आमों से बनाया जाता है , यह एक वर्ष तक सहज टिकता है ।

३ अ ५ ऊ २. कच्चे आम का छुंदा (कच्चे आम को घिस कर उसमें आवश्यकता के अनुसार पदार्थ डालकर बनाया मिश्रण)

इसे १५ से २० दिन कडी धूप में रखें, यह अनेक वर्ष टिकता है ।

३ अ ५ ऊ ३. आंवला, कच्चे आम, स्ट्रॉबेरी, संतरे आदि की जेली और जैम
जेली और जैम

ये साधारणत: १ वर्ष टिकते हैं ।

– श्रीमती अर्पिता देशपांडे, सनातन आश्रम, मीरज. (फरवरी २०१९)
३ अ ५. अचार और टमाटर की चटनी (सॉस)
३ अ ५ ए १. अचार
अचार
अ. घर में बनाया अचार लंबे समय तक टिके, इसके लिए ये सावधानी बरतें

आगे दी हुई बातों का ध्यान रखकर यदि घर में अचार बनाएंगे, तो आम, आंवला, मिर्ची, कच्ची हलदी इत्यादि का अचार १-२ वर्ष टिकता है । नींबू को उबालकर बनाया अचार लगभग ४-५ वर्ष टिक सकता है । नींबू के अचार से बीमार व्यक्ति के मुख में स्वाद आता है और वह जितना पुराना होता है उतना ही अच्छा होता है ।

अ १. अचार बनाने से पहले हाथ स्वच्छ धोकर सुखाएं । अचार के लिए उपयोग किए जानेवाले कच्चे आम, नींबू, आंवला, कच्ची हलदी, मिर्ची इत्यादि धोकर, पोंछें और सुखा लें । अचार बनाने के लिए उपयोग किए जानेवाले पदार्थ, उदा. मिर्च, खडा नमक भून लें । इससे उसमें अंशमात्र भी पानी नहीं रहता । (अचार टिकने के लिए आयोडिनयुक्त नमक के स्थान पर खडे नमक का उपयोग करें; आयोडिनयुक्त नमक से अचार शीघ्र खराब हो सकता है ।) अचार के लिए शक्कर का उपयोग करना हो, तो शक्कर सूखी हो । अचार बनाते समय आवश्यकतानुसार ‘प्रिजरवेटिव’ का उपयोग कर सकते हैं ।

अ २. अचार चीनी मिट्टी की बरनी अथवा मोटे कांच की बरनी में रखें ।

अ ३. अचार बरनी में भरने के पश्‍चात उसके ऊपरी भाग पर खडा नमक फैला दें ।

अ ४. अचार में फफूंद न लगे, इसलिए हाथ की उंगली के २ पेरों बराबर तडके का तेल ठंडा कर अचार पर डालें ।

अ ५. अचार की बरनी का खुला भाग स्वच्छ और सूखे कपडे से पोंछकर बरनी का ढक्कन भली-भांति बंद करें । बरनी के ढक्कन पर स्वच्छ सूती कपडा बांधकर, उस कपडे को बरनी के गले में नाडे से बांध दें ।

अ ६. अचार की बरनी को सूखे स्थान पर रखें । (पूर्व में अचार की बरनी ऊंचे स्थान अथवा पूजाघर में रखते थे ।)

अ ७. प्रतिदिन के भोजन के समय लिया जानेवाला अचार बार-बार मुख्य बरनी से न निकालें । सप्ताह में एक बार ही पूरे सप्ताह के लिए पर्याप्त अचार अलग बर्तन में निकालें । यथासंभव स्नान करने के पश्‍चात ही मुख्य बरनी से अचार निकालें । अचार निकालने के लिए उपयोग किया जानेवाला बडा चम्मच, जिस बर्तन में निकालकर रखना है वह बर्तन और अचार निकालनेवाले के हाथ सूखे होने चाहिए । अचार बरनी से निकालने के उपरांत उसे बाहर से स्वच्छ सूखे कपडे से पोंछकर पहले की भांति बंद कर दें ।

अ ८. रजस्वला स्त्री अचार की मुख्य बरनी को स्पर्श न करें । ग्रहणकाल में भी मुख्य अचार की बरनी को स्पर्श न करें ।

कोकण में अथवा तटवर्ती प्रदेशों के वातावरण में आर्द्रता होने के कारण अचार में फफूंद लगने की मात्रा अन्य प्रदेशों की तुलना में कुछ अधिक होती है । इसलिए ऐसे स्थानों पर अचार उष्ण और सूखे वातावरण की तुलना में कुछ अल्प समय टिकता है ।

– श्रीमती अर्पिता देशपांडे, सनातन आश्रम, मीरज (फरवरी २०१९) और श्री. प्रसाद म्हैसकर, रत्नागिरी (८.८.२०१९)
३ अ ५ ए २. टमाटर की चटनी (सॉस)
टमाटर की चटनी (सॉस)

बिना सिरके (सिरका अर्थात विनेगर – पदार्थ टिकाऊ रखने के लिए डाला जानेवाला खट्टा द्रव्य) की टमाटर की चटनी (सॉस) प्रशीतक में रखने से वह १ वर्ष टिकती है । सिरकायुक्त टमाटर की चटनी प्रशीतक के बाहर रखने पर, वह ६ माह टिकती है और प्रशीतक में रखने पर लगभग डेढ- दो वर्ष टिक सकती है ।

३ अ ५ ऐ. चटनियां आदि पदार्थ
३ अ ५ ऐ १. कच्चे आम, आंवले और इमली की गीली चटनियां
कच्चे आम की गीली चटनि

अ. कच्चे आम की चटनी : शक्कर की कडी चाशनी बनाएं । उसमें आवश्यक मसाले और उबले आम डालकर चटनी बनाएं । ऐसी चटनियां मध्यम पके हुए आमों से भी बना सकते हैं और शक्कर के स्थान पर गुड की चाशनी भी बना सकते हैं ।

आ. आंवले की चटनी : कच्चे आम के समान ही आंवले की भी चटनी बना सकते हैं ।

इ. इमली की चटनी : इमली को आधे घंटे पानी में भिगोएं । तदुपरांत उसका गूदा निकालकर उसका रस निचोड लें । फिर उसमें गुड अथवा शक्कर की कडी चाशनी बनाकर उसमें इमली का रस, सूखी लाल मिर्च, नमक, काली मिर्च पाउडर और धनिया-जीरे का पाउडर डालकर उस मिश्रण को अच्छे से उबलने दें । सब ठीक से मिलने पर गैस बंद कर दें ।

ये चटनियां ठंडी होने पर कांच की बरनी में भरकर रखें । ये चटनियां प्रशीतक में रखने से डेढ वर्ष तक टिकती हैं, जबकि बिना प्रशीतक के १ वर्ष टिकती हैं ।

– श्रीमती अर्पिता देशपांडे, सनातन आश्रम, मीरज. (फरवरी २०१९)
३ अ ५ ऐ २. विविध प्रकार की सूखी चटनियां
सूखी चटनियां

जैसे मूंगफली, तिल, अलसी, छिलके रहित चने, सूखा नारियल इत्यादि को सूखा भूनकर इनमें स्वादानुसार मसाले डालकर चटनियां बना सकते हैं । इन्हें चावल पर डालकर खा सकते हैं, सूखे होने से ये पदार्थ लगभग ३ माह टिकते हैं ।

– श्रीमती क्षमा राणे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (जनवरी २०२०)
३ अ ५ ओ. बडी, पापड इत्यादि पदार्थ
सब्जियां एवं सोयाबीन के ‘सांडगे’

ये पदार्थ लगभग वर्षभर टिकते हैं ।

१. बडी : कुछ प्रदेशों में इन्हें ‘सांडगे’ भी कहते हैं ।

अ. तरबूज का सफेद और हरा भाग, लौकी, कद्दू, पपीता, गोभी इत्यादि विविध प्रकार की सब्जियां एवं सोयाबीन के ‘सांडगे’

आ. शकरकंद और ज्वार की बडी

इ. मूंगदाल, उडद दाल, चना दाल, मोठ की दाल आदि की बडी । इन दालों को एकत्र करके भी बडी बना सकते हैं ।

बडियों की सब्जी भी बनती है । लौकी, कद्दू जैसी सब्जियों की बडी बनाते समय नमक न डालें । क्योंकि नमक के कारण सब्जी पकने में बाधा आती है । भोजन के साथ यदि तलकर खाने के लिए बडियां बनानी हों, तो उसमें नमक डालें ।

– श्रीमती छाया विवेक नाफडे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (मई २०२०)

२. कद्दूकस : आलू का कद्दूकस और शकरकंद का कद्दूकस

३. पापड : उडद, मूंग, चावल, रागी और पोहे के पापड, साथ ही पके कटहल के पापड

पापड

४. ज्वार, चावल, साबुदाना और आलू के पापड और गेहूं की कुडलई (कुरडई)

५. भरवां मिरची अथवा दहीवाली मिर्ची

– श्रीमती अर्पिता देशपांडे, सनातन आश्रम, मीरज. (फरवरी २०१९)

६. कटहल के बीज

३ अ ५ औ. प्यास और कुछ प्रमाण में भूख का शमन हो, ऐसे पेयपदार्थ
पेयपदार्थ

‘नींबू के रस में समान मात्रा में शक्कर मिलकार उसे कांच की बरनी में भरकर रखें और उसमें शक्कर पूर्ण घुलने तक उसे धूप में रखें । धूप की तीव्रता के अनुसार शक्कर घुलने में लगभग १५ से ३० दिन लगते हैं । नींबू का शरबत बनाने की पद्धति के समान ही संतरे और मोसंबी का शरबत भी बना सकते हैं । ये शरबत प्रशीतक में न रखने पर भी २-३ वर्ष टिकते हैं, प्रशीतक में रखने पर उनका स्वाद बदल जाता है; इसलिए उन्हें प्रशीतक में नहीं रखा जाता ।

३ अ ५ औ २. कच्चे आम का पना
कच्चे आम का पना

कच्चे आम को उबाल कर, उनका गूदा निकाल कर उसमें शक्कर अथवा गुड-शक्कर मिलाकर उसका पना बना सकते हैं । फिर इसे कांच की बरनी में भरकर प्रशीतक में रखें । यह एक से डेढ वर्ष टिकता है ।

इस प्रकार प्रांत के अनुसार (उदा. कोकण में कोकम शरबत) और फलों की उपलब्धता के अनुसार विविध फलों के टिकाऊ पेयपदार्थ बनाकर रखे जा सकते हैं ।

– श्रीमती अर्पिता देशपांडे, सनातन आश्रम, मीरज (फरवरी २०१९)
३ अ ५ अं. अधिक पोषक तत्त्वों से युक्त बिस्किट, ५ वर्ष टिकनेवाली शेल्फ लाईफ चॉकलेट्स (कुकीज), सूखा मेवा इत्यादि पदार्थ
शेल्फ लाईफ चॉकलेट्स

आपातकाल में किसी समय एकाएक स्थलांतर करना पडे, तो वहां कुछ कारणवश फंसे रहना पड सकता है । ऐसे समय पर कभी-कभी खाने के लिए अन्न भी उपलब्ध नहीं होता । इस स्थिति में उपरोक्त पदार्थों का अधिक अच्छा उपयोग हो सकता है ।

संदर्भ : सनातन की आगामी ग्रंथमाला ‘आपातकाल में प्राणरक्षा हेतु आवश्यक पूर्वतैयारी’

(प्रस्तुत लेखमाला के सर्वाधिकार (कॉपीराईट) सनातन भारतीय संस्कृति संस्था के पास सुरक्षित है ।)

भाग ४ पढने के लिए देखें : आपातकाल में आपातकाल में जीवनरक्षा हेतु आवश्यक पूर्वतैयारी भाग – ४

संकलनकर्ता : परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवलेजी

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