६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने हेतु किए जानेवाले प्रयत्न

साधना छोडकर अन्य सभी विषयों में वार्षिक परीक्षा होती है । परीक्षा के पहले केवल २ – ३ माह अध्ययन करने पर भी अनेक लोग उत्तीर्ण हो जाते हैं, जबकि साधना में प्रतिदिन, प्रत्येक क्षण परीक्षा होती है । उसमें उत्तीर्ण होना पडता है, तब ही ६१ प्रतिशत एवं उसका अगला स्तर साध्य कर सकते हैं ।

६१ प्रतिशत स्तर पर माया से मुक्त हो जाते हैं, अर्थात क्या होता है, इस पर सूझे विचार एवं ६१ प्रतिशत से आगे जाने के लिए किए जानेवाले प्रयत्न

प्रस्तुत लेख में ६१ प्रतिशत प्राप्त करने और आगे जाने के लिए वास्तव में कौनसे प्रयत्न करने चाहिए, यह दिया है । उनकी दृष्टि से साधना के कौनसे सूत्र महत्त्वपूर्ण हैं, यह इस लेख से स्पष्ट होता है ।

सनातन के ज्ञानप्राप्तकर्ता साधकों को होनेवाले विविध प्रकार के कष्ट एवं उन्हें मिलनेवाले ज्ञान की विशेषताएं !

विष्णुस्वरूप परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के धर्मसंस्थापना के कार्य को ज्ञानशक्ति का समर्थन मिलने के लिए ईश्वर सनातन संस्था की ओर ज्ञानशक्ति प्रवाहित कर रहा है । इस प्रवाह में ज्ञानशक्ति से ओतप्रोत चैतन्यदायी सूक्ष्म विचार ब्रह्मांड की रिक्ती से पृथ्वी की दिशा में प्रक्षेपित हो रहे हैं ।

बुद्धिप्रमाणवाद से विश्वबुद्धि द्वारा ज्ञानप्राप्ति के चरण

जिज्ञासुवृत्ति बुद्धि की सात्त्विकता की प्रक्रिया करवाने के लिए महत्त्वपूर्ण है । इसलिए मनुष्य जिज्ञासु के चरण पर होते हुए धर्म अथवा अध्यात्म का ज्ञान प्रथम बुद्धि से जानकर उस अनुसार कृति करते जाने से उसकी बुद्धि सात्त्विक होकर वह प्रथम साधक, तदुपरांत शिष्य और अंत में संत अथवा गुरु इस स्तर तक पहुंच सकता है

संत भक्तराज महाराज और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चित्र बनाते समय भावस्थिति का अनुभव होना

चित्र बनाते समय मैं भावस्थिति का अनुभव कर रहा था और मुझे इस स्थिति का पुनः-पुनः अनुभव करने का अवसर मिले; इसके लिए मैंने और दो चित्र बनाए । एक चित्र बनाने में मुझे लगभग ५ – ६ दिन लगे ।

कठिन परिस्थितिका अथवा समस्याका सामना करते समय भगवान श्रीकृष्णके उपरनेके पीछे छिपकर आश्रय लेना

इस चित्रमें भगवान श्रीकृष्णद्वारा धारण किए उपरनेका एक छोर बालभावयुक्त साधिकाद्वारा हठपूर्वक नीचे भूमितक खींचना और इसीसे श्रीकृष्णसे उसकी निकटता स्पष्ट होती है ।

श्री गणेशकी पूजा पूरे भावसे करें, यह भगवान श्रीकृष्णद्वारा सिखाना

‘गणेशचतुर्थीके दिन भगवान श्रीकृष्ण मुझे सिखा रहे हैं कि श्री गणेशजीकी पूजा भावपूर्णरीतिसे कैंसे करनी चाहिए ।

चित्रके विषयमें मनमें किसी भी प्रकारकी मूर्त (स्पष्ट) कल्पना न होते हुए भी श्रीकृष्णने ऊपर उठाया है, ऐसा चित्र साकार होना

अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के सम्मोहन उपचार विशेषज्ञ परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने २४ मार्च १९९९ को सनातन संस्था की स्थापना की । उन्होंने शीघ्र ईश्‍वरप्राप्ति के लिए गुरुकृपायोग बताया ।

श्रीमती उमा रविचंद्रन् द्वारा बनाए व्यष्टि और समष्टि भाव दर्शानेवाले चित्र एवं उन चित्रोंकी विशेषताएं

साधनापथपर मार्गक्रमण करते समय साधककी साधना एक स्तरतक बढनेपर उसका ईश्वरके प्रति भाव जागृत होता है । ईश्वरकी ओर देखनेका दृष्टिकोण साधकके भावानुरूप भिन्न होता है, उदा. अर्जुनका भगवान श्रीकृष्णके प्रति सख्यभाव, हनुमानजीका दास्यभाव आदि ।

सनातन के १ सहस्र साधकों का ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर संतत्व की दिशा में मार्गक्रमण !

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए समाज का सत्त्वगुण बढना आवश्यक है । १ सहस्र साधकों ने आध्यात्मिक उन्नति की, जिसका आध्यात्मिक परिणाम समाज की सात्त्विकता बढने में होगा और इस माध्यम से हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का मार्ग सुगम होगा । धन्य हैं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी और धन्य है उनके द्वारा बताया गया गुरुकृपायोग साधना का मार्ग !’