संत भक्तराज महाराज और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चित्र बनाते समय भावस्थिति का अनुभव होना

भारतीय संस्कृति में १४ विद्या और ६४ कलाओं का उल्लेख है । आजकल मनोरंजन तथा अर्थार्जन के लिए कला का उपयोग किया जाता है । साधना अथवा ईश्वर को पुकारने के साधन के रूप में कला का माध्यम चुनने पर उस कला में आर्तता आती है । साधना से कलाकार की कलाकृतियों में सजीवता आती है । साधक श्री. विजय जाधव द्वारा रेखांकित किए चित्र देखकर इसकी प्रतीति होती है । श्री. जाधव के बनाए संतों के ये चित्र बहुत सुंदर और सुडौल हैं । इन चित्रों में संतों की आंखें बहुत सजीव हैं । चित्र की सूक्ष्मताओें के कारण वह रेखाचित्र न होकर प्रत्यक्ष छायाचित्र ही है’, ऐसा प्रतीत होता है ।

संत भक्तराज महाराज का श्री. विजय जाधव द्वारा रेखांकित चित्र

 

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का सहज स्थिति में बनाया सजीव चित्र

 

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ७४ वें जन्मोेत्सव के समय धारण किए वेशभूषा में चित्र
श्री. विजय जाधव

आवागमन (लॉकडाउन) पर रोक के समय मैंने संत भक्तराज महाराज और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के चित्र बनाए । दोपहर विश्राम के समय में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का चित्र बनाना आरंभ करने पर मेरे ध्यान में आया, ‘चित्र बनाते समय बार-बार मूल चित्र को देखना पडता है ।’ तब मुझे लगा, ‘गुरुदेव मेरी ओर देख रहे हैं ।’ तब से चित्र बनाते समय मैं भावस्थिति का अनुभव कर रहा था और मुझे इस स्थिति का पुनः-पुनः अनुभव करने का अवसर मिले; इसके लिए मैंने और दो चित्र बनाए । एक चित्र बनाने में मुझे लगभग ५ – ६ दिन लगे । भावस्थिति का अनुभव ले पाने के लिए गुरुदेवजी के चरणों में कोटिशः कृतज्ञता !’ – श्री. विजय गुलाबराव जाधव, जळगांव

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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