साधको, ‘सेवा, गुरुकृपा का माध्यम है’, यह भाव रखकर सेवा करो !

ईश्वरप्राप्ति के लिए की गई साधना में सेवा का महत्त्व है । हमें सेवा इस प्रकार करनी चाहिए जिससे हमारे स्वभावदोष नष्ट हों, गुण बढें, सेवा का आनंद मिले और हमारी शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होगी

सत्सेवा किसे कहते हैं ?

‘एक बार बुद्धि से अध्यात्म का महत्त्व ध्यान में आया कि, ‘इस जन्म में ही मोक्षप्राप्ति करना है’, ऐसा निश्चय यदि उसी समय निश्चय हुआ तथा साधना आरंभ हुई कि, सत्संग में क्या सीखाया जाता है, इस बात को अल्प महत्त्व रहता है । यदि ऐसे साधक ने नामजप तथा सत्संग के साथ-साथ सेवा की, तो उसे अधिकाधिक आनंद प्राप्त होने लगता है तथा साधक पर गुरुकृपा का वर्षाव निरंतर रहता है ।
सत्सेवाके संदर्भमें निम्नलिखित विषयों का ध्यान रहे ।