परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अमृत महोत्सव समारोह के समय तुला का यू.टी.एस. (यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर) उपकरण से महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय द्वारा किया वैज्ञानिक परीक्षण !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अमृत महोत्सव समारोह के समय,
तुला के पलडे में उनके बैठने से पूर्व और पश्‍चात,
तुला की अध्यात्म-स्तरीय विशेषताआें का अध्ययन करने हेतु
यू.टी.एस. (यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर) उपकरण से महर्षि
अध्यात्म विश्‍वविद्यालय द्वारा किया वैज्ञानिक परीक्षण !

अत्युच्च स्तर के संत ईश्‍वर के सगुण रूप होते हैं । उनकी देह सात्त्विकता का स्रोत होती है । इसलिए संतों के संपर्क में आने पर चराचर इस सात्त्विकता से भारित हो जाता है और उसमें विविध सकारात्मक परिवर्तन होते हैं । संतों के केवल स्पर्श से असाध्य रोग दूर होना अथवा व्यसनमुक्त होना, इस प्रकार की श्रद्धालुआें की अनुभूतियों का यह अध्यात्मशास्त्र है । महर्षि की आज्ञा के अनुसार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अमृत महोत्सव समारोह में उनकी तुला विधि की गई । इस समय प्रयुक्त तुला की विधि के पूर्व और पश्‍चात की आध्यात्मिक विशेषताआें का वैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन करने हेतु यू.टी.एस. (यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर) उपकरण की सहायता से १८.५.२०१७ को रामनाथी, गोवा स्थित सनातन के आश्रम में परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के निरीक्षण और उनका विवरण आगे दिया है ।

अमृत महोत्सव समारोह में तुला विधि हेतु तुला में बैठे परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी दूसरे पलडे में तुलाद्रव्य (बूंदी)

१. परीक्षण का स्वरूप

इस परीक्षण में तुला विधि से पूर्व की तुला तथा विधि के उपरांत उसी तुला का यू.टी.एस. उपकरण से परीक्षण किया गया । इससे प्राप्त दो प्रकार के निरीक्षणों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया ।

२. वैज्ञानिक परीक्षण के घटकों संबंधी जानकारी

२ अ. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अमृत महोत्सव समारोह में तुला विधि करने की पृष्ठभूमि

१८ और १९ मई २०१७ को सनातन संस्था के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का ७५ वां जन्मदिन, अर्थात अमृत महोत्सव समारोह मनाया गया । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी अपने गुरु संत भक्तराज महाराज के शिष्य के रूप में, अर्थात शिष्यभाव में अभी भी सेवारत हैं, उसी प्रकार अध्यात्म में स्थूल की अपेक्षा सूक्ष्म श्रेष्ठ होने के कारण स्थूल नमस्कार की अपेक्षा मानस नमस्कार तथा स्थूल की वस्तुएं अर्पण करनेकी अपेक्षा सूक्ष्म मन, बुद्धि एवं चित्त अर्पित करना, आध्यात्मिक प्रगति के लिए आवश्यक है, ऐसी उनकी सीख है । इसलिए वे कभी भी स्वयं को अन्यों से पुष्प भी अर्पण नहीं करवाते न ही नमस्कार करवाते हैं; परंतु तमिलनाडु के सप्तर्षि जीवनाडी-पट्टिका के वाचक पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्जी ने बताया कि महर्षि की आज्ञा है, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी अपने अमृत महोत्सव समारोह में श्रीकृष्ण और श्रीराम के वस्त्रालंकार धारण कर सिंहासन पर विराजमान हों, तुला विधि करें, उनकी पुष्पार्चना तथा आरती कर उनके समक्ष नृत्यसेवा प्रस्तुत की जाए । तदनुसार वैसा किया गया । तुला विधि के समय परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी तुला के एक पलडे में बैठे । दूसरे पलडे में सर्व संतों द्वारा हस्तस्पर्शित तुलाद्रव्य अर्थात बूंदी रखी गई ।

३. यू.टी.एस. उपकरण द्वारा प्रभामंडल मापना

३ अ. परीक्षण के घटकों की अध्यात्म-स्तरीय विशेषताएं वैज्ञानिक उपकरण अथवा प्रणाली द्वारा अध्ययन करने का उद्देश्य

किसी घटक (वस्तु, वास्तु, प्राणी और मनुष्य) में कितने प्रतिशत सकारात्मक स्पंदन हैं ? वह सात्त्विक है अथवा नहीं ? आध्यात्मिक दृष्टि से लाभदायक है अथवा नहीं ? यह समझने के लिए व्यक्ति में बुद्धि से परे की सूक्ष्म बातें समझने की योग्यता होनी आवश्यक है । यह योग्यता उच्च आध्यात्मिक स्तर के संतों में होती है । इसलिए वे प्रत्येक घटक के स्पंदन अचूक समझ सकते हैं । श्रद्धालु और साधक संतों के वचनों पर विश्‍वास करते हैं; परंतु बुद्धिवादी लोगों के विषय में ऐसा नहीं है; वे प्रत्यक्ष प्रमाण मांगते हैं । उन्हें प्रत्येक बात वैज्ञानिक परीक्षणों से सिद्ध कर दिखानी पडती है, तभी वे उसे सत्य मानते हैं ।

३ आ. यू.टी.एस. उपकरण का परिचय

इस उपकरण को ऑरा स्कैनर भी कहते हैं । इससे घटकों (वस्तु, भवन, प्राणी और मनुष्य) की ऊर्जा और उनका प्रभामंडल मापा जा सकता है । इस यंत्र का विकास भाग्यनगर, तेलंगाना के भूतपूर्व परमाणु वैज्ञानिक डॉ. मन्नम मूर्ति ने वर्ष २००३ में किया था । वे बताते हैं कि इस यंत्र का प्रयोग, भवन, चिकित्साशास्त्र, पशु चिकित्साशास्त्र तथा वैदिक शास्त्र में आनेवाली बाधाआें का पता लगाने के लिए किया जा सकता है ।

३ इ. उपकरण द्वारा किए जानेवाले परीक्षण के घटक तथा उनका विवरण

३ इ १. नकारात्मक ऊर्जा

यह ऊर्जा हानिकारक होती है । इसे मापने के लिए स्कैनर में सकारात्मक ऊर्जा दर्शानेवाली -ve प्रादर्श (नमूना) वस्तु रखी होती है । इसके निम्नांकित दो प्रकार होते हैं ।
अ. अवरक्त ऊर्जा (इन्फ्रारेड) : इसमें, घटक वस्तुआें से निकलनेवाली इन्फ्रारेड ऊर्जा मापते हैं ।
आ. पराबैंगनी ऊर्जा (अल्ट्रावायोलेट) : इसमें किसी वस्तु से निकलनेवाली अल्ट्रावायोलेट ऊर्जा मापते हैं ।

३ इ २. सकारात्मक ऊर्जा

यह ऊर्जा लाभदायक होती है । इसे मापने के लिए स्कैनर में सकारात्मक ऊर्जा दर्शानेवाली +ve प्रादर्श (नमूना) वस्तु रखी होती है ।

३ इ ३. यू.टी.एस. उपकरण से घटक वस्तु का प्रभामंडल मापन

प्रभामंडल मापने के लिए उस घटक वस्तु के सर्वाधिक स्पंदनवाले प्रादर्श का (नमूने का) उपयोग किया जाता है; उदा. व्यक्ति के विषय में उसकी लार अथवा छायाचित्र, वस्तु के विषय में उसका छायाचित्र, वनस्पति के विषय में उसका पत्ता, मनुष्येतर प्राणियों के विषय में उनके बाल, भवन के विषय में वहां की मिट्टी अथवा धूल और देवता की मूर्ति के विषय में उसे लगा हुआ चंदन, कुमकुम, सिंदूर इत्यादि । इस परीक्षण में तुला का प्रभामंडल मापने के लिए तुला पर कपास फेरकर उसे नमूने के रूप में उपयोग किया ।

३ ई. यू.टी.एस. उपकरण से प्रयोग की पद्धति

इससे प्रयोज्य वस्तु की क्रमशः इन्फ्रारेड ऊर्जा, अल्ट्रावायोलेट ऊर्जा और सकारात्मक ऊर्जा मापते हैं । इसके लिए आवश्यक नमूना यू.टी.एस. स्कैनर में रखा जाता है । उपर्युक्त तीन परीक्षणों के पश्‍चात वस्तु का प्रभामंडल मापते हैं और उसके लिए उसमें सूत्र ३ इ ३ में दिए अनुसार नमूना वस्तु रखी जाती है ।
भवन अथवा वस्तु की इन्फ्रारेड ऊर्जा मापने के लिए यू.टी.एस. स्कैनर में पहले इन्फ्रारेड ऊर्जा मापक नमूना रखा जाता है । इसके पश्‍चात, परीक्षक व्यक्ति स्कैनर को विशिष्ट पद्धति से हाथ में पकडकर, प्रयोज्य वस्तु के सामने लगभग एक फुट के अंतर पर खडा होता है । उस समय स्कैनर की दो भुजाआें के बीच बननेवाला कोण उस वस्तु की इन्फ्रारेड ऊर्जा की मात्रा दर्शाता है; उदा. स्कैनर की भुजाएं १८० अंश खुली हों, तब उस वस्तु में इन्फ्रारेड ऊर्जा १०० प्रतिशत है और स्कैनर की भुजा थोडी भी नहीं खुली (अर्थात ० अंश का कोण है), तब उस वस्तु में इन्फ्रारेड ऊर्जा नहीं है । स्कैनर की भुजा १८० अंश खुलने पर, भुजाआें का यह कोण, स्कैनर को उस वस्तु से कितना दूर रखने पर बना रहता है, यह मापा जाता है । यह अंतर, उस वस्तु की इन्फ्रारेड ऊर्जा का प्रभामंडल हुआ । स्कैनर की भुजाएं १८० अंश से न्यून कोण में खुलें, तब इसका अर्थ यह हुआ कि उस वस्तु के सर्व ओर इन्फ्रारेड ऊर्जा का प्रभामंडल नहीं है । इसी प्रकार, क्रमशः अल्ट्रावायोलेट ऊर्जा, सकारात्मक ऊर्जा और उस वस्तु के विशिष्ट स्पंदनों का प्रभामंडल मापा जाता है ।

४. परीक्षण में समानता आने के लिए ली गई सावधानी

अ. उपकरण का उपयोग करनेवाले व्यक्ति को आध्यात्मिक कष्ट (नकारात्मक स्पंदन) नहीं था ।
आ. उपकरण का उपयोग करनेवाले व्यक्ति द्वारा पहने वस्त्रों के रंग का प्रभाव परीक्षण पर न हो, इसलिए उस व्यक्ति ने श्‍वेत वस्त्र पहने थे ।

५. यू.टी.एस. (Universal Thermo Scanner) उपकरण द्वारा दिनांक १८.५.२०१७ को किए निरीक्षण

टिप्पणी – स्कैनर १८० डिग्री के कोण में खुलने पर ही उस घटक का प्रभामंडल मापा जा सकता है । उससे अल्प डिग्री के कोण में स्कैनर खुले, तो उसका अर्थ है, उस घटक के आसपास प्रभामंडल नहीं है ।

६. निरीक्षणों का विवेचन

६ अ. सारणी की नकारात्मक ऊर्जा के संदर्भ में निरीक्षणों का विवेचन – तुला विधि के पूर्व तुला की नकारात्मक ऊर्जा तुला विधि के उपरांत पूर्णतः नष्ट होना

तुला विधि के पूर्व तुला की इन्फ्रारेड ऊर्जा मापने के लिए किए निरीक्षण में स्कैनर की भुजाएं बिलकुल भी नहीं खुलीं, इसका अर्थ है कि तुला में इन्फ्रारेड ऊर्जा बिलकुल भी नहीं है । अल्ट्रावायोलेट ऊर्जा मापने के लिए किए निरीक्षण में स्कैनर की भुजाएं १० डिग्री के कोण में खुलीं, अर्थात तुला में अल्ट्रावायोलेट ऊर्जा अल्प मात्रा में है । तुला विधि के उपरांत तुला की इन्फ्रारेड, तथा अल्ट्रावायोलेट ऊर्जा मापने के लिए किए निरीक्षण में स्कैनर की भुजाएं बिलकुल नहीं खुलीं, अर्थात तुला में दोनों प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा बिलकुल नहीं रही । इसका अध्यात्मशास्त्रीय विश्‍लेषण सूत्र क्र. ८ में दिया है ।

६ आ. सारणी की सकारात्मक ऊर्जा संबंधी निरीक्षणों का विवेचन

तुला विधि के उपरांत तुला में बडी मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होना तुला विधि के पूर्व तुला के निरीक्षण में स्कैनर की भुजाएं नहीं खुलीं, अर्थात तुला में सकारात्मक ऊर्जा बिलकुल नहीं है । तुला विधि के उपरांत तुला के निरीक्षण में स्कैनर की भुजाएं १८० डिग्री कोण में खुलीं, अर्थात तुला में सकारात्मक ऊर्जा पूर्णतः है और उसके स्पंदन तुला से १.८० मीटर दूर तक अनुभव होते हैं । इसका अध्यात्मशास्त्रीय विश्‍लेषण सूत्र क्र. ८ में दिया है ।

६ इ. सारणी की वस्तु के प्रभामंडल के संदर्भ में निरीक्षणों का विवेचन – तुला विधि के उपरांत तुला का प्रभामंडल बहुत बढना

सामान्य व्यक्ति का प्रभामंडल लगभग १ मीटर होता है । तुला विधि से पूर्व तुला का प्रभामंडल १.२० मीटर है, जबकि तुला विधि के उपरांत वह ३.०६ मीटर हो गया अर्थात प्रभामंडल ढाई गुना बढा । इसका अध्यात्मशास्त्रीय विश्‍लेषण सूत्र ८ में दिया है ।

७. निष्कर्ष

इस परीक्षण से ध्यान में आता है कि तुला के पलडे में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी लगभग २० मिनट बैठने पर तुला के सकारात्मक स्पंदनों में बहुत वृद्धि हुई ।

८. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के तुला के पलडे में बैठने के उपरांत तुला के सकारात्मक स्पंदन बढने का अध्यात्मशास्त्र

निर्जीव वस्तु का ० प्रतिशत और ईश्‍वर का १०० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर मानें, तो उस तुलना में व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति के अनुसार उसका वर्तमान आध्यात्मिक स्तर निश्‍चित किया जा सकता है । कलियुग के सामान्य व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर २० प्रतिशत होता है । आध्यात्मिक स्तर ७० प्रतिशत से अधिक हो, तो व्यक्ति संत कहलाता है ।
सामान्य व्यक्ति में सत्त्व : रज : तम की मात्रा २० : ३० : ५० होती है, जबकि ७० प्रतिशत और उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर के संतों मेंे यही मात्रा ५० : ३० : २० होती है । सामान्य व्यक्ति में कुल संख्यात्मक त्रिगुणों की मात्रा १०० प्रतिशत होती है, जबकि ७० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के संतों में वह १० प्रतिशत अथवा उससे भी अल्प होती है ।
यह मात्रा आगे घटती जाती है तथा ९० प्रतिशत से अधिक आध्यात्मिक स्तर के संतों में (परात्पर गुरु में) १/१००० इतनी न्यून हो जाती है ।

(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ गुरु का महत्त्व, प्रकार एवं गुरुमंत्र)

उपरोक्त विवेचन से परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अस्तित्व में कितनी अधिक सात्त्विकता है, यह हम समझ सकते हैं । यह सात्त्विकता उनसे निरंतर प्रक्षेपित होती है । अमृत महोत्सव समारोह में वे तुला के पलडे में लगभग २० मिनट बैठे थे । इस समय उनसे प्रक्षेपित सात्त्विकता से तुला भारित हुई । इसलिए उनके बैठने के पूर्व तुला में अल्प मात्रा में विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो गई, सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हुई और प्रभामंडल में अत्यधिक वृद्धि हुई ।
परात्पर गुरुपद पर बैठे व्यक्ति अपने केवल अस्तित्व से इतनी अल्प कालावधि में एक निर्जीव वस्तु में भी कितनी बडी मात्रा में सकारात्मक परिवर्तन कर सकते हैं, यह इस परीक्षण से ध्यान में आता है । इससे परात्पर गुरुपद पर आरुढ होने पर उनके कुल कार्यकाल में विश्‍व की निर्जीव, तथा सजीव सृष्टि में कितने सकारात्मक परिवर्तन कर रहे होंगे, इसका विचार हम कस सकते हैं ।
– डॉ. (श्रीमती) नंदिनी सामंत, महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (२४.६.२०१७)
इ-मेल : [email protected]

स्त्राेत – हिंदी सनातन प्रभात

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