नामजप, मुद्रा और न्यास के, गर्भवती स्त्री और गर्भ पर किया गया वैज्ञानिक परीक्षण

नामजप, मुद्रा और न्यास के, गर्भवती स्त्री और गर्भ पर
आध्यात्मिक स्तर पर होनेवाले प्रभाव का अध्ययन करने हेतु ‘पिप’ प्रणाली
की सहायता से ‘महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा किया गया वैज्ञानिक परीक्षण

सूचना : यह छायाचित्र वातावरण के प्रभामंडल के परीक्षण का दर्शक है, इसलिए ‘पिप’ के छायाचित्र क्र. १ से (मूल प्रभामंडल से) छायाचित्र क्र. २ एवं ३ का मेल करते समय, उसके तुलनात्मक विवरण में, छायाचित्र में दर्शाई गर्भवती स्त्री तथा आसन से संबंधित रंगों का समावेश नहीं किया गया ।

गर्भवती स्त्री एवं उसके गर्भ पर नामजप, मुद्रा एवं न्यास के आध्यात्मिक प्रभाव दर्शानेवाले ‘पिप’ (पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरेन्स फोटोग्राफी) प्रणाली द्वारा लिए गए छायाचित्र !

घटक वस्तुआें की आध्यात्मिक विशेषताएं वैज्ञानिक
उपकरणों द्वारा परीक्षण कर, अभ्यास करने का उद्देश्य

‘किसी घटक वस्तु में कितने प्रतिशत सकारात्मक स्पंदन हैं ? वह सात्त्विक है अथवा नहीं ? आध्यात्मिक दृष्टि से लाभदायक है अथवा नहीं ?’ यह समझने के लिए व्यक्ति में बुद्धि से परे की सूक्ष्म बातें समझने की योग्यता होनी आवश्यक है । यह योग्यता उच्च आध्यात्मिक स्तर के संतों में होती है । इसलिए वे प्रत्येक घटक के स्पंदन अचूक समझ सकते हैं । श्रद्धालु और साधक संतों के वचनों पर विश्‍वास करते हैं; परंतु बुद्धिवादी लोगों के विषय में ऐसा नहीं है; वे ‘प्रत्यक्ष प्रमाण’ मांगते हैं । उन्हें प्रत्येक बात वैज्ञानिक परीक्षणों से सिद्ध कर दिखानी पडती है, तभी वे उसे सत्य मानते हैं ।’

‘साधना में नामजप, नामजप के साथ मुद्रा और न्यास करना आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत लाभदायक होता है । कहते हैं ‘शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोभिजायते ।’ अर्थात भगवद्भक्त के घर साधक जन्म लेते हैं । अभिभावकों द्वारा किए संस्कार बच्चों में प्रतिबिंबित होते हैं । इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं । भक्त प्रल्हाद माता के (कयाधू के) गर्भ में था, तब नारदमुनि ने उन्हें परमेश्‍वर की भक्ति का मार्ग दिखाया । इस कारण उसे मां के गर्भ में ही परमेश्‍वर की भक्ति का ज्ञान आत्मसात हुआ । राक्षस कुल में जन्म लेकर भी नारायण के नाम से वह भक्त प्रल्हाद बना । ‘गर्भवती स्त्री साधना करे, तो उसका लाभ गर्भ को भी होता है, जन्म लेनेवाला बालक सात्त्विक हो, तो उसकी सात्त्विकता का लाभ मां को भी होता है’, अध्यात्म के जानकार ऐसा कहते हैं । ‘केवल नामजप करना और नामजप के साथ हाथ की मुद्रा बनाकर न्यास करना, इसका गर्भवती स्त्री के आसपास के वायुमंडल पर क्या प्रभाव होता है ?’, इसका वैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन करने के उद्देश्य से ‘पिप (पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरेन्स फोटोग्राफी)’ प्रणाली की सहायता से परीक्षण किया गया । इसके निरीक्षण और उसका विवरण प्रस्तुत है ।

१. वैज्ञानिक परीक्षण करने का उद्देश्य

‘नामजप करने तथा नामजप सहित मुद्रा कर न्यास करने का गर्भवती के आसपास के वायुमंडल पर होनेवाला प्रभाव वैज्ञानिक दृष्टि से जांचने के उद्देश्य से ‘महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा ८.९.२०१४ को गोवा के सनातन आश्रम में वैज्ञानिक परीक्षण किया गया । यह परीक्षण वस्तु एवं व्यक्ति के ऊर्जाक्षेत्र का (‘ऑरा’ का) अध्ययन करने के लिए उपयुक्त ‘पिप’ (पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरेंस फोटोग्राफी)’ प्रणाली की सहायता से किया गया ।

२. जांच का स्वरूप

इस जांच के लिए गर्भवती साधिका के आगे दिए अनुसार तीन स्थितियों में खींचे गए ‘पिप’ छायाचित्रों का चयन किया ।
अ. गर्भवती साधिका द्वारा नामजप प्रारंभ करने से पूर्व
आ. गर्भवती साधिका नामजप करते हुए
इ. गर्भवती साधिका नामजपसहित मुद्रा कर न्यास करते हुए
इन छायाचित्रों का तुलनात्मक अध्ययन करने के उपरांत हम यह समझ पाए कि ‘तीनों स्थितियों में साधिका से प्रक्षेपित स्पंदनों का वातावरण पर क्या प्रभाव पडता है ?’

३. परीक्षण में प्रयुक्त घटकों की जानकारी

३ अ. परीक्षण में सम्मिलित हुई साधिका

२९ वर्षीय यह साधिका ६ मास की (महीनों की) गर्भवती थी । वह, उसके पति और अन्य परिजन वर्ष २००७ से सनातन संस्था के मार्गदर्शन में साधना कर रहे हैं ।

३ आ. नामजप

जांच के समय इस साधिका को नामजप करने के लिए कहा गया । वह मन ही मन ‘ॐ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ ॐ’ यह नामजप कर रही थी ।

३ इ. मुद्रा और न्यास

जांच करते समय इस साधिका को मुद्रा और न्यास करनेके लिए कहा गया, तब इस साधिका ने नामजप करते हुए दाएं हाथ की पांचों उंगलियों के अग्र जोडकर बनाई मुद्रा मणिपुरचक्र के (नाभि के) स्थान पर शरीर से १ – २ सें.मी. की दूरी रखकर न्यास किया ।

४. ‘पिप’ प्रणाली का परिचय

४ अ. परीक्षण के घटकों की आध्यात्मिक स्तरीय
विशेषताआें का, वैज्ञानिक उपकरण अथवा प्रणाली द्वारा अध्ययन का उद्देश्य

किसी घटक में (वस्तु, वास्तु, प्राणी और व्यक्ति में) सकारात्मक स्पंदनों का प्रतिशत, उस घटक का सात्त्विक होना अथवा न होना तथा आध्यात्मिक दृष्टि से वह लाभदायक है अथवा नहीं, यह जानने के लिए सूक्ष्म-स्तरीय ज्ञान होना आवश्यक है । उच्च स्तर के संतों को सूक्ष्म-स्तरीय ज्ञान रहता है, इसलिए वे प्रत्येक घटक के स्पंदनों का सटीक परीक्षण कर सकते हैं । संतों के शब्दों को ‘प्रमाण’ मानकर श्रद्धालु और साधक उस पर श्रद्धा रखते हैं; किंतु बुद्धिजीवी ‘शब्द प्रमाण’ नहीं अपितु ‘प्रत्यक्ष प्रमाण’ ही मानते हैं; इसलिए उन्हें प्रत्येक बात वैज्ञानिक जांच द्वारा, अर्थात यंत्र द्वारा सिद्ध कर दिखानी पडती है, तब ही वे उसे सत्य मानते हैं ।

४ आ. ‘पिप’ प्रणाली की सहायता से घटकों के
सकारात्मक एवं नकारात्मक स्पंदन रंगों के माध्यम से दिखाई देने की सुविधा

इस प्रणाली द्वारा हम किसी वस्तु का आंखों से न दिखनेवाला रंगीन प्रभामंडल देख सकते हैं । ‘पिप’ नामक प्रणाली को ‘वीडियो कैमरे’ से जोडकर उसके द्वारा वस्तु, वास्तु अथवा व्यक्ति के ऊर्जाक्षेत्र विविध रंगों में देखे जा सकते हैं । इसमें सकारात्मक और नकारात्मक स्पंदन रंगों के माध्यम से देखने की सुविधा रहती है । ये रंग किस बातके दर्शक हैं, यह सूत्र ‘७ अ’ सारणी के दूसरे स्तंभ में दिया गया है

५. जांच के संबंध में ली गई सावधानी

अ. इस जांच के ‘पिप’ छायाचित्र खींचने के लिए विशिष्ट कक्ष का उपयोग किया गया । इस कक्ष की भीत, छत आदि के रंगों का साधिका के वलय के रंगों पर प्रभाव न हो, इसलिए कक्ष की भीत (दीवारें) और छत श्‍वेत रंग की रखी गई ।

आ. संपूर्ण जांच के समय कक्ष में प्रकाशव्यवस्था एक समान रखी गई थी तथा कक्ष के बाहर की वायु, प्रकाश, उष्णता का प्रभाव कक्ष में की जा रही जांच पर न हो, इसलिए कक्ष बंद रखा गया ।

६. ‘पिप’ परीक्षण के छायाचित्र तथा निरीक्षण समझने की दृष्टि से उपयुक्त सूत्र

६ अ. मूलभूत प्रविष्टि (वातावरण का मूलभूत प्रभामंडल)

परीक्षण में किसी घटक के कारण (उदा. इस परिक्षण में गर्भवती महिला के नामजप एवं मुद्रा करते समय) वातावरण में हुए परिवर्तन का अध्ययन करने हेतु उस घटक के ‘पिप’ छायाचित्र लिए जाते हैं; पर वातावरण में निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं । इसलिए किसी घटक का परीक्षण करने से पहले जहां घटक रखा जाएगा, उस वातावरण का (उदा. इस परीक्षण में गर्भवती महिला का नामजप आरंभ करने से पूर्व उस वातावरण का) ‘पिप’ छायाचित्र लिया जाता है । इसे ‘मूलभूत प्रविष्टि’ कहते हैं । तदुपरांत घटक के ‘पिप’ छायाचित्र की ‘मूलभूत प्रविष्टि’ से (वातावरण का मूलभूत प्रभामंडल दर्शानेवाले ‘पिप’ छायाचित्र से) तुलना करने पर उस घटक के कारण वातावरण में हुआ परिवर्तन समझमें आता है ।

६ आ. मूलभूत प्रविष्टि की तुलना में वस्तु का प्रभामंडल दर्शानेवाले
‘पिप’ छायाचित्र के रंगों की मात्रा बढने अथवा घटने का आधारभूत सिद्धांत

परीक्षण हेतु घटक (उदा. इस परीक्षण में नामजप आरंभ करने से पूर्व की) (‘मूलभूत प्रविष्टि’ की) तुलना में घटक रखने के उपरांत प्रभामंडल मेें रंग बढते अथवा घटते हैं । यह बढना-घटना उस घटक से प्रक्षेपित होनेवाले उस रंग से संबंधित स्पंदनों के अनुसार होता है, उदा. परीक्षण के लिए घटक रखनेपर यदि उससे बडी मात्रा में चैतन्य के स्पंदन प्रक्षेपित हो, तो प्रभामंडल में पीला रंग बढता है । यदि चैतन्य के स्पंदनों का प्रक्षेपण न हो अथवा अन्य स्पंदनों की तुलना में अल्प हो, तो प्रभामंडल में पीला रंग घटता है । (यह ध्यान में रख सूत्र ‘७ अ. निरीक्षण १’ एवं ‘७ आ निरीक्षण २’ पढिए ।)

६ इ. प्रभामंडल में दिखनेवाले रंगों की जानकारी

परीक्षण की वस्तु (अथवा व्यक्ति के) ‘पिप’ छायाचित्रों में दिखनेवाले प्रभामण्डलों के रंग उस वस्तु के ऊर्जाक्षेत्र के विशिष्ट स्पंदन दर्शाते हैं । प्रभामंडल के प्रत्येक रंग के विषय में ‘पिप’ संगणकीय प्रणाली के निर्माताआें द्वारा प्रकाशित कार्यपुस्तिका में दी (‘मैन्युअल’ में दी) जानकारी तथा ‘महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा की गई सैकडों जांच के निरीक्षणों के अनुभव के आधार पर ‘प्रत्येक रंग कौनसे स्पंदन दर्शाता है ?’, यह निश्‍चित किया है । वह सूत्र ‘७ अ. निरीक्षण १’ में दी सारणीके दूसरे स्तंभ में अर्थात ‘वे किसके दर्शक हैं ?’ में दिया है ।

६ ई. सकारात्मक स्पंदन

‘पिप’ छायाचित्र के हलके गुलाबी, तोतापंखी, नीलामिश्रित श्‍वेत, पीला, गहरा हरा, हरा, नीला और जामुनी रंग क्रमशः आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक लाभदायक से अल्प लाभदायक स्पंदन (रंग) दर्शाते हैं । इन सभी आध्यात्मिक दृष्टि से लाभदायक स्पंदनों को (रंगों को) यहां एकत्रित रूप से ‘सकारात्मक स्पंदन’ सम्बोधित किया है ।

६ उ. नकारात्मक स्पंदन

‘पिप’ छायाचित्रमें राख समान रंग, गुलाबी, नारंगी और भगवा रंग क्रमशः आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक कष्टदायक से अल्प कष्टदायक स्पंदन दर्शाते हैं । इन सभी आध्यात्मिक दृष्टि से कष्टदायक स्पंदनों को (रंगों को) एकत्रित रूप से ‘नकारात्मक स्पंदन’ सम्बोधित किया है ।

६ ऊ. ‘पिप’ छायाचित्र में साधारण की अपेक्षा उच्च सकारात्मक स्पंदनों के दर्शक रंग दिखना श्रेष्ठ  

‘पिप’ छायाचित्र में तोतापंखी अथवा नीलामिश्रित श्‍वेत ये उच्च सकारात्मक स्पंदनों के दर्शक रंग दिखाई देने लगे, तब कभी-कभी पीला, गहरा हरा अथवा हरा, इन सामान्य सकारात्मक स्पंदनों के दर्शक रंगों की मात्रा घट जाती है अथवा वे रंग दिखाई ही नहीं देते । इसे अच्छा माना जाता है; क्योंकि उस समय सामान्य सकारात्मक स्पंदनों का स्थान उससे भी उच्च कोटि के सकारात्मक स्पंदन ले लेते हैं ।

६ ए. ‘पिप’ छायाचित्र के रंगों की विशेषताआें का
उस रंग की प्रत्यक्ष आध्यात्मिक विशेषता से संबंध न होना

‘पिप’ संगणकीय प्रणाली के निर्माताआें ने ‘पिप’ छायाचित्र में नकारात्मक स्पंदनों के लिए भगवा और नारंगी रंग निर्धारित किए हैं । इसका और उन रंगों की प्रत्यक्ष आध्यात्मिक विशेषताआें का (उदा. भगवा रंग त्याग एवं वैराग्य का प्रतीक है) कोई संबंध नहीं है ।

६ ऐ. ‘पिप’ छायाचित्रों की तुलना करते समय परीक्षण में
सहभागी साधिका, तथा पटल के रंग का विचार न किया जाना

यह वातावरण के प्रभामंडल का परीक्षण होने के कारण ‘पिप’ छायाचित्र क्र. २ और ३ की तुलना मूल प्रभामंडल से (छायाचित्र क्र. १ से) करते समय परीक्षण में सहभागी साधिका तथा आसन के रंग का विचार नहीं किया गया है ।

७. निरीक्षण

७ अ. निरीक्षण १ – ‘पिप’ छायाचित्रों में दिखाई देनेवाले
प्रभामंडलों के रंग, वे किसके दर्शक हैं और उनकी मात्रा बढना अथवा घटना

गर्भवती साधिका नामजप करते हुए और नामजप सहित मुद्रा कर न्यास करते हुए, इन दोनों स्थितियों में प्रभामंडलों की तुलना ‘मूलभूत प्रविष्टि’ से की गई है, यह ध्यान में रखते हुए आगे दी सारणी पढें ।

टिप्पणी १ – घटक के अंतर्बाह्य नकारात्मक स्पंदन नष्ट करने और सकारात्मक स्पंदनों में वृद्धि करने की क्षमता
टिप्पणी २ – घटक के केवल बाह्य नकारात्मक स्पंदन नष्ट करने और सकारात्मक स्पंदनों में वृद्धि करने की क्षमता
टिप्पणी ३ – सूक्ष्म-स्तरीय आध्यात्मिक उपचारी-क्षमता के अधिक और सात्त्विकता के स्पंदन अल्प प्रक्षेपित हुए, यह इस सारणी के सूत्र क्र. १ और ५ से स्पष्ट होता है । (आध्यात्मिक कष्ट दूर करने के लिए आध्यात्मिक स्तर पर उपचार करने पडते हैं, उन्हें ‘आध्यात्मिक उपचार’ कहते हैं ।)

७ आ. निरीक्षण २

‘पिप’ छायाचित्रों में दिखनेवाले प्रत्येक स्पंदनों (रंगों) की मात्रा (प्रतिशत में)

७ इ. भक्त प्रल्हाद की कथा को पुष्टि मिलना

प्रस्तुत जांच में सम्मिलित हुई साधिका की ४.१२.२०१४ को प्रसूति हुई और उसे कन्यारत्न की प्राप्ति हुई । नवजात बालिका का आध्यात्मिक स्तर जन्मतः ६१ प्रतिशत है अर्थात वह बालिका सात्त्विक है । (‘गर्भस्थ शिशु सात्त्विक होना’, भी ‘मूलभूत पाठ्यांक’ के समय प्रभामंडल में सकारात्मक स्पंदन अधिक दिखाई देने का एक कारण है ।) गर्भवती द्वारा की गई नामजप आदि साधना उसके गर्भ के लिए भी लाभदायक होती है । साधना का संस्कार उसके शिशु में भी प्रतिबिंबित होता है । इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं । प्रल्हाद अपनी माता कयाधु के गर्भ में था, तब देवर्षि नारद ने उसे ईश्‍वर की भक्ति का मार्ग दिखाया । इसलिए उसे माता के गर्भ में ही ईश्‍वर की भक्ति का ज्ञान आत्मसात हुआ । राक्षस कुल में जन्म लेकर भी नारायण के नामजप के कारण वह ‘भक्त प्रल्हाद’ बना ।

७ ई. केवल नामजप करने की अपेक्षा नामजप सहित हाथों की मुद्रा कर
न्यास करना, यह व्यक्ति के सकारात्मक स्पंदन बढाने हेतु उपयुक्त होना

नामजप, मुद्रा और न्यास करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक दृष्टि से भी लाभ होता है । नामजप, मुद्रा व न्यास के कारण सामान्य व्यक्ति से प्रक्षेपित सकारात्मक स्पंदनों की मात्रा बढती है ।
इस जांच में जप प्रारंभ करने पर साधिका से प्रक्षेपित होनेवाले नकारात्मक स्पंदनों की मात्रा घटी और सकारात्मक स्पंदनों की कुछ मात्रा बढी । नामजप सहित मुद्रा कर मणिपुरचक्र पर न्यास करने से नकारात्मक स्पंदनों की मात्रा और घटी, तथा सकारात्मक स्पंदनों की मात्रा और बढी । इससे स्पष्ट होता है कि ‘नामजप करना, तथा उससे भी अधिक नामजप सहित मुद्रा कर न्यास करना गर्भवती तथा गर्भस्थ शिशु, दोनों के लिए आध्यात्मिक दृष्टि से अधिक लाभदायक है ।’ – श्री. रूपेश रेडकर, महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (१५.२.२०१६) 

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स्रोत : सनातन प्रभात हिन्दी

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