जन्मदिन तिथिके अनुसार ही क्‍यों मनाए?


अनुक्रमणिका

१. भारतीय संस्कृति अनुसार जन्मदिन मनाएं

आजकल हिंदू पश्चिमी संस्कृतिके समक्ष घुटने टेक रहे हैं । परिणामस्वरूप हमारी धार्मिक कृतियोंपर पश्चिमी संस्कृतिका अत्यधिक प्रभाव पडा है । ऐसी कृतियोंसे ईश्वरीय चैतन्य तो प्राप्त होता नहीं; साथ ही ये कृतियां आध्यात्मिक दृष्टिसे हानिकारक होती हैं । धार्मिक कृतियोंमें निश्चितरूपसे सूक्ष्ममें क्या प्रक्रिया होती है, यह समझनेसे उन कृतियोंकी सत्यतापर विश्वास होता है व स्वाभाविक ही धर्माचरणके प्रति श्रद्धाके दृढ़ होनेमें सहायता मिलती है ।

 

२. तिथिके अनुसार जन्मदिन मनानेका महत्त्व

जिस तिथिपर हमारा जन्म होता है, उस तिथिके स्पंदन हमारे स्पंदनोंसे सर्वाधिक मेल खाते हैं । इसलिए उस तिथिपर परिजनों एवं हितचिंतकोंद्वारा हमें दी गई शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद सर्वाधिक फलित होते हैं । इसलिए जन्मदिन तिथिनुसार मनाना चाहिए ।

२ अ. आध्यात्मिक अर्थ

‘जन्मदिन अर्थात जीव की आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नति । आध्यात्मिक उन्नति का ही दूसरा नाम ‘वृद्धि’ अथवा ‘बढ़त’ है । जीव की निर्मिति से ही उसकी आध्यात्मिक उन्नति आरंभ होती है । यद्यपि जीव प्रत्यक्ष साधना नहीं कर रहा हो, तब भी उस पर किए गए संस्कारों के कारण उसकी सात्त्विकता में वृद्धि होती है तथा उसकी आध्यात्मिक उन्नति आरंभ होती है । आध्यात्मिक उन्नति होने पर ही वह वास्तविक जन्मदिन सिद्ध होता है । – ईश्‍वर (कु. मधुरा भोसले के माध्यम से १३.५.२००५, रात्रि ८.०४ से ८.२२)

 

३. जन्मदिन तिथि पर एवं शास्त्र के अनुसार मनाने का महत्त्व

अ. जन्मदिन तिथि का महत्त्व

‘जिस तिथिपर हमारा जन्म होता है, उस तिथिके स्पन्दन हमारे स्पन्दनोंसे सर्वाधिक मेल खाते हैं । इसलिए उस तिथिपर परिजनों एवं हितचिन्तकोंद्वारा हमें दी गई शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद सर्वाधिक फलित होते हैं । इसलिए जन्मदिन तिथिनुसार मनाना चाहिए ।

आ. जीवनमें बाधाओंके विरुद्ध संघर्ष करनेकी क्षमता प्राप्त होना

जन्मदिनपर (तिथिपर) ब्रह्माण्डमें कार्यरत तरंगें जीवकी प्रकृति एवं प्रवृत्तिके लिए पोषक होती हैं तथा उस तिथिपर की गई सात्त्विक एवं चैतन्यात्मक कृतियां जीवके अन्तर्मनपर गहरा संस्कार अंकित करनेमें सहायक होती हैं । इस कारण जीवके आगामी जीवनक्रमको आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है और जीवनमें आनेवाली बाधाओंके विरुद्ध संघर्ष करनेकी क्षमता उसे प्राप्त होती है ।’

– एक विद्वान (सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ ‘एक विद्वान’ इस उपनाम से लेखन करती हैं । (२१.१.२००५, रात्रि  ९.११)

४. जन्मदिन मनानेकी पद्धति

अ. जन्मदिनपर अभ्यंगस्नान कर नए वस्त्र पहनें ।

जन्मदिनपर अभ्यंगस्नान वस्त्र पहने हुए ही करें । स्नान करते समय ऐसा भाव रखें कि, `स्नानका जल निर्मल व शुद्ध गंगाके रूपमें हमारे शरीरपर प्रवाहित हो रहा है और उससे हमारे देह एवं अंत:करणकी शुद्धि हो रही है ऐसा भाव रखें । स्नानके पश्चात् नए वस्त्र परिधान करें । नए वसन (वस्त्र) परिधान करना, अर्थात् अभ्यंगस्नानके माध्यमसे अपनी देहकी चारों ओर ईश्वरीय चैतन्यका प्रभामंडल (चैतन्यमय संरक्षक कवच) तैयार करना । माता-पिता एवं अन्य ज्येष्ठ व्यक्तियोंको प्रणाम करें । ज्येष्ठोंके प्रति आदरभाव उत्पन्न होनेसे उसके मनकी मलिनता नष्ट होती है । कुलदेवताका अभिषेक करें अथवा उनकी भावपूर्ण पूजा करें ।

आ. माता-पिता तथा बडोंको नमस्कार करें ।

इ. कुलदेवताकी मनःपूर्वक पूजा करें एवं संभव हो तो उसका अभिषेक करें ।

ई. कुलदेवताका कमसे कम तीन माला नामजप करें ।

उ. जिसका जन्मदिन है, उसकी आरती उतारें । (उसकी घीके दीपसे आरती उतारें ।)
जिसका जन्मदिन है, उसका औक्षण करें । `औक्षण’ की कृतिसे जीवकी सूक्ष्मदेहकी शुद्धिमें सहायता मिलती है । औक्षण करवानेवाला एवं करनेवाला, दोनोंमें यह भाव रहे कि, `एक दूसरेके माध्यमसे प्रत्यक्ष ईश्वर ही यह कृतिस्वरूप कार्यद्वारा हमें आशीर्वाद दे रहे हैं’ । कुलदेवता अथवा उपास्यदेवताका स्मरण कर अक्षत तीन बार जीवके सिरपर डालनेसे आशीर्वादात्मक तरंगोंका स्रोत जीवकी संपूर्ण देहमें संक्रमित होता है । इस प्रक्रियासे दोनों जीवोंकी देहसे प्रक्षेपित सात्त्विक तरंगोंके कारण वायुमंडलकी शुद्धि होती है और जन्मदिवसपर पधारे अन्य जीवोंको भी इस सात्त्विकताका लाभ मिलता है ।

ऊ. आरतीके उपरांत कुलदेवता अथवा उपास्यदेवताका स्मरण कर जिसका जन्मदिन है उसके सिरपर तीन बार अक्षत डालें ।

ए. जिसका जन्मदिन है उसे मिठाई अथवा कोई मीठा पदार्थ खिलाएं ।

ऐ. जिसका जन्मदिन है उसकी मंगलकामनाके लिए प्रार्थना करें ।

ओ. उसे कुछ भेंटवस्तु दें; परंतु वह देते समय अपेक्षा अथवा कर्तापन न लें ।

औ. भेंटवस्तु स्वीकारते समय `यह ईश्वरसे मिला हुआ प्रसाद है’, ऐसा भाव रखें ।

जिसका जन्मदिन है, उसे कुछ भेंटवस्तु देनी चाहिए । इस विषयमें आगे दिए अनुसार दृष्टिकोण रखें । छोटे बालकको प्रोत्साहित करनेके लिए भेंट दें, बडोंको भेंट देनेमें कर्त्तापन न रखें । अपेक्षारहित दान करनेसे हम कुछ कालोपरांत उसके बारेमें भूल भी जाते हैं । दानके विषयमें कर्त्तापन अथवा अपेक्षा रखनेसे लेन-देनका हिसाब निर्माण होता है । दान अथवा भेंट स्वीकारनेवाला व्यक्ति यदि ऐसा भाव रखे कि, `यह ईश्वरकृपासे मिला प्रसाद है’, तो लेन-देनका हिसाब निर्माण नहीं होता ।

जन्मदिनपर जिन वस्त्रोंको धारण कर स्नान किया जाता है, उन वस्त्रोंका स्वयं उपयोग न कर अपेक्षारहित किसीको दान देना चाहिए । दान सदैव `सत्पात्रे दानम्’ हो, इस हेतु भिखारी इत्यादिको देनेकी अपेक्षा ईश्वरके उपासक अथवा राष्ट्र व धर्महितके लिए कार्य करनेवालोंको देना पुण्यदायी होता है । पूर्वकालमें सर्व जीव साधनारत थे; इसलिए उनकी वृत्ति सात्त्विक थी । उनके द्वारा दान किए गए वस्त्र परिधान करनेवाले जीवको उपरोक्तानुसार लाभ होता था । त्रेतायुगमें गुरुकुलमें अपने गुरुके जन्मदिनपर उन्हें स्नान करवाकर, उनके द्वारा दिए गए वस्त्रोंका उपयोग करने योग्य बनना, शिष्य-धर्मका प्रतीक माना जाता था ।

५. जन्मदिनपर कुछ निषिद्ध कृतियां व उनका आधारभूत शास्त्र

अ. शास्त्रके अनुसार कुछ निषिद्ध कृतियां

जन्मदिनपर नाखून एवं बाल काटना, वाहनसे यात्रा करना, कलह, हिंसाकर्म, अभक्ष्यभक्षण (न खाने योग्य पदार्थ खाना), अपेयपान (न पीने योग्य पदार्थ पीना), स्त्रीसंपर्क (स्त्रीके साथ शारीरिक संबंध) इत्यादि कृतियोंसे प्रयत्नपूर्वक बचें ।

आ. जन्मदिनपर प्रज्वलित किए गए दीपकको न बुझाएं |

दीपककी ज्योतिकी तुलना जीवके शरीरके पंचप्राणोंकी ऊर्जापर आधारित स्थूल कार्यसे की गई है । जीवकी देहके पंचप्राणोंका कार्य समाप्त होकर जीवकी प्राणशक्तिके पतन व उसकी जीवनज्योत शांत होनेका प्रतीक है दीपकका बुझना ।’ प्रज्वलित दीपकका बुझना आकस्मिक मृत्यु, अर्थात् अपमृत्युसे संबंधित है; इस लिए इसे अशुभ माना गया है ।

इ. जन्मदिनकी शुभकामनाएं रात्रिके १२ बजे न देकर सूर्योदय उपरांत देना |

पश्चिमी संस्कृतिका अनुकरण कर अनेक लोग जन्मदिनकी शुभकामनाएं रात्रि १२ बजे देते हैं । रात्रिके १२ बजे वातावरणमें रज-तम कणोंकी मात्रा अधिक होती है, इसीलिए उस समय दी गई शुभकामनाएं फलदायी नहीं होती हैंण। हिंदू संस्कृतिके अनुसार दिन सूर्योदयसे आरंभ होता है । यह समय ऋषि-मुनियोंकी साधनाका समय है, इसलिए वातावरणमें सात्त्विकता अधिक होती है और सूर्योदयके पश्चात् दी गई शुभकामनाएं फलदायी सिद्ध होती हैं । अत: जन्मदिनकी शुभकामनाएं सूर्योदयके पश्चात् ही दें ।

ई. मोमबत्ती जलाकर जन्मदिन न मनाना |

पश्चिमी संस्कृतिका अंधानुकरण कर अनेक लोग मोमबत्तियां जलाकर एवं केक काटकर जन्मदिन मनाते हैं । मोमबत्ती तमोगुणी होती है; उसे जलानेसे कष्टदायक स्पंदन प्रक्षेपित होते हैं । उसी प्रकार हिंदू धर्ममें `ज्योत बुझाने’ की कृति अशुभ एवं त्यागने योग्य मानी गई है । इसीलिए जन्मदिनपर मोमबत्ती जलानेके उपरांत उसे जानबूझकर न बुझाएं ।

उ. केक काटकर जन्मदिन न मनाना |

`केकपर छुरी चलाना’ अशुभ क्रियाका प्रतीक है । इसलिए जन्मदिनके शुभ अवसरपर ऐसी कृतिसे आगेकी पीढीपर कुसंस्कार होते हैं । आरतीके पश्चात् आकृष्ट ईश्वरीय चैतन्यको ग्रहण करते समय ऐसे विधिकर्म करना, उस चैतन्यमें कष्टदायक स्पंदनोंद्वारा बाधा उत्पन्न करनेके समान है । किसी भी शुभावसरपर जानबूझकर इस प्रकारकी लयकारी विधि करना धर्मविघातक प्रवृत्तिका लक्षण है ।

 

६. केक पर छुरी चलाना अशुभ है, तो छुरी
अथवा चाकू से सब्जी काटना योग्य है अथवा अयोग्य ?

एक विद्वान : कलियुग में अन्न काटने की सुविधा हेतु छुरी, चाकू एवं कैंची जैसे माध्यमों का उपयोग किया जाता है । जहां तक संभव हो, इस प्रकार के माध्यमों का उपयोग न करें, क्योंकि इनसे कष्टदायक स्पंदन निर्माण होते हैं । जहां तक संभव हो सब्जी हाथ से ही तोडें । इस प्रकार की सब्जी अधिक सात्त्विक होती है । पूर्वकाल में जीव कंदमूल पकाकर ग्रहण करते थे । वे हस्तस्पर्श से आवेशित सात्त्विक अन्न ही ग्रहण करते थे । चाकू, छुरी जैसे माध्यमों की निर्मिति कलियुग में ही हुई है ।

सब्जी काटना एक सहज कृति है । इससे किसी भी प्रकार से चैतन्य तरंगों में बाधा नहीं आती है । इसलिए कलियुग में सुविधा की दृष्टि से यह स्वीकार्य है । – एक विद्वान (सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ ‘एक विद्वान’ इस उपनाम से लेखन करती हैं ।, 17.6.2006, रात्रि 9.42

अनुभूति : ‘वर्ष 2002 में मैं एक सज्जन के जन्मदिन पर गई थी । उनका जन्मदिन पश्‍चिमी पद्धति से मनाया गया । एक बडे केक पर अनेक छोटी मोमबत्तियां जलाई गई । फिर उन्हें फूंककर बुझाना और केक काटना इत्यादि के उपरांत वहां उपस्थित व्यक्तियों में अत्यधिक थकान आ गई थी । अनेक लोगों को विविध शारीरिक कष्ट हुए एवं निरुत्साह लगने लगा ।’ – कु. मधुरा भोसले, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

पश्‍चिमी संस्कृति के अनुसार जन्मदिन मनाने की पद्धति राजसिक-तामसिक क्रिया है, इसके कारण अनिष्ट शक्तियों के लिए कष्ट देना सरल होता है । अत: ईश्‍वरीय चैतन्य का लाभ मिलना तो दूर; इसके विपरीत यह पद्धति अनिष्ट शक्तियों द्वारा कष्ट का मूल कारण प्रमाणित हुई है ।

 

७. संतों का जन्मदिन

संतों का जन्मदिन उनकी जन्मतिथि पर न मनाएं; जिस दिन उन्हें गुरुप्राप्ति हुई हो उस दिन मनाएं, क्योंकि उस दिन एक प्रकार से उनका पुनर्जन्म होता है । वह दिन ‘प्रकटदिन’ के रूप में मनाया जाता है ।

संदर्भ : सनातन निर्मित ग्रंथ पारिवारिक धार्मिक कृतियोंका अध्यात्मशास्त्रीय आधार

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