किसानो, साधना मानकर खेती करें एवं समृद्ध हों !

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साधना आरंभ करने पर भगवान कैसे सहायता करते हैं, इस संदर्भ में विशेष अनुभूतियां !

कहते हैं प्राचीन काल में भारत सोने की चिडिया कहलाता था । ‘कृषि’ भारत की आत्मा है । प्राचीन काल में साधना करनेवाले किसान होने से भारत की कृषि परंपरा समृद्ध एवं विकसित थी । वर्तमान के किसानों की नानाविध समस्याओं पर साधना करना ही एकमेव विकल्प कैसे है, यह इस अनुभूति को पढने से ध्यान में आएगा !

 

नामजप करते हुए खेतीबाडी करने से पौधों की आश्चर्यजनक बढत

नामजप करते हुए रोपण करने से प्याज के पौधों को कुछ दिनों उपरांत पानी उपलब्ध न होने पर भी प्याज की प्रत्येक पाती पर ४५० से ५०० ग्राम वजन के ४-५ प्याज लगना

श्री. तुकाराम लोंढे

जनवरी २०१४ के प्रथम सप्ताह में मैं अपने गांव केकतसारणी (जिला बीड) गया था । तब मेरी मां ने मुझसे कहा सफेद रंग के प्याज मंहगे हैं । ‘‘इतने प्याज लगाओ कि हमारे लिए वे पर्याप्त हों । उन्हें खाद भी दो ।’’ तदुपरांत मैंने नामजप करते हुए प्याज के पौधे ईंटों से बने कंपार्टमेंट्स में लगाए; परंतु मैंने उनमें खाद नहीं डाली । रोपण के पश्चात आरंभ में केवल १५ दिन इन पौधों को पानी मिला और आगे एक माह हमारे खेत का पंप बिगडने से उन पौधों को पानी नहीं उपलब्ध हो सका । मार्च माह के अंतिम सप्ताह में प्याज के रोपों की पाती लगभग ३ फुट तक बढ गई और प्रत्येक पाती पर ४-५ प्याज भी लगे थे । (वैसे प्याज की एक पाती को अधिकाधिक २ प्याज लग सकते हैं ।) उन प्याज का आकार भी बहुत बडा था । मैंने उन प्याज का वजन किया तो प्रत्येक प्याज का वजन ४५० से ५०० ग्राम था ।

प्याज का आकार देखकर सभी ने आश्चर्य से मुझे उसके विषय में पूछा; परंतु मैं क्या उत्तर देता ? तब मुझे परात्पर गुरु डॉक्टरजी का स्मरण हुआ । बहुत पहले उन्होंने मुझसे एक बार कहा था, ‘‘नामस्मरण से सब कुछ होता है ।’’ अब मैंने नाम की यह महिमा अनुभव की है ! खेतों में काम करते समय मुझे बहुत आनंद मिलता है ।

– श्री. तुकाराम लोंढे, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.

नामजप करते हुए मिरची के पौधों का रोपण करना, तदुपरांत पानी की टंचाई के कारण पौधे सूख जाना और अधिकांश किसानों द्वारा उन्हें उखाड फेंकना; परंतु भगवान पर विश्वास रखकर साधक द्वारा पौधे न निकालने से मिरची के पौधों में नई कोपलें आकर अधिक फसल होना

‘प्रतिवर्ष के समान मार्च माह में हमने मिरची का रोपण आरंभ किया । मिरची का प्रत्येक पौधा लगाते समय हमने ‘ॐ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ ॐ ।’ नामजप करते हुए पौधा लगाना आरंभ किया । तब लगभग ४ – ५ घंटे मेरा नामजप चल रहा था । रोपण होने के उपरांत एक माह में पानी कम हो गया; इसलिए हमने टपक सिंचन पद्धति (ड्रिप सिंचाई पद्धति) से दो-दो दिन पश्चात पौधों को पानी देना आरंभ किया । गर्मी बहुत होने से पानी की कमतरता हो गई । काफी किसानों द्वारा लगाए गए पौधे सूख गए; इसलिए उन्होंने खेत जोतकर पौधे उखाड फेंके । हमने भगवान पर ‍विश्वास रखा और शांत रहे । तदुपरांत डेढ माह पश्चात वर्षा आरंभ होने पर वरुणदेवता से प्रार्थना की और फिर कुछ ही समय पश्चात मिरची के पौधों में नई कोपलें आ गईं । फसल भी बहुत अच्छी हुई । तब हमारी अपेक्षा से भी कहीं अधिक मिरची की फसल होने से हमें बहुत लाभ हुआ । उपरोक्त अनुभव से भगवान के नाम का महत्त्व ध्यान में आता है । – श्री. उत्तम कल्लप्पा गुरव, नंदीहळ्ळी, बेळगांव.

साधना करना प्रारंभ करने पर भगवान ने किसानों को दी अनुभूति

१. सेवा के लिए जाना आरंभ करने पर खेत में अधिक फसल आना !

‘मेरे साधना एवं सेवा आरंभ करने पर हमारे खेत में ८ कुंटल ज्वार की फसल हुई । उसमें से खेती करनेवाले को ४ कुंटल ज्वार दी और भगवान ने मुझे ४ कुंटल ज्वार दी । मेरे भाई की भी उतनी ही खेती है, परंतु उसमें केवल ५ कुंटल ज्वार की फसल हुई । मैंने सेवा के लिए केवल २५ से ३० मिनट दिए थे; तब भी भगवान ने मुझे भरपूर दिया ! मेरा चंचल मन एकाग्र किया । इस विषय में श्रीकृष्ण के चरणों में अनंत कोटि कृतज्ञता !’

– श्री. सुभाष पाटील, नंदीहळ्ळी, बेळगांव.

२. सनातन संस्था के संपर्क में आने पर ‘प्रत्यक्ष श्रीकृष्ण ही मिल गए हैं’, ऐसा प्रतीत होकर
सत्सेवा आरंभ करना एवं अल्प वर्षा में बगीचे को अत्यंत अल्प पानी मिलने पर भी अंगूर की फसल अच्छी होना

सनातन संस्था के संपर्क में आने पर मुझे ऐसा लगा जैसे ‘मुझे प्रत्यक्ष श्रीकृष्ण ही मिल गए हैं ।’ इसके साथ ही मैंने सत्सेवा आरंभ की और परिस्थिति पूर्णरूप से बदल गई । पहले हमारी छोटी झोपडी थी; परंतु अब हमारा बंगला है । अभी वर्षा बहुत अल्प है । इसलिए अंगूर के बगीचे को अत्यंत अल्प पानी मिल रहा है । तब भी उतना पानी बगीचे के लिए पर्याप्त है और अंगूर की फसल अच्छी होने से बगीचा भी अत्यंत सुंदर दिखाई दे रहा है । यह केवल और केवल प.पू. डॉक्टरजी की कृपा के कारण ही संभव हुआ है । इसलिए उनके श्रीचरणों में कोटि-कोटि प्रणाम !’

– श्रीमती पाटील
(उपरोक्त अनुभूति से किसानों के साथ-साथ हम सभी के सीखने के लिए बहुत कुछ है । श्रीमती पाटिल के साधना आरंभ करने पर भगवान ने उनके प्रारब्ध के भोग सुसह्य कर, खेती की अडचनें दूर कीं । इसलिए सनातन संस्था की सीख है कि किसानों की आत्महत्या की समस्या पर कर्जमाफी जैसे ऊपरी-ऊपर उपाय करने के स्थान पर प्रत्येक किसान को ईश्वरप्राप्ति के लिए साधना करना सिखानी चाहिए । – एक संत)

१. जलगांव में श्रीमती जानकी हिरामण वाघ के भाव के कारण उनके ‘भावजागृति का प्रयत्न करते समय सूक्ष्म से प.पू. भक्तराज महाराज, प.पू. डॉक्टर, श्रीकृष्ण एवं सभी संत खेत में आते हुए दिखाई दिए ।

२. नागपुर की श्रीमती आसावरी प्रसाद आर्वेन्ला को श्रीकृष्ण के अस्तित्व की अनुभूति होती है । ऐसा लगता है ‘सभी वृक्ष नामजप की ताल पर डोल रहे हैं’, इससे बहुत प्रसन्नता होती है । वहां सतत श्रीकृष्ण का अस्तित्व प्रतीत होता है ।

३. ६५ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त देवद के श्री. तुकाराम लोंढे के खेत में सनातन संस्था की सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ को भी बहुत चैतन्य प्रतीत हुआ । ऐसा लगा जैसे ‘खेतों में लहलहाती फसल उनसे बोलने लगी है ।’

 

खेती के काम साधना के रूप में करने से किसानों को बहुत लाभ होता है !

श्रीकृष्ण से प्रार्थना करने पर अल्प मनुष्यबल के होते हुए भी आधे दिन में धान की कटाई होना

‘धान की कटाई के समय वैसे १६ लोगों को एक दिन लगता है । इस अवसर पर केवल १० लोगों ने आधे दिन धान की कटाई की । मैंने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की, ‘आपके ही खेत में सेवा कर रहे हैं । यह सेवा आप ही हमसे करवा लीजिए ।’ तब ऐसा प्रतीत हुआ कि श्रीकृष्ण ने खेत की पहले ही कटाई कर दी है । हम केवल निमित्त मात्र थे । हम जब भोजन के लिए बैठे तब श्रीकृष्ण से पूछने पर उन्होंने मुझे कौरव-पांडवों के युद्ध का स्मरण करवाया । उस युद्ध में श्रीकृष्ण ने कौरवों को पहले ही मार दिया था; परंतु पांडवों को निमित्त बनाया । उसी प्रकार इस प्रसंग में भी लगा ।’

– श्री. ज्ञानेश्वर आपाना गावडे, गवेगाळी, खानापुर, बेळगांव.

श्रीकृष्ण ने फसल की रक्षा के विषय में आश्वस्त करना, वर्षा आने के पश्चात फसल पर सूक्ष्म से सुदर्शनचक्र पकडना जिससे वर्षा का पानी खेत के बाहर गिरना और फसल को सूखा देख लोगों को चमत्कार लगना

खेत में धान की कटाई के पश्चात थोडी फसल खेत में शेष रह गई । अगले दिन वर्षा आई । वर्षा आने के ५ मिनट पूर्व (रात ९ बजे) मैंने श्रीकृष्ण के चित्र के सामने दो उदबत्तियां लगाईं और कहा, ‘हे भगवन, ये आप ही के खेत हैं । सेवा समझकर सब कुछ किया है; परंतु अब वर्षा हो रही है ।’ तब ऐसे लगा जैसे भगवान श्रीकृष्ण कह रहे हैं, ‘धान की फसल मेरी है और मैं ही उसकी रक्षा करनेवाला हूं । तुम चिंता मत करो ।’ ऐसा प्रतीत हुआ मानो भगवान श्रीकृष्ण ने फसल पर सुदर्शन चक्र पकड रखा है । पानी सुदर्शनचक्र पर बरस रहा था; जबकि फसल पर एक बूंद भी नहीं गिरा । ४ दिनों पश्चात जब फसल देखी तो ध्यान में आया वह पूर्णरूप से सूखी थी । सभी के पहले कटाई करने से लोग मुझे मूर्ख समझ रहे थे; परंतु भगवान की कृपा से कोई भी बाधा नहीं आई । पूर्ण प्रक्रिया हो जाने पर लोगों ने कहा कि वह सब एक चमत्कार ही था ।
धान से चावल बनाने की प्रक्रिया पूर्ण होने के पश्चात जब उसे तौला जाता तब प्रतिवर्ष १३ – १४ बोरी चावल ही मिलता था; परंतु इस वर्ष साढे १९ बोरी चावल मिला । श्रीकृष्ण के चरणों में अपार कृतज्ञता व्यक्त हुई । लोगों ने जब सुना तो उन्हें आश्चर्य लगा । वे बोले, ‘सबसे अंत में धान लगाया और धान की कटाई भी सबसे पहले की, तब भी चावल अधिक हुए ।’ किसी को भी इस पर विश्वास नहीं हो रहा था ।

– श्री. ज्ञानेश्वर आपाना गावडे, गवेगाळी, खानापुर, बेळगांव.

 

आध्यात्मिक उपायों के कारण फसल की रक्षा एवं बढत

परात्पर गुरु पांडे महाराजजी के बताए आध्यात्मिक उपायों के कारण खेत सुरक्षित और फसल अच्छी आना

श्री. रामचंद्र दगडू पांगुळ

मैं किसान हूं इसलिए परात्पर गुरु पांडे महाराज (परात्पर गुरु बाबा) मुझे सदैव बुलाकर खेती के विषय में एवं देवद आश्रम के परिसर के पेड-पौधों के विषय में सूत्र बताते थे । उनका उस विषय का अभ्यास एवं उनकी प्रायोगिक बुद्धि के कारण वे मुझे विविध प्रयोग करने के लिए कहते थे । उसी अनुसार मैं अपने गांव (मु.पो. वेळवंड, ता. भोर, जि. पुणे में) के खेतों में प्रयोग करता रहता हूं । उनके बताए अनुसार मैंने वर्ष २०१८ में अपने खेतों में फसलवृद्धि के लिए यंत्र एवं मंत्र लगाया था ।

परात्पर गुरु बाबा के मार्गदर्शनानुसार हमने इस फसल पर किसी भी प्रकार के कीटकनाशकों का उपयोग नहीं किया । गोबर की खाद एवं अत्यंत ही अल्प मात्रा में यूरिया का उपयोग किया । इन सभी उपायों के कारण हमारे खेतों की फसलों पर अद्भुत अच्छा परिणाम हुआ दिखाई दिया । हमारे गांव में ‘खरोबाचे शेत’ (खरोबा के खेत) इस स्थान से लगकर अन्य एक किसान के खेत हैं । उसके खेत की फसल को रोग लग गया था । इसलिए उसने उस पर कीटकनाशक का छिडकाव किया, परंतु उस रोग के नियंत्रण में न आने से लगभग ८० प्रतिशत फसल नष्ट हो गई । भगवान की कृपा से उससे ही लगे हमारे खेत सुरक्षित हैं और फसल भी अच्छी आई । सभी का अनुमान है कि प्रत्येक वर्ष की तुलना में इस बार १ मन धान अधिक आएगा । ‘फसल की बढत के लिए यंत्र लगाने से एवं खेत में काम करते समय प्रार्थना एवं जयघोष करने से, इसके साथ ही जब-जब खेत देखने गया, तब-तब प्रार्थना करने से फसल की अच्छी बढत हुई है’, ऐसा हमारे ध्यान में आया है ।

– श्री. रामचंद्र दगडू पांगुळ, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.

परात्पर गुरु पांडे महाराजजी द्वारा दी हुई विभूति खेतों में डालने पर धनिया एवं तूर दाल (अरहर दाल) के पौधों की ऊंचाई बढना

परात्पर गुरु पांडे महाराजजी द्वारा दी हुई विभूती खेतों में डालने पर आगे दिए परिवर्तन हुए । धनिया के बीज बोने से पहले मैंने उसमें बिना कोई खाद इत्यादि डाले केवल विभूती डाली । तब धनिया के पौधों की ऊंचाई ३ फुट बढ गई । तूर दाल के पौधों की ऊंचाई सदैव ३-४ फुट होती है । इस समय उसकी ऊंचाई ८ फुट तक बढ गई थी । तूर दाल की फसल अन्य किसानों को बहुत कम मिली; परंतु हमारे खेत में तूर दाल की फसल काफी अच्छी हुई । तूर के वजन से पौधे झुक गए थे । यह देख अन्य किसान आश्चर्यचकित हो गए ।

– श्री. तुकाराम लोंढे, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.

मंत्र की सहायता से कृषि

‘५० फुट बाइ ५० फुट दक्षिणोत्तर भूखंडों में टमाटर के साठ-साठ रोपों का आरोपण किया । एक भूखंड में ३०० ग्राम सुपरफॉस्फेट, १५० ग्राम अमोनियम सल्फेट, ७५ ग्राम सोडियम नायट्रेट और ३ किलो गोबर डाला । दूसरे भूखंड में किसी भी प्रकार की खाद डाले बिना केवल अभिमंत्रित पानी दिया गया । साढे तीन माह के उपरांत दोनों भूखंडों के उत्पन्न की तुलना की । उसमें रासायनिक एवं खाद दिए गए भूखंड से केवल २२.५ किलो टमाटर मिले । जबकि दूसरे भूखंड से जिसमें किसी भी प्रकार की खाद का उपयोग नहीं किया गया था, अपितु केवल अभिमंत्रित पानी दिया गया था, उससे ४८ किलो टमाटर प्राप्त हुए । इसी पद्धति से ककडी, बैंगन एवं चौली पर प्रयोग भी किया गया ।

रासायनिक खाद एवं अभिमंत्रित पानी का वनस्पतियों पर हुआ परिणाम

इस्रायल में सभी प्रकार की रासायनिक खाद देकर एक एकड से १३-१४ सहस्र किलो टमाटर प्राप्त करते हैं । जगत के अन्य देशों से इस्रायल अधिकाधिक टमाटर उपजानेवाला देश है । अन्य देशों के एकरी उत्पादन इसकी अपेक्षा बहुत अल्प है । ऐसा लगता है कि मंत्रों के प्रयोग से वातावरण उपज के लिए अनुकूल होता है । इसकारण एक एकड में किसी भी प्रकार की खाद का उपयोग किए बिना टमाटर का उत्पादन २५-३० सहस्र किलो हो सकता है ।

– मंत्रमहर्षि, वैद्य श्री. भाऊसाहेब देशपांडे (दै. नवशक्ति, २५.१.१९७६)

 

शुष्क भूमि खेती (कुल वार्षिक वर्षा पर निर्भर फसल उत्पादन को तकनीकी रूप से शुष्क भूमि कृषि कहते हैं) के परिसर की १२ कूपनलिकाओं में पानी न होना, १५० फुट खोदकर भी पानी न लगना और प्रार्थना करने पर पानी लगना

‘हमारी खेती शुष्क भूमि क्षेत्र में है । उस भाग में पानी अल्प मात्रा में है । इसलिए हमने कूपनलिका खोदने का निर्णय लिया; परंतु आसपास के सभी लोग कहने लगे कि ‘यहां पानी नहीं लगेगा’; कारण इससे पूर्व सरकारी विभाग द्वारा उस भाग में कुल १२ कूपनलिकाएं खोदी गईं थीं; परंतु एक में भी पानी नहीं लगा था । तब भी हमने निश्चय किया कि हम ‘भगवान श्रीकृष्ण और प.पू. डॉक्टरजी का स्मरण कर कूपनलिका खुदवाएंगे ।’ कूपनलिका खोदने के दिन मैंने उस स्थान पर श्रीकृष्ण से प्रार्थना कर सनातन गोअर्क एवं विभूति का पानी छिडका और उदबत्ती लगाकर प्रार्थना की । दो घंटों पश्चात कूपनलिका खोदने का काम आरंभ हुआ । डेढ सौ फुट तक खुदाई करने पर भी केवल पत्थर और मिट्टी ही बाहर आ रही थी । अब तो कूपनलिका खोदनेवाले लोग भी कहने लगे, ‘‘यहां पानी नहीं लगेगा ।’’ तब भगवान श्रीकृष्ण से एवं प.पू. डॉक्टरजी से बहुत प्रार्थना होने लगीं । मैंने प.पू. डॉक्टरजी से मन ही मन कहा, ‘मुझे विषमुक्त खेती करनी है । मुझे पर्यावरण की होनेवाली हानि न्यून करनी है । यहां पानी नहीं लगा, तो मैं खेती नहीं कर पाऊंगा । हे गुरुदेवजी, आप ही कुछ कीजिए । अब सबकुछ आप पर ही छोडा है ।’ मेरे ऐसे प्रार्थना करते ही कूपनलिका से एक बडा पानी का फव्वारा आया और सर्वत्र पानी ही पानी हो गया । यह देख मन कृतज्ञता से भर गया ।’

– श्रीमती आसावरी प्रसाद अर्वेन्ला, नागपुर (२५.५.२०१६)

 

विविध आध्यात्मिक उपायों के कारण फसलों का संरक्षण

खेत में आध्यात्मिक उपाय करने से फसलों को कीडे न लगना

हमने खेत में पूजाघर बनाया है । उसमें अष्टदेवताओं की चित्रपट्टी रखी है । वहां मैं कपूर एवं उदबत्ती लगाती हूं और खेत में सदैव उदबत्ती की विभूती फूंकना एवं गोमूत्र का छिडकाव भी करती हूं । इसलिए ‘खेत के पौधे सदैव प्रसन्न लगते हैं और फसलों को कीडे भी नहीं लगते’, ऐसा अनुभव हुआ है ।

– श्रीमती आसावरी प्रसाद अर्वेन्ला, नागपुर (२५.५.२०१६)

आध्यात्मिक उपाय करने से ओले बरसने पर भी फसल को क्षति न पहुंचना और फसल अच्छी होना

हम केलों में खाद डालते समय उसमें विभूती एवं कपूर डालते हैं । सभी खेतों पर विभूती फूंकते हैं और उदबत्ती लगाते हैं । सभी पेड-पौधों पर हम सूक्ष्म से ‘श्रीकृष्ण, श्रीकृष्ण’ लिखते हैं । इसकारण जब ओलों की वर्षा हुई, आंधी आई तब ईश्वर की कृपा से हमारे खेतों की फसल की कोई हानि नहीं हुई । ऐसा दिखाई दिया जैसे ‘भगवान श्रीकृष्ण खेत में हैं और उन्होंने आंधी एवं ओलों की वर्षा से खेतों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत उठा रखा है ।’ उस समय आसपास के खेतों की फसलों की बहुत हानि हुई; जबकि हमारी फसल बहुत अच्छी हुई । ऐसा प्रतीत हुआ मानो भगवान श्रीकृष्ण हमारे सामने ही हैं । जब यह अनुभूति एक संत को बताई तो वे बोले, ‘‘देखो ! तुम्हारे भाव के कारण तुम्हारे खेत में अधिक फसल हुई !’’ उस समय ध्यान में आया कि भाव के कारण कुछ भी हो सकता है ।’

– श्रीमती जानकी हिरामण वाघ, नांद्रा (बुद्रुक), जळगांव. (२६.६.२०१५)

उदबत्ती की विभूती के उपयोग से फसल बढना

‘गत १ वर्ष से श्रीमती सविता कंग्राळकर धर्मशिक्षा वर्ग लेती हैं । उनकी धान की खेती है । पहले उनके खेत में थोडी भी फसल नहीं आती थी । धर्मशिक्षा वर्ग लेनेवाली आधुनिक वैद्या (डॉ.) श्रीमती ज्योती दाभोळकर ने उन्हें बीजों को उदबत्ती की विभूती लगाकर बोने के लिए कहा । श्रीमती कंग्राळकर के वैसा करने पर बहुत अच्छी फसल आई । विशेष बात यह थी कि उसे तिलमात्र भी कीडे नहीं लगे । इससे उन्हें ध्यान में आया कि केवल विभूती लगाने का ही यह परिणाम था ।

गोमूत्र एवं विभूती लगाकर बीज बोने से उत्पन्न में वृद्धि

‘मैं एक वर्ष से सनातन संस्था के संपर्क में हूं । मेरी खेती तो बहुत है; परंतु उसमें उत्पन्न बहुत अल्प होती है । उत्पन्न बढाने के लिए बहुत प्रयत्न किए । दो कूपनलिकाएं खोदीं, खाद में परिवर्तन किया, भूमि को उर्वरित करने के प्रयास किए; परंतु उत्पन्न में संतोषजनक अंतर दिखाई नहीं दिया । सनातन संस्था के संपर्क में आने पर मुझे सनातन-निर्मित उदबत्ती का महत्त्व ध्यान में आया । आध्यात्मिक उपाय के रूप में हम उदबत्ती की विभूती का एवं विभूती के पानी का उपयोग कर ही रहे थे । एक दिन मुझे लगा खेत में विभूती लगाकर बीजों का उपयोग कर देखें । फिर हमने इस वर्ष गोमूत्र एवं विभूती लगाकर ही खेत में बीज बोए । इससे खेती की उत्पन्न में बडा अंतर अनुभव हुआ । इस वर्ष खेत से डेढ लाख रुपयों की उत्पन्न मिली ।’ – श्री. गो.वा. कुलकर्णी, निवृत्त शिक्षक, अचलेर, जिला धाराशिव (उस्मानाबाद). (मई २००६)

बीजों को उदबत्ती की विभूती लगाने व नामजप करते हुए बीज बोने से खेत की उत्पन्न में वृद्धि होना

‘मेरे खेतों की भूमि अल्प उपजाऊ है । इसलिए खेत से बहुत ही अल्प उत्पन्न आता है । आज तक हमारे खेत से दो बोरों से अधिक अनाज की उत्पन्न कभी नहीं मिली थी । मेरे सनातन संस्था के संपर्क में आने पर मुझे साधना का महत्त्व समझ में आया । मुझे सनातन संस्था के सत्संग में सनातन-निर्मित उदबत्ती का महत्त्व भी ध्यान में आया । एक प्रयोग के रूप में मैंने खेत में बोए जानेवाले बीजों को उदबत्ती की विभूती लगाई एवं नामजप करते हुए बीज बोए । इस वर्ष मुझे खेत से २५ बोरे अनाज मिला । यह केवल ईश्वरीय कृपा से ही संभव हुआ है ।

– श्री. गणेश दत्तात्रय देशपांडे, भानुनगर, जिला धाराशिव (उस्मानाबाद). (मई २००६)
इसमें प्रकाशित की गई अनुभूतियां ‘भाव वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वह सभी को आएगी ही, ऐसा नहीं है । – संपादक.

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