परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के निमित्त श्रीविष्णु के रूप में हुआ उनका रथोत्सव : ईश्वर की अद्भुत लीला !

समुद्र से स्वर्ण रंग का बहता हुआ आया बडा रथ

 

रथोत्सव की पृष्ठभूमि

‘३.२.२०२२ को हुए १९६ वें सप्तर्षि जीवनाडीपट्टिका के वाचन में सप्तर्षियों ने कहा, ‘इस वर्ष परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के निमित्त गुरुदेवजी की (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की) जन्मतिथि पर (ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी को [२२.५.२०२२ को]) हमें गुरुदेवजी का रथोत्सव मनाना है । उससे पूर्व सप्तर्षियों की आज्ञा से श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम् जिले के श्री इंद्राक्षी देवी के मंदिर में जाकर प्रार्थना करें ।’ १२.२.२०२२ को सप्तर्षियों की आज्ञा के अनुसार श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने अध्रि प्रदेश राज्य के श्रीकाकुलम् जिले के श्री इंद्राक्षी देवी के मंदिर में जाकर देवी से प्रार्थना की।

 

१. म्यांमार से स्वर्ण रंग का रथ बहते आना, ईश्वर का ही सुंदर नियोजन है !

१ अ. सप्तर्षियों की आज्ञा से श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी
का भारत-म्यांमार सीमा पर जाकर भारत के लिए प्रार्थना करना और उसके उपरांत कुछ
ही दिनों में म्यांमार से आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम् जिले के समुद्र से रथ बहते आना

१०.५.२०२२ को बंगाल में ‘असानी’ चक्रवात समुद्र में निर्माण हुए और ११.५.२०२२ को आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम् जिले के समुद्री किनारे पर समुद्र से स्वर्ण रंग का एक बडा रथ बहता हुआ आया । उस दिन समुद्र से रथ के बहकर आने का यह समाचार राष्ट्रीय वार्ता बनी । कुछ लोगों का कहना था, ‘‘यह रथ म्यांमार देश का होगा ।’’ विशेष यह कि यह रथ समुद्र में मिलने के कुछ दिन पूर्व ही सप्तर्षियों की आज्ञा से श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी ने मणिपुर राज्य के भारत-म्यांमार सीमा पर जाकर देश के लिए प्रार्थना की थी ।

१ आ. ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का रथोत्सव मनाने के कुछ
दिन पूर्व ही समुद्र से रथ बहकर आना, यह ईश्वरीय संकेत है’, ऐसा सप्तर्षियों का कहना

हमने सप्तर्षियों को इस रथ के विषय में सूचित किया । तब सप्तर्षियों ने कहा, ‘२२.५.२०२२ को हमें परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का रथोत्सव मनाना है । उससे पहले ‘समुद्र से यह रथ बहकर आना’, यह सामान्य बात नहीं । म्यांमार देश के लोगों ने कितने महीनों पूर्व ही वह रथ मनौती के रूप में समुद्र में अर्पित किया होगा; परंतु ‘गुरुदेवजी के रथोत्सव के कुछ दिन पूर्व ही उसका बहकर आना’, यह केवल संयोग न होकर, दैवी संकेत है । इतने दिनों में वह रथ समुद्र में डूबा नहीं और न ही भारत देश के नौदल को वह रथ दिखाई दिया । यह सब ईश्वर का ही नियोजन है ।’

१ इ. गुरुदेवजी के जन्म नक्षत्र के दिन जगन्नाथपुरी के जगन्नाथ के रथ के निर्माणकार्य का शुभारंभ होना

२०.५.२०२२ को परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का उत्तराषाढा जन्म नक्षत्र था और इस दिन सप्तर्षियों ने रामनाथी आश्रम में ‘महामृत्युंजय होम’ करने के लिए कहा था । महामृत्युंजय होम आरंभ हुआ और हमें सूचना मिली कि ‘वर्ष २०२२ के जगन्नाथपुरी की जगन्नाथ रथयात्रा के लिए जो लकडी का रथ बनाया जाता है, उसे बनवाने का काम आज (२०.५.२०२२ को) आरंभ हुआ ।’ मुझे ऐसा लगा कि ये सभी २२.५.२०२२ को होनेवाले गुरुदेवजी के रथोत्सव से संबंधित शुभसंकेत और पूर्वसूचनाएं थीं ।

जगन्नाथपुरी की जगन्नाथ रथयात्रा हेतु २०.५.२०२२ को आरंभ हुए लकडी के रथ के कार्य का छायाचित्र

 

२. ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का रथोत्सव होना’,
यह मानो श्रीमन्नारायण द्वारा की गई रथलीला !

‘वर्ष २०२२ में गुरुदेवजी का जन्मोत्सव कैसे मनाया जाएगा ?’, इसकी सभी साधकों को बहुत उत्सुकता थी; परंतु ऐसा किसी ने भी अनुमान नहीं लगाया होगा कि ‘गुरुदेवजी का रथोत्सव होगा !’ उपरोक्त सभी घटनाओं को देखते हुए ध्यान में आता है कि ‘श्रीमन्नारायण स्वरूप गुरुदेवजी का रथ में आरूढ होकर साधकों को दर्शन देना’, यह ब्रह्मांड का दैवी नियोजन था । मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि यह साक्षात श्रीमन्नारायण की रथलीला ही थी ।

 

३. कृतज्ञता

‘ईश्वर जब कोई कार्य निर्धारित करते हैं, तो प्रकृति, पंचमहाभूत, देवी-देवता एवं ऋषि-मुनि किस प्रकार उसे साकार रूप देते हैं ?’, यह दैवी नियोजन हम साधकों ने रथोत्सव के माध्यम से अनुभव किया । इसके लिए हम सनातन के सभी साधक श्रीमन्नारायण स्वरूप गुरुदेवजी एवं सप्तर्षियों के श्रीचरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ हैं ।

 

४. प्रार्थना

‘हे श्रीमन्नारायण स्वरूप गुरुदेवजी, इस जीवन में आपका रथोत्सव पृथ्वी पर देखने के लिए मिला । हमारा जीवन कृतार्थ हो गया । ‘न भूतो न भविष्यति’ ऐसे हुए इस अलौकिक रथोत्सव से आपने हमें अपूर्व एवं अविस्मरणीय आनंद दिया । हे गुरुदेवजी, आपका रथ जैसे-जैसे आगे बढ रहा था, वैसे-वैसे आप मानो सभी साधकों को आश्वस्त करते जा रहे थे कि ‘‘मैं ऐसे ही तुम सभी साधकों को कलियुग के इस घोर आपातकाल से रामराज्य की ओर (हिन्दू राष्ट्र की ओर) ले जा रहा हूं !’ हम साधक आपके श्रीचरणों में प्रार्थना करते हैं, ‘हे गुरुदेवजी, अंतिम श्वास तक हम साधक आपके श्रीचरणों में कृतज्ञभाव से सेवा कर पाएं । हमारी यह याचना स्वीकार करें गुरुदेवजी, स्वीकार करें !’

– श्री. विनायक शानभाग (आध्यात्मिक स्तर ६६ प्रतिशत), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

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