तमिलनाडु का हिन्दी विरोध उचित है अथवा अनुचित ?

श्री. चेतन राजहंस

7 अप्रैल को संसदीय राजभाषा समिति की 37वीं बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री श्री. अमित शाह ने ”हिन्दी अंग्रेजी का विकल्प हो सकती है और हिन्दी देश की आधिकारिक भाषा हो सकती है”, ऐसा वक्तव्य दिया था । तमिलनाडु में इस वक्तव्य का राजनीतिक विरोध हुआ । तमिलनाडु भाजपा ने भी श्री. शाह का यह वक्तव्य अमान्य घोषित किया । तमिलनाडु में चल रहा ‘यह हिन्दी विरोध उचित है अथवा अनुचित ?’, इस विषय का मंथन करनेवाले कुछ अनुभव…

 

तमिल भाषा में विदेशी भाषाओं का आक्रमण नहीं है, यह दुष्प्रचार !

गत संपूर्ण महीने से मैं तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और केरल इन राज्यों में अध्यात्मप्रसार हेतु यात्रा कर रहा हूं । भाग्यनगर में था, तब साहित्य के ज्ञाता अधिवक्ता रमण मूर्ति के साथ तेलुगु भाषा में आनेवाले उर्दू शब्दों के संदर्भ में चर्चा हुई, तब उन्होंने बताया कि, तेलुगु भाषा को परिशुद्ध रखने के लिए तमिल भाषा की भांति द्विभाषा नीति अपनानी पड़ेगी । आज तमिलनाडु में नित्य व्यवहार में तमिल और अंग्रेजी इन दोनों भाषाओं को प्राथमिकता है; इसलिए वहां की तमिल भाषा शुद्ध है ।

तमिलनाडु छोडकर शेष भारत में स्थानीय प्रादेशिक भाषा, राष्ट्रभाषा हिन्दी और अंग्रेजी इन तीन भाषाओं को व्यवहार में प्राथमिकता प्राप्त है । तमिलनाडु राज्य में हिन्दी विरोध है, यह ज्ञात होते हुए भी ‘किसी नीति के कारण मूल भाषा परिशुद्ध रह सकती है’, इन विचारों से मैं थोडा सुखद अनुभव कर रहा था । वास्तव में तमिलनाडु जाने के उपरांत मेरे ध्यान में आया कि, तमिल भाषा में भी अन्य भाषाओं के शब्द हैं । मेरी यात्रा के पहले दिन तमिल भाषा में ‘अधिक’ शब्द के लिए मूल पर्शियन-अरेबिक शब्द ‘जास्ति’ का उपयोग किया जा रहा है, यह मेरे ध्यान में आया । इस विषय में सनातन के स्थानीय साधकों के साथ चर्चा करने के उपरांत उन्होंने कहा कि, तमिल भाषा में अन्य भाषाओं के अनेक शब्दों का प्रचलन है । उसके कारण ‘द्विभाषी नीति के कारण तमिल भाषा शुद्ध है’, यह अनुचित धारणा है, यह मेरे ध्यान में आया ।

 

हिन्दी आर्यों की भाषा है, यह अनुचित धारणा !

अंग्रेजों ने ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति अपनाकर भारत पर राज्य किया । उन्होंने ‘ब्रेकिंग इंडिया’ नीति के अंतर्गत ईसाई मिशनरियों के माध्यम से कपोलकल्पित कथाओं की रचना कर यह दुष्प्रचार किया कि दक्षिण भारत उत्तर भारत से अलग था । उत्तर भारतीय ‘आर्य’ हैं और दक्षिण भारतीय ‘द्रविड’ जाति के हैं । इन दोनों जातियों की संस्कृति, परंपराएं, भाषा आदि भिन्न हैं । रावण का वध करने के लिए उत्तर से आए प्रभु श्रीराम आर्य थे तथा रावण द्रविड था; उसके कारण आर्य और द्रविड में परस्पर वैमनस्य था । दुर्भाग्यवश आज भी ‘क्रिस्टो-द्रविड मूवमेंट’ के द्वारा यह दुष्प्रचार चल रहा है । इस प्रचार के अंतर्गत ‘हिन्दी’ आर्यों की भाषा है, यह अनुचित धारणा भी फैलाई गई है ।

वास्तव में ‘आर्य’ जातिवाचक नहीं, अपितु संस्कृतिवाचक शब्द है । ‘आर्य’ शब्द का अर्थ है ‘सुसंस्कृत’ अथवा ‘सभ्य पुरुष !’ प्राचीन काल में संस्कृत भाषा का ही प्रचलन होने से सभी महिलाएं अपने पतियों को ‘आर्य’ कहकर पुकारती थीं । प्राचीन साहित्य में मंदोदरी भी रावण को ‘आर्य’ कहकर पुकारती थी, इसके प्रमाण मिलते हैं । इसलिए ‘उत्तर भारतीय आर्य जाति के हैं’, ऐसा कहना अज्ञानमूलक है ।

द्रविड शब्द भी जातिवाचक नहीं है, अपितु प्रांतवाचक है । भारत के दक्षिण प्रदेश को विशेषतः आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल इन तीन राज्यों के एकत्रित प्रांत को द्रविड कहा जाता था । गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने अपने ‘जन गण मन’ इस राष्ट्रगान में ‘पंजाब, सिंधु, गुजरात, मराठा, द्राविड, उत्कल, वंग ॥’, इस प्रकार से भारत के विभिन्न प्रांतों का उल्लेख करते समय दक्षिण भारत के लिए ‘द्रविड’ शब्द का प्रयोग किया है ।

संक्षेप में कहा जाए, तो आर्य-द्रविड मिथक की भांति ‘हिन्दी आर्यों की भाषा है’, यह भी एक मिथक है ।

 

हिन्दी सीखनेवाले ‘देशप्रेमी’ तमिल भाषी हिन्दुत्ववादी !

जिस दिन श्री. अमित शाह का वक्तव्य प्रकाशित हुआ, उस दिन मैं चेन्नई अर्थात तमिलनाडु की राजधानी में था । उस दिन सवेरे हम ‘वैदिक रिसर्च सेंटर’  में श्री. बालगौतमन् से मिले । वे उनके जालस्थल और सोशल मीडिया पर तमिलनाडु के हिन्दू विरोधी और भारत विरोधी घटनाओं के विषय में उद्बोधन करनेवाले समाचार प्रतिदिन प्रकाशित करते हैं ।

इस विद्वान व्यक्ति ने हमारे साथ हिन्दी भाषा में संवाद करने का प्रयास किया । जब यह संवाद चल रहा था, तब उनके वेबसाईट के संपादक ने समाचार दिया कि, श्री. अमित शाह के वक्तव्य का तमिलनाडु में राजनीतिक विरोध आरंभ हो गया है । उन्होंने तुरंत ही इस पर अपनी उचित भूमिका स्पष्ट करते हुए निम्नलिखित सूत्र बताए –

अ. श्री. अमित शाह का वक्तव्य तमिल भाषा के संदर्भ में नहीं, अपितु देश के कामकाज की भाषा के (ऑफिशियल लैंग्वेज) के संदर्भ में है ।

आ. ‘हिन्दी अंग्रेजी का विकल्प बन सकती है’ अर्थात वर्तमान में देश का कामकाज अंग्रेजी में चलता है, उसके स्थान पर हिन्दी भाषा विकल्प हो सकती है ।

इ. ‘हिन्दी देश की आधिकारिक भाषा हो सकती है’ अर्थात एकमात्र हिन्दी देश के कामकाज की भाषा हो सकती है । संक्षेप में कहा जाए, तो अब देश को विदेशी अंग्रेजी भाषा की आवश्यकता नहीं है ।

ई. इस वक्तव्य में कहीं भी अन्य प्रादेशिक भाषाओं के विषय में वक्तव्य नहीं है अथवा उन भाषाओं को समाप्त करने का कोई षड्यंत्र नहीं है ।

 

हिन्दी विरोध के कारण तमिलनाडु की हुई हानि !

तमिलनाडु की यात्रा में मुझे एक गुजराती व्यापारी मिले । वे हाल ही में महाराष्ट्र से तमिलनाडु में स्थायी रूप से बस गए थे । मैंने उनसे पूछा कि महाराष्ट्र से इतनी दूर व्यापार के लिए आने का क्या कारण है ? इस विषय में उनका उत्तर महत्त्वपूर्ण था उन्होंने कहा, ”इन लोगों को तमिल भाषा छोडकर अन्य भाषा का ज्ञान न होने से यह राज्य अन्य राज्यों की तुलना में न्यूनतम 10 वर्ष पिछड गया है ।” इन लोगों को तमिल छोडकर अन्य भाषा न आने से कोई भी तमिल व्यापारी तमिलनाडु से बाहर जाकर व्यापार नहीं कर सकता । भाषा की समस्या के कारण यहां के लोग अन्य राज्यों में व्यापार से संबंधित विकसित नई-नई प्रौद्योगिकी नहीं सीख पाते । उसके कारण भारत में जब कोई प्रौद्योगिकी विकसित होती है, उसे तमिलनाडु में पहुंचने के लिए 10 वर्ष लगते हैं । तब तक हम जैसे व्यापारी अन्य राज्य की प्रौद्योगिकी लेकर यहां आते हैं और व्यापार करते हैं । हमने तमिल भाषा भी आत्मसात की है । इसलिए आज तमिलनाडु का 75 प्रतिशत व्यापार तेलुगु, मारवाडी और गुजराती लोगों के हाथ में है । तमिलनाडु से शेष भारत में पर्यटन के लिए जाने वाले लोग भाषा की समस्या के कारण फंसाए जाते हैं ।”

यह वास्तविकता से भरा अनुभव सुनने के उपरांत ‘तमिलनाडु के राजनेताओं ने केवल अपने राजनीतिक लाभ के कारण हिन्दी विरोध कर क्या अर्जित किया ?’, यह प्रश्न मेरे मन में उठा ।

– श्री. चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

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