भारत की स्वतंत्रता में आजाद हिन्द सेना का महत्त्वपूर्ण योगदान !

द्वितीय विश्‍व युद्ध के समय सन १९४२ में भारत को अंग्रेजों के कब्जे से स्वतंत्र कराने के लिये आजाद हिन्द फौज या इन्डियन नेशनल आर्मी (INA) नामक सशस्त्र सेना का गठन किया गया । इसकी संरचना रासबिहारी बोस ने जापान की सहायता से टोकियो में की थी । वे सावरकरजी के संपर्क में थे । ५ जुलाई १९४३ को सिंगापुर के टाउन हॉल के सामने सुप्रीम कमाण्डर के रूप में सेना को संबोधित करते हुए दिल्ली चलो ! का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना के विरुद्ध बर्मा सहित इम्फाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया । रासबिहारी बोस ने ४ जुलाई १९४३ को ४६ वर्षीय सुभाषजी को इसका नेतृत्व सौंप दिया ।

१. सुभाषचंद्र बोस और स्वातंत्र्यवीर सावरकर की
दीर्घकालीन गुप्त बैठक में अंग्रेजों से संघर्ष की योजना बनना

२२ जून १९४० को देश के गौरव नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने मुंबई के सावरकर सदन में जाकर स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी से अचानक भेंट की । इस दीर्घकालीन गुप्त बैठक में योजना बनी, जिसके अनुसार सुभाषचंद्र बोस भारत से बाहर निकल जाएं तथा अंग्रेजों से युद्धरत जर्मनी, जापान आदि राष्ट्रों की सहायता से अंग्रेजों की सत्तावाले भारत पर बाहर से सैनिकी आक्रमण किया जाए तथा देशभक्त युवक देश में अंग्रेजों की सेना में भरती हों तथा ठीक समय अंग्रेजों से विद्रोह कर अंग्रेजों को पराजित करें ।

२. आजाद हिन्द सेना का ब्रह्मदेश के मार्ग से
भारत पर आक्रमण करना विद्रोह का वातावरण
बनकर मुंबई सहित अनेक स्थानों पर धैर्य का बांध टूटना

बैठक में बनी योजना के अनुसार नेताजी ने आजाद हिन्द सेना द्वारा ब्रह्मदेश के मार्ग से (म्यानमार के मार्ग से) अंग्रेजों की सत्तावाले भारत पर आक्रमण किया । अंग्रेजों के नेतृत्व में लडनेवाली भारतीय सेना ने अंग्रेजों से विद्रोह किया और शस्त्रों सहित वे आजाद हिन्द सेना से जा मिली । स्वाभाविक ही उस युद्ध में अंग्रेजों को पीछे हटना पडा । केवल युद्ध मोर्चे की भारतीय सेना ही ब्रिटिशविरोधी नहीं बनी, अपितु अंग्रेजों के अधीनस्थ भारतीय सेनादल, नौकादल, वायुदल आदि में भी अंग्रेजविरोधी विद्रोह का वातावरण बन गया था । इसका प्रभाव मुंबई और अन्य स्थानों पर हो रहा था ।

३. अंग्रेजों द्वारा अहिंसक सत्याग्रह का अभियान असफल
करना और प्रखर लडाकू देशभक्त कार्यकर्ताआें का अंग्रेजों के
विरुद्ध योजना बनाकर सशस्त्र क्रांति अभियान प्रारंभ करना

९ अगस्त १९४२ को गांधीजी के आदेशानुसार कांग्रेस द्वारा चलाया गया अंग्रेजों भारत छोडो !, यह अहिंसक अभियान अल्प समय में ही सशस्त्र कूट अभियान में रूपांतरित हो गया । अहिंसा का उद्घोष करनेवाले कांग्रेसी नेताआें की धरपकड के पश्‍चात सामान्य देशभक्त जनता के ध्यान में आया कि अहिंसक सत्याग्रह से उद्देश्य पूर्ण नहीं होगा । अंग्रेजों ने अत्याचार कर अहिंसक सत्याग्रह अभियान असफल कर दिया । इसलिए प्रखर लडाकू देशभक्त कार्यकर्ता भूमिगत हो गए तथा उन्होंने कूटनीति से अंग्रेजो के विरोध में सशस्त्र क्रांति अभियान प्रारंभ किया । अंग्रजों के सत्ताकेंद्रों में विविध स्थानों पर सशस्त्र आक्रमण किए गए । शासकीय संपत्ति लूटी गई तथा रेलवे और डाक सेवा तितर-बितर कर दी गई ।

४. क्रांतिकारियों के अंतर्गत विद्रोह और आजाद हिन्द
सेना के बाह्य आक्रमण से अंग्रेजी राज्यकर्ता भयभीत

अंग्रेजों के लिए राज्यव्यवस्था चलाना भी दिन-प्रतिदिन कठिन हो रहा था । अंतर्गत क्रांतिकारी विद्रोह और बाहर से आजाद हिन्द सेना के सफल आक्रमण के बीच अंग्रेजी राज्यकर्ता फंस गए थे । तत्पश्‍चात विश्‍वयुद्ध की परिस्थिति अंग्रेजों के अनुकूल बनती गई और आजाद हिन्द सेना भी पराजित हो गई । नेताजी सुभाषचंद्र बोस को फरार होना पडा तथा आजाद हिन्द सेना के आधिकारी और सैनिकों को युद्धबंदी बनाकर पकडा गया । दूसरे महायुद्ध में विजयी होने के कारण ब्रिटेन बच गया था; परंतु अंग्रेजों के साम्राज्य पर पकड रखनेवाली सैनिकी शक्ति क्षीण हो गई थी ।

५. गुप्त मतदान में अंग्रेजों की अधीनस्थ भारतीय
सेना भी अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध थी, यह स्पष्ट होना

१९४५ में वाइसरॉय की कार्यकारिणी में डॉ. ना.भा. खरे का समावेश था । युद्धबंदी बनाए गए आजाद हिन्द सेना के सैनिकों पर अभियोग चलाने हेतु वाइसरॉय की कार्यकारिणी में विचारविमर्श हुआ । तब डॉ. खरे ने परामर्श दिया कि अंग्रेज इस संबंध में भारतीय सेना से गुप्त मतदान करवाएं ।
यह परामर्श स्वीकार किया गया तथा उसमें ९० प्रतिशत भारतीय सैनिकों ने अपना मत व्यक्त किया कि बंदी बनाए गए आजाद हिन्द सेना के सैनिकों पर अभियोग न चलाया जाए । यदि हम उनके स्थान पर होते, तो हम भी विद्रोह कर आजाद हिन्द सेना में सम्मिलित हो जाते । संक्षेप में अंग्रेजों की अधीनस्थ भारतीय सेना में भी अंग्रेजी सत्ता के विरोध में हो गई थी ।

६. अंग्रेज लोकसभा में प्रधानमंत्री एटली
का यह स्पष्ट कहना कि अंग्रेजों को भारतीय
साम्राज्य छोडना पड रहा है तथा जीवित ब्रिटेन
लौटने के लिए अंग्रेजों का सत्तांत्तर की शीघ्रता करना

विश्‍वयुद्ध में अंग्रेज सेना को बडी हानि पहुंची थी । इसलिए ब्रिटेन से भारत में अंग्रेज सैनिक भेजना संभव नहीं था । इसलिए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने लोकसभा में स्पष्ट कहा कि अंग्रेजों को भारतीय साम्राज्य छोडना पड रहा है । ऐसी परिस्थिति में अंग्रेज अपने देश में जीवित लौटने के लिए सत्तांत्तर करने हेतु आतुर थे।

७. देश का विभाजन करने के संबंध में
अंग्रेज शासन व मुस्लिम लीग का गुप्त समझौता
समाचार पत्रों में प्रकाशित होना तथा वह आरोप
लगाकर वाइसराय ने डॉ. खरे को काउन्सिल से हटाना

डॉ. ना.भा. खरे वाइसरॉय काउन्सिल के एक सदस्य थे । उन्होंने अपनी जीवनी में लिखा है कि देश का विभाजन करने के संबंध में अंग्रेज शासन और मुस्लिम लीग में समझौता हुआ था । यह सत्यवार्ता डॉ. ना.भा. खरे के माध्यम से समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई । गोपनीयता भंग करने के आरोप में डॉ. ना.भा. खरे का नाम वाइसरॉय काउन्सिल से हटा दिया गया । डॉ. ना.भा. खरे ने अपनी पुस्तक में कांग्रेस की सत्ता की लालसा का सप्रमाण वर्णन किया है ।

संदर्भ : प्रज्वलंत, अगस्त १९९७

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