क्या सचमुच समान नागरिकता कानून का पालन होगा ?

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श्री. चेतन राजहंस

उत्तराखंड में भाजपा के श्री. पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री पद पर आसीन होते ही ‘समान नागरिकता कानून’ लागू करने की घोषणा की है । संविधान के अनुच्छेद 44 में इस कानून का प्रावधान होते हुए भी ‘गणतंत्र’ भारत को ७२ वर्ष पूर्ण होने पर भी अबतक की सर्वदलीय सरकारों ने यह कानून बनाने का साहस नहीं दिखाय था, जिसके फलस्वरूप गोवा छोडकर (गोवा में पहले के पोर्तुगीज कानून आज भी लागू होने से उसका वहां अस्तित्व है ।) भारत के किसी भी राज्य में समान नागरिकता कानून नहीं है । भले ही ऐसा हो; परंतु तब भी इस कानून के संदर्भ में अनेक आपत्तियां भी हैं । यही इस लेख का प्रयोजन….

 

1. समान नागरिक संहिता क्या है ?

समान नागरिकता कानून का अर्थ धर्म, जाति और समुदाय से परे जाकर संपूर्ण देश में समान कानून लागू करना । समान नागरिकता कानून लागू करने से विवाह, विवाहविच्छेद, उत्तराधिकार और गोद लेना जैसे सामाजिक विषयों के संदर्भ में संपूर्ण देश में समान कानून आएंगे । इसमें धर्म के आधार पर स्वतंत्र न्यायालय अथवा स्वतंत्र कानूनव्यवस्था नहीं होगी । भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 सभी धर्मों के लिए उचित समय पर ‘समान नागरिक संहिता’ बनाने का निर्देश देता है । स्पष्ट करने योग्य सूत्र यह है कि समान नागरिकता कानून केवल सार्वजनिक जीवन में समानता ला सकता है, व्यक्तिगत जीवन में नहीं ।

 

2. समान नागरिकता कानून के समर्थकों की भूमिका

अ. आज के समय में विविध धर्मपंथों के विविध प्रकार के कानून न्यायतंत्र पर बोझ बढाते हैं । यह बोझ हल्का हो जाएगा, साथ ही इस संदर्भ में न्याय प्रक्रिया भी सुलभ होगी । आज के समय में विवाह, विवाहविच्छेद, गोद लेने की प्रक्रिया और संपत्ति की भागेदारी (हिस्सेदारी), इनके लिए प्रत्येक धर्मपंथ के लोग उनके धार्मिक कानूनों के आधार पर न्यायालय जाते हैं ।

आ. समान नागरिकता कानून के कारण नागरिक के साथ समान व्यवहार होगा और वोटबैंक के लिए धर्मपंथ का लाभ उठानेवाली वर्तमान राजनीति में सुधार आएगा ।

इ. कुछ धर्मपंथ के धार्मिक कानूनों के नाम पर चल रहा लैंगिक भेदभाव दूर किया जाएगा । विशेष रूप से मुस्लिम कानून के अनुसार चार विवाह स्वीकार्य हैं । चार विवाहों के कारण वैवाहिक स्त्री के वैवाहिक जीवन पर ही अत्याचार होता है ।

 

3. समान नागरिकता कानून पर विरोधियों की आपत्ति और स्पष्टीकरण

अ. समान नागरिकता कानून का विरोध करनेवाले ऐसा कहते हैं कि यह कानून सभी धर्मों के लोगों पर हिन्दू कानून लागू करने जैसा है ।

स्पष्टीकरण : वास्तव में देखा जाए, तो समान नागरिकता कानून का प्रारूप जब तक सामने नहीं आता, तब तक उस पर ऐसी आपत्ति लाना अनुचित है । अभीतक समान नागरिकता कानून का किसी प्रकार का प्रारूप घोषित नहीं हुआ है, तब भी ‘यह कानून मुस्लिम विरोधी है’, इस प्रकार का दुष्प्रचार किया जा रहा है ।

आ. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 में किसी भी धर्म के लोगों को अपने-अपने धर्म के प्रसार-प्रचार करने की स्वतंत्रता और संरक्षण दिया गया है । इसलिए समान नागरिकता कानून के कारण किसी न किसी धार्मिक स्वतंत्रता पर आंच तो आने ही वाली है ।

स्पष्टीकरण : विरोधियों की यह आपत्ति भी अर्थहीन है । समान नागरिकता कानून व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता के संदर्भ में नहीं है, अपितु वह सार्वजनिक जीवन के संदर्भ में है । विवाह, विवाहविच्छेद, उत्तराधिकार, संबंधियों में संपत्ति का वितरण, किसी परिवार में गोद लेना इत्यादि विषय केवल व्यक्तिगत नहीं हैं, अपितु उसमें अन्य व्यक्ति भी अंतर्भूत होते हैं ।

 

4. क्या समान नागरिकता कानून का पालन होगा ?

भारतीय समाज में हिन्दू समाज कानूनप्रिय है । अभीतक हिन्दू समाज के लिए 1. हिन्दू विवाह कानून -1955, 2. हिन्दू उत्तराधिकार कानून -1956, 3. हिन्दू संपत्ति व्ययन कानून – 1916, 4. हिन्दू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 और 5. हिन्दू गोद एवं भरणपोषण कानून, ऐसे ५ कानून बनाए गए हैं । इन सभी कानूनों का हिन्दू समाज द्वारा पालन किया गया; परंतु अन्य धर्मपंथों का क्या ? क्या उनके धर्म को अथवा विचारों को नियंत्रित करनेवाले एक भी कानून का उनके द्वारा पालन होता है ? वर्ष 2019 में ‘ट्रीपल तलाक’ का कानून पारित हुआ; परंतु तब भी उत्तर प्रदेश में प्रतिमाह 10 ‘तीन तलाक’ तो होते हैं, यह आधिकारिक आंकडे हैं । वर्ष 2020 में केंद्र सरकार ने ‘नागरिकता सुधार कानून ‘ (सीएए) पारित किया; परंतु उस विषय पर इतना हो हल्ला मचाया गया और इतने दंगे किए गए कि अंततः यह कानून बने २ वर्ष बीत जाने के उपरांत भी अभी तक उसके क्रियान्वयन के लिए ‘नोटिफिकेशन’ लागू करने का साहस केंद्रीय गृह विभाग ने नहीं दिखाया है । हिजाब बंदी के संदर्भ में न्यायालय का निर्णय आने के उपरांत सीधे परीक्षाओं का बहिष्कार करने का हिजाबी छात्राओं का उदाहरण ताजा है । इसलिए समान नागरिकता कानून लागू हुआ, तब भी सचमुच उसका पालन होगा अथवा नहीं, यह तो एक प्रश्‍न ही है !

– श्री. चेतन राजहंस, राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था

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