बच्चे के विकास के लिए मां का दूध ही आदर्श अन्न !

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मनुष्य सबसे बुद्धिमान प्राणि है । पहले ५ महिनों में मां का दूध शिशु का मुख्य अन्न होता है । तब मस्तिष्क का विकास सबसे अधिक होता है; इसलिए मां के दूध में ऐसे घटक होते हैं कि जिससे वह दूध मस्तिष्क का विकास करने के लिए उत्कृष्ट अन्न प्रमाणित होता है । दूध के प्रोटीन्स, लैक्टोज (दूध की शक्कर) और चरबी का शारीरिक पोषण एवं वृद्धि के विषय में कौनसा कार्य है, उसीप्रकार मां का दूध शिशु के विकास के लिए उत्तम कैसे है, इसकी जानकारी इस लेख में मिलेगी ।

 

१. लैक्टोज (दूध में विद्यमान शक्कर)

मां के दूध से अन्य प्राणियों के दूध की तुलना करते समय ऐसा देखने में आता है कि मां के दूध में लैक्टोज की मात्रा सबसे अधिक होती है । लैक्टोज में ग्लूकोज एवं गैलेक्टोज, ये दोनों शक्कर के घटक होते हैं । गैलेक्टोज से मस्तिष्क के घटक गैलेक्टोलायपिड्स एवं सेरेब्रोसाइड्स नामक पदार्थ तैयार होते हैं और उससे मस्तिष्क का विकास होने में सहायता मिलती है ।

 

२. प्रोटीन्स

मां के दूध में प्रोटीन्स सबसे कम, अर्थात ०.९ ग्राम होता है, इसलिए बालक के जन्म के समय वजन दुगुना होने में ५ माह लगते हैं । चूहे के दूध में १२ ग्राम प्रोटीन्स होते हैं, इसलिए चूहे के बच्चे का जन्म के समय का वजन ६ दिनों में ही दुगुना हो जाता है ।

 

३. स्निग्ध पदार्थ

मस्तिष्क के विकास के लिए स्निग्ध पदार्थ आवश्यक होते हैं । स्निग्ध पदार्थाें के कारण प्रथिने एवं शक्कर की तुलना में अधिक मात्रा में ऊर्जा मिलती है । प्रयोग द्वारा यह प्रमाणित हुआ है कि गाय के एवं मां के दूध में चरबी की मात्रा ३.८ प्रतिशत होती है । गाय के दूध की चरबी बछडे को मुख्यतः शारीरिक शक्ति देती है; परंतु मां के दूध की चरबी प्रमुखरूप से मस्तिष्क की पेशियों का रचनात्मक घटक बनाने में उपयोगी होती है । मां के दूध में इसेंशियल फैटी एसिड्स होते हैं । इन एसिड्स के कारण मांसपेशियां, मज्जापेशियां एवं मज्जातंतुओं का आवरण उत्तम दर्जे का बनता है । बचपन में मां के दूध पर पले-बढे व्यक्तियों को स्क्लिरोसिंग एन्सेफलाइटिस एवं मल्टिपल स्क्लेरोसिस जैसे मस्तिष्क के रोग कभी-कभार ही होते हैं ।

 

४. मां का दूध बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए उत्तम !

अ. मां के दूध में जीवनसत्त्व, कैल्शियम, फॉस्फरस एवं अन्य खनिज योग्य मात्रा में होते हैं । मां का दूध उष्ण, पतला, हलका, मीठा एवं निर्जंतुक होने से उसे विशिष्ट प्रकार की गंध आती है । प्रत्येक बार बच्चे के दूध चूसते समय दूध का पहला भाग मीठा, पतला और नीले रंग का होता है, तो अंत का भाग साधारणत: सफेद एवं तुलनात्मकदृष्टि से गाढा होता है ।

आ. दूध में ८८ प्रतिशत पानी होता है ओैर उतना पानी बालक के लिए पर्याप्त होता है, इसलिए स्तनपान करनेवाले निरोगी शिशु को पानी देने की आवश्यकता नहीं होती ।

इ. बोतल का दूध पीनेवाले बच्चे जितनी सहजता से बीमार पडते हैं, वैसे स्तनपान करनेवाले बच्चे नहीं पडते । जागतिक आरोग्य संगठन ने प्रमाणित किया है कि विकासशील देशों में बोतल से दूध पीनेवाले बालकों की मृत्यु की मात्रा स्तनपान करनेवाले बच्चों की तुलना में दस गुना अधिक है ।

ई. योग्य उष्ण तापमानवाला यह दूध बालक को कभी भी मिल सकता है, उसके लिए कोई भी तैयारी नहीं करनी पडती और उसका पाचन भी सहज होता है । स्तनपान करनेवाले बच्चों में एक्जिमा एवं दमा जैसी अलर्जी के कारण होनेवाले रोग बहुत ही अल्प मात्रा में पाए जाते हैं ।

उ. मां के दूध में पोलिओ, एन्फलुएन्जा, विषमज्वर, अतिसार (जुलाब), न्यूमोनिया, खांसी जैसे रोगों के कीटाणुओं का नाश करनेवाले घटक होते हैं । इससे स्तनपान करनेवाले बच्चों को इस प्रकार के रोग होने की संभावना कम होती है । ऐसा पाया गया है कि बोतल से दूध पीनेवाले बच्चों का स्तनपान करनेवाले बच्चों की तुलना में अतिसार (जुलाब) होने की संभावना छह गुना अधिक होती है । इसके अतिरिक्त मां के एक घनमिलीमीटर दूध में २००० से ४००० जीवित सफेद पेशियां (white blood cells) होती हैं । सफेद पेशियां कीटाणु मारनेवाले सैनिक हैं ।

ऊ. स्तनपान करनेवाले बच्चे अधिक दक्ष, परिश्रमी, आत्मविश्वासवाले और अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखनेवाले होते हैं । वे बैठना, चलना, बोलना शीघ्र सीखते हैं । साथ ही लिखने-पढने की समस्या भी ऐसे बच्चों में कम मात्रा में देखने मिलती है । इससे प्रमाणित होता है कि मां का दूध बच्चे के शरीर और मस्तिष्क के विकास के लिए एक आदर्श अन्न है ।

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘आईचे दूध : भूलोकातील अमृत’

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