महिलाओं के लिए मां दुर्गा अथवा झांसी की रानी का रूप धारण करना आवश्यक !

कोई भी क्रांति महिला-सशक्तीकरण के बिना अधूरी है
अत: सर्व स्तरों की महिलाओं के लिए मां दुर्गा अथवा झांसी की रानी का रूप धारण करना आवश्यक !

हम भारतमाता की जय, गंगा मैया की जय, गोमाता की जय, ऐसा कहते हैं । हम बैल की जय हो ऐसा पुरुषवाचक जयजयकार कभी नहीं करते । इससे नारीशक्ति का महत्त्व स्पष्ट होता है । कोई भी क्रांति महिलाओं के सशक्तीकरण के बिना अधूरी है । स्त्रियां बच्चों को सर्वाधिक प्रभावित कर सकती हैं । आज की पुरुषप्रधान संस्कृति में भी स्त्रियों का स्थान आदरणीय और पूजनीय है । गृहिणी हो अथवा नौकरी-व्यवसाय करनेवाली मां हो, सत्य तो यह है कि बच्चों में धार्मिक तथा आध्यात्मिक शक्ति का पोषण जितना मां कर सकती है, उतना अन्य कोई नहीं ।

आज समाज का नैतिक पतन होने से महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं । हमें महिलाओं में ऐसी जागृति निर्माण करनी चाहिए कि वे स्वयं को अबला न समझें । हमारी बेटियां, माताएं और बहनें जब तक दुर्गा अथवा झांसी की रानी का रूप नहीं धारण करतीं, तब तक हमें ऐसा नहीं मानना चाहिए कि क्रांति सफल हुई ।

संदर्भ : इतिहास-संस्कृति रक्षा एवं हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना

 

हिन्दू स्त्रियो, रोना-धोना छोडकर रणरागिणी बनो
और हिन्दू राष्ट्र स्थापन के वैश्विक कार्य की चुनौती स्वीकार करो !

हिन्दू स्त्रियो, हिन्दुत्व और श्रेष्ठतम हिन्दू संस्कृति पर अभिमान करें तथा हिन्दू नारी के सभी कर्तव्य सतर्कतापूर्वक पूर्ण करने का निश्चय करें । राजमाता जीजाबाई और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई इन तेज:पुंज रूपी हिन्दू नारियों का आदर्श प्रत्येक क्षण अपने मन में जागृत रखें ! उनके समान धर्माचरण और साधना कर स्वयं का आत्मबल जागृत करें ! रोना-धोना छोडकर रणरागिनी बनें ! सहिष्णुता की लाचारी छोडकर शूरवीरता स्वीकारें और श्री दुर्गादेवी के समान रणचंडी बनकर वासनांधों को सबक सिखाएं !
२१ वी शताब्दी की हिन्दू नारी हिन्दू राष्ट्र स्थापना के महान एवं कठिन कार्य की वैश्विक चुनौती धर्मश्रद्धा से स्वीकारें और आदिशक्ति के बल पर हिन्दू राष्ट्र स्थापित कर दिखाएं ।’ – कु. मधुरा भोसले, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

 

स्त्री शक्ति का विनाश टालने हेतु हिन्दू संस्कृति के अनुसार आचरण आवश्यक !

हिन्दू संस्कृति का अवमूल्यन करनेवाले ‘वैलेंटाईन डे’, ‘रोज डे’, ‘जीन्स डे’ जैसे ‘डे’ स्वेच्छाचार का अश्लील प्रदर्शन ही हैं ! बहनो, ऐसी नीतिहीन कुप्रथाओं से हमारे हाथ कुछ भी नहीं लगता; परंतु उससे होता है आप में विद्यमान शक्ति का विनाश ! इसे टालने हेतु हिन्दू संस्कृति के अनुसार आचरण कर आनंद प्राप्त करें ! पाश्चात्य लोगों की भांति, साथ ही जिससे शरीर प्रदर्शन होगा; इस प्रकार की वेशभूषा धारण करनेवाले अथवा तंग कपडे पहननेवाली युवतियों और महिलाओं का प्रबोधन करें ! ‘डे’ के माध्यम से होनेवाला पाश्चात्यों का अंधानुकरण रोकने हेतु विद्यालय-महाविद्यालयों में अभियान चलाएं ! महाविद्यालयों और गृहनिर्माण संस्थाओं में महिलाओं का संगठन बनाकर किसी महिला पर अत्याचार होने पर उसके विरुद्ध संगठित रूप से कार्यवाही करें !

 

महिलाएं धर्मपरंपराओं का कठोर पालन करें !

‘कैरियर’ करने की अपेक्षा महिलाओं को अपने परिवार के भले के लिए त्याग करना चाहिए । आज संस्कार एवं संस्कृति मृतप्राय: हो गई है । घर में सभी सुविधाएं होते हुए भी वहां संतुष्टि नहीं है । घर की स्त्री द्वारा धर्माचरण न करने से ऐसी घटनाएं हो रही हैं । माता तो निरंतर प्रज्वलित (जलानेवाली नहीं) रहनेवाली ज्योति है । वह स्वयं प्रज्वलित रहकर अन्यों को प्रकाश देती है । स्त्री की वास्तविक स्वतंत्रता अपने धर्माचरण द्वारा घर के लोगों को आनंद देने में होती है । भारतीय संस्कृति पुरुषप्रधान है; इसलिए माता को अपनी लडकी को मर्यादापूर्ण आचरण करना सिखाना चाहिए । मेरी मां ने मुझे जो संस्कार दिए, उसका मुझे लाभ हुआ और उस कारण मेरी गृहस्थी सुखभरी रही । आज के समय संस्कारों का विलोप होने के कारण माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजा जा रहा है । महिलाएं सुधर गईं, तो समाज भी सुधर जाएगा । समाज निर्माण का महत्त्वपूर्ण दायित्व महिलाओं का है । महिलाओं को पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम नहीं करना चाहिए; अपितु पुरुषों की क्षमता के समान काम करना चाहिए । हमें हमारे धर्म की परंपराओं का कठोरता से पालन करना चाहिए ।’

– (स्व.) अधिवक्ता अपर्णा रामतीर्थकर

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