कैरियर’ और ‘धनयोग’ का ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से विश्लेषण !

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आज के स्पर्धात्मक युग में व्यक्ति के जीवन में ‘कैरियर’ और ‘धनयोग’ महत्वपूर्ण विषय बन गए हैं । ‘दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण होने के पश्चात बेटे अथवा बेटी को किस शाखा में प्रवेश दिलाने पर उसे जीवन में सफलता मिलेगी ? मेरी जन्मकुंडली के ग्रह देखकर कौन-सी शाखा चुनने पर मुझे अच्छी धनप्राप्ति होगी ?’ ऐसे प्रश्न करनेवाले अनेक लोग मेरे पास आते हैं; क्योंकि वर्तमान स्पर्धात्मक काल में नौकरी का सांचाबद्ध जीवन जीने की तुलना में व्यवसाय करने की ओर मनुष्य का रुझान बढ रहा है ।

‘जन्मकुंडली के अनुसार जिस क्षेत्र में अर्थप्राप्ति अच्छी होगी, उसका विचार कर शिक्षा लेना अधिक उचित होता है । ‘कौन-सा व्यवसाय करने पर अधिक पैसा मिलेगा ?’, इसके लिए कुंडली में स्थित धनत्रिकोण, अर्थात २, ६ और १० स्थान तथा इस राशि में ग्रहों की स्थिति व्यवसाय की दृष्टि से महत्वपूर्ण होती है । दशम स्थान, धनत्रिकोण का एक महत्वपूर्ण स्थान है ।

 

१. व्यवसाय में सफलता दिलानेवाले प्रमुख ग्रह

अ. संपत्तिकारक शुक्र ग्रह

आ. दैवी सहायता पाने के लिए गुरु ग्रह

इ. आत्मिक संतोष और राजाश्रय के लिए रवि ग्रह

ई. मानसिक संतुष्टि के लिए चंद्र ग्रह

उ. ‘कैरियर’ में प्रगति होने के लिए शनि ग्रह

ऊ. बौद्धिक निर्णय के लिए बुध

इन सब ग्रहों का शुभ और बलवान होना आवश्यक है ।

 

२. व्यवसाय में सफलता के लिए जन्मकुंडली में अर्थ त्रिकोण और लाभस्थान होना आवश्यक !

व्यवसाय में सफल होने के लिए जन्मकुंडली में अर्थत्रिकोण, अर्थात २, ६ और १० स्थान तथा लाभ होने के लिए लाभस्थान होना आवश्यक है । २, ६, १० और ११ इन चार स्थानों के स्वामी एक-दूसरे के शुभयोग में होने पर व्यवसाय में सफलता मिलती है । सप्तमेश, अर्थात सप्तम स्थान का स्वामी शुभयोग में होने पर व्यावसायिक भागीदार अच्छे मिलते हैं ।

अ. अर्थत्रिकोण : कुंडली में अर्थत्रिकोण, अर्थात २, ६ और १० स्थान दर्शानेवाली आकृति ।

३. स्वतंत्र व्यवसाय करने का दृढ विचार मन में आने के लिए कुंडली में स्थान और ग्रह

‘कैरियर’ अथवा स्वतंत्र व्यवसाय का विचार करते समय कुंडली में स्थित लग्नस्थान, लग्नेश, दशम स्थान, दशमेश, रवि और चंद्र इन ग्रहों का अनुकूल होना आवश्यक है । लग्न स्थान (प्रथम स्थान) पर से व्यक्ति की महत्वाकांक्षा ज्ञात होती है । दशम स्थान कर्मस्थान है, जो व्यक्ति की चुनौतियों का सामना करने की क्षमता दर्शाता है । लग्नेश बलवान होने पर व्यक्ति किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम होता है । ऐसे व्यक्ति का स्वतंत्र व्यवसाय करने का विचार अटल होता है । वे अपने पुरुषार्थ से सफलता अर्जित करते हैं ।

 

४. व्यवसाय में चुनौतियों का सामना करने के लिए जन्मकुंडली में आवश्यक स्थान और ग्रह

‘व्यक्ति में ‘करियर’ की नई-नई चुनौतियों का सामना करने की क्षमता कितनी है’, यह जानने के लिए कुंडली के ३, ६, १० और ११ इन उपचय (समृद्धि) स्थानों का अध्ययन करना पडता है । उपचय स्थानों में जो स्थान बलवान होता है, उस क्षेत्र में व्यक्ति को विशेष सफलता मिलती है तथा उन ग्रहों की दशा में व्यवसाय प्रारंभ होता है अथवा सफलता मिलती है ।

अ. उपचय स्थान दर्शानेवाली कुंडली

आ. व्यवसाय की दृष्टि से कुंडली

५. कुंडली के उपचय स्थानों का विश्लेषण

अ. तृतीय स्थान

तृतीय स्थान को ‘परिश्रम स्थान’ भी कहते हैं । यह कर्म स्थान का षष्ठ (छठा) स्थान है । इस स्थान पर से शत्रु और रोग का विचार किया जाता है । यह स्थान, आरंभ किए हुए कार्य में आनेवाली बाधाएं और होनेवाला कष्ट दर्शाता है । तृतीय स्थान बलवान न होने पर व्यक्ति को परिश्रम की पराकाष्ठा करनी पडती है ।

आ. षष्ठ स्थान

षष्ठ स्थान, कर्म स्थान का भाग्य स्थान है । भाग्य स्थान पर से भाग्योदय, गुरुकृपा तथा ईश्वरीय कृपा का अध्ययन किया जाता है । इसके लिए, ‘कैरियर करते समय हमारे अधीनस्थ लोग कैसे होंगे, शत्रु होंगे क्या? तथा क्या कैरियर के लिए आवश्यक ऋण मिलेगा अथवा लिया गया ऋण शीघ्रातिशीघ्र लौटाना संभव होगा क्या ? अर्थात व्यवसाय में भाग्योदय कब होगा?’ इन सब बातों का अध्ययन करने के लिए षष्ठ स्थान का विचार करना पडता है । षष्ठेश बलवान न हो, अर्थात दशम स्थान का भाग्य मंद हो, तब व्यक्ति को अपने अधीनस्थ लोगों से नम्रता से, चतुराई से बात कर, लिए हुए ऋण को उचित कार्य में लगाते हुए व्यवसाय करना आवश्यक होता है ।

इ. दशम स्थान

दशम स्थान को ‘कर्म’ स्थान कहते हैं । कौन-सा व्यवसाय करना चाहिए, इस विषय में बतानेवाला तथा सामाजिक प्रतिष्ठा दर्शानेवाला यह स्थान है । ‘कैरियर’ की इच्छा साकार करने के लिए प्रत्यक्ष कार्य करना पडता है । इसके लिए यह महत्वपूर्ण स्थान है ।

ई. एकादश (ग्यारहवां) स्थान

ग्यारहवां स्थान लाभ का होता है । दशम स्थान धनस्थान होने के कारण व्यवसाय में मिलनेवाला धन और होनेवाला लाभ दर्शानेवाला यह स्थान है । यह स्थान बलवान होने पर लोकप्रियता मिलती है ।

 

६. व्यवसाय क्षेत्र का चुनाव कैसे करें ?

दशम स्थान की राशि के स्वभावानुसार व्यवसायक्षेत्र चुना जा सकता है ।

अ. दशम स्थान में मेष, सिंह और धनु ये अग्नितत्व की राशियां हो, तो लौह और अन्य धातुओं से संबंधित व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

आ. दशम स्थान में वृषभ, कन्या और मकर ये पृथ्वीतत्व से संबंधित राशियां होने पर प्रशासनिक, आर्थिक तथा भूमि संबंधी व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

इ. दशम स्थान में मिथुन, तुला और कुंभ ये वायुतत्व से संबंधित राशियां होने पर वैज्ञानिक शोध में सफलता मिलती है ।

ई. दशम स्थान में कर्क, वृश्चिक और मीन ये जलतत्व की राशियां होने पर द्रवपदार्थों के व्यवसाय से प्रगति होती है ।

 

७. अर्थत्रिकोण में स्थित ग्रहों से संबंधित व्यवसाय

अर्थत्रिकोण और लाभस्थान में जो ग्रह बलवान होते हैं, उनसे संबंधित व्यवसाय में व्यक्ति को सफलता मिलती है ।

अ. रवि

तेजस्वी रवि ग्रह बलवान होने पर पैतृक व्यवसाय, कारखाना, स्वर्णकारी, राजनीति, बढईकर्म आदि क्षेत्र से जुडे व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

आ. चंद्र

माता, मन और जल का कारक चंद्र ग्रह बलवान होने पर परिचारिका, मत्स्य उद्योग, कृषि, संगीत, गृहोपयोगी वस्तुएं, होटल व्यवसाय, जलयान (जहाज), नेवी, कलाकृति निर्माण, मनोरोग चिकित्सा, द्रवपदार्थ आदि क्षेत्र के व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

इ. मंगल

मंगल ग्रह बलवान होने पर साहस, शौर्य और भूमि से संबंधित व्यवसाय में सफलता मिलती है, उदा. अग्निशामक दल, सिविल इंजिनियरिंग, पदार्थविज्ञान, होटल मैनेजमेंट, सिक्युरिटी, सर्जरी, कृषि व्यवसाय, भाडे पर घर देना आदि क्षेत्रों के व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

ई. बुध

बुध, वाणी तथा बुद्धि से संबंधति ग्रह है । यह ग्रह बलवान होने पर संगणक, पत्रकारिता, अधिवक्ता, प्रशासक, बैंक, शेयर व्यापार, अध्यापन, छोटे व्यवसाय, पौरोहित्य, टैक्स कन्सलटैंसी आदि क्षेत्रों के व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

उ. गुरु

गुरु, धार्मिकता और शिक्षा क्षेत्र का ग्रह है । धर्मप्रचार, लेखन, शिक्षण, क्लासेस, कानूनी क्षेत्र, प्रवक्ता, वित्त संस्था, अध्यापन, समाजशास्त्र, जीवनावश्यक वस्तुएं आदि क्षेत्र के व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

ऊ. शुक्र

‘शुक्र’, यह कला, सौंदर्य, मनोरंजन से संबंधित ग्रह है । महंगी वस्तुएं, कपडा बेचना, होटल, संगीत, सुगंधित द्रव्य, वाहन, मद्य, हीरे का व्यापार, वाहन बेचना, कलाकारिता, सौंदर्यवर्धनालय (ब्यूटीपार्लर), चलचित्रगृह, मैनेजमेंट अधिकारी, स्वर्णकारी आदि क्षेत्र के व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

ए. शनि

शनि, यह भारी उद्योग, लोहे से संबंधित ग्रह है । इसकी अनुकूलता से गृहनिर्माण, ज्योतिष, गैरेज, काष्ठ-शिल्प, कारखाना, इतिहास, आविष्कार, न्यायपालिका, कोयला, ईंधन आदि क्षेत्र के व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

 

८. ‘दशमेश ग्रह (दशम स्थान का स्वामी)’ की स्थिति पर व्यवसाय का स्वरूप और मिलनेवाली सफलता अवलंबित होना

अ. प्रथम स्थान में दशमेश होने पर नए व्यवसाय में स्व-प्रयत्न से, परिश्रम से प्रगति और विकास होता है । ऐसे व्यक्ति के हाथों किसी संस्थान की स्थापना हो सकती है ।

आ. द्वित्तीय स्थान में दशमेश होने पर पैतृक व्यवसाय में, होटल व्यवसाय में अथवा घरेलू भोजनालय चलाने में सफलता मिलती है ।

इ. तृतीय स्थान में दशमेश होने पर लेखनकार्य, भाषण, यात्रा के माध्यम से सफलता मिलती है ।

ई. चतुर्थ स्थान में दशमेश होने पर कृषि, वाहन, भूमि से संबंधित व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

उ. पंचम स्थान में दशमेश होने पर शैक्षणिक क्षेत्र, पुस्तक प्रकाशन, एजेंट आदि व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

ऊ. षष्ठ स्थान में दशमेश होने पर प्राकृतिक उपचार विशेषज्ञ, परामर्श (कन्सलटैंसी) आदि व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

ए. सप्तम स्थान में दशमेश होने पर घरेलू व्यवसाय, मित्र के साध भागीदारी के व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

ऐ. अष्टम स्थान में दशमेश होने पर व्यवसाय में मंद गति से प्रगति होती है । अंतत्येष्टि सामग्री के विक्रय में अथवा बीमा एजेंट के कार्य में सफलता मिलती है ।

ओ. नवम स्थान में दशमेश होने पर व्यवसाय में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है । स्वतंत्र व्यवसाय में सफलता मिलती है । आध्यात्मिक व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

औ. दशमेश दशम स्थान में होने पर व्यवसाय में मनोवांछित सफलता मिलती है । ज्योतिषशास्त्र में सफलता मिलती है । दशम स्थान का जो स्वामी होता है, उससे संबंधित व्यवसाय में अधिक सफलता मिलती है ।

अं. एकादश स्थान, अर्थात लाभस्थान में दशमेश होने पर मित्रों की सहायता से व्यवसाय में सफलता मिलती है । ‘मास मीडिया’, संगणक आदि से संबंधित व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

क. व्यय स्थान में, बारहवें स्थान में दशमेश होने पर यात्रा, धर्मादाय संस्था, चिकित्सालय से संबंधित व्यवसाय में सफलता मिलती है ।

 

९. ‘कैरियर’ में विफलता कब मिलती है ?

अ. जन्मकुंडली में भाग्य स्थान महत्वपूर्ण होता है । यह दशम स्थान का व्यय स्थान है । यह व्यवसाय में होनेवाली हानि दर्शानेवाला स्थान है । यह स्थान बलवान न होने पर व्यक्ति को व्यवसाय में हानि होती है ।

आ. लग्न स्थान अथवा लग्नेश दूषित होने पर व्यक्ति आवश्यक प्रयत्न नहीं कर पाता । लग्न स्थान, दशम स्थान का चतुर्थ स्थान, अर्थात सुख का स्थान है ।

इ.पंचम स्थान, दशम स्थान का अष्टम स्थान है । यह स्थान बलवान न होने पर व्यक्ति को चुने हुए व्यवसाय से मानसिक संतुष्टि नहीं मिलती ।

ई. दशमेश, अर्थात दशम स्थान का स्वामी ६, ८ अथवा १२ इस त्रिकोण स्थान में होने पर व्यवसाय में संघर्ष करना पडता है ।

 

१०. ‘धन कैसे अर्जित करें ?’

इस विषय में संत तुकाराम महाराज ने अपने अभंग में कहा है,

जोडोनियां धन उत्तम वेव्हारें । उदास विचारें वेच करी ॥
उत्तमचि गती तो एक पावेल । उत्तम भोगील जीव खाणी ॥

अर्थ : सज्जनो, अच्छा व्यापार कर धन कमाएं और खुले मन से (विचारपूर्वक) खर्च करें । जो ऐसा करेगा, उसे (जीवनोपरांत) उत्तम गति मिलेगी और वह मनुष्य योनि में जन्म लेकर उत्तम भोगों को प्राप्त करेगा ।’

– श्रीमती प्राजक्ता जोशी, ज्योतिष फलित विशारद, वास्तु विशारद, अंक ज्योतिष विशारद, रत्नशास्त्र विशारद, अष्टकवर्ग विशारद, सर्टिफाइड डाऊसर, रमल पंडित, हस्ताक्षर मनोविश्लेषणशास्त्र विशारद, फोंडा, गोवा.

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