श्री विद्याचौडेश्‍वरी देवी द्वारा परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के सहस्रार पर लगाई गई विभूति में बहुत चैतन्‍य होना

‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा ‘यूएएस
(यूनिवर्सल ऑरा स्‍कैनर)’ उपकरण के द्वारा किया गया वैज्ञानिक परीक्षण

‘२६.२.२०२० को गोवा के रामनाथी आश्रम में श्री विद्याचौडेश्‍वरी देवी का शुभागमन हुआ । श्री विद्याचौडेश्‍वरी देवी की मूर्ति को रथ से नीचे उतारने के उपरांत परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने देवी को वंदन किया । उस समय प.पू. श्री श्री श्री बालमंजूनाथ महास्‍वामीजी और उनके भक्‍तों ने श्री विद्याचौडेश्‍वरी देवी की मूर्ति के प्रभामंडल से परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के सहस्रार पर (तालू के भाग पर) स्‍पर्श कराया । उस समय देवी ने आशीर्वाद के रूप में परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के सहस्रार पर मुकुट से लगी विभूति लगाई । (जनवरी २०२० में प.पू. श्री श्री श्री बालमंजूनाथ महास्‍वामीजी ने हंगरहळ्ळी के श्री मठ में शतचंडी याग किया था । महास्‍वामीजी ने उस यज्ञ की विभूति देवी के प्रभामंडल को लगाई थी । परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी के सहस्रार को स्‍पर्श करते समय प्रभामंडल की विभूति वहां लगी । – संकलनकर्ता) ‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ की ओर से शतचंडी याग की विभूति का परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘यूएएस (यूनिवसर्र्ल ऑरा स्‍कैनर)’ उपकरण का उपयोग किया गया । इस परीक्षण का स्‍वरूप, किए गए मापन की प्रविष्‍टियां और उनका विश्‍लेषण आगे दिया है ।

१. परीक्षण का स्‍वरूप

इस परीक्षण में शतचंडी याग की विभूति के ‘यूएएस’ उपकरण के द्वारा किए गए मापन की प्रविष्‍टियां की गईं ।

पाठकों को सूचना : स्‍थान के अभाव में इस लेख में निहित ‘यूएएस’ (‘यूटीएस’) उपकरण का परिचय’, ‘उपकरण के द्वारा किए जानेवाले परीक्षण के घटक तथा उनका विवरण’, ‘घटक का प्रभामंडल नापना’, ‘परीक्षण की पद्धति’ और ‘परीक्षण में समानता आने के लिए बरती गई सावधानी’, ये सामान्‍य सूत्र सनातन संस्‍था के https://www.sanatan.org/hindi/universal-scanner लिंक पर दिए गए हैं ।

२. किए गए मापनों की प्रविष्‍टियां तथा उनका विवेचन

२ अ. नकारात्‍मक ऊर्जा के संदर्भ में किए गए मापनों की प्रविष्‍टियों का विवेचन

शतचंडी याग की विभूति में नकारात्‍मक ऊर्जा दिखाई नहीं दी ।

२ आ. सकारात्‍मक ऊर्जा के संदर्भ में किए गए मापनों की प्रविष्‍टियों का विवेचन

शतचंडी याग की विभूति में बहुत सकारात्‍मक ऊर्जा होना सभी व्‍यक्‍ति, वास्‍तु अथवा वस्‍तुओं में सकारात्‍मक ऊर्जा होती ही है, ऐसा नहीं है । शतचंडी याग की विभूति में निहित सकारात्‍मक ऊर्जा का प्रभामंडल १४ मीटर था ।

२ इ. कुल प्रभामंडल के (टिप्‍पणी) संदर्भ में किए गए मापनों की प्रविष्‍टियों का विवेचन

सामान्‍य व्‍यक्‍ति अथवा वस्‍तु का कुल प्रभामंडल सामान्‍यतः १ मीटर होता है । शतचंडी याग की इस विभूति का कुल प्रभामंडल १७.५२ मीटर था ।

टिप्‍पणी : कुल प्रभामंडल (औरा) : व्‍यक्‍ति के संदर्भ में उसकी लार, साथ ही वस्‍तु के संदर्भ में उस पर बैठे धूलकण अथवा ‘प्रारूप’ के रूप में उसके थोडे से अंश का उपयोग कर उस व्‍यक्‍ति अथवा उस वस्‍तु का ‘कुल प्रभामंडल’ गिना जाता है ।

उपरोक्‍त सभी सूत्रों का विवेचन ‘सूत्र ३’ में दिया गया है ।

 

३. किए गए मापन की प्रविष्‍टियों का अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विश्‍लेषण

३ अ. शतचंडी याग की विभूति में प्रचुर मात्रा में चैतन्‍य होना

जनवरी २०२० में प.पू. श्री श्री श्री बालमंजूनाथ महास्‍वामीजी ने हंगरहळ्ळी के श्री मठ में शतचंडी याग किया । उन्‍होंने यह याग अत्‍यंत भावपूर्ण पद्धति से किया । महास्‍वामीजी ने बताया, ‘सनातन संस्‍था को इस याग से ५० प्रतिशत लाभ मिला है ।’ परीक्षण में यह दिखाई दिया कि याग की विभूति में प्रचुर मात्रा में चैतन्‍य होने से उसमें बहुत सकारात्‍मक ऊर्जा है ।

३ आ. श्री विद्याचौडेश्‍वरी देवी द्वारा परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी के सहस्रार पर
जहां ‘ॐ’ अंकित हुआ है, वहां विभूति लगाकर उस ‘ॐ’ में समाहित निर्गुण तत्त्व को जागृति देना

‘जनवरी २०२० में मैं हंगरहळ्ळी के मठ में गई थी । उस समय वहां शतचंडी याग किया गया था । मैंने वहां ‘परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी के लिए क्‍या शतचंडी याग की विभूति मिल सकेगी ?’, ऐसा पूछा था; परंतु कुछ अपरिहार्य कारण से विभूति नहीं मिल सकी थी ।

२६.२.२०२० को आश्रम में श्री विद्याचौडेश्‍वरी देवी का शुभागमन हुआ । उस समय महास्‍वामीजी ने देवी के मुकुट पर स्‍थित प्रभामंडल को विभूति लगाई थी । परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने जब देवी को नमस्‍कार किया, तब देवी ने अपने प्रभामंडल से परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी के मस्‍तक को स्‍पर्श किया और उसमें स्‍थित विभूति उनके सहस्रार पर लग गई । यह देखकर ‘पिछले महीने में (जनवरी में) परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी के लिए विभूति क्‍यों नहीं मिली ?’, इसका कार्यकारणभाव मेरी समझ में आया । देवी को अपने करकमलों से परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी को विभूति लगानी थी; इसलिए उन्‍होंने स्‍वयं आकर उन्‍हें विभूति लगाई । देवी शक्‍तिस्‍वरूपा हैं । उन्‍होंने परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी के मस्‍तक पर जहां ‘ॐ’ अंकित है, वहां विभूति लगाई । इससे ‘शिव एवं शक्‍ति का मिलन हुआ’ और ‘परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी के सहस्रारके स्‍थान पर अंकित ‘ॐ’ में निहित निर्गुण तत्त्व को जागृति दिलाने हेतु देवी ने ऐसा किया’, ऐसा प्रतीत हुआ ।’

– कु. प्रियांका लोटलीकर, शोध समन्‍वयक, महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय, गोवा.

संक्षेप में कहा जाए, तो आज के विज्ञानयुग में भी देवता मनुष्‍य को किस प्रकार स्‍थूल से अपने अस्‍तित्‍व की प्रतीति देते हैं, इससे यह ध्‍यान में आता है । श्रद्धायुक्‍त अंत:करण से साधना करने से इस प्रकार की दिव्‍य अनुभूतियां होती हैं ।’

– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (९.५.२०२०)

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इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्‍ति अनुसार साधकों की व्‍यक्‍तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्‍यक नहीं है । – संपादक

सूक्ष्म : व्‍यक्‍ति का स्‍थूल अर्थात प्रत्‍यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीव्‍हा एवं त्‍वचा यह पंचज्ञानेंद्रिय है । जो स्‍थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्‍तित्‍व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्‍लेख है ।

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