पितृपक्ष में श्राद्धविधि (श्राद्धकर्म) करने के पश्‍चात पितरों के पिंड में अत्‍यधिक सकारात्‍मक परिवर्तन होना

‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा ‘यूएएस
(यूनिवर्सल ऑरा स्‍कैनर)’ उपकरण के माध्‍यम से किया वैज्ञानिक परीक्षण

‘श्राद्ध का उच्‍चारण करते ही, आज के वैज्ञानिक युग की युवा पीढी के मन में यही छवि उत्‍पन्‍न होती है कि ‘यह अवैज्ञानिक और झूठे कर्मकांड का आडंबर है ।’ पूजा, श्राद्धपक्ष पर विश्‍वास न रखनेवाले अथवा ‘समाजसेवा ही श्रेष्‍ठ है’, ऐसा माननेवाले कहते हैं, ‘पितरों के लिए श्राद्ध न कर, उसके स्‍थान पर गरीबों को अन्‍नदान अथवा पाठशाला की सहायता करें ।’ भारतीय संस्‍कृति के अनुसार, जिस प्रकार हम माता-पिता तथा निकटवयों के जीवनकाल में उनकी सेवाशुश्रूषा धर्मपालन के रूप में करते हैं, उसी प्रकार उनकी मृत्‍यु के पश्‍चात भी उनके प्रति हमारे कुछ कर्तव्‍य हैं । इस कर्तव्‍यपूर्ति का और उसके द्वारा पितृऋण चुकाने का स्‍वर्णिम अवसर श्राद्धकर्म से मिलता है । ‘पितृपक्ष में पितरों के लिए किए श्राद्ध का श्राद्धविधि में उपयोग किए पिंडों पर क्‍या परिणाम होता है ?’, इसका वैज्ञानिक अध्‍ययन करने के लिए २७.९.२०१८ को रामनाथी, गोवा स्‍थित सनातन के आश्रम में ‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘यूएएस’ उपकरण का उपयोग किया गया इस परीक्षण का स्‍वरूप, की गई प्रविष्टियां और उनका विवरण आगे दिया है ।

 

१. परीक्षण का स्‍वरूप

इस परीक्षण में श्राद्धविधि करने से पूर्व और करने के पश्‍चात, इस विधि के घटक पिंडों की ‘यूएएस’ उपकरण द्वारा की गई गणना की प्रविष्‍टियां की गईं । इन सभी गणनाओं का तुलनात्‍मक अध्‍ययन किया गया ।

 

२. पिंड क्‍या है ?

‘पके हुए चावल में तिल का पानी, वडा और खीर डालते हैं । उसके पश्‍चात भात को मिलाकर साधारणतः नींबू के आकार के गोल, न फूटनेवाले, अच्‍छे कसे हुए पिंड बनाते हैं । पितृत्रय के लिए थोडा बडा पिंड बनाने की पद्धति कृतज्ञतामूलक है ।’ (संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘श्राद्ध का महत्त्व एवं अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विवेचन’)

पाठकों को सूचना : स्‍थान के अभाव में इस लेख में ‘यूएएस’ उपकरण का परिचय’, ‘उपकरण द्वारा किए जानेवाले परीक्षण के घटक और उनका विवरण’, घटक का प्रभामंडल नापना’, ‘परीक्षण की पद्धति’ और ‘परीक्षण में समानता लाने हेतु रखी गई सावधानी’ यह नियमित सूत्र सनातन संस्‍था के जालस्‍थल की लिंक goo.gl/B5g5YK पर दिए हैं । इस लिंक के कुछ अक्षर कैपिटल (Capital) हैं ।

 

३. परीक्षण की प्रविष्‍टियां और उनका विवेचन

३ अ. नकारात्‍मक ऊर्जा के संदर्भ में की गणनाओं की प्रविष्‍टियों का विवेचन –

पिंडों में नकारात्‍मक ऊर्जा बिलकुल भी न होना

पिंडों में श्राद्धविधि करने से पूर्व और करने के पश्‍चात भी ‘इन्‍फ्रारेड’ और ‘अल्‍ट्रावायोलेट’ नकारात्‍मक ऊर्जा नहीं पाई गई ।

३ आ. सकारात्‍मक ऊर्जा के संदर्भ में की गई गणनाओं की प्रविष्‍टियों का विवेचन –

श्राद्धविधि के पूर्व भी पिंडों में बडी मात्रा में विद्यमान सकारात्‍मक ऊर्जा श्राद्धविधि के पश्‍चात और भी बढना

सभी व्‍यक्‍ति, वास्‍तु अथवा वस्‍तुओं में सकारात्‍मक ऊर्जा होना आवश्‍यक नहीं है । श्राद्धविधि का आरंभ करने से पूर्व भी पिंडों में सकारात्‍मक ऊर्जा थी, यह ‘यूएएस उपकरण की भुजाओं द्वारा बनाए गए १८० अंश के कोण से ध्‍यान में आता है । इसलिए पिंडों की सकारात्‍मक ऊर्जा का प्रभामंडल भी नापा जा सका । वह १.७० मीटर था । श्राद्धविधि करने के पश्‍चात पिंडों में सकारात्‍मक ऊर्जा का प्रभामंडल २ मीटर था, अर्थात उसमें ०.३० मीटर वृद्धि हुई ।

३ इ. कुल प्रभामंडल के संदर्भ में की गई गणना की प्रविष्‍टियों का विवेचन –

श्राद्धविधि के पश्‍चात पिंडों का कुल प्रभामंडल बढना

सामान्‍य व्‍यक्‍ति अथवा वस्‍तु का कुल प्रभामंडल लगभग १ मीटर होता है । श्राद्धविधि करने से पूर्व पिंडों का कुल प्रभामंडल २.६० मीटर था । इसका अर्थ यह है कि वह सामान्‍य वस्‍तु की तुलना में बहुत अधिक था । श्राद्धविधि के पश्‍चात पिंडों का कुल प्रभामंडल ३.६० मीटर था, अर्थात उसमें १ मीटर वृद्धि हुई ।

उपर्युक्‍त सभी सूत्रों के विषय में अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विश्‍लेषण ‘सूत्र ४’ में दिया है ।

 

४. गणनाओं की प्रविष्‍टियों का अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विश्‍लेषण

४ अ. श्राद्धविधि में पिंडदान का महत्त्व

‘श्राद्धविधि में पिंडदान का बहुत महत्त्व है । पिंड पके चावल से बनाया जाता है । चावल को जब पकाया जाता है, उस समय उसमें रजोगुण बढता है । इस रजोगुणी पिंड की वातावरण कक्षा में मृतात्‍मा की लिंगदेह को प्रवेश करना सुलभ होता है । मंत्रोच्‍चारण से भारित वायुमंडल का उसे लाभ मिलता है और सूक्ष्म बल प्राप्‍त होने से उसे आगे का मार्गक्रमण करना सुलभ होता है ।’ (संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘श्राद्धविधि का अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय आधार’)

४ आ. श्राद्धविधि के कारण पितरों की लिंगदेह के चारों ओर
सुरक्षा-कवच निर्माण होना और उन्‍हें आगे की गति मिलने में सहायता होना

‘श्राद्ध के मंत्रों से उत्‍पन्‍न होनेवाली तरंगें, ब्राह्मणों का आशीर्वाद, परिजनों की सदिच्‍छा और पिंडदान जैसे कर्मकांड की विधियों से अलौकिक परिणाम होता है । इससे पितरों की लिंगदेह के चारों ओर सुरक्षा-कवच निर्माण होता है और उन्‍हें आगे की गति मिलने में सहायता होती है । नरक, भुवलोक, पितृलोक और स्‍वर्ग, इनमें इन विधियों का लाभ होता है ।

४ इ. पितरों का तृप्‍त होना

पितृपक्ष में पितरों का महालय श्राद्ध करने पर वे संतुष्‍ट होकर पूर्ण वर्ष तृप्‍त रहते हैं तथा परिजनों को आशीर्वाद मिलता है ।’

(संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘श्राद्ध का महत्त्व एवं अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विवेचन’)

४ ई. श्राद्धविधि करने के पश्‍चात पितरों का आशीर्वाद
मिलने से पिंडों में सकारात्‍मक ऊर्जा और पिंडों का कुल प्रभामंडल बढना

सूत्र ‘४ अ’ से ‘४ इ’ पढने पर श्राद्धविधि और पिंडदान (पिंडपूजन) का महत्त्व ध्‍यान में आता है । श्राद्धविधि करने के पश्‍चात पिंडों की प्रविष्‍टियों में पिंडों की सकारात्‍मक ऊर्जा का प्रभामंडल और उनका कुल प्रभामंडल बढा हुआ पाया गया । इसका अर्थ श्राद्धविधियों के कारण पिंड सकारात्‍मक ऊर्जा से भारित हुआ । श्राद्ध से पूर्व की गणना दोपहर ३.५० बजे की थी, तथा पश्‍चात की रात्रि ८.१५ बजे की थी । इन साढे चार घंटों की अवधि में पिंड वैसे बासी हो गए थे । पिंड भात से बनाए जाते हैं । ताजा अन्‍न सात्त्विक होता है । अन्‍न जैसे बासी होता जाएगा, वैसे उसकी सात्त्विकता न्‍यून होती जाती है । इसलिए साढे चार घंटों का समय बीतने पर पिंडों की सकारात्‍मक ऊर्जा और उसका प्रभामंडल न्‍यून होना अपेक्षित था; परंतु वैसा नहीं हुआ ।, पिंडों की सकारात्‍मक ऊर्जा और उनका प्रभामंडल बढना, यह स्‍पष्‍ट करता है कि श्राद्धविधियों के कारण पिंडों पर सकारात्‍मक परिणाम होता है । पिंडों पर हुआ यह सकारात्‍मक परिणाम श्राद्धविधियों के कारण पितरों का आशीर्वाद मिलने से हुआ, यह समझ में आता है ।

४ उ. श्राद्धविधि परिणामकारक होने में सहायक अन्‍य घटक

१. श्राद्ध सनातन आश्रम के सात्त्विक वातावरण में हुआ ।

२. श्राद्धविधि करनेवाले पुरोहित श्री. दामोदर वझे गुरुजी साधना करते हैं और उनका आध्‍यात्मिक स्‍तर (टिप्‍पणी) ६२ प्रतिशत है ।

टिप्‍पणी – ६१ प्रतिशत आध्‍यात्मिक स्‍तर का महत्त्व ! : ‘ईश्‍वर का आध्‍यात्मिक स्‍तर १०० प्रतिशत मानें और निर्जीव वस्‍तुओं का १ प्रतिशत मानें, तो सामान्‍य मनुष्‍य का आध्‍यात्मिक स्‍तर २० प्रतिशत होता है । इस स्‍तर का व्‍यक्‍ति केवल स्‍वयं के सुख-दुःख का विचार करता है । समाज से उसका कोई लेना-देना नहीं होता और ‘मैं ही सब करता हूं’, ऐसा उसका विचार होता है । आध्‍यात्मिक स्‍तर ३० प्रतिशत होता है, तब वह ईश्‍वर का अस्‍तित्‍व कुछ मात्रा में स्‍वीकार करता है, तथा साधना और सेवा करने लगता है । माया और ईश्‍वरप्राप्‍ति की लगन समान होने पर व्‍यक्‍ति का आध्‍यात्मिक स्‍तर ५० प्रतिशत होता है । आध्‍यात्मिक स्‍तर जब ६० प्रतिशत होता है, तब वह व्‍यक्‍ति माया से अलग होने लगता है । उसके मनोलय का आरंभ होता है और उसे विश्‍वमन के विचार ग्रहण होने लगते हैं । मृत्‍यु के पश्‍चात वह जन्‍म-मृत्‍यु के चक्र से छूटता है और उसे महर्लोक में स्‍थान प्राप्‍त होता है ।’ – (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले

उपर्युक्‍त सभी सूत्रों के कारण श्राद्धविधि के पश्‍चात पिंडों की सकारात्‍मक ऊर्जा का प्रभामंडल और उनके कुल प्रभामंडल में वृद्धि हुई । इस वैज्ञानिक प्रयोग से श्राद्धविधि पाखंड न होकर उसमें अध्‍यात्‍मशास्‍त्र है, यह स्‍पष्‍ट हुआ ।’

– डॉ. (श्रीमती) नंदिनी सामंत, महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (२.१०.२०१८)

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