‘आईआईटी इंदौर’ में संस्कृत भाषा में पढाया जा रहा है प्राचीन भारतीय विज्ञान !

  • पूरे विश्व के ७५० से भी अधिक छात्रों का सहभाग 
  • १५ दिन के ‘ऑनलाइन कोर्स’ का आयोजन

कांग्रेसियों द्वारा संस्कृत भाषा को ‘मृत भाषा’ प्रमाणित करने से ही भारतीय लोग प्राचीन आज भी ज्ञान से वंचित हैं । विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत की उसके उद्गमस्थान अर्थात भारत में ही विगत अनेक दशकों से उपेक्षा होना स्वतंत्रता के पश्चात सभी राजकर्ताओं के लिए लज्जाप्रद है ! वर्तमान केंद्र सरकार अब संस्कृत भाषा को उसका पुनर्वैभव प्रदान कराने हेतु कदम उठाए, यही अपेक्षा है !

इंदौर – ‘आईआईटी इंदौर’ में छात्रों को संस्कृत भाषा में प्राचीन भारतीय विज्ञान की शिक्षा दी जा रही है । इसके लिए पूरे विश्व के ७५० से अधिक छात्रों ने प्रवेश लिया है । प्राचीन गणित विशेषज्ञ भास्कराचार्य के गणित पर आधारित ग्रंथ ‘लीलावती’ के साथ ही भारत के अन्य प्राचीन वैज्ञानिक ग्रंथों को संस्कृत भाषा में जानने तथा उसे मूल रूप में समझने हेतु ‘आईआईटी इंदौर’ ने १५ दिन का विशेष ऑनलाइन ‘कोर्स’ आरंभ किया है । इसमें ‘आईआईटी मुंबई’, एवं ‘आईआईटी इंदौर’ के विशेषज्ञ प्राध्यापक संस्कृत में ज्ञान दे रहे हैं । ‘आईआईटी इंदौर’ के इस ‘कोर्स’ के पाठ्यक्रम में धातु विज्ञान, खगोलशास्त्र, औषधि, पौधे आदि विषय अंतर्भूत हैं और यह पूरा ज्ञान संस्कृत में दिया जाता है । विद्यार्थी शास्त्री इन ग्रंथों का वैज्ञानिक भाषा में अध्ययन कर सकते हैं और उन्हें प्राचीन भाषा में समझ सकते हैं ।

 

भविष्य में संस्कृत ही एकमात्र भाषा रहेगी ! – प्रा. नीलेश कुमार जैन

‘आईआईटी इंदौर’ के कार्यवाहक निदेशक प्रा. नीलेश कुमार जैन ने इस उपक्रम का उद्घाटन किया । इस अवसर पर उन्होंने कहा, ‘‘संस्कृत एक प्राचीन भाषा है, जो आजकल तात्कालिन बुद्धिमत्ता में अपना स्थान ढूंढ रही है । आगे जाकर यही एक भाषा शेष रहेगी । इस उपक्रम के माध्यम से लोगों को संस्कृत के साथ जोडते हुए हमें बहुत प्रसन्नता हो रही है । हमने एक शौक के रूप में यह उपक्रम आरंभ नहीं किया है, अपितु ऐसे उपक्रम चलाना समय की मांग है ।’’

 

संस्कृत का जतन और संवर्धन करना अति आवश्यक ! – प्रा. गंती एस मूर्ति

इस उपक्रम के समन्वयक प्रा. गंती एस मूर्ति ने कहा, ‘‘कृषि, गणित, धातु, खगोल, चिकित्सा आदि विषयों के ग्रंथों का लेखन संस्कृत में है । इसलिए इन ग्रंथों का अध्ययन करने हेतु पहले संस्कृत का ज्ञान होना अनिवार्य है । संस्कृत भाषा की समृद्ध धरोहर का जतन और संवर्धन करना अति आवश्यक है ।’’

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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