‘एलोपैथिक सेनिटाइजर’ (रोगाणुरोधक) की तुलना में ‘आयुर्वेदिक सेनिटाइजर’ का उपयोग करना स्‍वास्‍थ्‍य की दृष्‍टि से तथा आध्‍यात्मिक दृष्‍टि से भी लाभदायक होना

‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा ‘यूनिवर्सल
ऑरा स्‍कैनर (यूएएस)’ उपकरण द्वारा किया वैज्ञानिक परीक्षण

‘दिसंबर २०१९ से ‘कोरोना’ विषाणु से फैले संक्रामक रोग ने पूरे संसार में आतंक मचा रखा है तथा अभी तक (१७.७.२०२० तक) पूरे संसार के लगभग ४ लाख ३९ सहस्र ७६० लोगों की मृत्‍यु हो चुकी है । इस संक्रामक रोग से रक्षा होने के लिए सभी को सावधान रहना आवश्‍यक है । इस रोग का संक्रमण मुख्‍यतः हाथों से, आंखों और नाक को स्‍पर्श करने के माध्‍यम से होता है । इसलिए हाथ को बार-बार पानी से स्‍वच्‍छ धोना आवश्‍यक है । हाथ स्‍वच्‍छ करने के लिए ‘सेनिटाइजर’ का (रोगाणुरोधक का) अनियंत्रित उपयोग किया जाता है । बाजार में विविध प्रतिष्‍ठानों के ‘एलोपैथिक सेनिटाइजर’ और ‘आयुर्वेदिक सेनिटाइजर’ उपलब्‍ध हैं । ‘एलोपैथिक सेनिटाइजर’ और ‘आयुर्वेदिक सेनिटाइजर’ से प्रक्षेपित स्‍पंदनों का वैज्ञानिक अध्‍ययन करने के लिए २५.४.२०२० को रामनाथी, गोवा स्‍थित सनातन के आश्रम में ‘महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा एक परीक्षण किया गया । इस परीक्षण के लिए ‘यूनिवर्सल ऑरा स्‍कॅनर (यूएएस)’ नामक उपकरण का उपयोग किया गया । इस परीक्षण का स्‍वरूप, की गई गणना की प्रविष्‍टियां और उसका विवरण आगे दिया है ।

 

१. परीक्षण का स्‍वरूप

इस परीक्षण में एलोपैथिक सेनिटाइजर (Sodium Hydrochloride) व आयुर्वेदिक सेनिटाइजर (तुलसी, नीम, ग्‍वारपाठा/घृतकुमारी (एलोवेरा), फिटकरी, भीमसेनी कर्पूर और गोमूत्र आदि प्राकृतिक और औषधीय घटकों से निर्मित) की ‘यूएएस’ उपकरण द्वारा की हुई गणना की प्रविष्‍टियां की गई । इन गणनाओं की प्रविष्‍टियों का तुलनात्‍मक अध्‍ययन किया गया ।

पाठकों को सूचना : स्‍थान के अभाव में इस लेख के ‘यूएएस’ (‘यूटीएस’) उपकरण का परिचय’, ‘उपकरण द्वारा किए जानेवाले परीक्षण के घटक और उनका विवरण’, ‘घटक के प्रभामंडल की गणना’, परीक्षण की पद्धति और ‘परीक्षण में समानता रखने हेतु आवश्‍यक सावधानियां’ ये स्‍थायी सूत्र सनातन संस्‍था की goo.gl/tBjGXa इस लिंक पर दिए हैं । इस लिंक के कुछ अक्षर कैपिटल (Capital) हैं ।

 

२. गणना की प्रविष्‍टियां तथा उनका विवेचन

२ अ. नकारात्‍मक ऊर्जा के संदर्भ में की गई गणना की प्रविष्‍टियों का विवेचन

२ अ १. परीक्षण में रखे गए एलोपैथिक सेनिटाइजर और आयुर्वेदिक सेनिटाइजर में ‘इन्‍फ्रारेड’ और ‘अल्‍ट्रावॉयलेट’ दोनों प्रकार की नकारात्‍मक ऊर्जा नहीं पाई गई ।

२ आ. सकारात्‍मक ऊर्जा के संदर्भ में की गई गणना की प्रविष्‍टियों का विवेचन

सभी व्‍यक्‍ति, वास्‍तु अथवा वस्‍तुओं में सकारात्‍मक ऊर्जा होना आवश्‍यक नहीं है ।

२ आ १. एलोपैथिक सेनिटाइजर की तुलना में आयुर्वेदिक सेनिटाइजर में सकारात्‍मक ऊर्जा अधिक होना

एलोपैथिक सेनिटाइजर में सकारात्‍मक ऊर्जा अल्‍प मात्रा में थी; परंतु उसका प्रभामंडल इतना नहीं था, जिसकी गणना की जा सके । (एलोपैथिक सेनिटाइजर के संदर्भ में ‘ऑरा स्‍कैनर’ की भुजाओं ने ९० अंश का कोण बनाया । ‘ऑरा स्‍कैनर’ की भुजाएं यदि १८० अंश का कोण बनाती हैं, तो ही प्रभामंडल की गणना की जा सकती है ।) आयुर्वेदिक सेनिटाइजर में सकारात्‍मक ऊर्जा थी तथा उसका प्रभामंडल २.४० मीटर था ।

२ इ. कुल प्रभामंडल के (टिप्‍पणी) संदर्भ में की गई गणना की प्रविष्‍टियों का विवेचन

सामान्‍य व्‍यक्‍ति अथवा वस्‍तु का कुल प्रभामंडल साधारणतः १ मीटर होता है ।

टिप्‍पणी कुल प्रभामंडल : व्‍यक्‍ति के संदर्भ में उसकी लार, वस्‍तु के संदर्भ में उस पर लगी धूल के कण अथवा उसके कुछ भाग का उपयोग नमूने के रूप में कर, उस व्‍यक्‍ति अथवा वस्‍तु का ‘कुल प्रभामंडल’ नापा जाता है ।

२ इ १. एलोपैथिक सेनिटाइजर की तुलना में आयुर्वेदिक सेनिटाइजर का कुल प्रभामंडल अधिक होना

एलोपैथिक सेनिटाइजर और आयुर्वेदिक सेनिटाइजर का कुल प्रभामंडल क्रमशः १.९१ मीटर और ५.३५ मीटर था; अर्थात एलोपैथिक सेनिटाइजर की अपेक्षा आयुर्वेदिक सेनिटाइजर का कुल प्रभामंडल ३.४४ मीटर अधिक था ।

उक्‍त सर्व सूत्रों से संबंधित अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विश्‍लेषण ‘सूत्र ३’ में दिया है ।

 

३. गणना की प्रविष्‍टियों का अध्‍यात्‍मशास्‍त्रीय विश्‍लेषण

३ अ. एलोपैथिक सेनिटाइजर में रासायनिक घटकों का उपयोग
करने के कारण उसका उपयोग स्‍वास्‍थ्‍य के लिए लाभदायक न होना

एलोपैथिक सेनिटाइजर बनाने के लिए रासायनिक कीटाणुनाशक का उपयोग किया जाता है । इससे त्‍वचा को हानि पहुंचने की आशंका होती है । अधिक समय तक इसका उपयोग करना स्‍वास्‍थ्‍य के लिए हानिकारक सिद्ध होता है । परीक्षण में देखा गया कि एलोपैथिक सेनिटाइजर में सकारात्‍मक ऊर्जा अत्‍यल्‍प होती है ।

३ आ. आयुर्वेदिक सेनिटाइजर मेें औषधीय गुणधर्म से युक्‍त प्राकृतिक घटकों का उपयोग
होने के कारण आयुर्वेदिक सेनिटाइजर स्‍वास्‍थ्‍य तथा आध्‍यात्मिक दृष्‍टि से भी लाभदायक होना

आयुर्वेदिक सेनिटाइजर बनाने के लिए तुलसी, नीम, ग्‍वारपाठा/घृतकुमारी (एलोवेरा), फिटकरी, भीमसेनी कर्पूर, गोमूत्र आदि प्राकृतिक घटकों का उपयोग किया जाता है । इन घटकों में औषधीय गुणधर्म होते हैं । अतः स्‍वास्‍थ्‍य पर उसका अच्‍छा परिणाम होता है । तुलसी से प्रक्षेपित सात्त्विक स्‍पंदनों के कारण वातावरण के नकारात्‍मक स्‍पंदन नष्‍ट होते हैं तथा वातावरण शुद्ध होता है । गोमूत्र में देवताओं का तत्त्व आकर्षित होता है । गोमूत्र के सेवन से शरीर के नकारात्‍मक स्‍पंदन नष्‍ट होते हैं । परीक्षण में देखा गया है कि एलोपैथिक सेनिटाइजर की तुलना में आयुर्वेदिक सेनिटाइजर में अधिक मात्रा में सकारात्‍मक ऊर्जा होती है ।

३ इ. आयुर्वेदिक सेनिटाइजर बनाने के लिए उपयोग में लाई गई आयुर्वेदिक औषधीय घटकों का महत्त्व और लाभ

१. तुलसी : ‘तुलसी वातावरण में २४ घंटे प्राणवायु (ऑक्‍सीजन) छोडती है । तुलसी में औषधीय गुणधर्म होते हैं तथा उसका आध्‍यात्मिक महत्त्व सर्वमान्‍य है । तुलसी विषमज्‍वर, सर्दी, खांसी, दमा आदि पर उपयोगी है ।

२. नीम : आयुर्वेद में नीम को अत्‍यंत गुणकारी माना जाता है । नीम की पत्तियों का रस व्रण (घाव) धोने के लिए तथा त्‍वचा पर खुजली अथवा जलन होने पर त्‍वचा पर लगाते हैं । नीम प्राकृतिक कीटाणुनाशक है ।

३. ग्‍वारपाठा/घृतकुमारी (एलोवेरा) : ग्‍वारपाठा बहुगुणी, बहुपयोगी औषधीय वनस्‍पति है तथा वह त्‍वचा के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए उपयुक्‍त है ।

४. फिटकरी : मटमैले पानी को स्‍वच्‍छ करने के लिए फिटकरी का उपयोग किया जाता है । फिटकरी कीटाणुनाशक है । फिटकरी से कीटाणुओं का संक्रमण रोका जा सकता है ।

५. भीमसेनी कर्पूर : इसकी सुगंध से कीटाणु, विषाणु, सूक्ष्म कीटक आदि नष्‍ट हो जाते हैं । वातावरण भी शुद्ध होता है और बीमारियां दूर रहती हैं ।

६. गोमूत्र : गोमूत्र के सेवन से अनेक रोग ठीक होते हैं तथा शरीर की भी शुद्धि होती है ।’

(संदर्भ : जालस्‍थल)

संक्षेप में, वैज्ञानिक परीक्षण से समझ में आता है कि ‘एलोपैथिक सेनिटाइजर की अपेक्षा आयुर्वेदिक सेनिटाइजर का उपयोग करना स्‍वास्‍थ्‍य तथा आध्‍यात्मिक दृष्‍टि से भी अधिक लाभदायक है ।’

श्रीमती स्‍वाती वसंत सणस, महर्षि अध्‍यात्‍म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (१७.६.२०२०)

इ-मेल : [email protected]

 

आयुर्वेद का महत्त्व जानिए !

‘हमारा शरीर और मन स्‍वस्‍थ रखना प्रत्‍येक मनुष्‍य का धर्म है । इसके लिए प्राचीन काल से आयुर्वेद का उपयोग परिणामकारक माध्‍यम है । ‘आयुर्वेद जीवन का वेद है । रोगों से मुक्‍त होने के लिए और स्‍वस्‍थ जीवन जीने के लिए जिन-जिन द्रव्‍यों का उपयोग होता है, वे सभी द्रव्‍य आयुर्वेदिक औषधियों में अंतर्भूत हैं । आयुर्वेद से मीठे, खट्टे, खारे, तीखे, कडवे और कसैले स्‍वाद के अन्‍न तथा द्रव्‍यों का दोष, धातु और मल पर कैसा परिणाम होता है, इसका अच्‍छा वर्णन किया है । आयुर्वेद कहता है कि ‘संसार में एक भी द्रव्‍य ऐसा नहीं है, जिसका उपयोग औषधि के रूप में नहीं किया जा सकता ।’ (संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘आयुर्वेदिक औषधि’) 

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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