कोरोना संक्रमण की चिकित्‍सा के लिए प्राचीन भारतीय चिकित्‍सा पद्धति ‘योग एवं ध्‍यानधारणा’ परिणामकारी है ! – अंतरराष्‍ट्रीय विशेषज्ञों का दावा

सहस्रों वर्ष पूर्व भारतीय ऋषिमुनियों को जिस भारतीय योग एवं ध्‍यानधारणा का महत्त्व ज्ञात था, उसका महत्त्व अब विदेशी विशेषज्ञों के ध्‍यान में आ रहा है । वे कितने पिछडे हैं और हमारी हिन्‍दू संस्‍कृति कितनी विकसित है, इससे यह ध्‍यान में आता है ! परंतु ‘जहां उपज होती है, वहां बिकता नहीं’, इस कहावत के अनुसार तथा पाश्‍चात्‍यों के अंधानुकरण के कारण भारत के तथाकथित आधुनिकतावादियों ने इस पद्धति का उपहास उडाया है, यह बात अब भारतीयों के ध्‍यान में भी आएगी !

नई देहली – कुछ अंतरराष्‍ट्रीय विशेषज्ञों ने कोरोनाग्रस्‍त रोगियों की चिकित्‍सा के लिए योग एवं ध्‍यानधारणा ये २ प्राचीन चिकित्‍सा पद्धतियों के परिणामकारी होने का शोध किया है । अमेरिका स्‍थित ‘मेसाच्‍युसेट्‍स इंस्‍टीट्‍यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी’, ‘कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी’, ‘चोपडा लाइब्रेरी’ एवं ‘हावर्ड यूनिवर्सिटी’ के शोधकर्ताओं ने ‘जर्नल ऑफ अल्‍टरनेटिव एंड कॉम्‍प्‍लिमेंट्री मेडिसीन’ में (‘जेएसीएम’ में) प्रकाशित अपने लेख में ‘योग एवं ध्‍यानधारणा’ की उपयुक्‍तता विशद की है । उन्‍होंने इन दोनों पद्धतियां कोरोना के विरुद्ध लडने में सहायकारी होने की बात कही है ।

‘जेएसीएम’ के प्रमुख संपादक जॉन विक्‍स ने यह आवाहन किया है कि विशेषज्ञों को कोरोना जैसी वैश्‍विक महामारी के विरुद्ध प्राकृतिक पद्धति से किस प्रकार अधिकाधिक उपचार किए जाएं, इस पर विचार करना चाहिए ।’

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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