५१ शक्तिपीठों में से एक बांगलादेश के सीताकुंड गांव के (जि. चितगाव) भवानीदेवी का मंदिर !

सीताकुंड में भवानीदेवी के मंदिर में देवी की भावपूर्ण आरती करती हुईं सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

देवी के ५१ शक्तिपीठ भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांगलादेश और श्रीलंका में हैं । बांगलादेश में कुल ६ शक्तिपीठ हैं । वे आगे दिए अनुसार हैं ।

 

१. श्रीशैल : देवी महालक्ष्मी

बांगलादेश के सिल्हेट जिले में उत्तर-पूर्व में जैनपुर गांव है । इस गांव के निकट श्रीशैैल नामक स्थान है, जहां देवी सती का गला गिरा था । यहां की शक्ति को महालक्ष्मी और भैरव को शम्बरानंद कहते हैं ।

 

२. करतोयातट : देवी अपर्णा

बांगलादेश के बोगरा जिले में शेरपुर उपजिला है । यहां भवानीपुर गांव के निकट करतोयातट नामक स्थान पर बना मंदिर देवी अपर्णा के नाम से सुप्रसिद्ध है । यह शक्तिपीठ है और यहां देवी सती के बाएं पैर के आभूषण गिरे थे । यहां के भैरव को वामन कहते हैं ।

 

३. यशोर : देवी यशोरेश्‍वरी

बांगलादेश के खुलना जिले में ईश्‍वरीपुर नामक गांव है । यहां यशोर नामक स्थान पर देवी सती के हाथ और पैर गिरे थे । यहां की शक्ति को यशोरेश्‍वरी और भैरव को चंड कहते हैं ।

 

४. सीताकुंड : देवी भवानी

बांगलादेश के चितगांव जिले में बसे सीताकुंड नामक गांव में देवी का शक्तिपीठ है । इस शक्ति को भवानी कहते हैं । (इसकी विस्तृत जानकारी आगे दी है ।)

 

५. जयंतीया : देवी जयंती

बांगलादेश के सिल्हेट जिले में जयंतीया क्षेत्र के भोरभोग गांव में कालाजोर के खासी पर्वत पर एक शक्तिपीठ है । यहां देवी की बाईं जंघा गिरी थी । यहां की शक्ति को जयंती नाम से जाना जाता है और भैरव को क्रमदीश्‍वर कहा जाता है ।

 

६. शिकारपुर सुनन्दा

बांगलादेश के बारिसल जिले में बसे शिकारपुर गांव सोंडा नामक नदी के तट पर बसा है । यहां देवी का मंदिर शक्तिपीठ हैं और यहां की शक्ति को माता सुनन्दा कहते हैं । यहां माता सती की नाक गिरी थी । यहां के भैरव त्र्यंबक नाम से प्रसिद्ध हैं ।

(स्त्रोत : संकेतस्थल)

 

सीताकुंड में भवानीदेवी का मंदिर !

चितगांव जिले में निसर्गरम्य स्थान पर पहाडी की तलहटी में बसे सीताकुंड नामक गांव में एक शक्तिपीठ है । यहां की दुर्गादेवी को भवानी देवी कहते हैं । सीताकुंड में माता सती का दायां हाथ गिरा था ।

यहां की पहाडी को चंद्रनाथ नाम से पहचाना जाता है । उसकी ऊंचाई १ सहस्र २० फुट है । पहाडी पर देवी का मंदिर है । चंद्रशेखर शिव का भैरव रूप है और वह शक्तिपीठ की रक्षा करते हैं ।

(स्त्रोत : संकेतस्थळ)

 

हिन्दुओं में अज्ञान का उदाहरण !

बांगलादेश के हिन्दुओं का दुर्भाग्य है कि उन्हें शक्तिपीठ का महत्त्व ही ज्ञात नहीं । इसलिए वे भवानीदेवी का दर्शन न लेकर पहाडी पर चंद्रशेखर के दर्शन को प्राथमिकता देते हैं ।

सनातन संस्था की सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ गत ५ वर्ष से भी अधिक काल से भारत और विदेश का भ्रमण कर, प्राचीन वास्तु आदि के छायाचित्रों का संग्रह कर रही हैं । हमें इन सबके घर बैठे दर्शन मिल रहे हैं । इसके लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवले और सद्गुरु (श्रीमती) गाडगीळ के चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करेंगे !

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