मनाली, हिमाचल प्रदेश मे श्रीराम के कुलगुरु श्री वसिष्ठ ऋषि का तपोस्थान !

मनाली में श्री वसिष्ठ ऋषि का तपोस्थान (वसिष्ठ कुंड)
मनाली  में मंदिर के गर्भगृह मे श्री वसिष्ठ ऋषि की  मूर्ति

 

सनातन संस्था को सप्तर्षि जीवनाडीपट्टी
के माध्यम से मार्गदर्शन करनेवाले वसिष्ठ ऋषि !

अखिल मानवजाति के विषय में शिव-पार्वती में हुआ संवाद सप्तर्षियों ने सुना । उन्होंने वह मानवजाति के कल्याण के लिए और आध्यात्मिक जीवों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होने के लिए लिख कर रखा । यही है वह नाडीभविष्य ! नाडीभविष्य ताडपत्र की पट्टियों पर लिखा होता है । सप्तर्षि जीवनाडी के माध्यम से ही महर्षि ने ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवले कलियुग के श्रीविष्णु के अवतार हैं !’ ऐसा कहकर उनका अवतारत्व प्रकट किया । अब भी वे समय-समय पर परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के अवतारत्व के विविध पहलु महर्षि के माध्यम से उजागर कर रहे हैं । सप्तर्षि जीवनाडीपट्टी के माध्यम से किए गए मार्गदर्शनानुसार ही सनातन संस्था की सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ पिछले ४ वर्षों से भारतभर में विविध राज्यों में भ्रमण कर रही हैं ।

हिन्दू राष्ट्र की शीघ्र स्थापना हो, राष्ट्र और धर्म के साथ-साथ साधकों की रक्षा हो और देवताओं का आशीर्वाद मिले, इसके लिए सप्तर्षि जीवनाडीपट्टी के माध्यम से मार्गदर्शन करनेवाले महर्षि वसिष्ठ ऋषि ही हैं । वैश्‍विक कार्य की आवश्यकता अनुसार वर्तमानकाल में कार्य करनेवाले सप्तर्षियों का गुट भिन्न होता है; परंतु सर्वत्र अधिकांशत: आदिगुरु के रूप में वसिष्ठ ही मार्गदर्शन करते हैं और महर्षि विश्‍वामित्र जनसामान्य के प्रतिनिधि के रूप में वसिष्ठजी से प्रश्‍न पूछते हैं । २-३ महिनों में सप्तर्षियों के महर्षि बदलते भी हैं । कभी इसमें वसिष्ठ, विश्‍वामित्र के साथ नंदिकेश्‍वर और नारद भी आते हैं, तो कभी अंगीरस, जमदग्नि, दुर्वास, पुलस्त्य जैसे महर्षि भी संवाद में होते हैं । अब की नाडीपट्टी में प.पू. डॉक्टरजी के विषय में, इसके साथ ही सनातन संस्था के कार्य के विषय में बोलनेवाले गुट में वसिष्ठ, विश्‍वामित्र, गौतम, पराशर, पुलस्त्य, अंगीरस और दुर्वास, इन सप्तर्षियों का गुट है । कभी मध्य में ही नंदिकेश्‍वर अथवा नारद भी उतने समय तक के लिए प्रश्‍न पूछकर जाते हैं ।

– सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

 

वसिष्ठ कुंड की कथा और इस स्थान का महत्त्व

सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

मनाली, हिमाचल प्रदेश में लगभग १०,००० फुट की ऊंचाई पर महर्षि वसिष्ठ का तपोस्थान है । यहां एक गरम पानी का कुंड भी है । इसे ही वसिष्ठ कुंड कहते हैं । विशेष बात यह है कि आसपास बर्फ होते हुए भी यह पानी बर्फ नहीं बनता और इतने कम तापमान में भी पानी गरम ही रहता है । इस कुंड में स्नान करने से सर्व पापों से मुक्ति मिलती है । इसकी कथा आगे दिएनुसार है ।

पूर्व में इसी स्थान पर विपाशा नदी के किनारे महर्षि वसिष्ठ तप कर, वे आत्मग्लानि आने से मुक्त हो गए थे । रावण को मारने के पश्‍चात श्रीरामचंद्र को ब्रह्महत्या का पाप लगा । इस पाप से मुक्त होने के लिए श्रीराम ने अश्‍वमेध करने का निर्णय लिया । अन्य ऋषि-मुनियों के साथ चर्चा की और वसिष्ठ ऋषि को ढूंढने का कार्य लक्ष्मण पर सौंपा । लक्ष्मण ने इसी प्रदेश में, अर्थात कुल्लू घाटी में वसिष्ठ ऋषि को ढूंढ निकाला । वह सर्दियों को समय था । अपने गुरु के स्नान के लिए लक्ष्मणजी ने अपना अग्निबाण छोडकर, यहां की भूमि से गरम पानी निकाला । वसिष्ठ ऋषि तो तपस्वी थे । उन्हें गरम पानी की आवश्यकता नहीं थी । लक्ष्मण को थका हुआ देखकर वसिष्ठ ने उन्हें ही पहली बार इस गरम कुंड में स्नान करने की आज्ञा दी और ऐसा वरदान भी दिया कि जो भाविक यहां स्नान करेगा, उसके पाप नष्ट होंगे, चर्मरोग ठीक होंगे और उसकी थकान दूर होगी ।

 

श्रीराम मंदिर की स्थापना का इतिहास

वसिष्ठ कुंड के समीप ही श्रीराम का मंदिर है । यह मंदिर लगभग ४००० वर्षों पूर्व राजा जनमेजय ने बनवाया था । पिता राजा परिक्षित की मृत्यु के उपरांत उनकी आत्मा को शांति मिले, इसलिए राजा जनमेजय ने अनेक स्थानों पर श्रीराम के मंदिर बनवाए । उन्हीं में से यह एक है । कुछ समय पश्‍चात इस मंदिर की मूर्ति की चोरी हो गई । वर्ष १६०० में राजा जगत सिंह ने कुल्लू में वैष्णव धर्म का प्रसार आरंभ किया । अयोध्या में श्रीराम ने अश्‍वमेध यज्ञ के लिए बनाई गई मूर्तियों को लेकर आने के लिए राज ने वहां अपने दूत भेजे; परंतु श्रीराममूर्ति को पहचान न पाने से वे दो बार अलग मूर्तियां लेकर आ गए । इस मूर्ति की स्थापना राजा ने वसिष्ठ और मणिकर्ण नामक स्थानों के श्रीराममंदिरों में की और मंदिरों के नाम पर मालकीहक की मुहर लगाई । उसके अनुसार यहां मंदिर की व्यवस्था देखी जाती है ।

– (सद्गुरु) श्रीमती अंजली गाडगीळ, मनाली, हिमाचल प्रदेश

 

श्रीगुरु का महात्म्य बतानेवाले वसिष्ठ ऋषि के श्रीचरणों में कृतज्ञता !

महर्षि ने १०.५.२०१५ को घोषित किया कि प.पू. डॉ. आठवलेजी स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं । हिन्दू राष्ट्र स्थापना के लिए साधकों की साधना में तथा धर्मप्रसार में आनेवाली बाधाएं दूर होने हेतु समय-समय पर मार्गदर्शन करनेवाले और श्रीगुरु के वास्तविक रूप से साधकों का परिचित करवानेवाले महर्षि साधकों के लिए परमवंदनीय हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का अवतारत्व उजागर कर सर्वत्र उनकी कीर्ति पहुंचाने का दायित्व अब महर्षि ने लिया है । इसके लिए सनातन संस्था के साधक कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करें, तब भी वह कम ही है । परात्पर गुरु डॉ. आठवले साधकों के सर्वस्व हैं । उनकी कृपा संपादन करने के लिए साधकों को क्या करना चाहिए, इस विषय में समय-समय पर मार्गदर्शन कर सप्तर्षि ने साधकों पर अनमोल कृपा ही की है । वसिष्ठ ऋर्षि के साथ-साथ सभी सप्तर्षियों के चरणों में सनातन संस्था परिवार अनंतकोटि कृतज्ञ है !

– (सद्गुरु) श्रीमती अंजली गाडगीळ

 

ऋषि-मुनियों की सीख और उनका नाम चिरंतन होने का कारण

वसिष्ठ ऋषि, विश्‍वामित्र ऋषि, भृगु ऋषि, अत्रि ऋषि, अगस्ति ऋषि, नारद मुनि इत्यादि की सीख और नाम युगों-युगों से चिरंतन हैं । इसके विपरीत बुद्धिवान और धर्मद्रोही और बुद्धिप्रमाणवादी के नाम १ – २  पीढियों में ही भुला दिए जाते हैं । इसका कारण है, ऋषि-मुनि सत्य बताते हैं, इसलिए काल उनके नाम और सीख को स्पर्श नहीं कर सकता है । इसके विपरीत बुद्धिवान और धर्मद्रोही जो कहते हैं वह सत्य न होने से काल के प्रवाह में उनकी नाम और सीख भूल जाते हैं ।

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

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