महाबळेश्‍वर में श्रीकृष्णामाई का देवालय

Article also available in :

पुरातत्व विभाग से अत्यंत उपेक्षित महाबळेश्‍वर में श्रीकृष्णामाई का देवालय !

हिन्दुओ, देवालय की रक्षा के लिए संगठित हों !

महाबळेश्‍वर में उपेक्षित श्रीकृष्णमाई का देवालय

महाराष्ट्र में सुप्रसिद्ध ठंडी हवा का स्थान और पर्यटनस्थल है सातारा जिले का महाबळेश्‍वर ! वहां पुराना महाबळेश्‍वर, यह क्षेत्र महाबळेश्‍वर के नाम से जाना जाता है । यहां श्री महाबळेश्‍वर, श्री पंचगंगा और श्री कृष्णादेवी के अति प्राचीन भव्य देवालय हैं । महाबळेश्‍वर में पर्यटन के लिए आनेवाला प्रत्येक हिन्दू श्री महाबळेश्‍वर और श्री पंचगंगा देवालय जाता है; परंतु श्री महाबळेश्‍वर देवालय के पिछले भाग में स्थित श्रीकृष्णामाई के देेवालय में बहुत ही अल्प मात्रा में श्रद्धालु / पर्यटक जाते हैं । यहां कुछ दूर पैदल चलकर पहुंचा जाता है । कुछ कामनिमित्त से महाबळेश्‍वर में जाने का योग आया था, तब श्री कृष्णामाई के दर्शन हेतु जानेपर ध्यान में आए सूत्र यहां प्रस्तुत कर रहा हूं ।

 

१. देवालय का इतिहास और विशेषताएं

१. श्री कृष्णामाई का देवालय ही कृष्णानदी का उगमस्थान है । यह देवालय पवित्र और चैतन्यमय होने से वह एकप्रकार से जागृत तीर्थस्थान भी है । लगभग पांच सहस्र वर्षों पूर्व पांडवों द्वारा यह देवालय बनाया था । संपूर्ण देवालय पत्थरों से बना है ।

२. वहां के गर्भगृह में भव्य शिवलिंग है । उसके नीचे पानी की धार निरंतर बहती है । यहीं से कृष्णा का उगम हुआ है ।

३. इस स्थान पर नामजप अथवा ध्यान करनेवाले साधक को यहां के चैतन्य की अनुभूति सहजता से आती है । ऊंचे स्वर में ॐकार का जप करने से उसके कंपन सहजता से अनुभव होते हैं ।

४. गर्भगृह के समक्ष एक कुंड है । उस कुंड में गोमुख से अखंड पानी की धार बहती रहती है, जो आगे नदी का रूप धारण कर लेती है । गोमुख से बहनेवाला यह पानी चैतन्यमय तीर्थ है ।

५. इस देवालय के सामने मनमोहक प्राकृतिक सौंदर्य देखने मिलता है । ऐसा ध्यान में आया है कि यह देवालय वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग ने अधिग्रहित किया है, इसके साथ ही पुरातत्व विभाग द्वारा अत्यंत उपेक्षित है । इस देवालय के पीछे का कलश और दीवार अत्यंत दयनीय अवस्था में है और यहां कोई भी सुधार नहीं किया जा रहा है ।

 

२. देवालय की उपेक्षा और उसे देखनेवालों की और भेट देनेवालों की संख्या अल्प होने के कारण

वर्षभर में लाखों पर्यटक महाबळेश्‍वर आते हैं; परंतु उनमें कुछ ही लोग श्री कृष्णामाई के देवालय के दर्शन लेते हैं । इसके कारण आगे दिए  हैं ।

१. यहां के मुख्य दर्शनीय स्थलों में श्री कृष्णामाई के देवालय का नाम नहीं है ।

२. देवालय तक जानेवाला मार्ग कच्चा है । स्थानीय प्रशासन ने देवालय तक जानेवाले मार्ग की निर्मिति नहीं की है । कुछ स्थानों पर कच्ची सीढियां हैं । यहां तक की देवालय के प्रांगण में प्रवेश करने के लिए भी केवल पत्थरों को रचकर ही सीढियां बना दी हैं ।

श्री कृष्णामाई देवालय की ओर जानेवाला सकरीला मार्ग

३. स्थानीय मार्गदर्शक (गाईड) पर्यटकों को वहां तक नहीं ले जाते हैं ।

४. हिन्दुओं की अनास्था : जो हिन्दू इस देवालय की ओर जाते हैं, वे कृष्णामाई के दर्शन से पहले, उस मार्ग में लगे स्ट्रॉबेरी के बाग में में समय बिताने को अधिक प्रधानता देते हैं । इसके साथ ही देवालय के सामने का प्राकृतिक सौंदर्य देखने और उनके छायाचित्र खींचने की ओर अधिक ध्यान रहता है ।

५. देवालय की दुर्दशा रोकने के लिए पुरातत्व विभाग कोई प्रयत्न नहीं कर रहा है और अन्यों को भी नहीं करने दे रहा है ।

६. देवालय के निकट अथवा मार्ग में कहीं भी इस मंदिर का महत्त्व बतानेवाला कोई फलक नहीं लगा है ।

 

३. हिन्दुओ, अपनी अस्मिता के प्रतीक चैतन्यमय स्थानों का वैभव टिकाने के लिए पुरातत्व विभाग से पूछताछ करें !

भारतीय पुरातत्व खाते के पास देशभर की ऐतिहासिक वस्तुओं का जतन करने का उत्तरदायित्व होते हुए भी वे केवल हिन्दुओं की प्राचीन और ऐतिहासिक स्थल और देवालय अपने नियंत्रण में लेने का ही कार्य कर रहे हैं; परंतु हिन्दुओं के वैभवशाली प्रतीक और गौरवपूर्ण धरोहरों की देखरेख के प्रति अत्यंत उदासीन हैं । वर्तमान में सहस्रों ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल भारतीय पुरातत्व विभाग के नियंत्रण में हैं ।

हिन्दुओ, आपकी अस्मिता के प्रतीक ऐसे स्थलों का वैभव टिकाए रखने के लिए पुरातत्व विभाग से आग्रह करना चाहिए । ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल और मंदिर जो चैतन्य के स्रोत हैं, वे नष्ट होने से पूर्व जागृत हों । पुरातत्व विभाग द्वारा जो उपेक्षा हो रही है, उसके बारे में जो भी ध्यान में आया है ऐसी प्रत्येक वास्तु अथवा देवालय के संदर्भ में जानकारी लोगों के सामने लाएं । इसके लिए सनातन प्रभात जैसे नियतकालिक, अन्य हिन्दुुत्ववादी प्रसिद्धीमाध्यमों की सहायता लें । हिन्दुओं को आग्रही होकर पुरातत्व विभाग से हिन्दुओं की अस्मिता के प्रतीक चैतन्यमय स्थलों का वैभव टिकाने के लिए बाध्य करना चाहिए !

– श्री. रवींद्र बनसोड, भांडुप

Leave a Comment