कवळे, गोवा का नयनमनोहर एवं जागृत श्री शांतादुर्गा देवस्थान !

१. श्री शांतादुर्गा देवी की मनमोहक एवं तेजस्वी मूर्ति
२. कवळे, गोवा का भव्य श्री शांतादुर्गा देवस्थान
मां जगदंबा का एक रूप है, गोवा राज्य के फोंडा तहसील में स्थित कवळे ग्राम की श्री शांतादुर्गादेवी ! यह गोवा का अत्यंत प्राचीन, जागृत तथा विख्यात मंदिर है । श्री शांतादुर्गादेवी तथा देवी के अन्य रूपों के संदर्भ में विस्तृतरूप से हम समझ लेंगे ।

 

१. श्री शांतादुर्गादेवी की पौराणिक कथा

किसी समय किसी कारणवश शिव एवं श्रीविष्णु में युद्ध हुआ । इससे प्रलय आ गई । तब समस्त देवगण, मानव एवं ऋषियों की आर्त प्रार्थना से भगवती जगदंबा महाकायरूप में प्रगट हुईं । उन्होंने हरिहर को शांत कर दोंनों बालरूप को अपने दोनों हाथों से अलग किया । ‘कृद्धौ शान्तियुतौ कृतौ हरिहरौ’, अर्थात क्रोधाविष्ट हरिहर को शांत किया । इसलिए मां जगदंबा ‘शांतादुर्गा’ हुईं । कर्दलीबन अर्थात आज के सासष्टी तहसील के केलशी ग्राम में श्री शांतादुर्गा का मूल स्थान है । श्री शांतादुर्गा का मंदिर १६ वीं शताब्दी के मध्य तक यहां पर था । पौराणिक ग्रंथों के अनुसार परशुराम के समय में परशुराम द्वारा गोमंतक में लाए दशगोत्री ब्राह्मणों में से कौशिक गोत्री लोमशर्मा ब्राह्मण को कर्दलीपुर ग्राम उपहार में मिला था । इसी ब्राह्मण ने कर्दलीपुर में श्री शांतादुर्गा देवी की प्रतिष्ठापना की ।

 

२. श्री शांतादुर्गादेवी के मंदिर का इतिहास

ऐतिहासिक दस्तावेजों से मिली जानकारी के अनुसार केलशी ग्राम का श्री शांतादुर्गादेवी देवालय शेणवी मोने नामक विख्यात व्यापारी ने बनाया था । तदुपरांत सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने सासष्टी क्षेत्र पर आक्रमण कर वहां के हिन्दू देवी-देवताओं के देवालय ध्वस्त किए । उस समय देवी के कुछ भक्तों ने देवी की मूर्ति ले जाकर फोंडा के कैवल्यपुर (कवळे) ग्राम में स्थानांतर किया । कवळे में यह देवालय निश्‍चित कौनसे वर्ष में निर्माण किया गया, इसका कोई प्रमाण देवालय के दस्तावेजों में उपलब्ध नहीं है । इसके पश्‍चात, अर्थात वर्ष १७१३ से १७३८ की कालावधि में इस देवालय की नई वास्तु निर्माण की गई, जो अभीतक वहीं है । इसके प्रमाण दस्तावेजों में उपलब्ध हैं ।

श्री शांतादुर्गादेवी ने इस देवालय के निर्माण की प्रेरणा श्री. नारोराम को दी । सरदार नारोराम शेणवी रेगे, सिन्धुदुर्ग जनपद, महाराष्ट्र के वेंगुर्ला तहसील के कोचरे ग्राम के निवासी थे ।

उन्हें सातारा, महाराष्ट्र के शाहू छत्रपती के दरबार में मंत्रीपद मिला था । ‘देवी ने ही इतना ऐश्‍वर्य दिया, ऐसी उनकी दृढ श्रद्धा थी । इसलिए उन्हें लगा कि देवी का देवालय बनाना चाहिए ।’ वर्ष १७३० के आसपास अपने ही व्यय (खर्च) से उन्होंने श्री शांतादुर्गादेवी के भव्य एवं सुंदर मंदिर का निर्माण किया ।

 

३. मंदिर की जानकारी

श्री शांतादुर्गादेवी देवालय की सुंदर एवं भव्य वास्तु पूर्वाभिमुख है । मंदिर के सामने नयनमनोहर दीपस्तंभ एवं जलाशय है । मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते समय महाद्वार पर चौघडा बजाने के लिए नगारखाना दिखाई देता है । गर्भगृह के उपर गुंबज है, जिस पर सुवर्णकलश है । देवालय के गर्भगृह में श्री शांतादुर्गादेवी की चतुर्भुज मूर्ति है । देवी के एक हाथ में शिव, तो दूसरे हाथ में श्रीविष्णु हैं । मूर्ति के निकट ही छः इंच ऊंचा काले पाषाण का शिवलिंग है । देवालय की बाईं ओर श्री नारायणदेवता का मंदिर है । इस मंदिर में मुख्यासन पर श्री नारायणदेवता एवं श्री गणेश की मूर्तियां हैं । मंदिर की बाईं ओर हरसिंगार का वृक्ष है । वृक्ष के पास बारहवीर भगवती की मूर्ति तथा किसी अज्ञात संन्यासी की पादुकाएं हैं । देवालय के सामने क्षेत्रपाल की शिला है । देवालय के पीछे की ओर म्हारू देवता की शिला है । देवालय के निकट एक छोटे देवालय में मूल पुरुष कौशिक गोत्री लोमशर्मा की पाषाणमूर्ति प्रतिष्ठापित की है ।

 

४. देवी के मेलोत्सव

माघ शुक्ल पक्ष पंचमी महापर्व होता है । माघ शुक्ल षष्ठी के दिन प्रातः महारथ में बिठाकर श्री शांतादुर्गादेवी की शोभायात्रा निकलती है । इसके पश्‍चात महापर्व का महत्त्वपूर्ण उत्सव समाप्त होता है । शोभायात्रा के पहले रथ में आरूढ श्री देवी की पूजा कर देवस्थान की ओर से नारियल अर्पण किया जाता है । इस देवस्थान में प्रत्येक माह के शुक्ल तथा कृष्ण, दोनों पक्षों की पंचमी के दिन, ‘नित्योत्सव’ होता है । इन दिनों रात्रि में पुराण-किर्तन जैसे कार्यक्रम होते हैं एवं पश्‍चात देवी को पालकी में आसनस्थ कर शोभायात्रा निकलती है ।

 

५. प्रार्थना

सर्व दुःखों, पीडाओं एवं संकटों का हरण करनेवाली तथा शत्रु का विनाश करनेवाली यह महादेवी अपने पूजक की सर्व इच्छाएं पूर्ण करती हैं । उनका उपासक उनसे प्रार्थना करता है, ‘हे देवी, मुझे सद्बुद्धि दीजिए । मेरे जीवन में आनेवाले संकटों का निवारण कीजिए ।’ आज के कठिन काल में मां को इस आर्तता से पुकारना अत्यंत आवश्यक हो गया है ।

संकलक : श्रीमती प्राजक्ता जोशी, ज्योतिष फलित विशारद, महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय.

 

मां जगदंबा से की जानेवाली प्रार्थना !

‘हे देवी, हम शक्तिहीन हुए हैं, अमर्याद भोग भोगकर मायासक्त हो गए हैं । हे माते, आप हमें बल प्रदान कीजिए । आपके द्वारा प्रदान शक्ति से हम, हममें विद्यमान आसुरी वृत्तियों को नाश कर पाएंगे ।’

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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