सनातन आश्रम में महाशिवरात्रि के मंगल दिवसपर ‘रिद्धी-सिद्धिसहित श्री सिद्धिविनायकजी’ के आगमन का चैतन्यमय समारोह !

हाथों में फलक और भगवा ध्वज पकडकर रिद्धि-सिद्धिसहित श्री सिद्धिविनायकजी की शोभायात्रा में सहभागी साधक एवं साधिकाएं

रामनाथी (गोवा) – विघ्नहर्ता, बुद्धिदाता श्री गणेशजी किसी भी उपासक की प्रथम देवता हैं । नादभाषा का प्रकाशभाषा में रूपांतरण कर भक्त का भाव देवताओंतक पहुंचानेवाले श्री गणेशजी की उपासना भारत के साथ ही देश-विदेश में की जाती है । हिन्दू राष्ट्र स्थापना हेतु प्रयासरत सनातन संस्था के साधकों की ‘पृथ्वीवर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हो’ इस प्रार्थना को पूर्ण करने हेतु अनेक देवी-देवता रामनाथी के सनातन आश्रम आकर शुभाशीर्वाद दे रहे हैं । हिन्दू राष्ट्र स्थापना के कार्य में उत्पन्न सभी बाधाएं दूर होने हेतु अब विघ्नहर्ता श्री सिद्धिविनायकजी का रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में शुभागमन हुआ । सप्तर्षियों द्वारा पू. (डॉ.) ॐ उलगनाथन्जी के माध्यम से किए गए मार्गदर्शनानुसार सनातन के रामनाथी आश्रम में महाशिवरात्रि के दिन अर्थात २१.२.२०२० को शोभायात्रा द्वारा रिद्धि-सिद्धि का शुभागमन हुआ ।

 

श्री सिद्धिविनायकजी की मूर्ति की विशेषताएं

रिद्धि-सिद्धिसहित श्री सिद्धिविनायकजी की मूर्ति का वजन ५०० किलो है तथा यह मूर्ति सप्तर्षियों के मार्गदर्शनानुसार ‘कृष्णशिला’ नामक पत्थर से बनाई गई है ।

 

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा रिद्धि-सिद्धिसहित
श्री सिद्धिविनायकजी की मूर्ति की बताई गई विशेषता

‘अन्य मूर्तियों की ओर किसी विशिष्ट दिशा से देखनेपर भावजागृति होती है; परंतु इसके विपरीत रिद्धि-सिद्धिसहित श्री सिद्धिविनायकजी की मूर्ति की ओर किसी भी दिशा से देखनेपर भी भावजागृति होती है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवलेजी

रिद्धि-सिद्धिसहित श्री सिद्धिविनायकजी के चरणों में भावपूर्ण नमस्कार करते हुए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

 

रिद्धी-सिद्धिसहित श्री सिद्धिविनायकजी की मूर्ति के शिल्पी

श्री. विवेकानंद आचारी (नंदा)

कर्नाटक राज्य के कारवार के पास स्थित (जनपद उत्तर कन्नड) के शिल्पी श्री. विवेकानंद (नंदा) आचारी उपाख्य गुरुजी (आयु ८० वर्ष) ने ७०० किलो वजन की एक शिला से रिद्धि-सिद्धिसहित श्री सिद्धिविनायकजी की मूर्ति बनाई है । गुरुजी अत्यंत अनासक्त हैं तथा वे देहभान भूलकर मूर्ति बनाने की सेवा करते हैं । उन्होंने आजतक देवी-देवताओं की सहस्रों मूर्तियां बनाई हैं । गुरुजी श्री गणेशजी के उपासक हैं । उनमें परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रति बहुत भाव एवं श्रद्धा है । उन्हें किसी शिला को केवल हाथ लगाने से ही उससे कौनसी मूर्ति बनाई जा सकती है, यह जान लेने का आध्यात्मिक सामर्थ्य प्राप्त है । उनके गुरु ने उन्हें यह आशीर्वाद ही दिया है कि ‘तुम जिस पत्थर को हाथ लगाओगे, उस पत्थर से तुम्हें जो मूर्ति बना सकते हो, वह बन जाएगी ।’ मूर्ति को बनाने में गुरुजी के पुत्र श्री. गजानन आचारी की भी बहुमूल्य सहायता मिली है ।

किसी मूर्तिकार को इतनी बडी मूर्ति बनाने में लगभग १ वर्ष की अवधि लगती है; परंतु गुरुजी ने अथक परिश्रम उठाकर यह मूर्ति केवल १५ दिन में ही बनाई । गुरुजी के बताए अनुसार मूर्ति बनाते समय श्री गणेशजी ने अनेक बार उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर आवश्यक बदलाव करने के लिए बताया । उसके दूसरे दिन सनातन संस्था के एक संतजी द्वारा गुरुजी को मूर्ति में उसी प्रकार के बदलाव करने का संदेश मिलता था ।

गुरुजी के संदर्भ में और एक विशेष बात यह कि उन्होंने ‘रिद्धि-सिद्धिसहित श्री सिद्धिविनायकजी की मूर्ति बनाना मेरा दायित्व है’, इस भाव से सनातन आश्रम स्वयं आकर उसे साधकों को सौंपा । (सामान्यतः ‘मूर्तिकार ग्राहकों को मूर्ति बनाने के स्थानपर ही मूर्ति सौंपते हैं ।’, यह प्रथा है ।) उन्होंने अथक परिश्रम उठाकर यह सुंदर मूर्ति बनाकर उसे सनातन संस्था को समर्पित की है ।

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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