देशद्रोहियों का ‘जे.एन्.यू.’ अड्डा !

भारत के टुकडे होने का (दिवा)स्वप्न देखनेवाले, भारतीय सैनिकों के हाथों आतंकवादियों के मारे जाने पर आंसू बहानेवाले तथा शहरी नक्सलवादियों को बल प्रदान करनेवाले, हिंसक मानसिकता के साम्यवादी विद्यार्थियों पर जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय में आक्रमण हुआ । इसी विचारधारा के विद्यार्थियों ने इस विश्‍वविद्यालय में स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की प्रतिमा पर कालिख पोतने का दुष्कृत्य किया था । संविधान की रक्षा के नाम पर राष्ट्रीयता तथा भारतीय संस्कृति पर निरंतर आघात करने में ये विद्यार्थी सबसे आगे रहते हैं । किसी विश्‍वविद्यालय में विद्यार्थियों पर आक्रमण होना दुर्भाग्यपूर्ण है; परंतु इस ‘जमात-ए-आजादी’वालों का अब तक का आचरण देखें, तो इन पर हुए इस आक्रमण से राष्ट्रभक्त नागरिकों को दुख नहीं हुआ । जो साम्यवाद लाखों निरपराध नागरिकों की हत्या के लिए कारणीभूत है, उस साम्यवाद का ढोल पीटनेवाले इन विद्यार्थियों को यदि उसी प्रकार की एकाध घटना का सामना करना पडे, तो उसे क्रिया कहना चाहिए अथवा प्रतिक्रिया, यह वास्तविक प्रश्‍न है । इस घटना के दोषियों को ढूंढकर उचित दंड देने में पुलिस और न्यायपालिका सक्षम हैं । इसलिए, मुख्य आपत्ति है, साम्यवादी गुंडों की लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर समूचे देश में जारी गुंडागर्दी पर !

 

दोहरा चरित्र !

जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय में हुई घटना में अभाविप के कार्यकर्ता भी घायल हुए हैं; परंतु इस घटना के पश्‍चात पूरे देश में जो आंदोलन फैलाया जा रहा है, उसमें केवल हिन्दुत्वनिष्ठ संघटनों को लक्ष्य किया जा रहा है । वास्तविक, इस घटना से १-२ दिन पहले इन्हीं साम्यवादी विद्यार्थियों ने विश्‍वविद्यालय के ‘सवर्र्र कक्ष’की तोडफोड की थी और फायबर ऑप्टिक के तार तोडे थे । इसलिए, ५ जनवरी को हुई घटना की जांच करनेवाली पुलिस को वहां की ‘सीसीटीवी’से घटना का विडियो मिलने में बाधा आ रही है । साम्यवादी विद्यार्थियों के विरुद्ध कुछ होने पर उसका आरोप अपनेआप हिन्दुत्वनिष्ठों पर लगता है । इसलिए, संभव है कि ‘आजादी’वाले टोली के गुंडों ने ही सर्वर रूम की तोडफोड की; पश्‍चात विद्यार्थियों पर आक्रमण कर दिया हो । साम्यवादी देशद्रोह करें और उन्हें रोकने पर, राजनीतिज्ञों, तथाकथित विचारकों और कलाकारों का, ‘लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है’, यह शोर मचाते हुए उनका समर्थन करना, यह आजकल का फैशन हो गया है । लोकतंत्रवादियों को लोकतंत्र की इतनी चिंता थी, तब जब साम्यवादी विद्यार्थियों ने विश्‍वविद्यालय के सर्वर रूम की तोडफोड की, तब आंदोलन करना चाहिए था । परंतु, ऐसा नहीं हुआ ! संभवतः यह आधुनिकतावादियों की (अंध)श्रद्धा है कि साम्यवादियों का प्रत्येक कार्य लोकतंत्र को सबल बनाने के लिए होता है । इसलिए, ‘भारत तेरे तुकडे होंगे’ कहना, ‘अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं’, ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’, ऐसी घोषणाएं करना उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लगती है और राष्ट्रनिष्ठों ने ‘वन्दे मातरम’ बोलने का आग्रह किया, तो वह ‘फॉसिज्म’ लगता है ।

 

जागें !

साम्यवादी, आधुनिकतावादी, सर्वधर्म समतावादी और असहिष्णुतावादी टोलियों का दोहरा चरित्र अब देश की जनता पहचानने लगी है । इसीलिए, आंदोलन देहली के विश्‍वविद्यालय में होने पर भी, मुंबई में ‘फ्री काश्मीर’का फलक दिखानेवाले के विरुद्ध थाने में आपत्ति लिखवाई गई है । यह आंदोलन विद्यार्थियों से संबंधित है अथवा कश्मीर को भारत से अलग कर स्वतंत्र करने के संबंध में है, यह उचित प्रश्‍न पूछा जा रहा है । जनता जागरूक हो रही है; इसलिए साम्यवादियों का दोहरा चरित्र, उनका मूल उद्देश्य खुलकर सामने आ रहा है । ऐसी घटनाओं से लोगों की मानसिकता भी व्यक्त हो रही है । इससे राष्ट्रवादी और राष्ट्रद्रोही शक्तियों का एक प्रकार से ध्रुवीकरण हो रहा है । इससे स्पष्ट हो रहा है कि कौन देश के टुकडे चाहता है और कौन कश्मीर को भारत से जुडा देखना चाहता है । भारत को सबल बनानेवालों के पक्ष में खडा रहना है अथवा विघटनकारियों के पक्ष में, यह प्रत्येक को निश्‍चित करना है ।

 

विश्‍वविद्यालय बंद हो !

वास्तविक, विश्‍वविद्यालय ज्ञानदान के केंद्र होने चाहिए; परंतु जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय केवल भारतविरोधी, राष्ट्रघाती आंदोलनों का अड्डा बन गया है । लोकतंत्रविरोधी और हिन्दुविरोधी कृत्यों का राष्ट्रीय केंद्र बन गया है । फिर भी, सरकार ने अभी तक यह विश्‍वविद्यालय क्यों नहीं बंद किया, यह एक बडी पहेली है । कुछ ही दिन पहले साधारण-सी शुल्क वृद्धि के नाम पर जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय में हिंसक आंदोलन हुआ था । उसके पश्‍चात विश्‍वविद्यालय को बंद करने की मांग की  थी । यह मांग सरकार पूरा करे अथवा विश्‍वविद्यालय से राष्ट्रविरोधी विचारधारा का उन्मूलन करे, यह जनता की अपेक्षा है ।

– श्री. चेतन राजहंस,
राष्ट्रीय प्रवक्ता, सनातन संस्था.

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