मुद्रा

१. मुद्रा शब्दका अर्थ

मानवकी प्रत्येक क्रियासे उसके शरीर अथवा अवयवोंसे कोई-न-कोई आकार बनता है । उसी कार, हाथकी उंगलियोंका परस्पर स्पर्श होनेपर अथवा उन्हें विशेष प्रकारसे जोडनेपर अलग-अलग  प्रकारकी आकृतियां बनती हैं, इन आकृतियोंको मुद्रा कहते हैं ।

 

२. विकार-निर्मूलनमें मुद्राआेंका महत्त्व

मानव शरीरमें पंचमहाभूतोंका असन्तुलन होनेपर रोग उत्पन्न होते हैं । अतः शरीरमें पंचमहाभूतोंका सन्तुलन बनाए रखना, आरोग्यका मूलमन्त्र है । मुद्राआेंकी सहायतासे व्यक्ति अपने शरीरमें पंचमहाभूतोंकी मात्रा सहजतासे सन्तुलित रख सकता है ।

 

३. पंचमहाभूतोंका प्रतिनिधित्व करनेवाली हाथकी उंगलियां

ऋषि-मुनियोंके तथा ज्योतिषशास्त्रके अनुसार मनुष्यके हाथकी पांचों उंगलियां पंचमहाभूतोंकी प्रतिनिधि हैं । इस सन्दर्भमें आगे दी गई दो विचारधाराएं हैं ।

३ अ. दो प्रकारकी विचारधाराएं

३ अ १. पहली विचारधारा

अ. उगलिया आैर उनसे सम्बन्धित महाभूत : कनिष्ठिका (सबसे छोटी उंगली), अनामिका (कनिष्ठिकाके पासवाली उंगली), मध्यमा (सबसे बडी उंगली), तर्जनी (अंगूठेके पासवाली उंगली) और अंगूठा क्रमशः पृथ्वी, आप, तेज, वायु और आकाश, इन महाभूतोंकी प्रतिनिधि हैं । [सन्दर्भग्रन्थ : १. शारदातिलक (अध्याय २३, श्‍लोक १०६ की समीक्षा) और २. स्वरविज्ञान (चण्डी काशन, कौल कल्पतरु चण्डी कार्यालय, अलोती देवीमार्ग, याग १२२ ००६.)]

आ. पंचमहाभूतोंका क्रम : पंचमहाभूतोंमेंसे पहला पृथ्वीतत्त्व सगुण तत्त्वका प्रतीक है । इसके पश्‍चात क्रमश: आप, तेज और वायु, इन तत्त्वोंमें सगुणता घटती जाती है और निर्गुणता बढती जाती है । अन्तिम क्रमांकका आकाशतत्त्व, पूर्णतः निर्गुण तत्त्वका प्रतीक है । उपर्युक्त अनुसार उंगलियोंका क्रम हमें यह सूचित करता है कि पंचमहाभूतोंका क्रम – सगुणसे निर्गुणकी ओर है । साधकका ध्येय साधना कर, सगुणसे निर्गुणकी ओर जाना होता है । इसलिए इस ग्रन्थमें उपचारके लिए पहली विचारधाराको चुना गया है ।

३ अ २. दूसरी विचारधारा

अ. उंगलियां व सम्बन्धित महाभूत : अनामिका, कनिष्ठा, अंगूठा, तर्जनी और मध्यमा, ये क्रमशः पृथ्वी, आप, तेज, वायु व आकाश इन तत्त्वोंकी प्रतिनिधि हैं ।

३ अ ३. मुद्रा करते समय उंगलियोंकी स्थिति कैसी हो ?

अ. मुद्रा करते समय जिस उंगलीसे दूसरी उंगलीका सिरा अथवा मूल अथवा हथेलीको लगाना होता है, उस उंगलीसे उन स्थानोंको हलकासा दबाएं । ऐसा न कर पाएं, तब केवल स्पर्श करें ।

आ. जिन उंगलियोंसे मुद्रा न की जा रही हो, उन्हें यथासम्भव सहजतासे सीधा रखें; बलपूर्वक सीधा करनेका प्रयत्न न करें; क्योंकि ऐसा करनेसे नामजपर ध्यान एकाग्र नहीं हो पाएगा ।

संदर्भ : सनातन – निर्मित ग्रंथ ‘प्राणशक्ति प्रणालीमें अवरोध कैसे ढूंढें ?’

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