भारत में दिखाई देनेवाला आंशिक चंद्रग्रहण, उस अवधि में पालन करने आवश्यक नियम तथा मिलनेवाला फल !

 

१. आंशिक चंद्रग्रहण

‘भारत में १६.७.२०१९ (आषाढ पूर्णिमा) और १७.७.२०१९ ये दोनों दिनों को आंशिक चंद्रगहण है । सूर्य और चंद्रमा के मध्य में पृथ्वी के आनेपर पृथ्वी की छाया चंद्रमापर पडकर चंद्रमा का तेज न्यून होता है । उस समय चंद्रमा सिंदुरिया और भूरे रंग का दिखाई देता है । पृथ्वी की छाया में यदि चंद्रमा कुछ मात्रा में आया, तो वह आंशिक चंद्रग्रहण होता है ।

 

२. भारत में सर्वत्र दिखाई देनेवाले आंशिक चंद्रग्रहण के समय

‘यह ग्रहण भारतसहित संपूर्ण एशिया महाद्वीप, युरोप, आफ्रिका महाद्वीप, दक्षिण अमेरिका, रुस का दक्षिणीय प्रदेश, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, पैसिफिक महासागर, हिन्द महासागर और एटलांटिक महासागर के प्रदेशों में दिखाई देगा । भारत में सर्वत्र ‘आंशिक ग्रहण’ दिखाई देगा । यह ग्रहण १६.७.२०१९ की उत्तररात्रि को १.३२ बजे से लेकर १७.७.२०१९ की प्रातः ४.३० तक है ।’ (संदर्भ : दाते पंचांग)

२ अ. संपूर्ण भारत में चंद्रगहण के समय

२ अ १. स्पर्श (आरंभ) : १६.७.२०१९ की उत्तररात्रि १.३२

२ अ २. मध्य : १६.७.२०१९ की उत्तररात्रि ३.०१

२ अ ३. मोक्ष (अंत) : १७.७.२०१९ की प्रातः ४.३०

२ आ. ग्रहणपर्व (टीप १) (ग्रहण आरंभ से लेकर अंततक की कुल अवधि

२ घंटे ५८ मिनट’

टीप १ : पर्व का अर्थ पुण्यकाल है । ग्रहणस्पर्श से लेकर ग्रहण मोक्षतक का काल पुण्यकाल है । ‘इस काल में ईश्‍वरीय अनुसंधानात में रहने से आध्यात्मिक लाभ होता है’, ऐसा शास्त्रों में बताया गया है ।

२ इ. ग्रहण के वेध लगना

२ इ १. अर्थ : ग्रहण से पूर्व चंद्रमा पृथ्वी की छाया में आने लगता है । उसके कारण उसका प्रकाश धीरे-धीरे न्यून होना आरंभ होता है । इसी को ‘ग्रहण के वेध लग गए’, ऐसा कहते हैं ।

२ इ २. अवधि : ‘यह चंद्रग्रहण रात के तीसरे प्रहर में (टीप २) होने से उससे ३ प्रहर पूर्व अर्थात १६.७.२०१९ को दोपहर ४ बजे से लेकर ग्रहणमोक्षतक अर्थात १७.७.२०१९ की प्रातः ४.३० तक वेध का पालन करें ।’ (संदर्भ : दाते पंचांग)

टीप २ : एक प्रहर ३ घंटों का होता है । दिन के ४ और रात्रि के ४ प्रहरों को मिलाकर एक दिन के कुल ८ प्रहर होते हैं ।

 

३. चंद्रग्रहण की अवधि में पालन करने आवश्यक नियम

‘वेधकाल में स्नान, देवतापूजन, नित्यकर्म, जपजाप्य और श्राद्ध ये कर्म किए जा सकते हैं । वेधकाल में भोजन निषेध है; इसलिए अन्नपदार्थ न खाएं । आवश्यकता होनेपर पानी पीना, मल-मूत्र विसर्जन और विश्राम करना जैसे कर्म किए जा सकते हैं । बच्चे, दुर्बल एवं रोगी व्यक्ति, साथ ही गर्भवती महिलाएं १६.७.२०१९ को रात ८.४० बजे से ग्रहण के वेध का पालन करें ।’ (संदर्भ : दाते पंचांग)

३ अ. स्वास्थ्य की दृष्टि से वेधनियमों के पालन का महत्त्व !

३ अ १. शारीरिक एवं भौतिक स्तर

वेधकाल में जीवाणुओं के बढने से अन्न शीघ्र खराब होता है । इस काल में रोगप्रतिकारशक्ति न्यून होती है । जिस प्रकार से रात का अन्न दूसरे दिन बासी हो जाता है; उसीप्रकार से ग्रहण से पूर्व बनाए जानेवाले अन्नपदार्थों को ग्रहण के पश्‍चात बासी माना जाता है । इसलिए उस अन्न को फेंक दें । केवल दूध और पानी के लिए यह नियम लागू नहीं है । ग्रहण से पूर्व का दूध और पानी का हम ग्रहण समाप्ति के पश्‍चात उभी उपयोग कर सकते हैं ।

३ अ २. मानसिक स्तर

वेधकाल का प्रभाव मानसिक स्वास्थ्यपर भी पडता है । उससे ‘कुछ व्यक्तियों को निराशा आना, तनाव बढना आदि मानसिक कष्ट होते हैं’, ऐसा मनोविशेषज्ञ बताते हैं ।

ग्रहणकाल में की गई साधना का सहस्र गुना अधिक मात्रा में फल मिलता है । अतः ग्रहणकाल में साधना को प्रधानता देना महत्त्वपूर्ण है । वेधारंभ से लेकर ग्रहणसमाप्तितक स्वयं को नामजप, स्तोत्र का पाठ, ध्यानधारणा इत्यादि धार्मिक कृत्यो में व्यस्त रखने से उसका लाभ मिलता है ।

 

४. ग्रहणकालातील वर्ज्यावर्ज्य कृत्य

४ अ. वर्ज्य कृत्य

‘ग्रहणकाल में (पर्वकाल मेें) निद्रा, मल-मूत्रविसर्जन, अभ्यंग (संपूर्ण शरीर को गुनगुना तेल लगाकर उसका शरीर में शोषण होनेतक मर्दन करना), भोजन, खाना-पीना तथा कामविषय का सेवन जैसे कर्म नहीं करने चाहिएं ।

४ आ. कौन से कर्म करने चाहिएं ?

१. ग्रहणस्पर्श होते ही स्नान करें ।

२. पर्वकाल में देवतापूजन, तर्पण, श्राद्ध, जप, होम एवं दान दें ।

३. इस अवधि में पहले कुछ कारणवश खंडित मंत्र के पुरःश्‍चरण का आरंभ करने से उसका अनंतगुना लाभ मिलता है ।

४. ग्रहणमोक्ष के पश्‍चात स्नान करें ।

किसी व्यक्ति को अशौच होनेपर ग्रहणकाल में ग्रहण से संबंधित स्नात और दान देनेतक की शुद्धि होती है ।

 

५. राशि के अनुसार ग्रहण के फल

५ अ. शुभ फल : कर्क, तुला, कुंभ एवं मीन

५ आ. अशुभ फल : वृषभ, कन्या, धनु एवं मकर

५ इ. मिश्र फल : मेष, मिथुन, सिंह एवं वृश्‍चिक

जिन राशियों के लिए अशुभ फल है, उन लोगों को तथा गर्भवती महिलाओं को चंद्रग्रहण नहीं देखना चाहिए ।’

(संदर्भ : दाते पंचांग)

– श्रीमती प्राजक्ता जोशी (ज्योतिष फलित विशारद), महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, ज्योतिष विभाग, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२४.५.२०१९)
स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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