राजनीतिक दल की स्थापना कर सत्ता प्राप्त करने के संदर्भ में सनातन संस्था का दृष्टिकोन

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

सनातन संस्था का प्रतिदिन बढता जा रहा कार्य तथा उसे समाज द्वारा प्राप्त प्रत्युत्तर को देखते हुए अनेक हितचिंतक और हिन्दुत्वनिष्ठों द्वारा अब सनातन संस्था को राजनीतिक दल की स्थापना कर हिन्दू समाज की अपेक्षाएं पूर्ण करनी चाहिए, यह अपेक्षा व्यक्त की जाती है । सनातन संस्था की ओर से उसकी स्थापना से लेकर ही इस विषय में अपनी भूमिका स्पष्ट की है । तब भी यह चर्चा बार-बार होती है; इसलिए इस विषय में पुनः एक बार संस्था का दृष्टिकोन स्पष्ट कर रहें है ।

सनातन संस्था अध्यात्मप्रसार करनेवाली संस्था है । ‘रामराज्य की भांति सात्त्विक समाज के निर्माण हेतु प्रत्येक व्यक्ति ने साधना करनी चाहिए’, इस उद्देश्य से सनातन संस्था विगत २० वर्षों से भारतवर्ष में कार्य कर रही है । यह केवल अध्यात्मप्रसार तथा हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता के प्रसार के उद्देश्य से चल रहा है । स्थापना के समय सनातन संस्था केवल ईश्‍वरप्राप्ति हेतु साधना का प्रसार करती थी; परंतु कालांतर से हिन्दू धर्मपर विविध पद्धतियों से हो रहे आघातों को ध्यान में लेकर धर्मरक्षा के क्षेत्र में भी कार्य की आवश्यकता को पहचानकर सनातन संस्था ने धर्मरक्षा, राष्ट्रजागृति एवं हिन्दूसंगठन के क्षेत्रों में कार्य करना आरंभ किया । इन सभी कार्यों का मूल उद्देश्य विश्‍व में सर्वश्रेष्ठ हिन्दू धर्म की रक्षा करना है; किंतु कुछ लोग ऐसे कार्यों से सनातन संस्था को राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की इच्छा होने की चर्चा करते हैं । सनातन संस्था को अपेक्षित हिन्दू राष्ट्र किसी चुनावों के माध्यम से नहीं, अपितु सात्त्विक एवं धर्माचरणी समाज के निर्माण से ही होनेवाला है । सात्त्विक एवं धर्मनिष्ठ राज्यकर्ता सत्तापर आने के पश्‍चात वे सतर्क रहेंगे और जनता को कुछ करने की आवश्यकता नहीं पडेगी । उसके कारण साधक अपने मूल लक्ष्य के अनुसार ईश्‍वरप्राप्ति हेतु साधना कर सकेंगे, यह सनातन संस्था की भूमिका है । ईश्‍वरप्राप्ति में ही सर्वश्रेष्ठ और चिरंतन आनंद के समा होने से सनातन के साधक सत्ताप्राप्ति जैसे क्षणिक सुख में मग्न नहीं होंगे ।

– परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, संस्थापक, सनातन संस्था

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