रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में ५५ वें हनुमत्कवच यज्ञ का भावपूर्ण वातावरण में समापन !

  • प.पू. दास महाराज के मार्गदर्शन में हिन्दू राष्ट्र स्थापना के संकल्प से ५५ यज्ञ संपन्न ! 
  • किन्नीगोळी (कर्नाटक) के संत प.पू. देवबाबा तथा उनकी पत्नी श्रीमती ज्योति राव की वंदनीय उपस्थिति !
यज्ञस्थलपर मंत्र का पाठ करते हुए बाईं ओर से श्री. पवन बर्वे, श्री. दामोदर वझे, आसंदी में बैठे प.पू. दास महाराज, बाईं ओर से खडे श्री. अमर जोशी, पूर्णाहूति देते हुए पू. (डॉ. मुकुल गाडगीळजी) तथा सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी

रामनाथी (गोवा) : हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हो, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का महामृत्युयोग टले तथा उन्हें स्वास्थ्यपूर्ण दीर्घायु प्राप्त हो, साथ ही साधकों की साधना में उत्पन्न सभी बाधाएं दूर हों; इस संकल्प से आरंभित ५५ यज्ञों का समापन हुआ । अत्यंत भावपूर्ण एवं चैतन्यमय वातावरण में ३१ मार्च को रामनाथी (गोवा) के सनातन आश्रम में ५५वां पंचमुखी हनुमत्कवच यज्ञ संपन्न हुआ । अत्यंत शारीरिक कष्ट होते हुए भी परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी इस यज्ञ में उपस्थित थे । सनातन की सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी तथा पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळजी ने इन यज्ञविधियों में भाग लिया । सनातन पुरोहित पाठशाला के संचालक तथा ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त श्री. दामोदर वझेगुरुजी और अन्य पुरोहितों ने इस यज्ञ का पौराहित्य किया । इस यज्ञ में किन्नीगोळी (कर्नाटक) के संत पू.दास देवबाबा, उनकी पत्नी श्रीमती ज्योति राव एवं प.पू. दास महाराज की पत्नी पू. (श्रीमती) लक्ष्मी (माई) नाईक की वंदनीय उपस्थिती थी ।

वर्ष २००२ में पानवळ-बांदा (जनपद सिंधुदुर्ग, महाराष्ट्र) के संत प.पू. दास महाराज ने ५५ पंचमुखी हनुमत्कवच यज्ञों का संकल्प लिया था। अत्यंत शारीरिक कष्ट होते हुए भी प.पू. दास महाराज ने इन सभी यज्ञों का पौराहित्य किया।

 

प.पू. देवबाबा, श्रीमती ज्योति राव, प.पू. दास महाराज एवं पू. (श्रीमती)
लक्ष्मी (माई) नाईक द्वारा परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को हनुमानजी की मूर्ति प्रदान !

छायाचित्र अ : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी (आसंदी में बैठे हुए) को श्री हनुमानजी की मूर्ति प्रदान करती हुईं बाईं ओर से श्रीमती ज्योति राव, प.पू. देवबाबा, प.पू. दास महाराज एवं पू. (श्रीमती ) लक्ष्मी (माई) नाईक

इस अवसरपर श्रीमती ज्योति राव, प.पू. देवबाबा, प.पू. दास महाराज एवं पू. (श्रीमती ) लक्ष्मी (माई) नाईक ने परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को एकमुखी हनुमानजी की काष्ठमूर्ति प्रदान की । इस मूर्ति को कुमठा (कर्नाटक) के मूर्तिकार तथा सनातन के साधक श्री. चैतन्य आचारी ने सनातन-निर्मित श्री हनुमानजी के चित्र के अनुसार बनाई है । यह मूर्ति कटहल की लकडी से बनाई गई है ।

 

प.पू. देवबाबा एवं श्रीमती ज्योति राव का सम्मान !

छायाचित्र आ : प.पू. देवबाबा को भेंटवस्तु प्रदान कर सम्मानित करते हुए १. प.पू. दास महाराज, २. श्रीमती ज्योति राव एवं ३. पू. (श्रीमती) लक्ष्मी (माई) नाईकजी

यज्ञ में उपस्थित प.पू देवबाबा को प.पू. दास महाराज के हस्तों माल्यार्पण कर, साथ ही श्रीफल तथा सनातन-निर्मित भगवान श्रीकृष्णजी की प्रतिमा प्रदान कर सम्मानित किया गया । प.पू. देवबाबा की पत्नी श्रीमती ज्योति राव की गोद भरकर, साथ ही भेंटवस्तु प्रदान कर पू. (श्रीमती) लक्ष्मी (माई) नाईकजी ने सम्मानित किया ।

 

हिन्दू राष्ट्र आनेवाला है, आएगा और आकर रहेगा ! – प.पू. देवबाबा

प.पू. देवबाबा ने साधकों को आश्‍वस्त करते हुए ऐसा प्रतिपादित किया कि हिमालय में रहनेवाले संतों से यह संदेश प्राप्त हुआ है कि आजकल गोमाता संकट में है । उसके संकटमुक्त होने से भारतमाता बंधनमुक्त होकर रहेगी ! भारतमाता की विजय निश्‍चित है । हिन्दू राष्ट्र आनेवाला है, आएगा और आकर रहेगा ।

 

यज्ञ का अच्छा परिणाम हुआ है ! – प.पू. देवबाबा

यज्ञ के विषय में पू. देवबाबा ने कहा, ‘‘मैने पहली बार यज्ञ में अनिष्ट शक्तियों के इतने आक्रमण देखें । उन अनिष्ट शक्तियों ने मुझपर सूक्ष्म से आक्रमण किया, तब मेरे पैरों में कुछ समयतक पीडा होने लगी । उसी समय मेरे पास स्थित बिजली का दीप (कूल लाईट) अकस्मात नीचे गिरने की घटना हुई । तब हनुमानजी के आने से अनिष्ट शक्ति के वहां से निकल जाने का दिखाई दिया । उसके पश्‍चात मेरे पैरों की पीडा रुक गई । अनिष्ट शक्तियां मेरा कुछ बिगाड नहीं सकीं । यज्ञ के कारण वातावरण की शुद्धि हुई । इस यज्ञ के अच्छे परिणाम मिले हैं ।’’

क्षणिकाएं

१. यज्ञस्थल को कनात लगाकर बंद किया गया था; किंतु तब भी पूर्णाहुति के समय पूजन में रखी गई परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की प्रतिमा के मुखपर आश्रम परिसर के हनुमान मंदिर से सूर्यकिरण आ गए और कुछ समय पश्‍चात वे प्रभु श्रीरामजी की प्रतिमापर भी आए। इस विषय में प.पू. देवबाबा ने कहा, ‘‘यह तो परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, प.पू. दास महाराज तथा अन्य संतों के लिए आशीर्वादजनक है। सूर्य देवताओं के नेत्र होते हैं। आपके कार्य को देखने हेतु ईश्‍वर स्वयं सूर्यकिरणों के माध्यम से यहां आए हैं । प्रभु श्रीरामजी सूर्यवंशी हैं । अतः उनकी मूर्तिपर सूर्यकिरण आना, तो शुभयोग है ।’

इस विषय में प.पू. दास महाराज ने कहा, ‘‘पहले तो परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के मुखपर अर्थात स्थूल से प्रभु श्रीरामजीपर सूर्यकिरण आ गए और उसके पश्‍चात श्रीरामजी की मूर्तीपर आ गए ।’’

२. पूर्णाहूति के समय प.पू. दास महाराज एवं पू. (डॉ.) मुकुल गाडगीळजीपर भी सूर्यकिरण आ रहे थे ।

३. यज्ञस्थलपर सनातन के दिव्यांग स्थिति के संत पू. सौरभ जोशीजी की भी वंदनीय उपस्थिति थी । यज्ञ के चलते समय पू. सौरभ जोशीजी के हाथ के तलुओंपर सुनहरे रंग के कई दैवी कण आ गए, साथ ही उनके भ्रूमध्यपर भगवान श्रीविष्णुजी की गंध की भांति अंग्रेजी यु आकार में सोने की चमक आ गई । पू. सौरभ जोशीजी वर्ष २००२ में संपन्न पहले पंचमुखी हनुमत्कवच यज्ञ में भी उपस्थित थे ।

४. आश्रम में संपन्न पिछले २ यज्ञों में पूर्णाहुति के समय सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी को बहुत पसीना आया । इस पसीने के बिंदू दैवीय हैं । महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय द्वारा उनका वैज्ञानिक परीक्षण किया जा रहा है ।

५. ५४वें पंचमुखी हनुमत्कवच यज्ञ के समय महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय की ओर से किए गए वैज्ञानिक शोध के विषय में इस यज्ञ के समय साधकों को अवगत किया गया ।

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