ज्ञानयोगी एवं ऋषितुल्य परात्पर गुरु परशराम पांडे महाराजजी (आयु ९२ वर्ष) का देहत्याग !

परात्पर गुरु पांडे महाराज

देवद (पनवेल) : यहां के सनातन आश्रम के लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का प्रतिरूप, सनातन के अनेक साधकोंपर अपार प्रेमवर्षा का कृपाछत्र बिछानेवाले, सहस्रों साधकों को उनके कष्टों के लिए मंत्रोपाय देकर उन्हें जीवनदान देनेवाले, ज्ञानयोगी एवं ऋषितुल्य परात्पर गुरु पांडे महाराजजी (आयु ९२ वर्ष) ने रविवार, माघ कृष्ण पक्ष द्वादशी, कलियुग वर्ष ५१२० अर्थात ३ मार्च २०१९ को सायंकाल ५ बजकर २२ मिनटपर यहां के सनातन आश्रम में देहत्याग किया ।

अपनी आयु के ९३वें वर्ष भी अविरत सेवारत रहकर आगामी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु तथा उससे पूर्व आनेवाले संकटकाल हेतु मनुष्यजाति को ज्ञानामृत प्रदान करनेवाले परात्पर गुरु पांडे महाराजजी को २५ फरवरी की रात को हृदयघात का दौरा पडा था । उसके पश्‍चात उन्हें चिकित्सालय में प्रविष्ट किया गया था । चिकित्सा के पश्‍चात २ मार्च की रात को उन्हें सनातन आश्रम में वापस लाया गया था । हृदयविकार का दौरा पडने के २ मिनट पहले पांडे महाराजजी ने आश्रम के एक साधक से कहा, ‘‘मृत्यु शांति से आई, तो अच्छा होगा !’’ और वास्तव में भी उन्होंने अत्यंत शांत स्थिति में देहत्याग किया । परात्पर गुरु पांडे महाराजजी का ३ जनवरी २००७ से देवद आश्रम में निवास था ।

उनके देहत्याग के समय उनके पास उनके पुत्र श्री. अमोल पांडे, पुत्रवधु श्रीमती देवयानी पांडे, ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त उनकी पौत्री कु. गौरी, पौत्र श्री. सौरभ और अन्य परिजन उपस्थित थे ।

परात्पर गुरु पांडे महाराजजी का अंतिमसंस्कार ४ मार्च को होगा ।

परात्पर गुरु पांडे महाराजजी द्वारा अखिल मनुष्यजाति के साथ ही सनातन के साधकोंपर की गई कृपा के लिए सनातन के सद्गुरु, संत एवं साधकों की ओर से उनके पावन चरणों में अनंत कोटि कृतज्ञता !

 

कर्मयोग, भक्तियोग एवं ज्ञानयोग का एकमात्र
सुंदर संगम परात्पर गुरु पांडे महाराज के चरणों में शिरसाष्टांग नमस्कार !

वर्ष २००७ में परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी एवं परात्पर गुरु पांडे महाराजजी की आनंददायक भेंट का एक भावक्षणिका !

भक्तियोग में मिठास होती है, तो ज्ञानयोग में एक प्रकार से रुक्षता होती है । अन्यत्र ऐसा कहीं अनुभव नहीं होता । इस संगम के कारण अर्थात उनकी वाणी में विद्यमान मिठास तथा ज्ञान के कारण उनकी बातें निरंतर सुनतेही रहें, ऐसा लगता था । जब दूरभाषपर हमारी बात होती थी, तब ८० प्रतिशत बातें, तो उनकी ही होती ती और मैं उनकी बातों से आनंद लेता था । १८.२.२००५ को उनके साथ हुई पहली भेंट से मैं इसका अनुभव कर रहा हूं ।

उनका लेखन केवल अध्यात्मशास्त्र से ही संबंधित नहीं होता था, अपितु समाज, राष्ट्र एवं धर्म के संदर्भ में ही सभी की समझ में आए, ऐसी भाषा में होता था । इसलिए उनका लेखन सनातन प्रभात में नियमितरूप से प्रकाशित होता था । आध्यात्मिक कष्टों के कारण देश-विदेश के साधकों को कष्ट होता हो, तो रात-देर रात कभी भी उन्हें उपाय पूछनेपर वे तत्काल प्रेमपूर्वक उपाय बता देते थे और उसके पश्‍चात उस साधक की पूछताछ भी करते थे, इसका अर्थ वे अखंड कर्मयोगी भी थे । उनके द्वारा बताए गए उपायों के कारण सहस्रों साधकों को लाभ पहुंचा है । ‘हम सभीपर परात्पर गुरु पांडे महाराजजी की अखंड कृपादृष्टि रहे’, यह ईश्‍वर के चरणों में प्रार्थना !’ 

– परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी 

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