‘बॉम्बे’, ‘औरंगाबाद’ जैसे आक्रांताओ के नाम परिवर्तित कर ‘मुंबई’, ‘संभाजीनगर’ जैसे भाषा, राष्ट्र और धर्म का अभिमान रखनेवाले नाम नगरों को देने की आवश्यकता स्पष्ट करनेवाली वैज्ञानिक जांच

‘महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय’ द्वारा
‘पिप (पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरन्स फोटोग्राफी)’
नामक तंत्रज्ञान की सहायता से की गई वैज्ञानिक जांच

‘प्राचीन काल में नगरों के नाम वहां के ग्रामदेवता, पराक्रमी राजा इत्यादि के नामों पर आधारित होते थे । इसलिए नगरों के नाम सात्त्विक होते थे । जैसे-जैसे समय आगे बढता गया, वैसे-वैसे भारत पर विदेशियों के आक्रमण होने लगे । वहां के कुछ भूभागों पर इस्लामी शासन आरंभ हुआ । इस्लामी राजाआें ने वहां के गांव और नगरों के ‘हिन्दू’ नाम बदलकर ‘इस्लामी’ नाम दिए । कालांतर में अंग्रेज व्यापार के निमित्त भारत आए । उन्होंने भारत के अनेक संस्थानों को लक्ष्य बनाकर उनका राज्य हथिया लिया । उन्होंने भारतियों पर उनकी भाषा और (कु)संस्कृति लादी; तथा नगरों के प्रमुख रास्ते, उपनगर, रेल्वे-स्थानक इ. को ब्रिटिश राजा, रानियों के नाम दिए । भारत को स्वतंत्रता मिले ७० वर्ष हो गए । इतने वर्षों में भारतीय राज्यकर्ता को गांव, नगर तथा नगरों के प्रमुख रास्ते, उपनगर, रेल्वे-स्थानक इत्यादि के इस्लामी या अंग्रेजी नाम परिवर्तित नहीं कर सके, यह भारत का दुर्भाग्य ही कहना पडेगा । महाराष्ट्र के ‘औरंगाबाद’ का नाम मुगल बादशाह औरंगजेब के नाम पर आधारित है । ‘औरंगाबाद’ नगर को हिन्दू धर्माभिमानी ‘संभाजीनगर’ नाम से संबोधित करते हैं । अंग्रेजों के काल में ‘मुंबई’ नगर का नामकरण ‘बॉम्बे’ किया गया था । वर्ष १९९५ तक ‘बॉम्बे’ यह नाम प्रचलित था । उसके पश्‍चात उस नगर को पुन: ‘मुंबई’ नाम से संबोधित किया जाने लगा । ‘मुंबई’ यह नाम ‘मुंबादेवी’ इस मुंबई की स्थानदेवता के नाम पर आधारित है । ‘मुंबई और बॉम्बे इन नगरों के नाम से प्रक्षेपित होनेवाले स्पंदनों का वातावरण पर क्या परिणाम होता है ?’, इसे विज्ञान द्वारा अध्ययन करने के लिए २३.२.२०१६ को रामनाथी, गोवा के सनातन के आश्रम में ‘महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय’ की ओर से एक जांच की गई । इस जांच के लिए‘पिप (पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरन्स फोटोग्राफी)’ तंत्रज्ञान का उपयोग किया गया । इस तंत्रज्ञान की सहायता से वस्तु और व्यक्ति के ऊर्जाक्षेत्र का (‘ऑरा’ का) अध्ययन कर सकते हैं । इस जांच का परिक्षण और उसका विवरण आगे दिया है ।

 

१. जांच का स्वरूप

इस जांच में एक पटल पर (टेबल पर) जांच हेतु नगर के नाम की छायाप्रति को आधार देने के लिए सफेद लकडी का टुकडा रखकर वहां के वातावरण का ‘पिप’ तंत्रज्ञान द्वारा छायाचित्र लिया गया । यह वातावरण की ‘मूल प्रविष्टि’ है । उसके पश्‍चात ‘बॉम्बे’ और‘मुंबई’ नाम की छायाप्रति एक-एक कर पटल पर रखकर उनके ‘पिप’ छायाचित्र निकाले । इन छायाचित्रों का तुलनात्मक अभ्यास करने पर ‘दोनों नगरों के नाम से प्रक्षेपित हो रहे स्पंदनों का वातावरण पर क्या परिणाम होेता है ?’, यह ज्ञात हुआ ।

पाठकों को सूचना : स्थान के अभाव में इस लेख में ‘पिप’ तंत्रज्ञान की सहायता से घटकों के सकारात्मक और नकारात्मक स्पंदन रंगों के माध्यम से दिखाई देने की सुविधा होना’, ‘जांच के संदर्भ में ली गई दक्षता’, ‘प्रभामंडल में दिखाई देनेवाले रंगों की जानकारी’ इत्यादि नियमित सूत्र goo.gl/K8ehAN सनातन संस्था के जालस्थल के लिंक पर दी है । इस लिंक में कुछ अक्षर कॅपिटल (Capital) हैं ।

 

२. परीक्षण और उनका विवेचन

२ अ. मूल प्रविष्टि

मूल प्रविष्टि के प्रभामंडल में (जांच के घटक जांच के लिए रखने से पूर्व के वातावरण के प्रभामंडल में) ४५ प्रतिशत कुल नकारात्मक स्पंदन और ५५ प्रतिशत कुल सकारात्मक स्पंदन थेे ।

आगे दिए गए परीक्षण में जांच के घटकों के प्रभामंडल की तुलना ‘मूल प्रविष्टि’ के प्रभामंडल से की है ।

२ आ. ‘बॉम्बे’ नाम से वातावरण में
सकारात्मक स्पंदनों का प्रमाण तथा चैतन्य के स्पंदनों
का प्रमाण बहुत घटना और नकारात्मक स्पंदनों का प्रमाण बढना

‘बॉम्बे’ नाम के प्रभामंडल में ५३ प्रतिशत कुल नकारात्मक स्पंदन और ४७ प्रतिशत कुल सकारात्मक स्पंदन थे । इसका अर्थ ‘मूल प्रविष्टि’ की तुलना में इस नाम के कारण वातावरण के सकारात्मक स्पंदन ८ प्रतिशत घटे थे । इस नाम के प्रभामंडल में चैतन्य का पीला रंग १५ प्रतिशत था, अर्थात ‘मूल प्रविष्टि’ के चैतन्य के पीले रंग की (३१ प्रतिशत की) तुलना में वह आधा घटा था । इससे ‘बॉम्बे’ नाम के कारण वातावरण के सकारात्मक स्पंदनों का प्रमाण तथा चैतन्य के स्पंदनों का प्रमाण बहुत घट गया और नकारात्मक स्पंदनों का प्रमाण बढा, ऐसा ध्यान में आया ।

२ इ. ‘मुंबई’ नाम से वातावरण में बहुत प्रमाण
में शुद्ध स्पंदन प्रक्षेपित होना, चैतन्य के स्पंदनों का
प्रमाण बढना और नकारात्मक स्पंदनों का प्रमाण बहुत कम होना

‘मुंबई’ नाम के प्रभामंडल के संदर्भ में सकारात्मक स्पंदनों में वृद्धि दर्शानेवाले सूत्र ध्यान में आए ।

१. प्रभामंडल में ८९ प्रतिशत कुल सकारात्मक स्पंदन और ११ प्रतिशत कुल नकारात्मक स्पंदन थे । इसका अर्थ ‘मूल प्रविष्टि’ की तुलना में ‘मुंबई’ नाम के प्रभामंडल में सकारात्मक स्पंदन ३४ प्रतिशत बढे थे ।

२. चैतन्य का पीला रंग ४५ प्रतिशत था, अर्थात ‘मूल प्रविष्टि’ के चैतन्य के पीले रंग की (३१ प्रतिशत की) तुलना में वह बढ गया था।

३. प्रभामंडल में चैतन्य के पीले रंग की अपेक्षा उच्च स्तरीय सकारात्मक स्पंदन (शुद्धता और पवित्रता) दर्शानेवाला नीला-सा श्‍वेत रंग २८ प्रतिशत दिखाई दे रहा था ।

संक्षेप में, ‘मूल प्रविष्टि’ की तुलना में ‘मुंबई’ के नाम के कारण वातावरण के चैतन्य का प्रमाण बहुत बढा और नकारात्मक स्पंदनों का प्रमाण बहुत कम हुआ, ऐसा ध्यान में आया ।

उपर्युक्त सभी सूत्रों के संदर्भ में अध्यात्मशास्त्रीय विश्‍लेषण ‘सूत्र ३’ में दिया है ।

 

३. परीक्षण के निरीक्षणों के पीछे अध्यात्मशास्त्रीय विश्‍लेषण

३ अ. ‘बॉम्बे’ यह नाम असात्त्विक होना तथा
‘मुंबई’ यह नाम सात्त्विक होना, इसके पीछे के कारण

‘शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध और उससे संबंधित शक्ति एकत्रित होती है’, यह अध्यात्म का एक सिद्धांत है । उसके अनुसार जहां ‘रूप’ (उदा. किसी घटक का नाम) है, वहां उससे संबंधित शक्ति, अर्थात स्पंदन भी होते हैं । इस सिद्धांत के अनुसार आगे के सूत्र ध्यान में आते हैं ।

१. ‘मुंबई’ नगर का नाम स्थानदेवता ‘मुंबादेवी’ के नाम पर आधारित है । यह देवता ‘मुंबई’ नगर की रक्षा करनेवाली है । देवताआें में बहुत प्रमाण में चैतन्य होता है । देवता के नाम में उस देवता के दैवी स्पंदन आकृष्ट होते हैं । ‘देवताआें की नगर पर सदैव कृपा रहे और सभी संकटों से नगरवासियों की रक्षा हो’, इस उद्देश्य से प्राचीन काल में देवताआें के नाम पर आधारित नाम नगरों को देने की पद्धति थी । इससे ‘मुंबई’ नाम को अध्यात्मशास्त्रीय आधार है, यह ध्यान में आएगा ।

२. ‘मुंबई’ नाम को जैसा अध्यात्मशास्त्रीय आधार है, वैसा ‘बॉम्बे’ नाम को नहीं है । अंग्रेज बहुत ही चालाक और स्वार्थी थे । उन्होंने कपट कर भारत के अनेक संस्थानों को अपने आधीन किया था । उन्होंने अपनी असात्त्विक भाषा, आचार-आहार, (कु)संस्कृति भारतियों पर लादी थी । अंग्रेजों ने ‘मुंबई’ का ‘बॉम्बे’ ऐसा अंग्रेजी नामकरण किया । सात्त्विक भाषा में सकारात्मक स्पंदन, तथा असात्त्विक भाषा में नकारात्मक स्पंदन अधिक होते हैं । संस्कृत और उसके पश्‍चात मराठी एवं हिन्दी भाषा बहुत सात्त्विक है । इसके विपरीत अंग्रेजी भाषा सात्त्विक न होने से ‘बॉम्बे’ नाम से वातावरण में नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हुए ।

अन्य नगरों के विदेशीनाम और उनके मूल भारतीय नाम के संदर्भ में भी संशोधन किया गया है । उनका निष्कर्ष भी प्रस्तुत परीक्षण के अनुसार ही दिखाई दिया । उदा. ‘औरंगाबाद’ और ‘संभाजीनगर’ नामों का परीक्षण करने पर ‘औरंगाबाद’ नाम से नकारात्मक स्पंदन, तथा ‘संभाजीनगर’ नाम से बहुत प्रमाण में सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हुए । इसका कारण औरंगजेब एक क्रूर और निर्दयी बादशाह था । उसमें तमोगुण अधिक प्रमाण में होने से उसकी वृत्ति तामसिक थी । तमोगुण अधिक होने से व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदनों का प्रमाण अधिक होता है । इसलिए औरंगजेब के नाम पर रखे गए ‘औरंगाबाद’ नगर के नाम से वातावरण में बहुत प्रमाण में नकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हुए । धर्मवीर संभाजीराजा धर्माचरणी और प्रजाहितदक्ष राजा थे । उनमें सत्त्वगुण होने से वे सात्त्विक थे । सत्त्वगुण अधिक होने से व्यक्ति में सकारात्मक स्पंदनों का प्रमाण अधिक होता है । धर्मवीर संभाजीराजा ने पराक्रम की परीसीमा कर हिन्दू धर्म और प्रजा की क्रूरकर्मा औरंगजेब से रक्षा की । शत्रू के आधीन होने पर उन्होंने अनंत यातनाएं भोगीं; परंतु धर्मपरिवर्तन नहीं किया । धर्मरक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राणों का बलिदान दिया । इससे प्रेरणा लेकर सहस्रों मावले (सैनिक) धर्मरक्षा के लिए औरंगजेब के विरुद्ध लडने को सिद्ध हुए । ‘संभाजीनगर’ नाम ऐसे सत्त्वगुणी, धर्मपरायण और पराक्रमी संभाजी महाराज के नाम पर आधारित होने से उस नाम से वातावरण में बहुत प्रमाण में सकारात्मक स्पंदन प्रक्षेपित हुए ।

संक्षेप में बताना हो, तो नगरों के ‘बॉम्बे’,‘औरंगाबाद’ जैसे असात्त्विक नामों के कारण उस नगर के लोगों को नकारात्मक, अर्थात कष्टदायक शक्तियों का कष्ट होता है । इसलिए नगरों के उन नामों को परिवर्तित कर उन्हें देवता, सात्त्विक हिन्दू राजा इत्यादि के नाम पर आधारित सात्त्विक नाम देना श्रेयस्कर है । इससे भाषाभिमान, राष्ट्राभिमान और धर्माभिमान की भी रक्षा होती है । भावी हिन्दू राष्ट्र के प्रत्येक गांव, नगर, जिले इत्यादि के नाम सात्त्विक होंगे !’

– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (१९.६.२०१८) ॐ

ई-मेल : [email protected]

‘बॉम्बे’ जैसे असात्त्विक नाम के कारण वातावरण में विद्यमान चैतन्य के स्पंदनों का प्रमाण अधिक घटना तथा ‘मुंबई’ जैसे सात्त्विक नाम के कारण वातावरण में पवित्रता के स्पंदन प्रक्षेपित होना, साथ ही चैतन्य के स्पंदनों का प्रमाण अधिक बढना, यह दर्शानेवाले ‘पिप’ छायाचित्र

सूचना १ : ये चित्र वातावरण के प्रभामंडल का परीक्षण होने के कारण ‘पिप (पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरन्स फोटोग्राफी)’ छायाचित्र क्र. २ और ३ की तुलना मूल प्रभामंडल से (छायाचित्र क्र. १ से) करते समय छायाचित्र के पटल तथा नगरों के नामों की छायाप्रति के रंगों पर ध्यान नहीं दिया है ।

सूचना २ : ‘पिप’ छायाचित्र में हरा अथवा नीला मिश्रित श्‍वेत, जैसे उच्च सकारात्मक स्पंदनों के दर्शक रंग दिखाई देने पर, कभी-कभी पीला, गहरा हरा अथवा हरा आदि सामान्य सकारात्मक स्पंदनों के दर्शक रंगों की मात्रा घट जाती है अथवा वे पूर्णतः अदृश्य हो जाते हैं । इसे अच्छा परिवर्तन माना जाता है; क्योंकि इस समय सामान्य सकारात्मक स्पंदनों का स्थान, उससे भी उच्च स्तर के सकारात्मक स्पंदन ले लेते हैं ।

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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