श्रीदत्त के चित्र में विद्यमान त्रिदेवों की कांति भिन्न होने तथा एक जैसी होने में अंतर का आध्यात्मिक कारण !

कु. मधुरा भोसले

 

१. श्रीदत्त के चित्र में विद्यमान त्रिदेवों की कांति के
भिन्न होने तथा एक जैसी होने के आध्यात्मिक कारण

वर्ष २०१९ के सनातन पंचांग के दिसंबर मास के पृष्ठपर श्रीदत्त का नया चित्र प्रकाशित हुआ है । इस चित्र में श्रीदत्त के संपूर्ण शरीर की कांति तथा श्रीदत्त के तीनों मुखों की कांति सुनहरी रंग की दिखाई गई है । इससे पहले प्रकाशित श्रीदत्त के चित्र में श्रीदत्त के त्रिमुखों की कांति भिन्न रंग की थी, उदा. ब्रह्मदेव की सुनहरी, श्रीविष्णुजी की नीली तथा शिवजी की राख के रंग की थी । श्रीदत्तजी के चित्र में विद्यमान त्रिदेवों की कांति का भिन्न होना तथा एक जैसा होने के आध्यात्मिक कारण निम्न प्रकार से हैं –

१ अ. श्रीदत्तजी के चित्र में विद्यमान त्रिदेवों की कांति का भिन्न होना

श्रीदत्तजी के चित्र में विद्यमान कांति को भिन्न रंग की दिखाए जाने के कारण त्रिदेवों में द्वैत प्रतीत होता है । जब त्रिमूर्तियों का कार्य श्रीदत्तरूप में भी स्वतंत्ररूप से प्रचालित रहता है, अर्थात त्रिमूर्तियों में द्वैतभाव होता है, तब त्रिमूर्तियों की कांति भिन्न होती है ।

१ आ. श्रीदत्तजी के चित्र में विद्यमान त्रिदेवों की कांति एक जैसी होना

श्रीदत्तजी में ब्रह्माजी, विष्णुजी एवं महेशजी इन त्रिमूर्तियों का कार्य जब श्रीदत्तरूप में भी स्वतंत्ररूप से प्रचालित न रहकर एकत्रितरूप से अर्थात अद्वैत भाव के स्तरपर चालू रहता है, तब श्रीदत्तजी में विद्यमान त्रिमूर्तियों की कांति एक जैसी होती है ।

 

२. श्रीदत्तजी की मूर्ति के ‘त्रिमुखी
एवं एकमुखी’ होने के आध्यात्मिक कारण

श्री दत्तजी के अनेक मंदिरों में श्रीदत्तजी की मूर्ति त्रिमुखी होती है । पुणे के निकट नारायणपुर में श्रीदत्तजी की मूर्ति एकमुखी है । श्रीदत्तजी की मूर्ति के त्रिमुखी तथा एकमुखी होने के आध्यात्मिक कारण निम्न प्रकार से हैं –

२ अ. श्री दत्तजी की मूर्ति का त्रिमुखी होना

जब श्रीदत्तजी में ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश ये तीनों तत्त्व सगुण स्तरपर कार्यरत होते हैं, तब इन तीनों रूपों में द्वैतभाव होता है तथा उनका अस्तित्व स्वतंत्ररूप से कार्यरत होता है । तब श्रीदत्तजी की मूर्ति त्रिमुखी होती है ।

२ आ. श्रीदत्तजी की मूर्ति का एकमुखी होना

जब दत्तजी में ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश ये तीनों तत्त्व निर्गुण स्तरपर कार्यरत होते हैं, तब इन तीनों रूपों में अद्वैतभाव शाश्‍वत रहकर वे एक-दूसरे के साथ एकरूप होते हैं । इसलिए उनके तीनों मुखों को न दिखाकर मूर्ति में एक ही मुख दिखाया जाता है; इसलिए वह मूर्ति एकमुखी होती है ।’

– कु. मधुरा भोसले (सूक्ष्म से प्राप्त ज्ञान), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (१८.८.२०१८, रात १२ बजे)

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