सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने की दिनरात मांग करने पर भी संस्था के संस्थापक डॉ. आठवले जी इस संदर्भ में एक शब्द भी क्यों नहीं बोलते ?

विविध समाचारपत्र तथा समाचारवाहिनियों द्वारा सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने की दिनरात
मांग करने पर भी संस्था के संस्थापक डॉ. आठवले जी इस संदर्भ में एक शब्द भी क्यों नहीं बोलते ?

उपरोक्त प्रश्‍न अनेक लोगो के मन में आता है । इसका कारण यह है कि

१ . समाजकी सात्त्विकता में वृद्धि हो और आने वाली पीढी को धर्म का शास्त्रीय भाषा में ज्ञान हो इस हेतु मेरे प्रयास चल रहे हैं । चैनलों के समक्ष सनातन संस्था की भूमिका प्रस्तुत करने के लिए के प्रवक्ता निरंतर सिद्ध है । इसलिए स्वयं मेरी भूमिका प्रस्तुत करना आवश्यक नहीं है ।

२. मेरे प्रयत्न निम्नानुसार है । अब तक धर्म और साधना इन विषयों पर मेरे द्वारा संकलित ३१० ग्रंथो की देश-विदेश की विविध भाषाआें में ७२ लक्ष (लाख) से अधिक प्रतियां प्रकाशित हुई है तथा ७००० से अधिक ग्रंथों का लेखन संग्रहित है । आगामी पीढी को ग्रंथ संकलन करने में सहायता हो; इसलिए अधिकाधिक ग्रंथों का लेखन संकलित करने में मेरे दिन का अधिकांश समय व्यतीत होता है । इन आध्यात्मिक ग्रंथों के साथ देवताआें के सात्त्विक चित्र और मूर्ति, साथ ही धर्मशिक्षा देनेवाली ध्वनिचित्र चक्रिकाएं इत्यादि अनेक विषयों के संदर्भ में कार्य प्रलंबित है । सनातन पर प्रतिबंध की समस्या तात्कालिक है । इस विषय को महत्त्व देने की तुलना में आयु के ७६ वे वर्ष में स्वास्थ ठीक न होते हुए मेरा उपरोक्त कार्य को महत्त्व देना अधिक उचित लगता है ।

३. अनेक संतों ने भी मेरे कार्य के लिए आशीर्वाद दिए है । सनातन का कार्य धर्मकार्य अर्थात ईश्‍वर का पवित्र कार्य है । इसलिए वही यह कार्य पूर्ण करवाएंगे । पूर्व काल में संत तुकाराम महाराज के अभंग इंद्रायणी नदी में डुबोने का विरोधियों ने प्रयास किया था । उस समय संत तुकाराम महाराज अविचल भगवान पांडुरंग के स्मरण में तल्लीन रहें तब विरोधियों द्वारा डुबोएं अभंग पानी पर तैरने का चमत्कार भगवान ने कर दिखाया था । उसी प्रकार वर्तमान स्थिति में भी भगवान को सनातन की रक्षा करनी होगी, तो विरोधियों ने सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाकर उसे समाप्त करने का कितना भी प्रयास किया, तो भी उन्हें वह संभव नहीं होगा । उपरोक्त कारणों से सनातन संस्था पर प्रतिबंध लगाने के संदर्भ में मैं एक शब्द भी नहीं बोलता अपितु उसका विचार भी नहीं करता ।

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

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