हिन्दुओ, धर्मशिक्षा लेकर धर्मद्रोहियों के दुष्प्रचार से बचें !

अंनिसवालों और अन्य धर्मद्रोहियों में पर्यावरण-रक्षा हेतु शक्ति का संचार तब होता है, जब हिन्दुआें के त्योहार और उत्सव आते हैं । वे कहते हैं, गणेशमूर्ति बहते पानी में नहीं विसर्जित करनी चाहिए; क्योंकि इससे जल प्रदूषित होता है । परंतु, वे यह कभी नहीं कहते कि मूर्ति मिट्टी से बनाएं तथा उसे प्राकृतिक रंग से रंगें । इसी प्रकार, अब दशहरा आने पर कहेंगे कि सोना लुटाने की प्रथा के कारण अश्मंतक (आपटा) वृक्ष को नोचा जाता है । यह कहकर, वे अपनेआप को प्रकृति की रक्षा का ठेकेदार, बताने का प्रयास करते हैं । ऐसा ही एक संदेश, गत वर्ष दसहरे के एक दिन पहले से व्हॉट्स अ‍ॅप पर घूम रहा था ।

 

वॉटस् एप पर घूमनेवाला धर्मद्रोही संदेश !

आगामी विजयादशमी (दशहरा) पर सोना लुटाना, अर्थात अश्मंतक (आपटा) वृक्ष के पत्तों का आदान-प्रदान नहीं करूंगा, यह मैंने निश्‍चय किया है । क्योंकि, ऐसा करना, प्रकृति को कुरूप करने समान है । पहले, मनुष्य अल्प और वृक्ष बहुत होते थे । तब, यह प्रथा ठीक थी । परंतु, अब परिस्थिति इसके विपरीत है । इसलिए, प्रकृति की रक्षा होनी चाहिए और इसका आरंभ, अपने से करना चाहिए । मुझे जो मिलने आएंगे, उन्हें मैं यह बात समझाऊंगा । धीरे-धीरे समाज अवश्य जागेगा और वृक्षों का विद्रूपीकरण रुकेगा ।

ध्यान दें, पत्ते वृक्ष के लिए भोजन बनाते हैं और हमें अमृततुल्य प्राणवायु देते हैं । अतः आइए, इस वर्ष से हम सोना लुटाना त्यागकर, केवल शुभकामना दें ! प्रकृति की रक्षा करें !

खंडन : वृक्षों की अवैध कटाई, कारखानों से निकलनेवाली दूषित वायु और जलाशयों में छोडे जानेवाले रासायनिक पानी से वृक्ष सूख रहे हैं । उद्योगीकरण के नाम पर पर्यावरणरक्षा के लिए आवश्यक भूमि पर उद्योग खडे किए जाते हैं । कारखानों से पानी निकाल कर, शुद्ध किए बिना ही बहा दिया जाता है, जिससे खेती नष्ट हो रही है । इसे कहते हैं, प्रकृति को नोचना अथवा विद्रूपीकरण । परंतु, उन्हें यह नहीं दिखाई देता अथवा वे देखना ही नहीं चाहते ? प्रकृति की रक्षा की इतनी चिंता है, तो ये लोग वर्ष में कितने वृक्ष लगाते और उनकी देखभाल करते हैं ? केवल हिन्दुआें के त्योहारों पर वृक्ष के पत्ते न तोडने की बात कहनेवाले, वृक्ष लगाने की सकारात्मक बात क्यों नहीं करते ?

 

 

हिन्दुओ, अश्मंतक वृक्ष के पत्ते बांटने का निम्नांकित दृष्टिकोण समझ लें !

१. अश्मंतक वृक्ष के पत्ते एक-दूसरे को देने से दोनों व्यक्तियों में त्याग और प्रीति गुण बढता है । इसके पत्ते एक-दूसरे को देना, अपना बहुमूल्य सोना दूसरे को देने का प्रतीक है । दशहरा, विजय का दिवस है । इसलिए, इस दिन अश्मंतक के पत्ते एक-दूसरे को देकर आनंदोत्सव मनाया जाता है ।

२. दशहरा के दिन अश्मंतक के पत्ते बांटना, सौज्जन्य, समृद्धि और संपन्नता दर्शाता है । अश्मंतक के पत्ते देने का आध्यात्मिक लाभ जानने के लिए देखिए, सनातन प्रभात का ब्लॉग

हिन्दू धर्म के त्योहार और उत्सव, प्रकृति का संतुलन बनाए रखनेवाले ही होते हैं !

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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