ईश्वरप्राप्ति के लिए तथा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु एक ही ध्यास होना चाहिए कि, मैं क्या कर सकता करूं ? – सद्गुरु (श्री) बिंदा सिंगबाळजी

रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम में हिन्दू राष्ट्र-संगठक शिविर

 

दाएं से श्री. नागेश गाडे, मार्गदर्शन करते समय सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी तथा श्री. संदीप शिंदे

 

रामनाथी (गोवा), १ फरवरी – हिन्दू जनजागृति समिति तथा सनातन संस्था के संयुक्त विद्यमान से रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम में २६ से २८ जनवरी
इस कालावधी में राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दु राष्ट्र-संगठक शिविर आयोजित किया गया था । उस शिविर के समारोप के समय सनातन की सद्गुरु (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी ने शिविरार्थियों को मार्गदर्शन किया । अपने मार्गदर्शन में उन्होंने यह बताया कि, ‘आगामी भीषण आपातकाल में यदि निभाएं रहना हैं, तो वह काल आरंभ होने से पूर्व ही साधना का बल वृद्धिंगत करें । नियमित व्यष्टि तथा समष्टि साधना करें । यदि किसी को गंभीर स्वरूप की व्याधी है तथा उसका तीन माह में मृत्यु होगा, इसका पता चलने के पश्चात् वह जैसा विचार करेगा, उसी प्रकार हमें भी आपातकाल के संदर्भ में विचार करना चाहिए । उससे ही हम साधना के बल पर उस कालावधी में निभाएं रहेंगे । हम संख्या में
कितने हैं, इस का कोई भी महत्त्व नहीं है, तो हमारें में भाव तथा लगन कितनी है, इस पर निर्भर है । देव एक भक्त के लिए भी दौडकर आता है । अतः पूरी शक्ति से प्रयास करें । साधना के तथा हिन्दू राष्ट्र-स्थापना का भी प्रत्येक प्रयास ईश्वर पर श्रद्धा रखकर करें ! स्वयं में एक ही लगन होनी चाहिए कि, मैं ईश्वरप्राप्ति के लिए तथा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु क्या करू ? उचित क्या तथा अनुचित क्या है, यह ईश्वर ही सूचित करता है । उसके अनुसार हम उचित कृती कर सकते हैं ।’

मार्गदर्शन के समय व्यासपिठ पर हिन्दू जनजागृति समिति के केंद्रीय समन्वयक श्री. नागेश गाडे तथा सनातन अध्ययन केंद्र के समन्वयक श्री. संदीप शिंदे भी उपस्थित थे ।

 

स्वभावदोष निर्मूलन तथा अहं निर्मूलन के लिए प्रयास कर
ईश्वर के गुण स्वयं में लाने का प्रयास करेंगे ! – शिविरार्थियों का निश्चय

हिन्दु राष्ट्र की स्थापना हेतु गंभीरता से तथा लगन से साधना करने का, साथ ही स्वभावदोष निर्मूलन एवं अहं निर्मूलन के प्रयास कर स्वयं में ईश्वर के गुण निर्माण करने का निश्चय हिन्दु राष्ट्र-संगठक शिविर के शिवीरार्थियों ने व्यक्त किया । साथ ही शिविर के समारोप के समय अनेक शिविरार्थियों ने अपना मनोगत व्यक्त करते समय बताया कि, ‘शिविर के तीन दिन की कालावधी में मन में किसी भी प्रकार के माया तथा व्यावहारिक विचार नहीं आए । समय की ओर भी ध्यान नहीं गया । आश्रम का चैतन्य अनुभव किया । धर्मकार्य करते समय साधना का महत्त्व कितना है, इसका पता चला ।’

इस शिविर में आदर्श हिन्दु राष्ट्र संगठक की गुणवृद्धि तथा कौशल्य का विकास, नामजप का महत्त्व तथा नामजप के संबंध में आनेवाली अनुभूतियों का विश्लेषण, स्वभावदोष सारणी लिखने की पद्धति, चुकाओं में स्वभावदोष किस प्रकार ढूंढ सकते हैं, स्वयंसूचना देते समय आनेवाली अडचनें तथा उसपर की जानेवाली उपाययोजना, समय का सुनियोजन किस प्रकार करें ? तथा धर्मकार्य करते समय उसके समाचार किस प्रकार भेज सकते हैं ?, आगामी आपातकाल के संदर्भ में साधना की दिशा, सत्संग का महत्त्व तथा समष्टि साधना के लाभ इत्यादि विषयों पर मार्गदर्शन किया गया ।

क्षणिकाएं :

१. शिविर में उपाqस्थत एक हिन्दुत्वनिष्ठ को २ दिन से टायफॉइड (विषमज्वर) हुआ था । किन्तु ऐसी परिस्थिति में भी केवल शिविर को आने की संधी प्राप्त हुई, इस भाव से वे उसी परिस्थिति में भी इस शिविर को उपस्थित रहें । तीनों दिन उन्हें किसी भी प्रकार के कष्ट नहीं हुए । उलटा उन्होंने बताया कि, ‘यहां आकर उन्हें उत्साह तथा आनंद ही प्राप्त हुआ ।’

२. एका शिविरार्थि के दोनों छोटे बालक अकस्मात बिमार हुए, साथ ही उन्हें स्वयं को भी हृदयविकार से संबंधित कष्ट है तथा उसके लिए औषध लाने का दिन था । अपितु श्रीकृष्ण सबकुछ देखेगा, यह भाव रखकर वे शिविर में उपस्थित रहे ।

३. दो शिविरार्थियों ने हिन्दु राष्ट्र-स्थापना का कार्य पूरे समय के लिए साधना के रूप में करने का निश्चय किया ।

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

 

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