गोंडा, उत्तरप्रदेश की श्री वाराहीदेवी !

मंदिर परिसर के वटवृक्ष की विस्तीर्ण शाखाएंगोंडा, उत्तरप्रदेश के मुकुंदनगर गांव में श्री वाराहीदेवी का मंदिर है । मंदिर में अति प्राचीन वटवृक्ष है । जिसकी शाखाएं मंदिर परिसर में फैली हैं । श्री वाराहीदेवी उत्तरी भवानीदेवी के नाम से भी विख्यात हैं । इस स्थान पर माता सती की ठोढी का निचला भाग गिरा था । ५१ शक्तिपीठों में से यह ३४ वां पीठ है । श्री वाराहीदेवी भगवान वराह की शक्ति हैं । इस स्थान पर प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार, इसके साथ ही आषाढ माह में मेला लगता है ।

मंदिर में देवी की मूर्ति नहीं है, अपितु गुफा समान एक सकरीला रास्ता है । उसी स्थान पर देवी का वास है, ऐसी मान्यता है । उसके सर्व ओर मंदिर का निर्माण किया है । मंदिर में भगवान वराह की मूर्ति है । मंदिर परिसर में एक विस्तीर्ण और प्राचीन बरगद का पेड है । यह बरगद का पेड लगभग १८०० वर्ष पुराना होने से एशिया खंड में दूसरा सबसे बडा वृक्ष है । वटवृक्ष की जटाएं और शाखाओं ने मंदिर को पूर्णरूप से घेर लिया है । वटवृक्ष की जडें १ कि.मी. तक फैली हैं । देवी को नेत्रों की पीतल अथवा पत्थर की प्रतिकृति अर्पण करने की प्रथा है । ऐसी मान्यता है कि किसी व्यक्ति को आंखों से संबंधित कोई रोग हो, तो ठीक हो जाता है ।

 

मंदिर स्थापना के पीछे की कथा

मंदिर स्थापना की कथा श्री विष्णु का अवतार भगवान वराह से संबंधित है । भगवान वराह का स्थान जिले के सूकरखेत पासका में हैं । ऐसी मान्यता है कि हिरण्यकश्यपू का भाई हिरण्याक्ष का वध करने के लिए भगवान श्री विष्णु ने वराह अवतार धारण किया । हिरण्याक्ष को ढूंढने के लिए भगवान वराह को पाताल में जाना था । उस समय उन्होंने देवी की स्तुति की । वह मुकुंदनगर के जंगल में प्रगट हुईं और उन्होंने पाताल में जाने के लिए वराह भगवान को भूमि से मार्ग दिया । उस मार्ग से पाताल में जाकर भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध किया । तब से इस स्थान पर देवी का मंदिर अस्तित्व में आया । मंदिर में आज भी गुफा समान मार्ग है । एक अंग्रेज अधिकारी ने यह रास्ता नापने का प्रयत्न किया था; परंतु उसे वह नाप नहीं सका । आज भी यहां घी का दीपक अखंड जलता रहता है ।

(संदर्भ : दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर का जालस्थल)

सनातन की सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ गत ४ वर्षों से अधिक समय से भारतभर में भ्रमण कर प्राचीन मंदिर, वास्तु, गड और संग्राह्य वस्तु के छायाचित्रों का संग्रह कर रही हैं । इसीलिए हमें ऊपर दिए गए छायाचित्रों द्वारा वाराहीदेवी का स्थान और उसके परिसर के वटवृक्ष के दर्शन हो सके । इसके लिए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी और सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ के श्रीचरणों में कृतज्ञता व्यक्त करेंगे !

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