वर्षाकाल में ये सावधानी बरतें !

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१. वर्षाकाल में रोगनिर्मिति के लिए कारणभूत घटक

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वर्षाऋतु के पहले ग्रीष्मकाल में शरीर में रुक्षता आई होती है, शरीर दुर्बल हुआ होता है । कडी धूप के उपरांत वातावरण में अचानक परिवर्तन होकर वर्षा के कारण ठंड निर्माण होती है । वातावरण में आर्द्रता (नमी) भी बढती है । इससे शरीर में वातदोष प्रबल होता है । वातावरण में, विशेषकर वनस्पति, अनाज, जल आदि सभी में अम्लता बढती है । इससे शरीर में पित्त संग्रहित होता है । इन दिनों में पाचनशक्ति भी घटती है । भूख मंद हो जाने से पाचन संबंधी विकार होते हैं । वर्षाजल के साथ धूल, कूडा इत्यादि आने से हुआ प्रदूषित जल भी रोगनिर्मिति के लिए कारणभूत होता है । इन सभी कारणों से वातविकार, उदा. गठिया, आमवात के साथ जुलाब (दस्त), अपच इत्यादि अपचनजन्य विकार बढते हैं ।

 

२. वर्षाऋतु के विकारों का सामना इस प्रकार करें !

वर्षाकाल का प्रमुख लक्षण है, भूख मंद होना । भूख मंद होने पर भी पहले जैसा ही आहार लेने से वह अनेक रोगों को आमंत्रित करता है; क्योंकि मंद हुई भूख अथवा पाचनशक्ति अधिकतर विकारों का मूल कारण है । पेट भारी लगना, खट्टी डकारें आना, पेट में गैस (पेट में वायु) होना इत्यादि भूख मंद होने के लक्षण हैं । ऐसी स्थिति में हलका अन्न, उदा. चावल का माड (कंजी), सूप अथवा भूंजकर बनाए पदार्थ खाने चाहिए । भोजन अल्प मात्रा में खाना चाहिए । पेट भारी होते हुए भी आहार वैसा ही रखने से अपच, जुलाब (दस्त), आंव पडना आदि विकार आरंभ होते हैं ।

२ अ. पाचनशक्ति बढानेवाली घरेलु औषधियां

२ अ १. पाचक छाछ (मठ्ठा) : एक प्याला मीठा और तुरंत बनाया छाछ लेकर उसमें सोंठ, जीरा, अजवाईन, हींग, सैंधा नमक, काली मिर्च का चूर्ण आदि का एकत्र किया चूर्ण १ चुटकीभर डालकर दिन में २-३ बार पीएं ।

२ अ २. पाचक मिश्रण : अदरक कद्दूकस कर उसमें नींबू का रस डालें । इस मिश्रण में स्वादानुसार सैंधा नमक डालें । यह मिश्रण कांच की बोतल में भरकर रखें । भोजन के पहले १-२ चम्मच खाएं ।

२ अ ३. सोंठ-शक्कर का मिश्रण : १ कटोरी सोंंठ का चूर्ण और उतनी ही शक्कर लेकर मिक्सर में पीसें । यह मिश्रण बोतल में भरकर रखें । दोनों भोजन के पहले १-१ चम्मच खाएं । इससे शुद्ध डकार आकर भूख अच्छी लगती है । साथ ही पित्त की व्याधि भी घटती है ।

२ आ. प्रतिदिन पूरे शरीर को तेल लगाएं !

वर्षाकाल में सर्वांग में नियमितरूप से तील, मूंगफली अथवा नारियल तेल लगाएं । इस तेल से जोडों का मर्दन करें । तेल लगाने पर सूर्यनमस्कार, योगासन जैसा हलका व्यायाम करें । शारीरिक वेदनाआें में उष्ण जल की थैली अथवा हीटिंग पॅड से सेक लें । स्नान के समय सेकना हो, तो उष्ण जल का उपयोग करें ।
– वैद्य मेघराज पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

 

२. वर्षाकाल में आहार

२ अ. वर्षाकाल में क्या खाएं और क्या न खाएं ?

   ये खाद्यपदार्थ ग्रहण करें ! इन खाद्यपदार्थों से बचें ! 
१. आहार का स्वाद थोडा-सा खट्टा, कडवा, कसैला और तीखा १. अधिक मीठा
२. आहार की विशेषताएं पाचन के लिए हलका, शक्तिदायक, शुष्क (रूक्ष), थोडा-सा स्निग्ध २. पतला
३. वात, कफ और पित्त से संबंधित गुण वात, पित्त और कफशामक ३. वात, पित्त और कफ वर्धक
४. अनाज पुराना अनाज (चावल, गेहूं, जौ, सांवा के चावल, मडुआ (रागी), कोद्रू (रागी के समान दिखनेवाला और राई के आकार का पीले रंग का अनाज), एक प्रकार का हल्का अनाज), बाजरा), सेंकी हुई दालों का पिसा हुआ मिश्रण, रामदाना, सभी अनाजों की लाइयां ४. नया अनाज, मुरमुरा, मक्के की लाइयां
५. साबुत दालें अ. अधिक मात्रा में : मूंग, मसूर
आ. अल्प मात्रा में : हुलगा अर्थात एक प्रकार का अनाज जो पचने में हलका है ।, उडद
५. लोबी, मटर, पावटे (एक प्रकार की फली), मोठ
६. तरकारियां अ. आवश्यकतानुसार : लौकी, भिंडी, चिचडा, गोबी, फूलगोबी, टिंडा, सेम, ग्वार, ओला, माठ, वाल

आ. अल्प मात्रा में : मेथी, सरसों (राई)

६. पत्तेवाली तरकारियां
७. मसाले  सभी प्रकार के मसाले ७. —
८. तेल अथवा तेलबीज  तिल का तेल, मूंगफली का तेल ८. —
९. पदार्थ अ. बाजरे की रोटी, फुलका, ज्वार अथवा ज्वार के लाई के आटे का उपमा (यह सब बनाते समय उसमें सोंठ, काली मिर्च का चूर्ण (पाउडर) डालना अच्छा ।)
आ. सोंंठ, काली मिर्च, पीपली, अजवायन, हलदी इत्यादि । मसाला डालकर बनाए मूंग, मसूर, अरहर, लोबी आदि साबुत दालों के सूप, टमाटर सूप, अमसूल का सूप अथवा कढी
इ. मूंग के पदार्थ : दाल, सूप, खिचडी, बडा, लड्डूू इत्यादि ।
ई. हुलगा से बने पदार्थ : हुलगा अर्थात एक प्रकार का अनाज जो पचने में हलका है । इससे बना सूप, कढी, लड्डू इत्यादि ।
उ. अन्य : रामदाने का लड्डू
ऊ. विशेष गुण : उष्ण और सीधे अग्निसंस्कार से युक्त पदार्थ उदा. फुलका, पापड
९. अ. साबुत दालें
आ. अति मधुर और स्निग्ध पदार्थ, उदा. हलुवा, बूंदी के लड्डू
इ. बासी पदार्थ
ई. मक्खियां बैठे पदार्थ
१०. दूध एवं दूध के पदार्थ अ. दूध पीते समय उसमें सोंठ अथवा हलदी डालें ।
आ. दही पर जमा पानी सेंधा नमक डालकर पीएं ।
इ. सेंधा नमक, जीरा इत्यादि डालकर छाछ पीएं ।
ई. भोजन में चम्मचभर घी अथवा मक्खन लें ।
१०. खोया, कुंदा (शक्कर डाला हुआ खोया), पेडा, दूध डालकर बनाई मिठाइयां
११. फल अ. आवश्यकतानुसार : अनार, केला, सेब
आ. अल्प मात्रा में : खीरा, तरबूजा
११. कटहल
१२. सूखामेवा अ. आवश्यकतानुसार : मुनक्का, अंजीर
आ. अल्प मात्रा में : अन्य
१२. —
१३. नमक (लवण)  सेंधा नमक, विट् लवण (सैंधव पर आंवले की प्रक्रिया कर बनाया गया काले रंग का नमक) १३. —
१४. शक्कर  पुराना गुड तथा मधु का उपयोग अधिक करें । १४. नया गुड
१५. जल  अ. छानकर अथवा फिटकरी घुमाकर लें ।
आ. जल कीटाणुरहित हो, इसलिए अच्छे से उबालकर लें ।
१५. अ. नदी-नालियों का जल
आ. अधिक पानी पीना
१६. मद्य (टिप्पणी)  सीमित मात्रा में लिया मद्य १६. अधिक मद्यपान करना
१७. मांस (टिप्पणी)  उष्ण तथा पाचन के लिए हलका मांस : बकरी का मांस, सलाई पर भूंजा मांस, काली मिर्च जैसे पाचक मसाले डालकर बनाया मांसरस (सूप) १७. मछलियां और अन्य जलचरों का मांस

टिप्पणी : धर्मशास्त्रानुसार मद्य और मांस सेवन निषिद्ध है; तब भी आजकल मद्य और मांस सेवन करनेवालों को उनके गुणदोष समझ में आएं, इसलिए यहां दिए हैं ।

२ आ. लंघन (उपवास)

सप्ताह में एक बार लंघन अथवा उपवास करें । जिन्हें संभव है, वे दिनभर कुछ न खाएं । भूख लग ही जाए, तो धान की लाइयां खाएं । जिन्हें यह संभव नहीं है, वे भूंजे हुए अनाज के पदार्थ अथवा लघु आहार (धान की लाइयां, मूंग की दाल जैसा पाचन में हलका आहार) लेकर लंघन करें ।
वर्षाकाल में एकभुक्त रहना, अर्थात दोपहर में पूर्ण आहार लेकर रात्रि में भोजन न करना अनेक लागों के लिए उपयुक्त है ।

३. वर्षाकाल में ये सावधानी बरतें !

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अ. सभी चादरों तथा बिछावनों को वर्षाकाल के पहले ही धूप में रखें ।

आ. वर्षाकाल में स्नान के लिए गुनगुने अथवा उष्ण जल का उपयोग करें ।

इ. नमीयुक्त अथवा आर्द्र स्थान में न रहें ।

ई. नमीयुक्त अथवा आर्द्र वस्त्र न पहनें ।

उ. दिनभर पानी में काम न करें ।

ऊ. वर्षा में न भीगें । इसलिए आवश्यक सावधानी बरतें । भीगने पर तुरंत सूखे वस्त्र पहनें ।

ए. वर्षाकाल की ठंड से भी बचें ।

ऐ. दिन में न सोएं ।

४. मक्खियां और मच्छरों का प्रतिबंध करने के प्राकृतिक उपाय

इस काल में मक्खियां और मच्छर बढते हैं । इनका प्रतिबंध करने के लिए निम्न उपाय करें ।

अ. घर में नीम के पत्ते, लहसुन के छिलके, धूप, ऊद, अजवायन आदि का धुआं करें ।

आ. घर के आसपास पेड-पौधे हों, तो उन पर गोमूत्र का फुहारा छिडकें ।

इ. घर के भीतर बच के पौधे का गमला रखें । इससे मच्छर अल्प होते हैं ।

ई. सायंकाल के समय गुडनाईट की कॉईल पर लहसुन रखकर स्विच चालू करें । इससे मच्छर अल्प होने में सहायता होती है ।

 

५. वर्षा ऋतु में विकारों का सामना ऐसे करें !

वर्षा ऋतु के प्रमुख लक्षण अर्थात भूख मंद होना । भूख मंद होने पर भी पहले समान ही आहार लेने से यह अनेक रोगों के लिए आमंत्रण ही है; कारण मंद भूख अथवा पचनशक्ति अनेक विकारों का मूल कारण है । पेट भारी लगना, दुर्गंधयुक्त डकारें आना, गैसेस (पेट में वायु) होना, ये सभी भूख कम होने के लक्षण हैं । ऐसे समय पर हलका अन्न, उदा. कंजी, मूंग की पतली दाल, भुने हुए अनाज से बने पदार्थ इत्यादि लें । भुने हुए अनाज से बने पदार्थ हल्के एवं पचन में सुलभ होते हैं । अल्प मात्रा में खाएं । पेट भारी होते हुए भी आहार लेते रहने से अजीर्ण (अपचन), जुलाब, आंव गिरना जैसे विकार आरंभ हो जाते हैं ।

५ अ. पचनशक्ति बढानेवाली सरल-सुलभ घरेलु औषधियां

५ अ १. पाचक छाछ (मट्ठा)

एक कटोरी ताजी छाछ लेकर उसमें सोंठ, जीरा, अजवायन, हींग, सैंधव नमक, काली मिर्च की १-१ चिमटी डालकर मिलाएं । दिन में २-३ बार लें ।

५ अ २. पाचक मिश्रण

अदरक किसकर उसमें वह भीग जाए, इतना नीबू का रस लें । स्वादानुसार सैंधव नमक मिलाएं । यह मिश्रण कांच की बरनी में भरकर रखें । भोजन से पहले १-२ चम्मच लें ।

५ अ ३. सोंठ-शक्कर का मिश्रण

१ कटोरी सोंठ का पाउडर एवं उतनी ही मात्रा में शक्कर लें । फिर उसे मिक्सर में डालकर, उसका मिश्रण बना लें एवं बरनी में भरकर रखें । दोनों बार के भोजन से पूर्व १-१ चम्मच लें । इससे शुद्ध डकारें आकर अच्छी भूख लगती है । इसके साथ ही पित्त का कष्ट भी कम होता है ।

५ आ. संपूर्ण शरीर में प्रतिदिन तेल लगाएं !

वर्षा ऋतु में संपूर्ण शरीर में नियमितरूप से तेल लगाएं । जोडों में अधिक समय तक तेल की मालिश करें । वर्षा ऋतु में हवा में आर्द्रता एवं ठंडक होने से तिल अथवा सरसों (राई) का तेल लगाएं । ये तेल उष्ण होते हैं । नारियल के तेल का उपयोग न करें । (वर्षा ऋतु को छोडकर अन्य ऋतुओं में नारियल के तेल का उपयोग कर सकते हैं ।) तेल लगाने के पश्चात सूर्यनमस्कार, योगासन जैसे हलके व्यायाम करें । शरीर में वेदना हो तो गरम पानी की थैली से अथवा हीटिंग पैड से सेकें । स्नान के समय जितना सहन हो उतने गरम पानी का सेंक दें ।

 

६. भोजन संबंधी नीचे दिए नियम का पालन करें !

वर्षा ऋतु में पचनशक्ति मंद होती है । हम जो भी खाते हैं, वह पचता नहीं और रोग हो जाते हैं । इसे टालने के लिए भूख लगने पर ही भोजन करें । इससे ग्रहण किया हुआ भोजन ठीक से पच जाता है । यदि भूख न लगी हो, तो उपवास करें अथवा अत्यंत अल्प मात्रा में खाएं । वर्षा ऋतु में सप्ताह में एक दिन एकभुक्त रहना, अर्थात दोपहर ठीक से भोजन कर, रात में भोजन न करना आरोग्य की दृष्टि से लाभदायक होता है ।

 

७. वर्षा ऋतु में बीच में ही वर्षा रुक जाती है और धूप निकल आती है, तब सावधानी रखें !

७ अ. ‘वर्षा थम जाए और धूप निकल आए’, तब शरीर में पित्त बढने का वह एक कारण होता है ।

‘कई बार वर्षा ऋतु में सतत होनेवाली वर्षा रुक जाती है और धूप निकल आती है । कुछ दिन वर्षा नहीं होती और सतत धूप रहती है, तब इससे शरीर में पित्त का प्रकोप होने लगता है । (‘प्रकोप’ अर्थात ‘अधिक मात्रा में वृद्धि होना’) ऐसे समय पर आंखें आना (कंजंक्टिवायटिस), बुखार आना, शरीर पर फुंसियां आना, विसर्प (हर्पीस), अतीसार (जुलाब) जैसे विकार हो सकते हैं । वर्षा के समाप्त होते समय साधारणत: सितंबर अथवा अक्टूबर माह में इसीप्रकार का वातावरण होता है । तब भी ये विकार हो सकते हैं ।

७ आ. क्या टाले ?

खट्टा, नमकीन एवं तीखा, साथ ही तैलीय पदार्थ पित्त बढाते हैं । इसलिए उपरोक्त वातावरण के रहते ऐसे पदार्थ खाना टालें । मिरची अथवा लाल मिर्च का उपयोग अत्यंत अल्प करें । ‘हम मिर्च के बिना खा ही नहीं सकते, भोजन में भरपूर डालने पर ही उसमें स्वाद आता है । हमें उसकी आदत है, इसलिए हमें कुछ नहीं होनेवाला’, ऐसा विचार कर अपनी हानि न कर लें । सेव, चिवडा, दालमोठ अथवा वडापाव, दाबेली, पानीपुरी, शेवपुरी जैसे चटपटे एवं तीखे अथवा तैलीय पदार्थ भी टालें । ऐसे काल में भूख लगने पर ही भोजन करें । भूख न होने पर भी यदि खाना ही पड जाए तो अल्प मात्रा में खाएं ।’

– वैद्य मेघराज पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (३०.४.२०१४)

3 thoughts on “वर्षाकाल में ये सावधानी बरतें !”

  1. अगर ज्वर आना, बदनदर्द, ठंड लग जाना ऐसे मे क्या औषधिया ले कृपया मार्गदर्शन करे

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