प्राकृतिक संकटों से भरा आपातकाल एवं भक्ति की अनिवार्यता !

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गत कुछ वर्षों से विश्व भर में एवं भारत में भी ये प्राकृतिक आपदाएं भारी मात्रा में आईं । ‘वातावरण में ‘रज-तम का बढता प्रभाव’ राष्ट्र पर प्राकृतिक विपदाओं के पीछे का आध्यात्मिक कारण होता है । वर्तमान में कलियुगांतर्गत छठे कलियुग के चक्र का अंत होने से पूर्व का संधिकाल शुरू है । इस युगपरिवर्तन के समय आनेवाला आपातकाल अब आरंभ हो गया है । विश्व में एवं भारत में होनेवाली विविध घटनाओं से यह आपातकाल सभी अनुभव कर रहे हैं । कोरोना जैसी महामारी भी उसी का एक उदाहरण है । अनेक द्रष्टा संत एवं प्रसिद्ध भविष्यवक्ताओं ने कहा है कि आनेवाले काल में अनेक प्राकृतिक आपदाएं आएंगी ।

 

१. युरोप में उष्णता का हाहाकार !

कुछ ही समय पूर्व ब्रिटनसहित संपूर्ण युरोप में प्रचंड उष्णता एवं अल्प पर्जन्यवृष्टि के कारण हाहाकार मच गया था । युरोप के आसपास के ६० प्रतिशत भूभाग पर अकाल समान परिस्थिति थी । यह क्षेत्रफल भारत के क्षेत्रफल समान है । युरोप में १ करोड ७० लाख लोग इसकी चपेट में आ गए । ऐसा कहा जाता है कि आनेवाले कुछ दिनों में और १ करोड ५० लाख लोगों को ऐसे संकटों का सामना करना पड सकता है । स्पेन, फ्रांस एवं ब्रिटन, इन देशों में जुलाई माह में तापमान ४० अंश सेल्सियस से भी अधिक पाया गया । ठंडे प्रदेशों के नागरिकों को उसे सहन करना कठिन हो गया है । इंग्लैंड में कुछ स्थानों पर ऐसी स्थिति हो गई है कि पीने का पानी खरीदने के लिए लोगों में मार-पीट हो गई !

 

२. विनाशकारी जंगलों की आग !

वातावरण में परिवर्तन होने से विश्व भर में जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढी है । हाल ही के कुछ वर्षों में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में आग एवं वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण अब तक सैकडों दस लाख हेक्टर भूमि आग की चपेट में आकर खाक हो गई है । यहां वर्ष २०१९-२० में जंगलों में लगी आग में ३०० करोड पशु-पक्षी जलकर खाक हो गए । फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, ग्रीस, क्रोएशिया जैसे देशों के सहस्रों लोगों को इस कारण स्थलांतर करना पडा । इनमें सैकडों की मृत्यु होने की संभावना व्यक्त की जा रही है ।

गत वर्ष कैनडा में लगी ऐसी आग इतनी विस्फोटक थी कि उसके धुएं से बादल और आंधी-तूफान आ गया । ‘पायरो-क्युमुलोनिंबस’ प्रकार के उन बादलों में बिजली चमकने से आग और फैल गई । पश्चिम अमेरिका में १० सहस्र एकड तक फैलनेवाली जंगल के आग की मात्रा वर्ष १९७० की तुलना में ७ गुना बढ गई । अमेरिका, स्पेन, पुर्तगाल, जर्मनी, फ्रांस, चीन में भारी मात्रा में जंगलों में आग लगी थी । इससे सहस्रों हेक्टर भूमि एवं जंगलसंपत्ति जलकर राख हो गई है । इसके साथ ही पशु-पक्षी एवं जंगली प्राणियों का भारी मात्रा में नगरों में प्रवेश हुआ है । भारत में भी गत दो दशकों में जंगल में आग की घटना एवं तीव्रता में वृद्धि हुई है ।

 

३. सब कुछ बहा ले जानेवाला जलप्रलय !

वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण वातावरण में तीव्र गति से परिवर्तन हुए हैं । भारत सहित एशिया खंड में इस बार भारी मात्रा में वर्षा हो रही है और जलप्रलय भी आता हैं । अप्रैल माह में साउदी अरेबिया जैसे रेगिस्तानी देश में लोग जलप्रलय में से अपना रास्ता बनाते हुए छायाचित्र प्रकाशित हुए थे । वर्ष २०१९ में सांगली में एवं वर्ष २०२१ में चिपलूण में जलप्रलय आया । कोकण, दक्षिण महाराष्ट्र एवं विशेषरूप से सातारा, सांगली, कोल्हापुर जिले पानी के नीचे चले गए । भारतभर में नदियों के प्रवाह को रोकने के कारण बाढग्रस्त स्थिति बन गई थी । आपत्ति व्यवस्थापन की सेवा आपत्ति आने पर आरंभ होती है । गत कुछ वर्षों से थोडी-सी वर्षा आने पर भी बडी बाढ आती है । हाल ही में एक ही दिन में २०० मि.मी. वर्षा रिकॉर्ड की गई थी । वर्ष २०२१ में महाबळेश्वर में ५५० मि.मी. वर्षा हुई । बाढ के कारण मनुष्य सहित वन्यजीव एवं पालतु प्राणियों की जीवितहानि होती है । घर, शासकीय कार्यालय, अनाज के गोदाम, अधिकोष एवं बाजार में पानी आ जाने से वस्तु, अन्नधान्य एवं पैसों की भारी मात्रा में हानि होती है ।

 

४. सर्व कुछ उद्ध्वस्त करनेवाले तूफान (साइक्लोन) !

गत दशक में पश्चिमी विशेषज्ञों ने कहा था कि वैश्विक तापमान में वृद्धि एवं प्रदूषण की सतह के कारण अरबी समुद्र में तूफान की संख्या इस दशक में बढनेवाली है । अरबी समुद्र के पृष्ठभाग का तापमान ०.३६ अंश सेल्सियस से बढा है । अरबी समुद्र के तूफान मुंबई एवं कोकण में सीधे नहीं टकराए, तब भी भारी हानि हुई । वर्ष २००९ में फयान एवं मई २०२१ में तौक्ते तूफान दक्षिणपूर्व अरबी समुद्र में निर्माण हुए । इन तूफानों से रायगढ एवं कोकण में फलों के बाग, घर आदि उद्ध्वस्त होने से वित्त हानि हुई । तूफान को समुद्र से मिली ऊर्जा १०० हायड्रोजन बम से भी अधिक होती है । छोटे घर, वृक्ष, बिजली एवं दूरभाष के खंबे आदि क्षतिग्रस्त होते हैं । छप्पर उड जाते हैं, दीवारें ढह जाती हैं, समुद्र का पानी खेतों में घुसने से भूमि बंजर हो जाती है । सहस्रों लोग बेघर हो जाते हैं । बिजली, पानी एवं संपर्क यंत्रणा धराशायी हो जाती है । नागरिकों का आरोग्य, उनके पुनर्वसन का प्रश्न निर्माण होता है । वर्ष २००४ में आई त्सुनामी तूफान से भी भारी हानि हुई थी । वर्ष २००८ में आए नर्गिस तूफान से म्यानमार में १ लाख से भी अधिक लोगों की मृत्यु हुई ।

 

५. सब कुछ मिट्टी के मोल करनेवाला भूकंप !

वर्ष २०१५ में नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप में ९ सहस्र से भी अधिक नागरिकों की मृत्यु हो गई, २३ सहस्र से भी अधिक घायल हुए थे । वर्ष १९९३ में महाराष्ट्र के किल्लारी के भूकंप में भारी जीवितहानि हुई थी । भारत एवं यूरेशियाई भागों में होनेवाली भूगर्भीय गतिविधियों के कारण इस क्षेत्र में भूकंप के क्षेत्र बढ गए हैं । पश्चिम क्षेत्र में ३० से भी अधिक जलाशय होने से भी भूकंप की संभावना है ।

 

६. प्राकृतिक आपदाओं से अपनी रक्षा होने हेतु भक्त बनें !

द्वापरयुग में श्रीकृष्ण के गोकुल में इंद्रदेव ने भारी वर्षा की, तब श्रीकृष्ण ने सभी गोप-गोपियों को गोवर्धन पर्वत के नीचे सुरक्षित रखा । उन्होंने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन को उठाया और सभी गोप-गोपियों ने अपनी-अपनी लाठियां लगाईं । ये गोप-गोपी कृष्णभक्त होने से श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा की । अभी के आपातकाल में भी यदि गोप-गोपियों समान हम सभी ने अपनी भक्ति बढाई, तो ईश्वर भक्तों की रक्षा अवश्य करेंगे !

प्राकृतिक संकटों के काल में पंचमहाभूतोें से प्रार्थना करना आवश्यक है । पंचमहाभूत भी ईश्वर का ही रूप होने से उन्हें प्रार्थना करने से मानव की रक्षा अवश्य हो सकती है । उसके लिए सभी को भक्ति बढाकर ईश्वर को आर्तता से पुकारना होगा । श्रीकृष्ण का वचन है, ‘न मे भक्तः प्रणश्यति’ अर्थात ‘मेरे भक्त का कभी नाश नहीं होगा !’ इस अनुसार आपातकाल में प्राकृतिक आपत्तियों के बढते प्रभाव को देखते हुए प्रत्येक को ईश्वर का भक्त बनने की आवश्यकता है !

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