श्रीरामरक्षास्तोत्र पठन की तुलना में श्रीराम के नामजप का परिणाम अधिक होना

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‘महर्षि अध्यात्म विश्ववविद्यालय’ने ‘यू.टी.एस्.
(यूनिवर्सल थर्मो स्कैनर)’ इस उपकरण द्वारा किया वैज्ञानिक परीक्षण

‘अपने यहां घर-घर में संध्या के समय भगवान के सामने दीप जलाने के उपरांत ‘शुभं करोति’ सहित श्रीरामरक्षास्तोत्र एवं श्री मारुतिस्तोत्र कहते हैं । रामरक्षा बुधकौशिकऋषिजी द्वारा रचित है । आत्मज्ञानसंपन्न ऋषि-मुनि एवं साधु-संतों को यह वाङ्मय परावाणी से स्फुरित होता है । इस अवस्था में उनका ईश्वर से पूर्ण अद्वैत होने एवं सब कुछ के कर्ता-धर्ता ईश्वर ही हैं, इस अनुभूति के कारण ‘रामरक्षा भगवान शिवजी ने स्वप्नावस्था में बताई थी’ ऐसा बुधकौशिकऋषिजी द्वारा लिखा गया है ।

‘ईश्वरप्राप्ति करने के लिए कर्मयोग, भक्तियोग, ध्यानयोग, ज्ञानयोग इत्यादि साधनामार्ग हैं । दैनंदिन प्रपंच में व्यग्र सर्वसामान्य सांसारिकों के लिए आचरण करने में सुलभता हो, शुचिर्भूतता, स्थलकाल आदि बंधनविरहित एवं भगवान से सतत अनुसंधान साध पाएं, अर्थात साधना अखंड शुरू रहे ऐसा एकमेव साधनामार्ग है नामयोग ।’ (संदर्भ : सनातनका ग्रंथ – ‘नामजपका महत्त्व एवं लाभ’)

 

१. परीक्षण का स्वरूप

इस परीक्षण में तीव्र आध्यात्मिक कष्टवाली साधिका एवं आध्यात्मिक कष्ट विरहित साधक को २८.३.२०१९ को श्रीरामरक्षास्तोत्र का पठन करने से पूर्व एवं पठन करने के उपरांत यू.टी.एस्.’ उपकरण द्वारा उनका परीक्षण किया गया ।

२८.३.२०१९ को दो साधकों के श्रीराम का नामजप करने से पूर्व एवं नामजप के उपरांत उनका ‘यू.टी.एस्.’ उपकरण द्वारा निरीक्षण किया गया । श्रीरामरक्षास्तोत्र का पठन करने के लिए दोनों साधकों को प्रत्येक १५ मिनट लगे । उन्होंने श्रीराम का २० मिनट नामजप किया ।

टिप्पणी – आध्यात्मिक कष्ट : आध्यात्मिक कष्ट होना, अर्थात व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन होना । व्यक्ति में नकारात्मक स्पंदन ५० प्रतिशत अथवा उससे भी अधिक मात्रा में होना, अर्थात तीव्र कष्ट, नकारात्मक स्पंदन ३० से ४९ प्रतिशत होना, अर्थात मध्यम कष्ट, तो ३० प्रतिशत से भी अल्प होना, अर्थात मंद आध्यात्मिक कष्ट होना । आध्यात्मिक कष्ट प्रारब्ध, पूर्वजों के कष्ट आदि आध्यात्मिक स्तर के कारणों से होते हैं । आध्यात्मिक कष्ट का निदान संत अथवा सूक्ष्म स्पंदन समझनेवाले साधक कर सकते हैं ।

पाठकों को सूचना : ‘यू.टी.एस्.’ उपकरण का परिचय’, ‘उपकरण द्वारा किए जानेवाले परीक्षण के घटक और उनका विवरण’, ‘घटक का प्रभामंडल नापना’, ‘परीक्षण की पद्धति’ एवं ‘परीक्षण में समानता आने के लिए ली गई दक्षता’ यह सदा के सूत्र सनातन संस्था की www.sanatan.org/hindi/universal-scanner लिंक पर दिए हैं । इस लिंक में कुछ अक्षर कैपिटल (Capital) हैं ।

 

२. निरीक्षणों का विवेचन

२ अ. नकारात्मक ऊर्जा के संदर्भ में किए गए निरीक्षणों का विवेचन

२ अ १. श्रीरामरक्षास्तोत्र के पठन के उपरांत तीव्र आध्यात्मिक कष्टवाली साधिका में ‘इन्फ्रारेड’ एवं ‘अल्ट्रावायोलेट’ नकारात्मक ऊर्जा पूर्णरूप से नष्ट होना

तीव्र आध्यात्मिक कष्टवाली साधिका में आरंभ में ‘इन्फ्रारेड’ एवं ‘अल्ट्रावायोलेट’ ये दोनों प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाएं थीं एवं उनका प्रभामंडल अनुक्रम से १.३४ मीटर एवं ०.९० मीटर था । श्रीरामरक्षास्तोत्र के पठन के पश्चात साधिका की दोनों नकारात्मक ऊर्जाएं पूर्णरूप से नष्ट हो गईं ।

२ अ २. श्रीराम का नामजप करने के उपरांत तीव्र आध्यात्मिक कष्टवाली साधिका में ‘इन्फ्रारेड’ एवं ‘अल्ट्रावायोलेट’ नकारात्मक ऊर्जा बहुत कम होना

तीव्र आध्यात्मिक कष्टवाली साधिका में आरंभ में ‘इन्फ्रारेड’ एवं ‘अल्ट्रावायोलेट’ ये दोनों प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा थी एवं उनका प्रभामंडल अनुक्रम से २.६६ मीटर एवं २.२० मीटर था । श्रीराम का नामजप करने के पश्चात साधिका में ‘इन्फ्रारेड’ नकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल १.८६ मीटर से घटकर ०.८० मीटर हो गया, अर्थात उसमें विद्यमान नकारात्मक ऊर्जा बहुत न्यून हो गई । इसके साथ ही साधिका की ‘अल्ट्रावायोलेट’ नकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल इतना न्यून हो गया कि वह नापा भी नहीं जा सकता था । उस समय साधिका के संदर्भ में ‘यू.टी. स्कैनर’ने १४० अंश का कोण बनाया । (‘यू.टी. स्कैनर’ने १८० अंश का कोण बनाता है, तब ही प्रभामंडल नाप सकते हैं ।)

२ अ ३. आध्यात्मिक कष्ट विरहित साधकों में नकारात्मक ऊर्जा नहीं पाई गई ।

२ आ. सकारात्मक ऊर्जा के संदर्भ में किए गए निरीक्षणों का विवेचन
सभी व्यक्ति, वास्तू अथवा वस्तु में सकारात्मक ऊर्जा होती ही है, ऐसा नहीं !

२ आ १. तीव्र आध्यात्मिक कष्टवाली साधिका को श्रीरामरक्षास्तोत्र का पठन, इसके साथ ही श्रीराम का नामजप करने के उपरांत उसमें सकारात्मक ऊर्जा निर्माण होना; परंतु श्रीरामरक्षास्तोत्र की तुलना में श्रीराम के नामजप से अधिक मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा निर्माण होना

तीव्र आध्यात्मिक कष्टवाली साधिका में आरंभ में सकारात्मक ऊर्जा नहीं थी । साधिका द्वारा श्रीरामरक्षास्तोत्र का पठन, साथ ही श्रीराम का नामजप करने के उपरांत उसमें सकारात्मक ऊर्जा निर्माण हो गई । उसका प्रभामंडल अनुक्रम से १.६१ मीटर एवं २.१६ मीटर था, अर्थात श्रीरामरक्षास्तोत्र के पठन की तुलना में श्रीराम का नामजप करनेपर उसमें अधिक प्रमाण में सकारात्मक ऊर्जा निर्माण हो गई ।

२ आ २. आध्यात्मिक कष्ट ‍विरहित साधकों द्वारा श्रीरामरक्षास्तोत्र का पठन अथवा श्रीराम का नामजप करने पर उनकी सकारात्मक ऊर्जा के प्रभामंडल में वृद्धि होना; परंतु यह वृद्धि श्रीरामरक्षास्तोत्र की तुलना में श्रीराम के नामजप से अधिक मात्रा में होना

आध्यात्मिक कष्ट विरहित साधकों में सकारात्मक ऊर्जा थी । साधक को श्रीरामरक्षास्तोत्र का पठन, इसके साथ ही श्रीराम का जप करने पर उसकी सकारात्मक ऊर्जा के प्रभामंडल में हुई वृद्धि आगे दी है ।

 

आध्यात्मिक कष्ट विरहित साधक की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभामंडल (मीटर)
स्तोत्रपठन एवं नामजप करने के पूर्व स्तोत्रपठन एवं नामजप करने के उपरांत सकारात्मक ऊर्जा के प्रभामंडल में हुई वृद्धि
१. श्रीरामरक्षास्तोत्र का पठन करना १.५४ ३.४० १.८६
२. श्रीरामका नामजप करना २.४४ ४.३८ १.९४

२ इ. कुल प्रभामंडल की (टिप्पणी) संदर्भ में किए निरीक्षणों का विवेचन

टिप्पणी – कुल प्रभामंडल : व्यक्ति के संदर्भ में उसकी लार, इसके साथ ही वस्तु के संदर्भ में उसपर विद्यमान धूल के कण अथवा उसका थोडा-सा भाग ‘नमूने’ के रूप में उपयोग कर उस व्यक्ति की अथवा वस्तु का ‘कुल प्रभामंडल’ नापते हैं ।

सामान्य व्यक्ति अथवा वस्तु का कुल प्रभामंडल सामान्यत: १ मीटर होता है ।

२ इ १. श्रीरामरक्षास्तोत्र का पठन, इसके साथ ही श्रीराम का नामजप करने पर तीव्र आध्यात्मिक कष्टवाली साधिका एवं आध्यात्मिक कष्ट विरहित साधक के कुल प्रभामंडल में वृद्धि होना

 

साधकों का कुल प्रभामंडल (मीटर)
श्रीरामरक्षास्तोत्र का पठन करने के उपरांत कुल प्रभामंडल में हुई वृद्धि श्रीराम का नामजप करने के उपरांत कुल प्रभामंडल में हुई वृद्धि
१. तीव्र आध्यात्मिक कष्टवाली साधिका ०.१७ ०.१२
२. आध्यात्मिक कष्ट विरहित साधक १.५० ३.१०

उपरोक्त सर्व सूत्रों के विषय में अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण ‘सूत्र ३’ में दिए हैं ।

३. निरीक्षणों का अध्यात्मशास्त्रीय विश्लेषण

३ अ. श्रीरामरक्षास्तोत्र का महत्त्व

‘अध्यात्मवाङ्मय में मंत्रयोग का अत्यधिक महत्त्व है । श्रीरामरक्षास्तोत्र मंत्र ही है । रामरक्षा के प्रारंभ में ‘अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमंत्रस्य’ ऐसे कहा गया है । मंत्र अर्थात इष्टसाधक एवं अनिष्टनिवारक वर्णसमूह । मंत्र अर्थात एक नाद (ध्वनि), एक अक्षर, एक शब्द अथवा शब्दों का समूह । जिस समय निर्धारित लय में एवं सुर में कोई मंत्र जपा जाता है, तब उस जप से एक विशिष्ट शक्ति निर्माण होती है । इसलिए रामरक्षा विशिष्ट लय में कहना आवश्यक है ।

‘स्तूयते अनेन इति’ अर्थात जिस योग से देवता का स्तवन किया जाता है वह स्तोत्र, ऐसी स्तोत्र शब्द की व्याख्या है । स्तोत्र में देवता की स्तुति के साथ ही स्तोत्रपठन करनेवाले के सर्व ओर सुरक्षा कवच निर्माण करने की शक्ति भी होती है । स्तोत्रों में दी गई फलश्रुति के पीछे रचयिता का संकल्प होने से उसे पठन करनेवाले को फलश्रुति के कारण फल मिलता है ।’ (संदर्भ : सनातनका लघुग्रंथ – ‘श्रीरामरक्षास्तोत्र’)

३ आ. श्रीराम का जप

‘कलियुग में नामजप ही सर्वोत्तम साधना है और नामजप को पर्याय नहीं’, ऐसा अनेक संतों ने कहा है । जप अर्थात कोई अक्षर, शब्द, मंत्र अथवा वाक्य पुनःपुन: कहते रहना ।

‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ में शब्दों का अर्थ आगे दिए अनुसार है ।

श्रीराम : यह श्रीराम का आवाहन है ।

जय राम : यह स्तुतिवाचक है ।

जय जय राम : यह ‘नमः’ समान शरणागति का दर्शक है ।’ (संदर्भ : सनातनका ग्रंथ – ‘श्रीराम’)

श्रीरामरक्षास्तोत्र के पठन के कारण विशिष्ट शक्ति (चैतन्य) निर्माण होती है और स्तोत्रपठन करनेवाले के सर्व ओर उससे सुरक्षाकवच निर्माण हो जाता है । श्रीराम का नामजप करने से नामजप करनेवाले को श्रीरामतत्त्व का लाभ होता है । परीक्षण के दोनों साधकों को श्रीरामरक्षास्तोत्र का पठन, इसके साथ ही श्रीराम का नामजप करने पर आध्यात्मिक स्तर पर लाभ हुआ । वह आगे दिया है ।

१. तीव्र आध्यात्मिक कष्टवाली साधिका : तीव्र आध्यात्मिक कष्टवाली साधिका में अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के कारण कष्टदायक शक्ति का स्थान होता है, इसके साथ ही उसके सर्व ओर कष्टदायक शक्तियों का आवरण भी होता है। शरीर की कष्टदायक शक्तियों के स्थान पर कष्टदायक शक्ति ‘अल्ट्रावायोलेट’ नकारात्मक ऊर्जा द्वारा दर्शाई जाती है और शरीर के सर्व ओर कष्टदायक शक्ति का आवरण ‘इन्फ्रारेड’ नामक नकारात्मक ऊर्जा से दर्शाया जाता है । श्रीरामरक्षास्तोत्र पठन, इसके साथ ही श्रीराम का जप करने के उपरांत तीव्र आध्यात्मिक कष्टवाली साधिका के शरीर की कष्टदायक शक्ति के स्थान की नकारात्मक ऊर्जा (‘अल्ट्रावायोलेट’ ऊर्जा) एवं साधिका के सर्व ओर की नकारात्मक ऊर्जा (‘इन्फ्रारेड’ ऊर्जा) पूर्णरूप से नष्ट हो गई अथवा काफी मात्रा में न्यून हो गई । इसके साथ ही उसमें सकारात्मक ऊर्जा निर्माण हो गई । तीव्र आध्यात्मिक कष्टवाली साधिका में सकारात्मक ऊर्जा निर्माण होना, यह भी विशेष बात है ।

२. आध्यात्मिक कष्ट विरहित साधक : आध्यात्मिक कष्ट विरहित साधकों के सर्व ओर नकारात्मक ऊर्जा नहीं थी । श्रीरामरक्षास्तोत्र पठन, इसके साथ ही श्रीराम का नामजप करने के उपरांत उसमें सकारात्मक ऊर्जा के प्रभामंडल में वृद्धि हुई ।

यह सर्व परिणाम श्रीरामरक्षास्तोत्र, इसके साथ ही श्रीराम के नामजप में सकारात्मक ऊर्जा के कारण हुआ । सकारात्मक ऊर्जा के कारण किसी के सर्व ओर कष्टदायक शक्ति का आवरण दूर होना सरल है; परंतु किसी में कष्टदायक शक्ति के स्थान की कष्टदायक शक्ति दूर होने के लिए काफी अधिक मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा आवश्यक होती है । श्रीरामरक्षास्तोत्र के केवल १५ मिनटों के पठन से, साथ ही श्रीराम के केवल २० मिनटों के जप से ये दोनों साध्य हुए ।

यहां विशेष ध्यान देनेवाली बात यह है कि परीक्षण के दोनों साधकों पर स्तोत्रपठन की तुलना में नामजप का परिणाम अधिक हुआ । इससे सतत नामजप करने का महत्त्व ध्यान में आता है ।’

– श्रीमती मधुरा धनंजय कर्वे, महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, गोवा. (३.४.२०१९)
ई-मेल : [email protected]

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