कलास्वतंत्रता के नाम पर देवी-देवताओं का अनादर करनेवाले धर्मविरोधी !

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कला वास्तव में क्या है ? कला ईश्वरीय गुण अथवा दैवीय देन है । वह एक साधना मार्ग है; परंतु आज परिस्थिति संपूर्णरूप से बदल गई है । आज जिसे देखो, वह हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं का मनमाना अनादर करता है और उसे नाम देता है ‘कला की स्वतंत्रता !’

 

१. चित्रकला के माध्यम से होनेवाला अनादर

इन धर्मविरोधियों में हिन्दूद्वेषी चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन का सर्वप्रथम नाम लेना होगा । हुसैन ने हिन्दुओं के एक-दो नहीं, अपितु अनेक देवी-देवताओं के नग्न एवं अश्लील चित्र बनाए हैं । इन चित्रों की बिक्री कर, करोडों रुपये कमाए । ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ को इसकी जानकारी मिलते ही उसने इस विषय में जगह-जगह आंदोलन किए । महाराष्ट्र, गोवा एवं कर्नाटक आदि राज्यों में १२५० से भी अधिक परिवाद प्रविष्ट किए । अनेक स्थानों पर हिन्दुओं ने हुसैन के विरोध में अभियोग चलाए । तब भी सरकार की ओर से हुसैन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई । इतना ही नहीं, अपितु हुसैन पर कानूनन कार्यवाही की अपेक्षा करनेवाले हिन्दुओं को ही समाचारपत्रों द्वारा ‘हिन्दू आतंकवादी’ संबोधित किया जा रहा है । भारत के अभियोगों में उपस्थित न रहना पडे और अगली कार्यवाही से बचने के लिए भाग खडे होनेवाले हुसैन के प्रति हमदर्दी जतानेवाले हिन्दूविरोधी समाचार पत्रों को बहुत कष्ट हुआ । ‘‘हुसैन को मातृभूमि से वंचित रहना पड रहा है’’, ऐसा हिन्दूविरोधी समाचार वे छापने लगे ।

इन विकट परिस्थितियों में जिसे हुसैन को हथकडियां-बेडियां डालकर कारावास में रखना चाहिए था, उस मुंबई के आरक्षक आयुक्त ने ही आरक्षक कल्याण निधि के लिए हुसैन के चित्रों की नीलामी आयोजित की । समिति ने यह नीलामी रद्द करने के लिए बाध्य किया । तदुपरांत भी हुसैन की वाह-वाह रुकी नहीं । ‘ए.बी.एन्. एम्रो’ इस विदेशी बैंक ने हुसैन का चित्रयुक्त ‘क्रेडिट कार्ड’ का वितरण करना तय किया । इसके विरोध में भी समिति ने आंदोलन कर बैंक को यह ‘कार्ड’ रहित करने के लिए बाध्य किया और उनसे लिखितस्वरूप में क्षमा भी ली ।

 

२. नाटकों के माध्यम से होनेवाला अनादर

हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं का अनादर करने में वर्तमान के नाटककारों का भी बहुत बडा हाथ है । मच्छिंद्र कांबळी के ‘वस्त्रहरण’, संतोष पवार का ‘यदाकदाचित’, ऋषिकेश घोसाळकर का ‘देव करी लव’, ये नाटक कुछ प्रातिनिधिक उदाहरण हैं । इन नाटकों में हिन्दुओं के लिए परम वंदनीय देवी-देवताओं को हास्यास्पद स्वरूप में दिखाया है । उनके मुख से अश्लील संवाद कहलवाए जाते हैं । वस्त्रहरण में ‘तुका का अड्डा’ अर्थात ‘दारू का अड्डा’ संबोधित किया गया है, तो ‘देव करी लव’ (नया नाम – हरि आया द्वारा पर) नाटक में श्री विठ्ठल-रुक्मिणी का अनादर किया है । जिन देवताओं की श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना कर, हम उनसे संकट में अपनी रक्षा करने की विनती करते हैं, उन्हीं देवताओं का नाटकों द्वारा उपहास और अनादर होते देखकर भी विरोध करने के स्थान पर हंसते हैं । यह बुरा तो है ही, उसके साथ ऐसा अनादर करनेवाले नाटककारों के पापकर्म में भी हम सहभागी हो रहे हैं । इसका समय पर ही तीव्र विरोध न करने से देवी-देवताओं को ऐसे विनोदी स्वरूप में देखने से हमारी अगली पीढी के मन में भी देवी-देवताओं के विषय में श्रद्धा निर्माण होना तो दूर ही रहा, वे देवी-देवताओं का पूजन करना भी नकारेंगे । इतना ही नहीं, मंदिरों में जाना भी बंद कर देंगे ।

यदि हम निश्चित कर लें, तो ऐसी संस्कृति नष्ट करनेवाले नाटक बंद करना सहज संभव है । हम मन से निश्चय करेंगे कि हमारे धर्म का, देवी-देवताओं का अथवा धर्मग्रंथों का अनादर करनेवाला कोई भी नाटक एवं फिल्म नहीं देखेंगे । इसके साथ ही अन्यों को भी उसे देखने से मना करेंगे । परिणामस्वरूप, इसप्रकार के नाटक एवं फिल्म बनाने का कोई भी साहस नहीं करेगा ।

 

३. विज्ञापन एवं उत्पादन के माध्यम से होनेवाला अनादर

नाटक एवं चित्रकला समान विविध उत्पादन एवं उनके विज्ञापनों के लिए भी हिन्दू देवी-देवताओं का भारी मात्रा में उपयोग किया जाता है । निजी (प्राईवेट) उत्पादकों समान ही अब सरकारी विज्ञापनों द्वारा भी देवी-देवताओं का अनादर किया जाता है । चुनाव आयोग के श्री गणेश एवं मूषक का उपयोग मतदार पहचानपत्रों की प्रसिद्धी के लिए भी विज्ञापन, एड्स जनजागृति मोहिम के हस्तपत्रक पर भगवान शिव-पार्वती का चित्र, इसके साथ ही व्यसनमुक्ति की मोहिम पर धूम्रपान के दुष्परिणाम बताने के लिए बह्मचारी साधु को नपुंसक दिखानेवाले विज्ञापन भी इसके कुछ चुनिंदा उदाहरण हैं । इस प्रकार अन्य धर्मियों के श्रद्धास्थानों को लेकर कोई भी विज्ञापन करने का दुस्साहस नहीं करते ।

अ. यही प्रकार हिन्दू देवी-देवताओं के चित्रयुक्त पटाखों के संदर्भ में !

‘शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध एवं शक्ति एकत्र होती है’, इस अध्यात्मशास्त्रीय सिद्धांत के अनुसार देवता का चित्र (रूप) अर्थात प्रत्यक्ष देवता ही है । इसलिए पटाखों पर किसी देवता का चित्र होना अर्थात प्रत्यक्ष में उस देवता का भी वहां अधिष्ठित होना । ऐसे पटाखे जलाने से उस देवता के चित्र की चिथडे हो जाते हैं । फिर पटाखों पर विद्यमान देवताओं के चित्र पैरों तले आते हैं या फिर वे कूडेदान में चले जाते हैं । इससे धर्महानि होती है ।

इस संदर्भ में जनजागृति हो और सरकार द्वारा भी कार्यवाही हो; इसलिए महाराष्ट्र के आरक्षक महासंचालक को हमने पत्र भेजा, ‘हिन्दू देवी-देवताओं के चित्रयुक्त पटाखे जलाने से देवी-देवताओं का अनादर होता है, इसलिए ऐसे पटाखों पर प्रतिबंध लगाएं ।’ इस पर आरक्षक महासंचालक के कार्यालय से सरकारी ढंग से उत्तर आया । ‘जो पटाखे बनाते हैं और जो जलाते हैं, उनका धर्म का अनादर करने का कोई उद्देश्य नहीं होता । जहां उद्देश्य नहीं, तो वहां अपराध कैसे होगा ? इसलिए ऐसे पटाखों पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते ।’ यही पत्र अन्य धर्मियों ने भेजा होता, तो आरक्षक महासंचालक न क्या ऐसा उत्तर दिया होता ? यह यदि अन्य धर्मियों के बारे में होता, तो शासन ने ही सर्वप्रथम उस पर प्रतिबंध लगा दिया होता ।

इसका उत्तम उदाहरण है केरल में सनातन संस्था की बहियों पर महाराष्ट्र भूषण छत्रपति शिवाजी महाराज का चित्र छापकर उसके नीचे ‘पांच मुसलमान पातशाहियों द्वारा हिन्दुओं पर राज्य किया जा रहा था । इससे हिन्दू धर्म संकट में था !’’, यह सत्य इतिहास लिखने से केवल एक मुसलमान ने धार्मिक भावना आहत करने की बात कहते ही केरल के हिन्दूविरोधी साम्यवादी सरकार ने उन बहियों पर प्रतिबंध लगाकर उन्हें जप्त कर लिया । इतना ही नहीं, अपितु इन बहियों को नि:शुल्क वितरण करनेवाले श्री. सुरेश भट नामक हिन्दू धर्माभिमानी को बंदी बनाकर आरक्षक कोठरी (पुलिस कस्टडी) में रखा । देखिए, सरकार अन्य धर्मियों की धार्मिक भावनाओं के विषय में कितनी जागृत है !

सरकार ऐसे ही अन्य धर्मियों के विषय में यह जागरूकता नहीं दिखाती । इसके पीछे ठोस कारण यह है कि अन्य धर्मीय स्वयं अपने धर्म के प्रति अत्यंत जागरूक और संवेदनशील हैं । इसलिए सरकार को भी तुरंत कार्यवाही करनी पडती है । इस तुलना में हिन्दू देवी-देवताओं के अनादर के विरोध में होनेवाले आंदोलनों में कितने हिन्दू सम्मिलित होते हैं ? यह मात्रा अत्यंत अल्प है । जैसे कि हमने देखा ही है डेन्मार्क के व्यंगचित्र के उपरांत इस्लामधर्मियों के श्रद्धास्थानों का अनादर करनेवाला एक भी चित्र नहीं निकला; परंतु हिन्दू देवी-देवताओं का अनादर करनेवाले चित्र आए दिन आते ही रहते हैं । बाजार में लाखों रुपयों में उनकी बिक्री भी हो रही है । आज भी बाजार में ‘तुलसी जर्दा’ के नाम से पैकट के वेष्टन पर संत तुलसीदासजी के चित्रवाली तंबाखू खुले आम बिक रही है । इमारत के कोनों में लोग थूके नहीं; इसलिए देवी-देवताओं के चित्रयुक्त ‘टाइल्स’ लगाए जाते हैं । इसके साथ ही बहुरूपिए देवी-देवताओं की वेशभूषा बनाकर, भीख मांगते हुए दिखाई देते हैं ।

 

४. इसके लिए आप क्या कर सकते हैं ?

देवी-देवताओं का अनादर रोकना अर्थात धर्मपालन !

धर्म के प्रति अपना कर्तव्य निभाना जैसे धर्मपालन है, वैसे ही देवी-देवताओं एवं धर्म का अनादर रोकना भी धर्मपालन ही है । हम यदि धर्म की रक्षा करेंगे, तो धर्म (ईश्वर) भी हमारी रक्षा करेगा ।

१. उत्पादों के वेष्टनों पर देवी-देवता एवं संतों के चित्र (उदा. उदबत्ती का खोका), इसके साथ ही ऐसे चित्रयुक्त विवाहपत्रिका, दिनदर्शिका इत्यादि वस्तुएं संभवत: बाद में कूडेदान में अथवा अन्यत्र फेंक दी जाती हैं । इससे उनमें विद्यमान देवत्व का अनादर होकर पाप लगता है । इसलिए देवी-देवताओं से प्रार्थना कर, ऐसे उत्पाद अग्नि में समर्पित करें !

२. देवी-देवता एवं राष्ट्रपुरुष के चित्र एवं नामयुक्त पटाखे न जलाएं !

३. देवी-देवताओं के चित्रयुक्त कपडों का उपयोग न करें !

४. ऐसे उत्पादों के उत्पादक एवं विक्रेताओं का प्रबोधन करें !

५. ऐसे उत्पादों का बहिष्कार कर, पर्यायी उत्पादों का उपयोग करें !

६. देवताओं का अनादर करनेवाले विज्ञापनयुक्त उत्पाद, नाटक, चलचित्र (फिल्म) आदि पर बहिष्कार करें !

७. देवी-देवताओं का अनादर करनेवालों पर धार्मिक भावनाएं आहत करने के प्रकरण में अपराध दर्ज कर सकते हैं ।

८. देवताओं की वेशभूषा कर, भीख मांगनेवालों को रोकें !

९. देवता, संत एवं राष्ट्रपुरुष के विषय में अनुद्गार निकालनेवालों का वैध मार्ग से प्रतिबंध करें !

१०. देवी-देवता एवं संतों के चित्रों का अनादर रोकने के विषय में अन्यों को भी बताकर अपना धर्मकर्तव्य निभाएं !

११. ‘सनातन संस्था’ इस संदर्भ में कानूनी मार्ग से लडती है; आप भी इस कार्य में सहभागी हों !

 

५. देवी-देवताओं के अनादर का निषेध संयत मार्ग (कानून को हाथ में न लेते हुए) से करें !

निषेध करने के पीछे मुख्य उद्देश्य है उनका वैचारिक परिवर्तन करना । इसलिए किसी का भी निषेध करते समय तात्त्विक सूत्रों के आधार पर वैचारिक स्तर पर करें ! गलती करनेवाले व्यक्ति को उसकी चूक बताकर उसे योग्य मार्ग पर लाना, यह व्यापक दृष्टिकोण निषेध व्यक्त करने के पीछे होना चाहिए !

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