महत्त्वपूर्ण औषधीय वनस्पतियों का घरेलु स्तर पर रोपण कैसे करें ? भाग – ४

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औषधीय वनस्पतियों की संख्या अगणित है । ऐसे समय पर कौन-सी वनस्पति लगाएं ? ऐसा प्रश्न निर्माण हो सकता है । प्रस्तुत लेख में कुछ महत्त्वपूर्ण औषधि वनस्पतियों का घरेलु स्तर पर रोपण कैसे करें ?, इस विषय में जानकारी दी है । ये वनस्पतियां रोपण करने के लगभग ३ महिने पश्चात औषधियों के रूप में उपयोग में लाई जा सकती हैं । आजकल आपातकाल में ध्यान में रखकर वृक्षवर्गीय वनस्पतियों के रोपण की अपेक्षा यदि ऐसी वनस्पतियों को प्रधानता दी जाए, तो हमें इन वनस्पतियों का तुरंत उपयोग हो सकता है । औषधि वनस्पतियों के पौधे सहजता से सर्वत्र उपलब्ध नहीं होते । इस समस्या पर उपाययोजना भी इस लेख से मिलेगी । पाठक इस लेख में दी गई वनस्पतियों के अतिरिक्त अन्य वनस्पतियां भी लगा सकते हैं ।

भाग ३ पढने के लिए यहां क्लिक करें – महत्त्वपूर्ण औषधि वनस्पतियों का घरेलु स्तर पर रोपण कैसे करें ? भाग – ३

 

१७. ब्राह्मी

जलब्राह्मी

मंडूकपर्णी

१७ अ. महत्त्व

यह स्मृतिवर्धक के रूप में प्रसिद्ध हैं । शांत नींद लगने के लिए, इसके साथ ही केश के आरोग्य के लिए उपयुक्त है । यह रक्तदाब नियंत्रण में रखने के लिए सहायक है । इसे घर के आसपास अधिक मात्रा में लगाना चाहिए ।

१७ आ. प्रकार एवं रोपण

इसके २ प्रकार होते हैं, जलब्राह्मी एवं मंडूकपर्णी । दोनों प्रकारों के गुणधर्म समान हैं । कोकण के नारियल-सुपारी के बागों में मंडूकपर्णी उगती है । अनेक लोग अपने घर के सर्व ओर ‘लॉन’के स्थान पर मंडूकपर्णी का रोपण करते हैं । यह वनस्पति भूमि पर फैलती जाती है । किसी के पास हो, तो उसके ५ – ६ पौधे लाकर लगाने से कुछ ही दिनों में वह काफी फैल जाती है । इसके पौधे रोपवाटिका में मिल सकते हैं । ये धान (चावल) की खेती में प्राकृतिकरूप से उगनेवाली खरपतवार होने से वहां यह वनस्पति निश्चित ही पाई जाती है । यह मवेशियों का प्रिय खाद्य होने से यह वनस्पति अधिक समय तक खेतों में नहीं टिकती; परंतु जहां लाजवंती जैसी कंटीली वनस्पतियां होती हैं, ऐसे स्थानों पर मवेशी अपना मुंह नहीं डालते, ऐसे धान के खेतों में ब्राह्मी के रोप मिल सकते हैं । इन पौधों का रोपण किसी गमले में कर सकते हैं । इसकी जड के टुकडे से भी ब्राह्मी का रोपण होता है । ब्राह्मी के रोपण के लिए पानी की उपलब्धता सदैव रहे, ऐसा स्थान चुनें ।

 

१८. वेखंड

वेखंड

१८ अ. महत्त्व

ये औषधि दैनिक जीवन में नियमित नहीं लगती, तब भी एक-आध पौधा घर पर होना चाहिए । यह ‘संज्ञास्थापन’ अर्थात ‘अचेत पडे हुए व्यक्ति की मूर्छा दूर करनेवाली’ औषधि है ।

१८ आ. रोपण

इसे भरपूर पानी लगता है । यदि दलदल हो, तो वेखंड अच्छा होता है । किसी के पास वेखंड के पौधे हों, तो उसका कंद काटकर लगा सकते हैं । कुछ रोपवाटिकाओं में इसके पौधे भी मिलते हैं ।

 

१९. शतावरी

शतावरी के पत्ते एवं शतावरी की जडें

१९ अ. महत्त्व

शतावरी एक उत्तम शक्तिवर्धक औषधि है । घरेलु स्तर पर शतावरी के २ से ४ पौधे लगाना पर्याप्त है । शतावरी की जडों से ताजा रस औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है ।

१९ आ. पहचान

कोकण में वर्षा ऋतु में आम-काजू के बागों में अथवा बंजर भूमि पर भी यह वनस्पति अपनेआप उगती है । इसके पत्ते विशेष होते हैं । इसकी बेल के मूल को खोदने पर एक तने पर ५० से १०० जडें होती हैं । १ जड लगानेपर उससे १०० जडें हो जाती हैं । संभवत: इसलिए उसका नाम शतावरी पडा होगा ।

१९ इ. रोपण

वर्षाकाल समाप्त होने पर उसमें छोटे-छोटे फल आते हैं । इन फलों के बीजों से शतावरी के पौधे बनाने से रोपण अच्छा होता है । इसकी जडों के गुच्छे से एक-एक जड अलग निकालकर लगाने से भी पौधे तैयार हो जाते हैं । लगभग डेढ वर्ष में एक जड से अनेक जडें तैयार हो जाती हैं । उनका रोपण घरेलु स्तर पर करें । महाराष्ट्र में अनेक किसान व्यावसायिक स्तर पर शतावरी का रोपण करते हैं । यदि उनसे शतावरी की जडों का एक-आध गुच्छा लाएं, तो उसमें जितनी जडें होंगी, उतने (लगभग ५० से १००) पौधे बन सकते हैं । सांगली, सोलापुर, सातारा एवं पुणे इस भाग में अनेक किसान शतावरी की व्यावसायिक स्तर पर खेती करते हैं । शतावरी के दो प्रकार होते हैं – सफेद और पीली ! दोनों प्रकार की शतावरी का उपयोग औषधियों में होता है ।

१९ इ १. भारी मात्रा में रोपण करना हो, तो शतावरी छीलने की व्यवस्था करना आवश्यक

व्यावसायिक स्तर पर शतावरी का रोपण करना हो, तो शतावरी छीलने का यंत्र होना अत्यंत आवश्यक है; क्योंकि शतावरी हाथों से छीलने में बहुत श्रम के साथ-साथ, समय भी अधिक लगता है । शतावरी के ऊपरी छिलके को हटाए बिना वह सूखती नहीं और यदि ऐसे ही रख दी जाए तो उसे फफूंद लगकर वह सड जाती है । इसलिए घर में यदि शतावरी छीलने का यंत्र न हो, तो व्यावसायिक स्तर पर रोपण न करें ।

 

२०. हलदी

हलदी के पत्ते

२० अ. महत्त्व

‘प्रतिदिन रात में सोते समय १ चम्मच पिसी हलदी रक्त शुद्ध करनेवाली और त्वचा पर कांति लानेवाली औषधि है । उसके पत्ते सुगंधित होते हैं । दूध गरम करते समय अथवा मक्खन निकालते समय उसमें एक-आध हलदी का पत्ता डालने पर दूध एवं घी को अच्छी सुगंध आती है ।

२० आ. रोपण

बाजार में हलदी मिलती है, तब भी कुछ मात्रा में हलदी का रोपण हमें घर में भी करना चाहिए; क्योंकि बाजार में जो हलदी मिलती है, उसे बनाते समय वह पानी में पकाई जाती है । इससे उसका औषधीय गुण कम हो जाता है । हलदी की गाठें (रोपण के लिए कंद) हलदी का रोपण करनेवाले किसानों के पास अथवा स्थानीय कृषि कार्यालयों में मिलती हैं ।

हलदी का रोपण वर्षाकाल के आरंभ में करते हैं । सामान्यत: ९ महीनों के उपरांत कंद तैयार हो जाते हैं । हलदी के पत्ते सूखना आरंभ होते ही ऐसा समझा जाता है कि अब हलदी तैयार हो चुकी है । परिवार में ४ जनों के लिए केवल औषधि के लिए यदि रोपण करना हो, तो आधा किलो हलदी की गाठें पर्याप्त हैं । घर के आसपास जगह न हो, तो एक-आध हलदी का पौधा गमले में लगाएं । इससे पत्तों के लिए उन रोपों का उपयोग होगा ।

 

२१. नीम

नीम के पत्ते

२१ अ. महत्त्व

नीम की टहनियों का (टहनी के कोमल सिरों का) उपयोग आमतौर पर प्रतिदिन दांत साफ करने के लिए एवं दांतों का आरोग्य बनाए रखने के लिए किया जाता है । नीम रक्त शुद्ध करने और त्वचा विकारों में अत्यंत उपयुक्त है ।

२१ आ. रोपण

देशभर में नीम भारी मात्रा में पाया जाता है । इसलिए इसका रोपण करने की आवश्यकता नहीं होती; परंतु अपने आसपास के परिसर में यदि नीम का पेड न हो, तो एक-आध पौधा अवश्य लगाएं । नीम के रोप, रोपवाटिका में मिलते हैं । बीजों से पौधे बनाए जाते हैं ।

संकलक

श्री. माधव रामचंद्र पराडकर तथा वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

मार्गदर्शक

डॉ. दिगंबर नभु मोकाट, साहाय्यक प्राध्यापक, वनस्पतीशास्त्र विभाग, सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ, पुणे तथा प्रमुख निर्देशक, क्षेत्रीय सहसुविधा केंद्र, पश्चिम विभाग, राष्ट्रीय औषधी वनस्पती मंडळ, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार.

भाग ५ वाचा… महत्त्वाच्या औषधी वनस्पतींची घरगुती स्तरावर लागवड कशी करावी ? भाग – ५

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘जागेच्या उपलब्धतेनुसार औषधी वनस्पतींची लागवड’, ‘११६ वनस्पतींचे औषधी गुणधर्म’ आणि ‘९५ वनस्पतींचे औषधी गुणधर्म’

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