महत्त्वपूर्ण औषधि वनस्पतियों का घरेलु स्तर पर रोपण कैसे करें ? भाग – ३

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औषधि वनस्पतियों की संख्या अगणित है । ऐसे समय पर कौन-सी वनस्पतियां लगाएं ? ऐसा प्रश्न निर्माण हो सकता है । प्रस्तुत लेख में कुछ महत्त्वपूर्ण औषधीय वनस्पतियों का घरेलु स्तर पर रोपण कैसे करें ?, इस विषय में जानकारी दी है । इन वनस्पतियों के रोपण के लगभग ३ महिने पश्चात ये औषधियों के रूप में उपयोग में लाई जा सकती हैं । आजकल आपातकाल में ध्यान में रखकर वृक्षवर्गीय वनस्पतियों के रोपण की अपेक्षा यदि ऐसी वनस्पतियों को प्रधानता दी जाए, तो हमें इन वनस्पतियों का तुरंत उपयोग हो सकता है । औषधि वनस्पतियों के पौधे सहजता से सर्वत्र उपलब्ध नहीं होते । इस समस्या पर उपाययोजना भी इस लेख से मिलेगी । पाठक इस लेख में दी गई वनस्पतियों के अतिरिक्त अन्य वनस्पतियां भी लगा सकते हैं ।

भाग २ पढें… महत्त्वपूर्ण औषधि वनस्पतियों का घरेलु स्तर पर रोपण कैसे करें ? भाग – २

 

१३. पर्णबीज

पर्णबीज

१३ अ. महत्त्व

मूत्रमार्ग की पथरी पर यह उत्तम औषधि है । ४ जनों के परिवार के लिए एक-आध पौधा होना चाहिए ।

१३ आ. रोपण

इसके पत्ते मिट्टी में सीधे (खडे) एक चतुर्थांश से लेकर आधा गाड दें । इससे उन पत्तों को नए पौधे आते हैं, इसलिए इसे पर्णबीज कहते हैं । यह पौधा अनेक लोगों के पास होता है अथवा इसके पौधे रोपवाटिका से खरीद सकते हैं ।

 

१४. माका

माका

१४ अ. महत्त्व

पेट के विकार, खांसी, दमा, इसके साथ ही केश के विकारों के लिए यह बहुत गुणकारी औषधि है । महालय पक्ष में माका लगता है । इसलिए अनेक लोग अपने घरों में इसका रोपण करते हैं । ४ जनों के कुटुंब के लिए ८ से १० पौधे होने चाहिए ।

१४ आ. रोपण

वर्षाकाल में माका के रोप अपनेआप उगते हैं । रास्ते के किनारे, कुछ स्थानों पर (यहां तक की शहरों में भी) नालों के के किनारे भी माका के रोप मिलते हैं । ये धान (चावल) की खेती में भारी मात्रा में पाई जानेवाली खरपतवार है । वर्षाकाल के उपरांत पानी न मिलने से ये पौधे मर जाते हैं । इसलिए जब ये मिलें, तब उसे लाकर अपने यहां इसका रोपण करें । वर्षाकाल के उपरांत नियमित पानी दें ।

 

१५. गुडहल

केश के आरोग्य के लिए गुडहल का उपयोग होता है । टहनी लगाने से पौधे होते हैं । देसी जास्वंद लगाएं । ४ जनों के परिवार के लिए १ पौधा पर्याप्त है ।

 

१६. पुनर्नवा

पुनर्नवा

१६ अ. महत्त्व

मूत्रपिंड अकार्यक्षम हो रहे हों, तो उसके लिए यह औषधि संजीवनी है । यह पथरी, बद्धकोष्ठता, सूजन पर अत्यंत गुणकारी है । कहते हैं कि देसी घी का बघार देकर बनाई गई पुनर्नवा के कोमल पत्तों की सब्जी वर्ष में एक बार अवश्य खानी चाहिए । इससे पेट के विषैले घटकों को शरीर से बाहर निकलने में सहायता होती है । यदि घर के आसपास जगह हो, तो इसका अधिकाधिक रोपण करें ।

१६ आ. पहचान एवं रोपण

वर्षाकाल में ये पौधे अपनेआप उग आते हैं । शहर में भी यह वनस्पति नालों के अथवा रास्ते के किनारे पाई जाती है । इसकी जडें लाल होती हैं । पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं । यह वनस्पति फैलनेवाली है । इसे गुलाबी रंग के फूल आते हैं । वर्षाकाल के उपरांत पानी न मिलने से ये पौधे मर जाते हैं; परंतु जडें जीवित रहती हैं । पुन: वर्षाकाल में पानी मिलने पर ये पौधे पुन: तरोताजा हो जाते हैं । इसलिए इसे ‘पुनर्नवा’ कहते हैं । इसके केवल २ से ४ रोप लगाने से, वर्षभर में वह १० से १२ वर्गमीटर के परिसर में फैल जाता है । इस वनस्पति की जडें बहुत गहरी होती हैं । इसलिए यह वनस्पति मिलने पर उसे खींचकर नहीं, अपितु खोदकर निकालें और उसका रोपण करें ।

संकलक

श्री. माधव रामचंद्र पराडकर एवं वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

मार्गदर्शक

डॉ. दिगंबर नभु मोकाट, साहाय्यक प्राध्यापक, वनस्पतीशास्त्र विभाग, सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ, पुणे तथा प्रमुख निर्देशक, क्षेत्रीय सहसुविधा केंद्र, पश्चिम विभाग, राष्ट्रीय औषधी वनस्पती मंडळ, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार.

भाग ४ पढें…  महत्त्वपूर्ण औषधीय वनस्पतियों का घरेलु स्तर पर रोपण कैसे करें ? भाग – ४

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘जागेच्या उपलब्धतेनुसार औषधी वनस्पतींची लागवड’, ‘११६ वनस्पतींचे औषधी गुणधर्म’ आणि ‘९५ वनस्पतींचे औषधी गुणधर्म’

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