महाज्ञानी महर्षि पिप्पलाद

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महर्षि पिप्पलाद

 

१. त्रेतायुग में अनावृष्टि के कारण भयानक सूखा पडने पर
दधीचि ऋषि को अपने परिवार का उदरनिर्वाह करना कठिन होना,
उन्होंने अपने एक बेटे को मार्ग में ही छोड देना, जिसका
उदरनिर्वाह पीपल के फल खाकर होने से पिप्पलाद नाम रखा जाना

भविष्यपुराण में वर्णन है कि एक बार त्रेतायुग में अनावृष्टि के कारण भयानक सूखा पडा । उस घोर परिस्थिति में  दधीचि ऋषि अपनी पत्नी-बच्चों सहित अपना निवासस्थान छोडकर दूसरे प्रदेश में निवास करने के लिए बाहर निकले । अपने परिवार का उदरनिर्वाह करना कठिन होने से अत्यंत भारी मन से उन्होंने अपने एक बेटे को मार्ग में ही छोड दिया । वह बालक भूख-प्यास से व्याकुल होकर रोने लगा । एकाएक उसे एक पीपल का वृक्ष दिखाई दिया । वह बालक पीपल के फल खाकर और निकट ही एक कुंए का पानी पीकर जीने लगा । इसलिए उसका नाम पिप्पलाद रखा गया ।

 

२. देवर्षि नारद का पिप्पलाद को मंत्रदीक्षा देना

उस बालक ने वहां घोर तपस्या आरंभ की । एक बार वहां देवर्षि नारद आएं । पिप्पलाद ने उन्हें प्रणाम कर आदरपूर्वक बिठाया । दयालु नारद छोटी आयु में ही उसकी नम्रता और तपस्या देखकर प्रसन्न हो गएं । उन्होंने उस बालक का उपनयनादि सर्व संस्कार कर, उसे वेद सिखाएं । इसके साथ ही उसे १२ अक्षरी मंत्र ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।’ की दीक्षा दी ।

 

३. पिप्पलाद के तप से भगवान द्वारा उसे दर्शन देकर ज्ञान एवं योग का
उपदेश देना और भगवान के उपदेश से पिप्पलाद का आगे महाज्ञानी महर्षि बनना

तदुपरांत पिप्पलाद प्रतिदिन भगवान का ध्यान एवं गुरुमंत्र का जप करने लगा । कुछ ही समय में उस बालक के तप से संतुष्ट होकर भगवान श्रीविष्णु वहां प्रगट हो गएं । अपने सद्गुरु देवर्षि नारद के श्रीमुख से सुने वचनों के आधार पर उस बालक ने श्रीविष्णु को पहचान लिया । भगवान ने प्रसन्न होकर उसे ज्ञान एवं योग का उपदेश दिया और भक्ति का आशीर्वाद देकर वह अंतर्धान हो गया । भगवान के उपदेश के कारण वह बालक आगे महाज्ञानी महर्षि हो गया ।

 

४. महर्षि पिप्पलाद ने स्वयं को होनेवाले कष्ट का कारण पूछने
पर देवर्षि नारद ने उन्हें उसका कारण शनि ग्रह पीडा बताना

एक दिन महर्षि पिप्पलाद ने नारद से पूछा, महाराज, कौनसे कर्म के कारण मुझे इतनी छोटी आयु से ही इतना कष्ट भुगतना पडा ? मेरे माता-पिता कहां हैं ?

नारद बोले, ‘‘हे पिप्पलाद, शनैश्वर (शनि) ग्रह के कारण तुम्हें कष्ट हुआ । इसी कारण तुम्हारा अपने माता-पिता से वियोग हुआ । आज संपूर्ण देश उनके मंद गति के चलने से पीडित है । वह देखो, वह अभिमानी शनैश्वर ग्रह, आकाश में दिखाई दे रहा है ।

 

५. महर्षि पिप्पलाद ने क्रोध में आकर शनि ग्रह को नीचे गिराना,
और जो शनिवार को महर्षि पिप्पलाद का पूजन करेगा उसे शनि की पीडा
सहन नहीं करनी होगी ऐसा वरदान ब्रह्मदेव ने महर्षि पिप्पलाद को देना

यह सुनकर महर्षि पिप्पलाद को अत्यंत क्रोध आया । उन्होंने शनि ग्रह को ग्रहमंडल से नीचे गिरा दिया । यह अद्भुत दृश्य देखकर वहां सभी देवी-देवता उपस्थित हो गए । उन्होंने महर्षि का क्रोध शांत किया । भगवान ब्रह्मदेव ने महर्षि पिप्पलाद को वरदान देते हुए कहा, जो कोई शनिवार को तुम्हारा भक्तिभाव से पूजन करेगा, उसे ७ जन्मों तक शनि की पीडा सहन नहीं करनी होगी और वह तो पुत्र-पौत्रों से लाभान्वित होगा ।

 

६. शनि को ग्रह के रूप में पुनर्प्रतिष्ठित करना

तब महर्षि पिप्पलाद ने शनि को ग्रह के रूप में पुनर्प्रतिष्ठित किया और उसे भी सीमा डाल दी कि १६ वर्ष की आयु तक बच्चों को वे कष्ट नहीं देंगें ।

संदर्भ : मासिक ऋषिप्रसाद (मई २००७)

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