आपातकाल की तैयारी स्‍वरूप वर्षा ऋतु में प्राकृतिक रूप से उगी हुई औषधीय वनस्‍पतियां संग्रहित करें ! (भाग १)

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वैद्य मेघराज पराडकर

भावी भीषण विश्‍वयुद्ध के काल में डॉक्‍टर, वैद्य, बाजार में औषधियां आदि उपलब्‍ध नहीं होंगी । ऐसे समय हमें आयुर्वेद का ही आधार रहेगा । क्रमशः प्रकाशित होनेवाले लेख के इस भाग में ‘प्राकृतिक वनस्‍पतियों का संग्रह कैसे करना चाहिए’, इससे संबंधित जानकारी समझकर लेंगें । शीघ्र ही इस विषय पर सनातन का ग्रंथ प्रकाशित होनेवाला है । इस ग्रंथ में औषधीय वनस्‍पतियां एकत्रित कर संग्रहित करने से विस्‍तृत रूप में संबंधित व्‍यवहारिक (प्रत्‍यक्ष करने योग्‍य कृत्‍यों की) जानकारी दी जाएगी ।

 

 

१. वर्षा के उपरांत कुछ औषधीय वनस्‍पतियां सूख जाती हैं, इसलिए उन्‍हें अभी से एकत्रित कर रखें !

‘प्रतिवर्ष वरुणदेवता की कृपा से वर्षा ऋतु में प्राकृतिक रूप से असंख्‍य औषधीय वनस्‍पतियां उगती हैं । इनमें से कुछ वनस्‍पतियां वर्षा ऋतु समाप्‍त होने पर साधारणतः १ – २ महीने में सूख जाती हैं । उसके पश्‍चात पुनः वर्षा ऋतु आने तक ये वनस्‍पतियां नहीं मिलतीं । इसलिए ऐसी वनस्‍पतियां अभी से एकत्रित कर रखनी चाहिए ।

 

२. औषधीय वनस्‍पतियां एकत्रित कर रखने के लाभ

इस लेख में दी हुई औषधीय वनस्‍पतियों में से कुछ वनस्‍पतियां आयुर्वेदिक औषधियों की दुकानों में भी मिलती हैं; परंतु ऐसी वनस्‍पतियां खरीदने की अपेक्षा प्रकृति से एकत्रित करना अधिक उचित है । खरीदी हुई औषधियां ताजी होंगी ही, निश्‍चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता । वनस्‍पतियां पुरानी हों, तो उनकी परिणामकारकता अल्‍प हो जाती है । बाजार में मिलनेवाली अधिकतर औषधियों में मिलावट होती है । उनमें धूल, मिट्टी और अन्‍य कचरा भी होता है । इसके विपरीत, जब हम स्‍वयं औषधीय वनस्‍पतियां एकत्रित करते हैं, तब वे ताजी और शुद्ध मिलती हैं । ऐसी वनस्‍पतियां हम धोकर रख सकते हैं । इसलिए वे स्‍वच्‍छ भी रहती हैं । वनस्‍पतियां एकत्रित कर ठीक से सुखाकर हवाबंद डिब्‍बे में सुरक्षित रखने से साधारणत: १ से डेढ वर्ष तक उनका उपयोग कर सकते हैं ।

 

३. वनस्‍पतियों की जानकारी होने के लिए गांव के किसी जानकार अथवा परिचित वैद्य की सहायता लें !

छोटे गांवों के अधिकांश प्रौढ व्‍यक्‍तियों को अनेक औषधीय वनस्‍पतियों की जानकारी होती है । ऐसे व्‍यक्‍तियों को इस लेख में दी हुई वनस्‍पतियों के छायाचित्र दिखाकर वे वनस्‍पतियां कहां मिल सकती हैं, यह पूछकर इन वनस्‍पतियों को निश्‍चित रूप पहचान लीजिए । संभव हो तो अपने परिचित वैद्यों की सहायता भी ले सकते हैं । वैद्य औषधीय वनस्‍पतियां पहचानते ही हैं तथा उनका उपयोग कैसे करना है, इसका भी उन्‍हें ज्ञान होता है । एक कुशल वैद्य एक ही औषधीय वनस्‍पति का उपयोग विविध रोगों में प्रभावी रूप से कर सकता है । इस लेख में दी हुई वनस्‍पतियों के अतिरिक्‍त यदि कोई जानकार व्‍यक्‍ति अन्‍य वनस्‍पतियां बताता है, तो उनका भी उचित मात्रा में संग्रह कर रख सकते हैं ।

 

४. औषधीय वनस्‍पतियां एकत्रित करने से संबंधित कुछ प्रायोगिक सूत्र

अ. घर से बाहर निकलने से पहले प्रार्थना करें और घर लौटने पर कृतज्ञता व्‍यक्‍त करें ।

आ. गंदगी, अपशिष्‍ट जल, दलदल, श्‍मशान भूमि आदि स्‍थानों पर उगी हुई वनस्‍पतियां एकत्रित न करें । जिस स्‍थान से औषधीय वनस्‍पतियां एकत्रित करनेवाले हैं, वह स्‍थान स्‍वच्‍छ होना चाहिए ।

इ. उस परिसर में प्रदूषण उत्‍पन्‍न करनेवाले, विशेषतः हानिकारक रासायनिक पदार्थ छोडनेवाले कारखाने नहीं होने चाहिए ।

ई. फफूंद अथवा कीडे लगी हुई तथा रोगी वनस्‍पतियां न लें ।

उ. विषैले वृक्ष पर लगी हुई औषधीय वनस्‍पतियां न लें, उदा. कजरा के वृक्ष पर लगी हुई गिलोय न लें ।

ऊ. जिस स्‍थान पर मन को कष्‍टदायक स्‍पंदन प्रतीत होते हों, उस स्‍थान की वनस्‍पतियां न लें ।

ए. वनस्‍पतियों की निश्‍चित पहचान हुए बिना वनस्‍पति न लें । गलत वनस्‍पतियों का उपयोग होने पर हानिकारक परिणाम भी हो सकते हैं । इसलिए जानकार व्‍यक्‍ति से वनस्‍पतियों की निश्‍चित पहचान करवाकर ही लें ।

ऐ. सूर्यास्‍त के उपरांत औषधीय वनस्‍पतियां न तोडें ।

 

५. औषधीय वनस्‍पतियां एकत्रित करने पर की जानेवाली प्रक्रिया

अ. एकत्रित की हुई वनस्‍पतियां रस्‍सी से एकत्रित बांधकर उन पर तुरंत नाम लिखकर थैली में भरें ।

आ. घर लाकर धोकर स्‍वच्‍छ कर लीजिए । वनस्‍पतियां धोते समय उनके बीज व्‍यर्थ न जाने दें । इसके लिए धोने से पहले उन्‍हें अलग निकालकर रखें । वनस्‍पतियां जड से उखाडी हों, तो उनकी जडें कैंची से काटकर पेड से अलग करें । जडों में मिट्टी लगी होती है । अतः जडें अलग से धोएं, जिससे उनकी मिट्टी अन्‍य वनस्‍पतियों पर न लगे ।

इ. वनस्‍पतियां स्‍वच्‍छ धोने के लिए उन्‍हें आधे से एक घंटे तक पानी में डुबोकर रखें । इससे उन पर लगी हुई धूल तथा अन्‍य मैल भीगकर शीघ्र अलग होने में सहायता होती है ।

ई. गीली वनस्‍पतियों के छोटे टुकडे करके रखें ।

उ. वनस्‍पतियां धोने के उपरांत धूप में अच्‍छे से सुखाएं । सुगंधित वनस्‍पतियों को धूप में न सुखाकर छाया में सुखाएं । सूखी हुई वनस्‍पतियों पर आगामी प्रक्रिया यदि तुरंत न करनी हो, तो उन्‍हें प्‍लास्‍टिक की थैलियों में नाम लिखकर सीलबंद कर रखें । सीलबंद की हुई वनस्‍पतियों की थैलियां हवाबंद डिब्‍बे में रखें ।

ऊ. सुखाई हुई वनस्‍पतियां अथवा उनके चूर्ण का उपयोग न किया जा रहा हो, तो निश्‍चित अवधि के पश्‍चात उनकी सुस्‍थिति का निरीक्षण करें ।

ए. वनस्‍पति के सूखे हुए छोटे टुकडों का मिक्‍सर में बारीक चूर्ण बनाकर रखें । मिक्‍सर में पीसे हुए चूर्ण को आटे की छलनी से छान लें । छलनी में जो सामग्री शेष रहती है, उसे पुनः एक बार मिक्‍सर में बारीक कर लें अथवा उसे अलग से थैली में रख दें । वनस्‍पति के चूर्ण को छानने के पश्‍चात जो मोटी सामग्री शेष रह जाती है, उसे ‘यवकूट चूर्ण’ कहते हैं । चूर्ण का उपयोग पेट में लेने अथवा लेप करने के लिए तथा यवकूट चूर्ण का उपयोग काढे के लिए कर सकते हैं । सर्व चूर्ण एकत्रित भरकर रखने के स्‍थान पर साधारणतः १५ चम्‍मच चूर्ण की छोटी-छोटी थैलियां भरें । प्रत्‍येक थैली पर चूर्ण का नाम और उत्‍पादन दिनांक लिखकर उन्‍हें सीलबंद कर हवाबंद डिब्‍बे में रखें । इससे चूर्ण अधिक सुरक्षित रहता है ।

 

६. वनस्‍पतियां एकत्रित करते समय मिलनेवाले बीजों से उनकी रोपाई भी करें !

कुछ वनस्‍पतियां प्राकृतिक रूप से अधिक मात्रा में उपलब्‍ध हों, तो उनकी रोपाई करना इष्‍ट होता है । रोपाई करने से हमारी आवश्‍यकतानुसार कभी भी वे वनस्‍पतियां उपलब्‍ध हो सकती हैं । औषधीय वनस्‍पतियां एकत्रित करते समय उस वनस्‍पति का बीज भी अलग निकालकर रखें । जिनके लिए संभव हो, वे इन वनस्‍पतियों की रोपाई अपने आंगन अथवा कृषि भूमि पर करें । किन वनस्‍पतियों की रोपाई करनी चाहिए, आगे उस उस वनस्‍पति की जानकारी में यह दिया गया है ।

 

७. मार्ग से आते-जाते समय दिखाई देनेवाली वनस्‍पतियों का निरीक्षण करने की आदत बनाएं !

हम आते-जाते अनेक वनस्‍पतियां देखते रहते हैं; परंतु हमें यह ज्ञात नहीं होता कि वे औषधीय वनस्‍पतियां हैं । इस लेख में दी हुई वनस्‍पतियां सर्वत्र दिखाई देती हैं । ये वनस्‍पतियां ऐसी हैं, जिन्‍हें मार्ग से आते-जाते सहजता से पहचाना जा सकता है । इनका तथा अन्‍य वनस्‍पतियों का निरीक्षण करने तथा उन्‍हें पहचानने की हमें आदत बना लेनी चाहिए, जिससे भीषण आपातकाल में हम उनका उपयोग कर पाएं ।

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१८.११.२०२०)

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