श्रीरामजन्मभूमि हिन्दुओं को पुनः दिलाने में जगद्गुरु रामभद्राचार्य का योगदान

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अयोध्या में ५ अगस्त २०२० को भव्य श्रीराममंदिर का भूमिपूजन हुआ और निर्माणकार्य भी आरंभ हो गया है । श्रीराममंदिर के लिए न्यायालय में प्रभु श्रीराम के अस्तित्व से श्रीरामजन्मभूमि के अस्तित्व तक के अनेक प्रमाण देने पडे । तब हिन्दुओं को यह ऐतिहासिक विजय मिली । इस विजय में अनेक लोगों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष योगदान है ।

उच्चतम न्यायालय में जब श्रीरामजन्मभूमि प्रकरण की सुनवाई हो रही थी, तब हिन्दुओं के पक्षकार के रूप में धर्मचक्रवर्ती, तुलसीपीठ के संस्थापक, पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित, जगद्गुरु रामभद्राचार्य उपस्थित थे । ये विवादित भूमि पर श्रीरामजन्मभूमि के पक्ष में एक के बाद एक अनेक अकाट्य धर्मशास्त्रीय प्रमाण दे रहे थे । तब, ५ न्यायाधीशों की संविधानपीठ में से एक न्यायाधीश ने हिन्दुओं के अधिवक्ता से पूछा, आप लोग प्रत्येक विषय में वेदों को प्रमाण मानते हैं, तो क्या इस प्रकरण में वेदों से प्रमाण दे सकते हैं कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में उसी स्थान पर हुआ था ? इस पर प्रज्ञाचक्षु जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने तुरंत कहा, हां दे सकते हैं, महोदय ! पश्‍चात उन्होंने ऋग्वेद की जैमिनीय संहिता का उदाहरण बताना आरंभ किया । इसमें, शरयू नदी से जन्मस्थान की दिशा और अंतर आदि की अचूक जानकारी थी, जो पूर्णतः सत्य पाई गई ।

 

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का परिचय

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का मूल नाम गिरिधर मिश्र है । इनका जन्म १४ जनवरी १९५० को जौनपुर जनपद (उत्तर प्रदेश) के सांडीखुर्द गांव में हुआ है । ये प्रज्ञाचक्षु हैं । जब ये दो मास के थे, तभी उनकी दृष्टि चली गई । इसलिए, ये पढ-लिख नहीं सकते तथा ब्रेल लिपि का भी उपयोग नहीं करते; केवल सुन सकते हैं और अपनी रचनाएं दूसरों की सहायता से लिखवा लेते हैं । ये २२ भाषाएं जानते हैं तथा इन्होंने ८० ग्रंथों की रचना की है, जिनमें महाकाव्यों का (संस्कृत और हिन्दी) का भी समावेश है । गोस्वामी तुलसीदास के साहित्य के सर्वश्रेष्ठ अध्ययनकर्ताओं में इनकी गणना की जाती है ।

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का चित्रकूट (मध्य प्रदेश) में प्रसिद्ध आश्रम है । ये एक प्रसिद्ध विद्वान, शिक्षाशास्त्री, बहुभाषिक, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिन्दू धर्मगुरु हैं । ये संन्यासी हैं, रामानंद संप्रदाय के वर्तमान ४ जगद्गुरु रामानंदाचार्यों में एक हैं तथा वर्ष १९८८ से इस पद पर विराजमान हैं । इसके अतिरिक्त, ये चित्रकूट में ‘तुलसीपीठ’ नाम से धार्मिक और सामाजिक कार्य से संलग्न ‘जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्‍वविद्यालय’ के संस्थापक तथा आजीवन कुलाधिपति हैं । वर्ष २०१५ में इन्हें भारत सरकार ने पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है ।

(संदर्भ : सामाजिक माध्यमांवरून)

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