हर्षल, नेपच्युन तथा प्लुटो ये अंग्रेजी नामवाले ग्रह भारतीय ज्योतिषशास्त्र में कैसे ?

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हर्षल, नेपच्युन तथा प्लुटो इन ग्रहों का शोध चाहे आधुनिक युग में किया गया हो; परंतु उससे पहले भी उनका अस्तित्व था और ग्रंथों में उनका उल्लेख भी मिलता है । महाभारत में उनका उल्लेख क्रमशः प्रजापति, वरुण तथा इंद्र (कुबेर) इन नामों से किया गया है । आज भी विशेषरूप से वरुण का अन्य ग्रहों के साथ आज भी पूजन किया जाता है ।

श्रीमती प्राजक्ता जोशी

१. हर्षल (प्रजापति)

हर्षल नामक एक संगीत विशेषज्ञ ने १३ मार्च १७८१ को इस ग्रह का अविष्कार किया । यह ग्रह सूर्य से १७८२ दशलक्ष मील दूर है तथा उसका व्यास ३२००० मील है । यह बहिर्गोल ग्रह सामान्य आंखों से दिखाई नहीं देता । केवल बडी दुरबीन से ही उसे देखा जा सकता है । यह ग्रह एक राशि में ७ वर्षोंतक वास करता है । उसे सूर्य की परिक्रमा करने में ८४ वर्ष लगते हैं । हर्षल तमोगुणी ग्रह है । इस ग्रह के अन्य ग्रहों के योग में होने से शुभ फल देता है । बुध ग्रह की अपेक्षा इसका कार्य व्यापक होने से यह अनुसंधानात्मक बुद्धि का कारक ग्रह है । इस ग्रह के राक्षसगणी नक्षत्र में अथवा अशुभ ग्रह से युक्त होने से अकस्मात अनिष्ट घटनाएं होती हैं । हर्षल का स्वगृह कुंभ, उच्च स्थान वृश्‍चिक तथा नीच स्थान वृषभ है । बौद्धिक राशि में (३,७ तथा ११) अच्छे फल, पृथ्वी राशि में (२,६ तथा १०) हठीले, अग्नि राशि में (१,५ तथा ९) अविचारी और उथले तथा जलराशि में (४,८ तथा १२) विषयासक्त तथा उछले स्वभाववाले फल देता है ।

 

२. नेपच्युन (वरुण)

यह सामान्य आंखो से दिखाई न देनेवाला सूर्यमाला का एक बहिर्गोल ग्रह है । यह ग्रह रवि से सबसे दूर का ग्रह है तथा लगभग २ अरब, ७४ कोटि ८ लाख मील दूर है । इसे सूर्य की परिक्रमा करने में १४६ वर्ष और ६ मास लगते हैं । नेपच्युन का व्यास ३२९० मील है । यह एक राशि में १२ वर्ष ३ मासतक रहता है । यह जलतत्त्व का ग्रह है । इसका अभा परिक्रमा काल ३६७५ दिनों का है । यह अनुमानित काल है । (अभा का अर्थ एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश का काल ।) यह ग्रह भी शनि की भांति पापग्रह माना जाता है । इसका १ उपग्रह है वैज्ञानिको ंने २३ सितंबर १८४६ को इस ग्रह का अविष्कार किया । यह स्री-ग्रह है तथा भावनाशील और संवेदनक्षम है । इस ग्रह का प्रभाव मनुष्य के प्रत्येक अंगपर है, उदा. आंखों के ज्ञानतंतु (रेटिना), शरीर के ज्ञानतंतु, टीका इत्यादि.

 

३. प्लुटो (इंद्र अथवा कुबेर)

वर्ष १८५७ मे प्लुटो ग्रह का अविष्कार किया गया । वह एक राशि में लगभग २५ से ३३ वर्षोंतक रहता है । इसका भ्रमणमार्ग तथा भ्रमणपद्धति चमत्कारिक पद्धति का है; क्योंकि वह एक ही बाजू में अधिक मुडता है । इसके भ्रमण का आधा काल अधिक छोटा, तो दूसरा आधा काल बहुत बडा होता है । प्लुटो तमोगुणी ग्रह है ।

– श्रीमती प्राजक्ता जोशी, महर्षि अध्यात्म विश्‍वविद्यालय, ज्योतिष फलित विशारद (१४.११.२०१८)

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