श्रीमती उमा रविचंद्रन् द्वारा बनाए व्यष्टि और समष्टि भाव दर्शानेवाले चित्र एवं उन चित्रोंकी विशेषताएं

‘भाव’ शब्दसे ही अध्यात्मविश्व आरंभ होता है । साधक एवं संतों का ईश्वरके प्रति उत्कट भाव विविध माध्यमोंसे व्यक्त होता है । इस अभिव्यक्तिसे ही अनेक बार अमर कलात्मक रचनाएं जन्म लेती हैं । संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम जैसे अनेक संतोंके उत्कट भावसे निर्मित रचनाएं अक्षय मिठाससे भरी हैं । यह वाङ्मय भाषा, व्याकरणादि दृष्टिसे भी परिपूर्ण पाया जाता है । उत्तम साधककी भावावस्था भी विविध कलाओंके माध्यमसे व्यक्त होती है और ऐसी कलानिर्मिति निर्दोष एवं आनंददायी होती है । सनातन संस्थाकी चेन्नईकी साधिका श्रीमती उमा रविचंद्रन्के चित्र इसका उत्कृष्ट उदाहरण है ।

श्रीमती उमाद्वारा बनाए गए बालभावयुक्त चित्रोंकी अनेक आध्यात्मिक विशेषताएं हैं, उदा. इन चित्रोंसे सेवाभाव व्यक्त होना, चित्र देखनेवालेमें कृतज्ञभाव जागृत होना इत्यादि । उनके चित्र कलाकी दृष्टिसे भी अत्यंत सुंदर हैं और उनमें उत्कृष्टताके अनेक लक्षण दिखाई देते हैं, उदा. ‘श्रीकृष्णके स्वेदबिंदु (पसीना) पोंछनेकी सेवा करनेवाली बालिका’के चित्रमें श्रीकृष्णके माथेका पसीना पोंछनेके लिए बालभावयुक्त साधिका अपने तलवोंपर खडी है । प्रत्येक चित्रमें इस प्रकारकी अनेक सूक्ष्मताएं (बारीकियां) हैं ।

आध्यात्मिक मिठाससे परिपूर्ण और बालकोंकी निर्मलताका अनुभव देनेवाले ये चित्र बच्चे-बूढे सभीको अवश्य भाएंगे, साथ ही साधनामें भाववृद्धिके लिए सहायक होंगे ।

 

श्रीमती उमा रविचंद्रन् (उमा अक्का) की विशेषताएं

१. श्रीमती उमाके चित्रोंमें उनका भगवान श्रीकृष्णके प्रति बालभाव झलकता है । विविध चित्र बनानेके उपरांत उन्हें कुछ चित्रोंके विषयमें सारणियोंके रूपमें आध्यााqत्मक ज्ञान भी प्राप्त हुआ है । यह न केवल सनातन संस्थामें, अपितु भूतलपर इस प्रकारकी कलात्मक अभिव्याqक्तका एकमात्र उदाहरण है !

२. ‘श्रीमती उमा अक्काद्वारा बनाए चित्र, चित्रोंके माध्यमसे व्यक्त अवर्णनीय ‘बालभाव’ इत्यादि इतिहासका एकमात्र उदाहरण है !

३. कुछ भक्तिमार्गी साधक बालभावमें, तथा कुछ गोपीभावमें रहते हैं । दिनभर वे उसी भावमें रहते हैं । श्रीमती उमा अक्काकी विशेषता यह है कि वे चित्र बनानेतक बालभावमें रहती हैं । तदुपरांत पारिवारिक और धर्मजागृतिका उत्तरदायित्व संंभालते समय तदानुरूप अवस्थामें रहती हैं । 

       साधनापथपर मार्गक्रमण करते समय साधककी साधना एक स्तरतक बढनेपर उसका ईश्वरके प्रति भाव जागृत होता है । ईश्वरकी ओर देखनेका दृष्टिकोण साधकके भावानुरूप भिन्न होता है, उदा. अर्जुनका भगवान श्रीकृष्णके प्रति सख्यभाव, हनुमानजीका दास्यभाव आदि । इसी प्रकार साधना बढनेपर सनातन संस्थाकी चेन्नईकी (तमिलनाडुकी) साधिका श्रीमती उमा रविचंद्रन्में ‘मैं श्रीकृष्णकी छोटी बालिका हूं । भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे माता, पिता, बंधु, सखा एवं सर्वस्व हैं’, ऐसा बालभाव निर्मित हुआ है । श्रीमती उमाजीमें श्रीकृष्णके प्रति विद्यमान सुप्त भावका प्रकटीकरण चित्रोंके माध्यमसे हुआ । उनका उत्कट भाव उनके द्वारा बनाए चित्रोंके माध्यमसे भी व्यक्त होता है और इसीलिए ऐसा लगता है कि इन चित्रोंको देखते ही रहें । इन चित्रोंमें बालिकाके स्थानपर हम अपनेआपको अनुभव करते हैं ।

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘बालभाव’में रेखांकित चित्र (भाग २)

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