दत्तके कार्य एवं विशेषताएं

Datta

सारिणी

१. भगवान दत्तात्रेयकी विशेषताएं

२. शैव एवं वैष्णव

३. नित्यक्रम

४. अवतार

५. परिवारका भावार्थ

६. मूर्तिविज्ञान

७. झोली अहं नष्ट होनेका प्रतीक


 

१. भगवान दत्तात्रेयकी विशेषताएं

१.१ गुरुतत्त्वका आदर्श एवं योगके उपदेशक (शांडिल्योपनिषद्) : दत्तके अलर्क, प्रह्लाद, यदु, सहस्त्रार्जुन, परशुराम इत्यादि शिष्य प्रसिद्ध हैं ।

१.२ तंत्रशास्त्रके आचार्य (त्रिपुरासुंदरीरहस्य)

१.३ उन्नतवत् वर्तन करनेवाले, (कृष्णके समान ही) विधिनिषेधरहित (मार्कंडेयपुराण)

१.४ स्वेच्छाविहारी एवं स्मर्तृगामी (स्मरण करनेवालोंको शीघ्र दर्शन देनेवाला)

१.५ दत्त एवं शिव देवता वैराग्य प्रदान करते हैं । (शेष देवता सबकुछ देते हैं ।)

१.६ समन्वयका प्रतीक

१.७ वर्णाश्रमधर्मकी प्रतिष्ठाको बनाए रखनेवाले । (वर्णाश्रमविषयक जानकारी सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘वर्णाश्रमव्यवस्था’में दी है ।)

 

२. शैव एवं वैष्णव

भगवान दत्तात्रेयके गुरुरूपके कारण, इन दोनों संप्रदायोंके लोगोंको उनके प्रति अपनापन लगता है । अतृप्त पूर्वजोंद्वारा कष्टसे मुक्ति देनेवाला, अनिष्ट शक्तियोंके कष्टका निवारण करनेवाला

 

३. नित्यक्रम

३.१ निवास : मेरुशिखर

३.२ प्रातःस्नान : वाराणसी (गंगातट)

३.३ आचमन : कुरुक्षेत्र

३.४ चंदनका उबटन लगाना : प्रयाग (पाठभेद – तिलक लगाना : पंढरपुर, महा.)

३.५ प्रातःसंध्या : केदार

३.६ विभूतिग्रहण : केदार

३.७ ध्यान : गंधर्वपत्तन (पाठभेद – योग : गिरनार, सौराष्ट्र, गुजरात.)

३.८ दोपहरकी भिक्षा : कोल्हापुर

३.९ दोपहरका भोजन : पांचाळेश्वर (बीड जन., महाराष्ट्र) गोदावरी नदीकी तहमें

३.१० तांबूलभक्षण : राक्षसभुवन, जनपद बीड, मराठवाडा

३.११ विश्राम : रैवत पर्वत

३.१२ सायंसंध्या : पश्चिम सागर

३.१३ पुराणश्रवण : नरनारायणाश्रम (पाठभेद – प्रवचन एवं कीर्तन सुनना : नैमिषारण्य, उत्तरप्रदेश)

३.१४ निद्रा : माहूरगड, जनपद नांदेड, महाराष्ट्र. (पाठभेद : सह्य पर्वत)

इनमेंसे २, ८ एवं १४ क्रमांकके स्थान प्रसिद्ध हैं । दत्तात्रेय स्वाधिष्ठानचक्रसे संबंधित देवता हैं ।

 

४. अवतार

श्रीधरस्वामीकृत रामविजय, अध्याय १३, पंक्ति २१ का भावार्थ

भगवान दत्तात्रेय गुरुतत्त्वका कार्य करते हैं, इसलिए जबतक सभी लोग मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेते, तबतक दत्त देवताका कार्य चलता ही रहेगा । भगवान दत्तात्रेयने प्रमुखरूपसे कुल सोलह अवतार धारण किए । प.पू. वासुदेवानंद सरस्वतीकृत ‘श्री दत्तात्रेय षोडशावताराः ।’ में इन अवतारोंकी कथाएं हैं ।

 

५. परिवारका भावार्थ

५.१ गाय (पीछेकी ओर खडी)

पृथ्वी एवं कामधेनु (इच्छित फल देनेवाली)

 

५.२ चार कुत्ते (श्वान)

चार वेद, गाय एवं कुत्ते (श्वान) एक प्रकारसे दत्त देवताके अस्त्र भी हैं । गाय सींग मारकर एवं कुत्ते (श्वान) काटकर शत्रुसे रक्षा करते हैं ।

 

५.३ उदुंबरका (गूलरका) वृक्ष

दत्त देवताका पूजनीय रूप; क्योंकि उसमें दत्तात्रेय तत्त्व अधिक मात्रामें रहता है ।

 

६. मूर्तिविज्ञान

प्रत्येक देवता एक तत्त्व है । यह देवता-तत्त्व प्रत्येक युगमें होता है एवं कालानुरूप सगुण रूपमें प्रगट होता है, उदा. भगवान श्रीविष्णुद्वारा कार्यानुमेय धारण किए हुए नौ अवतार । मानव, कालानुसार देवताको विविध रूपोंमें पूजने लगता है । वर्ष १००० के आसपास दत्तकी मूर्ति त्रिमुखी हो गई; इससे पूर्व वह एकमुखी थी । दत्तकी त्रिमुखी मूर्तिमें प्रत्येक हाथमें धारण की गई वस्तु किस देवताका प्रतीक है, यह आगेकी सारणीमें दिया है ।

 

हाथमें धारण की गई वस्तुएं किस देवताका प्रतीक ?
१. कमंडलु (टिप्पणी १) एवं जपमाला ब्रह्मदेव
२. शंख एवं चक्र श्रीविष्णु
३. त्रिशूल (टिप्पणी २) एवं डमरू शंकर

टिप्पणी १ : ‘कमंडलु त्यागका प्रतीक – कमंडलु एवं दंड, ये वस्तुएं संन्यासीके साथ रहती हैं । संन्यासी विरक्त होता है । कमंडलु एक प्रकारसे त्यागका प्रतीक है; क्योंकि कमंडलु ही उसका ऐहिक धन होता है ।’

टिप्पणी २ : ‘त्रिमूर्तिरूपमें विद्यमान महेशके हाथका त्रिशूल एवं भगवान शिवके हाथका त्रिशूल – त्रिमूर्तिरूपमें महेशके हाथका त्रिशूल एवं भगवान शिवके हाथके त्रिशूलमें विशेष अंतर दिखाई देता है । त्रिमूर्तिरूपमें महेशके हाथमें जो त्रिशूल है उसपर शृंग एवं वस्त्र दिखाई नहीं देता । इसका कारण है, शृंग बजानेके लिए दत्तके पास रिक्त हाथ नहीं है । त्रिशूलपर जो वस्त्र है वह ध्वजका प्रतीक है ।’

 

७. झोली अहं नष्ट होनेका प्रतीक

दत्तात्रेयके कंधेपर एक झोली होती है । इसका भावार्थ निम्नानुसार है – झोली मधुमक्षिकाका (मधुमक्खीका) प्रतीक है । मधुमक्खियां जिस प्रकार विभिन्न स्थानोंपर जाकर मधु एकत्र करती हैं एवं उसका भंडारण करती हैं, उसी प्रकार दत्त देवता घर-घर जाकर झोलीमें भिक्षा एकत्र करते हैं । घर-घर घूमकर भिक्षा मांगनेसे अहं शीघ्र अल्प होता है; इसलिए झोली अहं नष्ट होनेका भी प्रतीक है ।

 

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘दत्त – भाग १’

3 thoughts on “दत्तके कार्य एवं विशेषताएं”

  1. पहली बार इनके बारे मे पड़ा अच्छा लगा जानकर की तीनों देवताओ के गुण भगवान दत्त के अंदर है

    Reply

Leave a Comment