पर्यावरण के ऱ्हास के कारण निसर्गदेवता का कोप

भूकंप, ज्वालामुखी तथा त्सुनामी

पर्यावरण का ऱ्हास होने के कारण ही समुद्र के पेट में तीव्र भूकंप, ज्वालामुखी का उद्रेक अथवा भूकंप की घटना घटने से त्सुनामी लहरी निर्माण होने की संभावना रहती है । लहरों की आगे बढने की गति प्रति घंटा ८०० ते १ सहस्र किलोमीटर इतनी रहती है ।

 

पानी की कमतरता

अमरिका के परराष्ट्र उपमंत्री रॉबर्ट ब्लेक द्वारा यह भविष्य बताया गया है कि, ‘आगामी १५ वर्षोंं में पृथ्वी के दोन तृतीयांश परिसर को पानी की कमतरता प्रतीत होगी; किंतु भारत में केवल ९ वर्षों में ही वह तीव्र मात्रा में प्रतीत होगी ।’

हिमालय का बर्फ पिघलने के कारण गंगा तथा ब्रह्मपुत्रा के समान महानदियां तीव्र धूप के कारण बहती हैं । उससे किनारों की लक्षावधी एकड भूमि भिगती है । करोडों भारतियों की तृष्णापूर्ति करती हैं । किंतु यह चक्र ९ वर्ष में बंद होगा । ऐसा गंभीर संकेत ब्लेक द्वारा प्राप्त हुआ है । (११.३.२०११)

खेती, उर्जानिर्मिति तथा अन्य कारणों के लिए पानी मांग इतनी तीव्रता बढ जाएगी कि, उस मांग की तुलना में ४० प्रतिशत पानी की कमतरता प्रतीत होगी । एक पिढी के पश्चात् ही यह संकट हमारे सामने आएगा । उसमें भी यह विशेष बात है कि, बाढ तथा अकाल के समान घटना घटने की मात्रा बढ
जाएगी । पहले कभी १०० वर्ष में एक बार आनेवाला हवामान का तीव्र संकट अब २० वर्षों में दिखार्इ देने लगा है ।

 

अकाल तथा महाबाढ

यांत्रिकीकरण तथा पर्यावरण के ऱ्हास के कारण प्राकृतिक आपदाएं भविष्यकाल में बढ जाएंगी । आगामी २७ वर्षों में विश्व के ७५ प्रतिशत लोगों को अकाल एवं महाबाढ का सामना करना पडेगा । इस प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता सबसे अधिक प्रगतशील निर्धन देशों को प्रतीत होगी । मानव द्वारा किए गए यांत्रिकीकरण तथा वह करते समय अधिक मात्रा में हो रहे पर्यावरण के ऱ्हास के कारण निसर्ग का पर्यावरण चक्र असंतुलित हुआ है । उसके भयंकर परिणाम मानव को आगामी कालावधी में भुगतने पडेंगे । – ‘ख्रिश्चन एड’ (पर्यावरण का अभ्यास करनेवाली संस्था)

 

शक्कर उद्योगालय द्वारा कार्बनडाय ऑक्साईड वायु का प्रक्षेपण

शक्कर उद्योगालय के धुरांडे द्वारा ‘कार्बनडाय ऑक्साईड वायु अधिक मात्रा में बाहर फेंका जाता है । उसका परिणाम उद्योगालय के निकट होनेवाले पर्यावरण के घटकों पर होता है । रक्षा हवा में अंतर्भूत बाष्प सोककर लेती है । उससे हवा की शुष्कता बढती है तथा उसका परिणाम पर्यावरण पर होता है ।

 

प्लास्टिक के कारण दुर्धर व्याधी की निर्मिती

प्लास्टिक जलाने के पश्चात् उसमें से ‘झिंक’, ‘लेड कॅडमियम’ समान जड धातु, ‘बेन्झोपायरीन’, ‘डायेक्सिन क्लोरिनेटेड हायड्रोकार्बन’ के समान घातक वायु हवा में इकट्ठे होते हैं । उससे श्वसन के विकार तथा कर्करोग के समान दुर्धर व्याधी का उद्भव हो सकता है ।’

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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